Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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रविवार, मार्च 31, 2019

प्यार बांटते चलो ~ Shubhanshu

शुभ: एक बार में सिर्फ एक के साथ ही सम्बन्ध क्यों रखूँ?

धार्मिक स्त्री: एक बार में एक को ही तो प्यार कर सकते हैं। 1 से ज्यादा में प्यार बंट जाएगा।

शुभ: क्या हम प्यार को बांटे बिना रह सकते हैं? यह बताओ, तुम्हें प्यार करूँ या अपने माता-पिता-भाई-बहन को भी?

धार्मिक स्त्री: अब वो तो...

शुभ: बच्चा तो नहीं पैदा करना है? क्योंकि फिर हमारा प्यार उसमें भी बंट जाएगा। 1 से ज्यादा बच्चे पैदा हुए तो प्यार के और भी टुकड़े होंगे। क्या प्यार बिना बंटे रह सकता है?

धार्मिक स्त्री: अब वो मैं...

शुभ: तुमको कुत्ता भी पालना है। उसकी भी बहुत परवाह है तुम्हें। उसने भी तुम्हारा और मेरा प्यार बाँट लिया। फिर तुम तो धार्मिक हो, ईश्वर को सबसे ज्यादा प्यार करती हो जैसे मीरा का श्याम। फिर मैं भी शिव और राम की भक्ति करूँ, फिर देश से भी प्रेम करूँ तो प्यार के कितने टुकड़े करूँ? और जब इतने टुकड़े करने ही हैं तो फिर ये सौत कह कर अपनी ही साथी और मेरी प्रेमिका का अपमान क्यों? क्या यह सिर्फ तुम्हारी सम्पत्ति पर एकछत्र कब्जे की गन्दी नियत नहीं है?

धार्मिक स्त्री: ओह! ऐसा तो मैंने कभी सोचा ही न था। सॉरी शुभ। मुझे लोगों ने बुरा बना दिया था। अब मैं भी किसी को पसन्द करुँगी तो तुमको बता कर उसके साथ समय बिताउंगी। कोई समस्या तो नहीं?

शुभ: बिल्कुल! बात बराबरी की है तो रहेगी। बस कोई यौन गुप्त रोग मत ले आना। जैसे मैं प्रोटेक्शन रखना चाहता हूँ तुम भी रखना।

धार्मिक स्त्री: कौन हो आप गुरुदेव? मुझे जीत लिया आपने।

बातें बड़ी करते हैं लोग कि प्यार बांटते चलो लेकिन जब बांटने की बारी आती है तो नफरत से भर उठते हैं। ये कमिटमेंट करने की प्रथा खत्म करो। आप खुद को धोखा नहीं दे सकते। आपकी बायोलॉजी और कैमिस्ट्री ही ऐसी है कि एक ही व्यक्ति से जुड़ा नहीं रख सकती आपको। प्यार बांटने की चीज़ है। इसे बांटो। किसी को मना मत करो। सभी को अपना लो। सबको आत्मनिर्भर रखो। किसी का भार मत उठाओ। life एक है और इसे जीने का हक है सिर्फ आपका। 2019/03/31 15:17 ~ Shubhanshu 2019©

काहे का चुनाव? ~ Shubhanshu

मतदाता सिर्फ लालची है। उसे देश और देश के खजाने को संभालने वाले से कोई मतलब नहीं। अपने ही खजाने को दूसरे को देकर उससे कुछ सिक्के लेने की आशा ही चुनाव है। जो कि कभी पूरी होती ही नहीं। देश को अपने हाथों में लीजिये। किसी नेता को देश चलाने का हक मत दीजिये। सिस्टम बनाइये, विभाग बनाइये लेकिन नेता मत बनाइये। इनका कोई काम नहीं है, ये सिर्फ माल उड़ाने के लिए ही बीच में पड़े हुए हैं। सारी समस्या यही पैदा करते हैं। ये न हों तो देश विश्व पर राज करे। ~ Shubhanshu 2019©

रविवार, मार्च 24, 2019

धर्ममुक्त समाज यानि वर्जना मुक्त समाज ~ Shubhanshu

(धार्मिक दुनिया में)

स्थिति 1

पुरूष: क्या आप मेरे साथ सेक्स करोगी?

स्त्री: बचाओ! बचाओ! ये मेरा रेप कर रहा है।

पुरुष: अरे एक तो तमीज़ से पूछ रहा हूँ उस पर ऐसा आरोप?

