
आदिमानव ने मानव के उद्भव के किंतने समय बाद मांस खाना सीखा? इस विषय में कोई जानकारी है? चूंकि मानव बिना सीखे शिकार नही कर सकता तो शुरू में उसने क्या खाया होगा?
भोजन वही होगा जो एक बच्चा प्राप्त कर सके। सोचिये एक मानव का बच्चा जिसने मां का दूध पीना छोड़ दिया हो, अगर जंगल में छोड़ दिया जाए तो वह क्या खायेगा? इसी में जवाब छुपा है कि मानव का भोजन क्या था।
मानव हथियार और झुंड के बल पर शिकार कर सका। इसका अर्थ है कि वह संगठित रहकर मांसाहारी जानवरों को मारता था (अपनी जान बचाने के लिये) इसी दौरान कुछ लोगों ने गलती से निरीह प्राणी भी मार डाले होंगे और उनको आपातकाल में उसको पका कर खाना पड़ा होगा जो कि मजबूरी दर्शाता है। कृमिरुप परिशेषिका इस बात का प्रमाण है कि मानव पहले सेलुलोस पचा लेता था और आज सेलुलोस कब्ज रोकने के काम आता है।
हम सब जानते हैं कि उतपरिवर्तन से रैंडम विकास हुआ। जो कि पूरी तरह से कॉस्मिक किरणों पर आधारित था। हम में से कोई विकसित नहीं हो रहा है। न कभी हुआ। बस जो सफल रहा प्रजनन करने में वही अपनी प्रजाति बना गया। इसे अगर क्रमानुसार सजाए तो इसे विकास की तरह मान सकते हैं।
उतपरिवर्तन सीधा हमारे गुणसूत्र पर होता है जो कि अगली पीढ़ी में जाता है। इससे विभिन्नता (diversity) आती है और जब यह अधिकतम होती है तब नई प्रजाति का निर्माण हुआ मानते हैं। जैसे गधा, घोड़ा, जेब्रा के पूर्वज कभी एक ही थे।
काफी समय से मानव घरों में और कपड़ों में छुप कर समय गुजार रहा है जिसके कारण उस के शरीर में ब्रहांड किरणों का लगभग प्रवेश बन्द हो गया है। इसलिये नई प्रजाति में रूपांतरण होना लगभग रुक सा गया है। अगर हम फिर से नग्न और खुले आकाश के नीचे रहना शुरू कर दें तो आकाश में होते परमाणु विस्फोटों से निकलने वाली गामा किरणे आपका आनुवंशिक डीएनए बदल देंगी और विकास या ह्वास तेजी से होने लगेगा। जो परिवर्तन फायदेमंद होंगे वे जीवित रहेंगे और जो नहीं उनके लिए प्रजनन के अवसर नहीं बचेंगे। फलतः खराब परिवर्तन वाले मानव समाप्त होंगे और बढ़िया परिवर्तन वाले मानव बचेंगे।
लेकिन ये अभी इसलिये भी रुका है क्योंकि आज मानव को सम्भोग के लिए साथी प्राकृतिक चुनाव से नहीं मिल रहे। जैसे एक जन्मजात विकलांग पुरुष एक स्वस्थ सामान्य महिला की पसन्द कभी नहीं बनेगा, परन्तु विवाह जबरदस्ती, धन के लालच में, उसका वंश बढ़ाएगा। इसी तरह मूर्ख लोग भी विवाह के ज़रिए साथी पा जाते हैं और अपनी खराब पीढ़ी को भी मानव जनसंख्या में शामिल कर देते हैं।
चेहरे की सुंदरता, शरीर का सुघड़ होना, रंग, बुद्धिमान होना, सेंस ऑफ ह्यूमर वाला होना, प्रतिभावान होना, लंबे समय तक सफलता से जीवित रहना, शक्तिशाली होना आदि तमाम कारक ही आपको प्रजनन का हक देते हैं। इससे इसी प्रकार के गुणों वाली पीढ़ी पैदा होती है। लेकिन आज विवाह जैसे स्वार्थी रिवाज ने इसे तोड़ दिया है। अब सिर्फ धनी होना ही आपके वंश को बढाने के लिये काफी है। आपको वंशवृद्धि का हक दिया गया है। जबकि मूर्ख और खराब शरीर के लोगों को अपना वंश नहीं बढाना चाहिये।
इस बात को जंतुविज्ञान में सुजननकी नाम से एक शाखा बना कर रखा गया है। इसका लक्ष्य केवल विद्वान, सुंदर और स्वस्थ शरीर के लोगों को बेहतरीन साथी उपलब्ध करवा कर वंशवृद्धि करना है। एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण जो बिना विवाह के केवल प्रतियोगिता से ही अपनी गुणी जनसंख्या बनाएगी। बेकार, खराब गुणवत्ता के लोगों को जीने का हक तो है लेकिन उनको बच्चा पैदा नहीं करने देना चाहिए। अन्यथा आज जो हो रहा है वह हमेशा होता रहेगा।
