(धार्मिक दुनिया में)
स्थिति 1
पुरूष: क्या आप मेरे साथ सेक्स करोगी?
स्त्री: बचाओ! बचाओ! ये मेरा रेप कर रहा है।
पुरुष: अरे एक तो तमीज़ से पूछ रहा हूँ उस पर ऐसा आरोप?
लोग: मारो साले को। मार डालो साले को।
स्थिति 2
स्त्री: क्या आप मेरे साथ सेक्स करोगे?
पुरुष: कितने लोगी?
स्त्री: अरे पागल हो क्या? पैसे के लिये थोड़े ही पूछ रही हूँ।
पुरुष: फिर रहने दे। साला ज़रूर कोई लंगड़ है। एड्स है क्या? फ्री में कोई न आती ऐसे। अरे देखो कैसी हरामी लड़की है। साली चुड़ैल है ये तो। मुझे मारने आयी है। किसने भेजा तुझे?
लोग: साली रंडी, चुड़ैल। अरे जला दो इसे सब मिल कर।
सोचिये इस तरह के समाज में सेक्स सुलभ नहीं है तो बलात्कार करने के अवसर बढ़ेंगे ही क्योंकि सिर्फ व्यवस्था विवाह ही अगर सेक्स की सुलभता है तो क्या वह पूछने जैसा आसान है? क्या आप जिससे चाहें उससे खाली हाथ विवाह कर सकते हैं? क्या वह विवाह आपके चाहने भर से हो जाएगा? सोचिये ज़रा।
सज़ा देने से क्या लाभ उनको जो खुद ही सज़ा भोग रहे हैं अकेलेपन की और जिसे चाहते है उसे खोकर। जो बलात्कार करता है वह मर ही जाना चाहता है। उसे मार कर भी क्या बदलेगा? सोचिये ज़रा इस तरह भी। शायद कुछ बदलाव आये।
धर्ममुक्त समाज में कोई किसी के लिए नहीं तड़पेगा और न ही कभी बलात्कारी पैदा होंगे। सेक्स सबके लिए सुलभ होगा और उसे इतना ही जरूरी और सामान्य समझा जाएगा जैसे प्यासे के लिए जल का उपलब्ध होना। लिंगानुपात समान और टैबू खत्म होगा तो कुंठा जैसी भारी समस्या समाप्त हो जायेगी। ~Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2019©
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