लोग: मारो साले को। मार डालो साले को।


स्थिति 2

स्त्री: क्या आप मेरे साथ सेक्स करोगे?

पुरुष: कितने लोगी?

स्त्री: अरे पागल हो क्या? पैसे के लिये थोड़े ही पूछ रही हूँ।

पुरुष: फिर रहने दे। साला ज़रूर कोई लंगड़ है। एड्स है क्या? फ्री में कोई न आती ऐसे। अरे देखो कैसी हरामी लड़की है। साली चुड़ैल है ये तो। मुझे मारने आयी है। किसने भेजा तुझे?

लोग: साली रंडी, चुड़ैल। अरे जला दो इसे सब मिल कर।

सोचिये इस तरह के समाज में सेक्स सुलभ नहीं है तो बलात्कार करने के अवसर बढ़ेंगे ही क्योंकि सिर्फ व्यवस्था विवाह ही अगर सेक्स की सुलभता है तो क्या वह पूछने जैसा आसान है? क्या आप जिससे चाहें उससे खाली हाथ विवाह कर सकते हैं? क्या वह विवाह आपके चाहने भर से हो जाएगा? सोचिये ज़रा।

सज़ा देने से क्या लाभ उनको जो खुद ही सज़ा भोग रहे हैं अकेलेपन की और जिसे चाहते है उसे खोकर। जो बलात्कार करता है वह मर ही जाना चाहता है। उसे मार कर भी क्या बदलेगा? सोचिये ज़रा इस तरह भी। शायद कुछ बदलाव आये।

धर्ममुक्त समाज में कोई किसी के लिए नहीं तड़पेगा और न ही कभी बलात्कारी पैदा होंगे। सेक्स सबके लिए सुलभ होगा और उसे इतना ही जरूरी और सामान्य समझा जाएगा जैसे प्यासे के लिए जल का उपलब्ध होना। लिंगानुपात समान और टैबू खत्म होगा तो कुंठा जैसी भारी समस्या समाप्त हो जायेगी। ~Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

शनिवार, मार्च 23, 2019

संघ में भर्ती होने गया शुभ ~ Shubhanshu

संघ: परीक्षा देनी होगी। ये बताओ जो मूर्ति हमने लगवाई है, सब थूक रहे। आपका क्या कहना है?

शुभ: 3000 करोड़ की चीन से डील करके बहुत बढ़िया कार्य किया गया है। चीन को इस मेहनत के लिए शत शत नमन। हमारी क्या औकात जो make in india कर सकें। हम कोई चीन से आगे थोड़े ही न हैं। 2 बार आक्रमण करके इस देश ने जो भी किया उसे 1 डील से भुलाने का बहुत शानदार कार्य किया गया है इसके लिए आपको भी शतशत नमन क्योकि आपकी ही एक शाखा राजनीति में इस समय सक्रिय है जिसके कर कमलों से महान वैज्ञानिक रिसर्च और प्रोजेक्ट्स को वित्तीय सुविधा देने के कार्य को रोक कर इस महान मूर्ति को प्राथमिकता दी गई। उसका बजट इसमें लगवा दिया इससे देश में विज्ञान की बातें करनी कम होंगी और धर्म से लोग ज्यादा जुड़ेंगे। साथ ही अगले सत्र के लिए सीट भी पक्की करनी है। क्रांतिकारी को सामने रखने से जनता इमोशनल flower बनके fool को वोट देगी और हम लोगो को वेतन मिलेगा। तो sir कैसा रहा मेरा विश्लेषण?

संघ: अरे, इसे कौन लाया था, उसे भेजो इधर? तुम जाओ बेटा। अभी जगह कम है यहाँ। फिर कभी try करना।

संघ में भर्ती हमारा दोस्त: जी सर, क्या हुआ? कोई समस्या?

संघ: देखो, अपना बोरिया बिस्तर लेकर निकल लो।

दोस्त: लेकिन sir ये तो भक्त है। इसने क्या गलत कह दिया भला?