मूल में सिर्फ इतना है कि बिना प्रेम का विवाह ही दरअसल आपकी दुनिया की बर्बादी का कारण है। हर अपराधी के मूल में यही एकमात्र कारण होता है। बाकी परिस्थितियाँ भी इसी अवगुण के कारण ही पैदा होती हैं।
अपराधियों के शरीर में X gene पाया जाता है जो कि अपराध करने की प्रेरणा देता है। इसका पता तब चला जब अमीर लोगों को दुर्व्यवहार, चोरी, हत्या और बलात्कार करते पाया गया। इस X जीन ने यह साबित किया कि सज़ा अपराध को खत्म नहीं कर सकती। सज़ा देने वाली व्यवस्था केवल मजबूर व्यक्ति द्वारा किये गए गलत कार्य को ही पकड़ती है, जो मजबूरी में गलत कदम उठाते हैं। जैसे गरीब और असहाय लोग।
इसका प्रमाण है कि अधिकतर जेल गए अपराधी सुधरते नहीं बल्कि वे हिस्ट्रीशीटर बन जाते हैं। आज भी जब नए अपराधी पकड़े जाते हैं तो उनकी पिछली हिस्ट्री ज़रूर जांची जाती है। कानून भी मान गया है कि सज़ा सुधरने के लिये होती ही नहीं है बल्कि व्यक्ति को समाज से दूर रखने के लिए होती है। ये सभी मामले X जीन के उदाहरण हैं।
जो लोग सुधर जाते हैं दरअसल उन्होंने मजबूरी या क्रोध में अंधे होकर अपराध किया होता है। जबकि दूसरी तरफ कभी न सुधरने वाले विश्वास के साथ कानून कुछ दुर्दांत अपराधियों को उम्रकैद या मृत्युदंड देता है। ये भी X जीन का उदाहरण या उसका मिमिक है।
इसके अतिरिक्त 2 तरह के जीन मानवों में मुख्यतः पाए जाते हैं। 1. योद्धा (worriar) जीन 2. संत जीन। योद्धा जीन वाले लोग हर समय लड़ने को उतारू रहते हैं जबकि संत जीन वाले लोग डरपोक होते हैं।
लेकिन जब इनका परीक्षण किया गया तो परिणाम उल्टे निकले। पुजारियों, पादरियों, शांति दूतों के भीतर वॉरियर जीन निकला और गुंडों के भीतर शान्ति वाला डरपोक जीन निकला। इस पहेली को मनोवैज्ञानिक सुलझाने में कामयाब हुए।
दरअसल योद्धा जीन वाले लोगों ने शुरू में हिंसक कार्य किये थे और उनको कानून और लोगों द्वारा डराया और अपमानित किया गया था। इसलिये उन्होंने शांत रहने वाला जीवन चुन लिया जबकि जो बचपन से डरपोक थे उन्होंने सीख लिया था कि अब जीना है तो डरने से बात नहीं बनेगी। उनको डराना सीखना होगा। और वे खतरनाक होने का ढोंग करने लगे। इससे यह तो साफ हो गया कि गुंडे और सीधे दोनो ही लोग अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार करते हैं।
मैं भी सीधे होने का दिखावा करता हूँ। शांत रहता हूँ क्योंकि जब भी मेरा नियंत्रण खोया है जलजले आये हैं। कई बार लोग हैरान हुए क्योंकि उन्होंने मुझे डरपोक समझा था। लेकिन सच तो ये हैं कि मैंने बचपन में इतनी हिंसा कर ली थी कि अब अहिंसक होकर जीना ही श्रेष्ठ था। नहीं तो जेल में जीवन कटता। जब अपरिचित फ़िल्म पहली बार मुझे दिखाई गई तो मैं हैरान रह गया। सबका एक ही कहना था कि ये तो अपना Shubhanshu Singh Chauhan है। बस उसका खुद पर नियंत्रण पूरा है। पर्सनालिटी डिसऑर्डर नहीं है। तीनो पर्सनालिटी एक साथ रखता है। ~ Vegan Shubhanshu SC 2019©
Note: Crime Gene के बारे में यहाँ पढ़ें:
https://thebiologist.rsb.org.uk/biologist/158-biologist/features/903-crime-genes