मुझे लगता है नास्तिक शब्द अब पुराना हो चुका है। धर्ममुक्त से ही सब स्प्ष्ट हो जाता है कि कोई नाटक शेष नहीं है। हमने दरअसल युक्तिवाद का नाम ही बदल कर धर्ममुक्त रखा था क्योंकि कुछ आस्तिक इसका दुरूपयोग कर रहे थे और दूसरी तरफ नास्तिकता के नाम पर बौद्ध, जैन, tao, कन्फ्यूशियस जैसे धर्मों का प्रचार हो रहा था जोकि पाखण्ड (मूर्खता) से भरे पड़े हैं।
अभी भी धर्ममुक्त को लोग आस्तिक होने के साथ भी अपनाना समझते हैं जबकि ये युक्तिवाद ही है जिसमें इंसान स्वतन्त्र हो जाता है। धर्म का मतलब कोई गुण, रंग, या धारण करना कतई नहीं है। ये बहस करना शातिर मूर्खो द्वारा उलझाने की घटिया मानसिकता मात्र है। सभी जानते हैं कि धर्म का अनुवाद religion ही आता है और जिसे मजहब, सम्प्रदाय, पंथ आदि नामों से भी बुलाया जाता है। हम उसी पंजीकृत धर्मों की सूची की बात करते हैं। जिसमें 4200 औपचारिक धर्म शामिल हैं।
जब भी आपको कोई धर्म की तमाम परिभाषा बताने की कोशिश करे तो समझ लीजिये वह आपके खिलाफ है और आपको नीचा दिखाना चाहता है। उस से बहस न करें। वह जानबूझकर ही ये नाटक कर रहा है। एक बच्चे से भी पूछो कि उसका धर्म क्या है तो वह तुरंत बता देता है और ये कमबख्त झोपड़ी के हमें मूर्ख समझते हैं जो हमें धर्म समझाने चले आते हैं। 😬 गुर्रर! ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019© Cofounder of Dharmamukt Mission with late Sir Kashmir Singh Sagar.
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