संघ: देख बे, भक्त है मानते हैं। इसीलिए ज़िंदा भेज रहें हैं लेकिन हमें अंधभक्त चाहिए। समझा? ये तो साला सत्यवादी हरीशचंद्र का बाप लग रहा है। 2 मिनट पहले तो मैं अपना इस्तीफा तक देने की सोचने लगा था। फिर साला होश आया कि नहीं, ये साला कोई जादू कर रहा है हम पर। बस फिर क्या था हम फिर से संभल गए लेकिन बाकी लोगों की मुझे कल एक्स्ट्रा क्लास लेनी पड़ेगी क्योंकि साला आज हमारी कोई बात ही नहीं मान रहा है। कोई बोला कि बात तो सही कह रहा है लौंडा। गलती हुई है। हद हो गई यार। अब निकल बे। कोई और शाखा जॉइन कर ले। इधर मत आना तुम दोनों। खाल उतार के भूसा भरवा दूँगा। जय श्री आम। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019© Vegan

रविवार, मार्च 17, 2019

धर्ममुक्त का अर्थ है Religion Free ~ Shubhanshu

मुझे लगता है नास्तिक शब्द अब पुराना हो चुका है। धर्ममुक्त से ही सब स्प्ष्ट हो जाता है कि कोई नाटक शेष नहीं है। हमने दरअसल युक्तिवाद का नाम ही बदल कर धर्ममुक्त रखा था क्योंकि कुछ आस्तिक इसका दुरूपयोग कर रहे थे और दूसरी तरफ नास्तिकता के नाम पर बौद्ध, जैन, tao, कन्फ्यूशियस जैसे धर्मों का प्रचार हो रहा था जोकि पाखण्ड (मूर्खता) से भरे पड़े हैं।

अभी भी धर्ममुक्त को लोग आस्तिक होने के साथ भी अपनाना समझते हैं जबकि ये युक्तिवाद ही है जिसमें इंसान स्वतन्त्र हो जाता है। धर्म का मतलब कोई गुण, रंग, या धारण करना कतई नहीं है। ये बहस करना शातिर मूर्खो द्वारा उलझाने की घटिया मानसिकता मात्र है। सभी जानते हैं कि धर्म का अनुवाद religion ही आता है और जिसे मजहब, सम्प्रदाय, पंथ आदि नामों से भी बुलाया जाता है। हम उसी पंजीकृत धर्मों की सूची की बात करते हैं। जिसमें 4200 औपचारिक धर्म शामिल हैं।

जब भी आपको कोई धर्म की तमाम परिभाषा बताने की कोशिश करे तो समझ लीजिये वह आपके खिलाफ है और आपको नीचा दिखाना चाहता है। उस से बहस न करें। वह जानबूझकर ही ये नाटक कर रहा है। एक बच्चे से भी पूछो कि उसका धर्म क्या है तो वह तुरंत बता देता है और ये कमबख्त झोपड़ी के हमें मूर्ख समझते हैं जो हमें धर्म समझाने चले आते हैं। 😬 गुर्रर! ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019© Cofounder of Dharmamukt Mission with late Sir Kashmir Singh Sagar.

शनिवार, मार्च 16, 2019

अपरिचित? ~ Shubhanshu

आदिमानव ने मानव के उद्भव के किंतने समय बाद मांस खाना सीखा? इस विषय में कोई जानकारी है? चूंकि मानव बिना सीखे शिकार नही कर सकता तो शुरू में उसने क्या खाया होगा?

भोजन वही होगा जो एक बच्चा प्राप्त कर सके। सोचिये एक मानव का बच्चा जिसने मां का दूध पीना छोड़ दिया हो, अगर जंगल में छोड़ दिया जाए तो वह क्या खायेगा? इसी में जवाब छुपा है कि मानव का भोजन क्या था।

मानव हथियार और झुंड के बल पर शिकार कर सका। इसका अर्थ है कि वह संगठित रहकर मांसाहारी जानवरों को मारता था (अपनी जान बचाने के लिये) इसी दौरान कुछ लोगों ने गलती से निरीह प्राणी भी मार डाले होंगे और उनको आपातकाल में उसको पका कर खाना पड़ा होगा जो कि मजबूरी दर्शाता है। कृमिरुप परिशेषिका इस बात का प्रमाण है कि मानव पहले सेलुलोस पचा लेता था और आज सेलुलोस कब्ज रोकने के काम आता है।

हम सब जानते हैं कि उतपरिवर्तन से रैंडम विकास हुआ। जो कि पूरी तरह से कॉस्मिक किरणों पर आधारित था। हम में से कोई विकसित नहीं हो रहा है। न कभी हुआ। बस जो सफल रहा प्रजनन करने में वही अपनी प्रजाति बना गया। इसे अगर क्रमानुसार सजाए तो इसे विकास की तरह मान सकते हैं।

उतपरिवर्तन सीधा हमारे गुणसूत्र पर होता है जो कि अगली पीढ़ी में जाता है। इससे विभिन्नता (diversity) आती है और जब यह अधिकतम होती है तब नई प्रजाति का निर्माण हुआ मानते हैं। जैसे गधा, घोड़ा, जेब्रा के पूर्वज कभी एक ही थे।

काफी समय से मानव घरों में और कपड़ों में छुप कर समय गुजार रहा है जिसके कारण उस के शरीर में ब्रहांड किरणों का लगभग प्रवेश बन्द हो गया है। इसलिये नई प्रजाति में रूपांतरण होना लगभग रुक सा गया है। अगर हम फिर से नग्न और खुले आकाश के नीचे रहना शुरू कर दें तो आकाश में होते परमाणु विस्फोटों से निकलने वाली गामा किरणे आपका आनुवंशिक डीएनए बदल देंगी और विकास या ह्वास तेजी से होने लगेगा। जो परिवर्तन फायदेमंद होंगे वे जीवित रहेंगे और जो नहीं उनके लिए प्रजनन के अवसर नहीं बचेंगे। फलतः खराब परिवर्तन वाले मानव समाप्त होंगे और बढ़िया परिवर्तन वाले मानव बचेंगे।

लेकिन ये अभी इसलिये भी रुका है क्योंकि आज मानव को सम्भोग के लिए साथी प्राकृतिक चुनाव से नहीं मिल रहे। जैसे एक जन्मजात विकलांग पुरुष एक स्वस्थ सामान्य महिला की पसन्द कभी नहीं बनेगा, परन्तु विवाह जबरदस्ती, धन के लालच में, उसका वंश बढ़ाएगा। इसी तरह मूर्ख लोग भी विवाह के ज़रिए साथी पा जाते हैं और अपनी खराब पीढ़ी को भी मानव जनसंख्या में शामिल कर देते हैं।

चेहरे की सुंदरता, शरीर का सुघड़ होना, रंग, बुद्धिमान होना, सेंस ऑफ ह्यूमर वाला होना, प्रतिभावान होना, लंबे समय तक सफलता से जीवित रहना, शक्तिशाली होना आदि तमाम कारक ही आपको प्रजनन का हक देते हैं। इससे इसी प्रकार के गुणों वाली पीढ़ी पैदा होती है। लेकिन आज विवाह जैसे स्वार्थी रिवाज ने इसे तोड़ दिया है। अब सिर्फ धनी होना ही आपके वंश को बढाने के लिये काफी है। आपको वंशवृद्धि का हक दिया गया है। जबकि मूर्ख और खराब शरीर के लोगों को अपना वंश नहीं बढाना चाहिये।

इस बात को जंतुविज्ञान में सुजननकी नाम से एक शाखा बना कर रखा गया है। इसका लक्ष्य केवल विद्वान, सुंदर और स्वस्थ शरीर के लोगों को बेहतरीन साथी उपलब्ध करवा कर वंशवृद्धि करना है। एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण जो बिना विवाह के केवल प्रतियोगिता से ही अपनी गुणी जनसंख्या बनाएगी। बेकार, खराब गुणवत्ता के लोगों को जीने का हक तो है लेकिन उनको बच्चा पैदा नहीं करने देना चाहिए। अन्यथा आज जो हो रहा है वह हमेशा होता रहेगा।

मूल में सिर्फ इतना है कि बिना प्रेम का विवाह ही दरअसल आपकी दुनिया की बर्बादी का कारण है। हर अपराधी के मूल में यही एकमात्र कारण होता है। बाकी परिस्थितियाँ भी इसी अवगुण के कारण ही पैदा होती हैं।

अपराधियों के शरीर में X gene पाया जाता है जो कि अपराध करने की प्रेरणा देता है। इसका पता तब चला जब अमीर लोगों को दुर्व्यवहार, चोरी, हत्या और बलात्कार करते पाया गया। इस X जीन ने यह साबित किया कि सज़ा अपराध को खत्म नहीं कर सकती। सज़ा देने वाली व्यवस्था केवल मजबूर व्यक्ति द्वारा किये गए गलत कार्य को ही पकड़ती है, जो मजबूरी में गलत कदम उठाते हैं। जैसे गरीब और असहाय लोग।

इसका प्रमाण है कि अधिकतर जेल गए अपराधी सुधरते नहीं बल्कि वे हिस्ट्रीशीटर बन जाते हैं। आज भी जब नए अपराधी पकड़े जाते हैं तो उनकी पिछली हिस्ट्री ज़रूर जांची जाती है। कानून भी मान गया है कि सज़ा सुधरने के लिये होती ही नहीं है बल्कि व्यक्ति को समाज से दूर रखने के लिए होती है। ये सभी मामले X जीन के उदाहरण हैं।

जो लोग सुधर जाते हैं दरअसल उन्होंने मजबूरी या क्रोध में अंधे होकर अपराध किया होता है। जबकि दूसरी तरफ कभी न सुधरने वाले विश्वास के साथ कानून कुछ दुर्दांत अपराधियों को उम्रकैद या मृत्युदंड देता है। ये भी X जीन का उदाहरण या उसका मिमिक है।

इसके अतिरिक्त 2 तरह के जीन मानवों में मुख्यतः पाए जाते हैं। 1. योद्धा (worriar) जीन 2. संत जीन। योद्धा जीन वाले लोग हर समय लड़ने को उतारू रहते हैं जबकि संत जीन वाले लोग डरपोक होते हैं।

लेकिन जब इनका परीक्षण किया गया तो परिणाम उल्टे निकले। पुजारियों, पादरियों, शांति दूतों के भीतर वॉरियर जीन निकला और गुंडों के भीतर शान्ति वाला डरपोक जीन निकला। इस पहेली को मनोवैज्ञानिक सुलझाने में कामयाब हुए।

दरअसल योद्धा जीन वाले लोगों ने शुरू में हिंसक कार्य किये थे और उनको कानून और लोगों द्वारा डराया और अपमानित किया गया था। इसलिये उन्होंने शांत रहने वाला जीवन चुन लिया जबकि जो बचपन से डरपोक थे उन्होंने सीख लिया था कि अब जीना है तो डरने से बात नहीं बनेगी। उनको डराना सीखना होगा। और वे खतरनाक होने का ढोंग करने लगे। इससे यह तो साफ हो गया कि गुंडे और सीधे दोनो ही लोग अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार करते हैं।

मैं भी सीधे होने का दिखावा करता हूँ। शांत रहता हूँ क्योंकि जब भी मेरा नियंत्रण खोया है जलजले आये हैं। कई बार लोग हैरान हुए क्योंकि उन्होंने मुझे डरपोक समझा था। लेकिन सच तो ये हैं कि मैंने बचपन में इतनी हिंसा कर ली थी कि अब अहिंसक होकर जीना ही श्रेष्ठ था। नहीं तो जेल में जीवन कटता। जब अपरिचित फ़िल्म पहली बार मुझे दिखाई गई तो मैं हैरान रह गया। सबका एक ही कहना था कि ये तो अपना Shubhanshu Singh Chauhan है। बस उसका खुद पर नियंत्रण पूरा है। पर्सनालिटी डिसऑर्डर नहीं है। तीनो पर्सनालिटी एक साथ रखता है। ~ Vegan Shubhanshu SC 2019©

Note: Crime Gene के बारे में यहाँ पढ़ें: 

https://thebiologist.rsb.org.uk/biologist/158-biologist/features/903-crime-genes

बुधवार, मार्च 13, 2019

जाइये किसी के Fan बन जाइये ~ Shubhanshu

मैं कश्मीर सिंह सागर जी से जीते जी मिल नहीं पाया। एक दम मल्टी टैलेंटेड आदमी थे वे। हमारी कई बातें आपस में मिलती थीं; जैसे धर्ममुक्त होना, कवि होना, धर्मग्रंथों का जानकार होना और सबसे प्यारी बात, खुली सोच वाला होना। उनको मेरी ही तरह विवाह, नौकरी, मैकाले की मुनीम वाली शिक्षा पद्धति, नकली राजनीति, कायरों की दिखावेबाज देशभक्ति, ठगी, हमला वाली हिंसा आदि से छुटकारा दिलाने वाला समाज चाहिए था। हम लोगों की मीटिंग होने वाली थी शीघ्र ही, लेकिन टलता रहा समय।

उनको खोने के बाद जैसे हम पंगु हो गए थे। उस समय तक जब भी किसी अंधभक्त की आंखें खोलनी होती थीं तो हम उनको मेंशन करते थे। व्यवस्थित रूप से उनके विंडोज फोन में रखे संदर्भ युक्त प्रमाणों से अच्छे-अच्छे प्रकांड पंडितों ने मुहँ की खाई थी।

उम्र में मुझसे कहीं ज्यादा बड़े होने पर भी मुझे वे सदा हमउम्र ही लगे थे। उन्होंने मुझे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी। धर्ममुक्त भारत बनाने की। मेरे कार्य से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे अपनी वेबसाइट dharmamukt.in (अब .com) पर लिखने के लिये आमंत्रित किया। 

मैने जो लेख लिखे, वे समाज के विकास के लिये थे और कश्मीर जी के लेख धर्मग्रंथों पर ही आधारित थे तो वेबसाइट पर तारतम्यता नहीं रही और उन्होंने मुझसे मेरी वेबसाइट के बारे में पूछा। मेरी वेबसाइट उस समय zhaharbujhasatya.blogger.com नाम से चला करती थी। उन्होंने कहा कि उनके साथ रहते हुए ही अपनी वेबसाइट पर ही लिखो और जुड़े दिखने के लिये उन्होंने मुझे .dharmamukt.in डोमेन भेंट किया। अतः मेरी वेबसाइट अब zaharbujhasatya.dharmamukt.in हो गयी। धर्मग्रंथों के ज्ञान के लिये dharmamukt.com पर जाइये और जीवन को खुशहाल कैसे बनाएं? ये जानने के लिये मेरी web दुनिया में आइये।

उस कष्टकारी क्षति (असमय मृत्यु) से मैंने एक सीख ली कि इससे पहले कि कोई महान इंसान हमारे बीच न रहे, उसे खूब प्यार कीजिये। तारीफों के पुल बांध दीजिये। कोई घमण्डी हो जाये तो उसका हक है। होने दीजिये। कम के कम आप कंजूसी करके अपना घमण्ड और ईगो तो न दिखाइए। आपको किस बात का घमंड है भला? घमण्ड वो करे जो कुछ बन गया हो। हम और आप क्या हैं? उनका लाभ उठाने वाले उनके कृतज्ञ मात्र।

हम भक्ति करने को भी नहीं कह रहे। भक्ति में आंखें बंद हो जाती हैं। खामियों पर हम अंधे हो जाते हैं। उनकी खामियों को भी अपना लेते हैं। गलत है। लेकिन जिसकी जितनी तारीफ बनती है, उतनी तो कीजिये। कृतज्ञ हीन होना चरित्र हीन होने से कहीं ज्यादा बदतर है। चरित्र तो सिर्फ एक नाम है लेकिन कृतज्ञ होना, एक ईनाम है। ये ऊर्जा है, उनकी, जिनके आप एहसानों तले दबे हैं।

जो गुजर गए उनके फैन तो नहीं कहला सकते लेकिन हम उनके कृतज्ञ हैं और उनको प्रेरणास्रोत मानते हैं। लेकिन जो जीवित हैं, कहीं वे भी अपनी सेवाओं के बदले प्यार न पाकर, कहीं हमसे दूर हो गए तो आप खुद को कभी माफ नहीं कर सकेंगे। आपकी एक घमण्ड भरी कृतज्ञहीन चुप्पी उनको खो सकती है।

इसलिये मेरी सलाह है कि जो भी आपको अच्छा लगता है, जो आपकी मदद करता है, जो आपको जीना सिखाता है उसे इग्नोर मत करिए।

जाइये, अपने आस-पास के लोगों को देखिये। सबको धन्यवाद दीजिये, जो भी आपको ज़रा सा भी लाभ पहुचाते हैं। लड़का हो क्या लड़की, महिला हो या पुरुष, बड़ा हो या छोटा, जवान हो या बूढ़ा, उसके वास्तविक गुण गाइये, उनकी कृतज्ञता को महसूस करके मदहोश हो जाइए। उनके, फैन बन जाइये। यही श्रेष्ठ है क्योंकि सच्ची तारीफ करने के पैसे नहीं लगते लेकिन इससे बड़े से बड़े लोग खरीदे जा सकते हैं।

आपका दोस्त और शुभचिंतक ~ Shubhanshu 2019©  2019/03/13 01:54