मैं कश्मीर सिंह सागर जी से जीते जी मिल नहीं पाया। एक दम मल्टी टैलेंटेड आदमी थे वे। हमारी कई बातें आपस में मिलती थीं; जैसे धर्ममुक्त होना, कवि होना, धर्मग्रंथों का जानकार होना और सबसे प्यारी बात, खुली सोच वाला होना। उनको मेरी ही तरह विवाह, नौकरी, मैकाले की मुनीम वाली शिक्षा पद्धति, नकली राजनीति, कायरों की दिखावेबाज देशभक्ति, ठगी, हमला वाली हिंसा आदि से छुटकारा दिलाने वाला समाज चाहिए था। हम लोगों की मीटिंग होने वाली थी शीघ्र ही, लेकिन टलता रहा समय।
उनको खोने के बाद जैसे हम पंगु हो गए थे। उस समय तक जब भी किसी अंधभक्त की आंखें खोलनी होती थीं तो हम उनको मेंशन करते थे। व्यवस्थित रूप से उनके विंडोज फोन में रखे संदर्भ युक्त प्रमाणों से अच्छे-अच्छे प्रकांड पंडितों ने मुहँ की खाई थी।
उम्र में मुझसे कहीं ज्यादा बड़े होने पर भी मुझे वे सदा हमउम्र ही लगे थे। उन्होंने मुझे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी। धर्ममुक्त भारत बनाने की। मेरे कार्य से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे अपनी वेबसाइट dharmamukt.in (अब .com) पर लिखने के लिये आमंत्रित किया।
मैने जो लेख लिखे, वे समाज के विकास के लिये थे और कश्मीर जी के लेख धर्मग्रंथों पर ही आधारित थे तो वेबसाइट पर तारतम्यता नहीं रही और उन्होंने मुझसे मेरी वेबसाइट के बारे में पूछा। मेरी वेबसाइट उस समय zhaharbujhasatya.blogger.com नाम से चला करती थी। उन्होंने कहा कि उनके साथ रहते हुए ही अपनी वेबसाइट पर ही लिखो और जुड़े दिखने के लिये उन्होंने मुझे .dharmamukt.in डोमेन भेंट किया। अतः मेरी वेबसाइट अब zaharbujhasatya.dharmamukt.in हो गयी। धर्मग्रंथों के ज्ञान के लिये dharmamukt.com पर जाइये और जीवन को खुशहाल कैसे बनाएं? ये जानने के लिये मेरी web दुनिया में आइये।
उस कष्टकारी क्षति (असमय मृत्यु) से मैंने एक सीख ली कि इससे पहले कि कोई महान इंसान हमारे बीच न रहे, उसे खूब प्यार कीजिये। तारीफों के पुल बांध दीजिये। कोई घमण्डी हो जाये तो उसका हक है। होने दीजिये। कम के कम आप कंजूसी करके अपना घमण्ड और ईगो तो न दिखाइए। आपको किस बात का घमंड है भला? घमण्ड वो करे जो कुछ बन गया हो। हम और आप क्या हैं? उनका लाभ उठाने वाले उनके कृतज्ञ मात्र।
हम भक्ति करने को भी नहीं कह रहे। भक्ति में आंखें बंद हो जाती हैं। खामियों पर हम अंधे हो जाते हैं। उनकी खामियों को भी अपना लेते हैं। गलत है। लेकिन जिसकी जितनी तारीफ बनती है, उतनी तो कीजिये। कृतज्ञ हीन होना चरित्र हीन होने से कहीं ज्यादा बदतर है। चरित्र तो सिर्फ एक नाम है लेकिन कृतज्ञ होना, एक ईनाम है। ये ऊर्जा है, उनकी, जिनके आप एहसानों तले दबे हैं।
जो गुजर गए उनके फैन तो नहीं कहला सकते लेकिन हम उनके कृतज्ञ हैं और उनको प्रेरणास्रोत मानते हैं। लेकिन जो जीवित हैं, कहीं वे भी अपनी सेवाओं के बदले प्यार न पाकर, कहीं हमसे दूर हो गए तो आप खुद को कभी माफ नहीं कर सकेंगे। आपकी एक घमण्ड भरी कृतज्ञहीन चुप्पी उनको खो सकती है।
इसलिये मेरी सलाह है कि जो भी आपको अच्छा लगता है, जो आपकी मदद करता है, जो आपको जीना सिखाता है उसे इग्नोर मत करिए।
जाइये, अपने आस-पास के लोगों को देखिये। सबको धन्यवाद दीजिये, जो भी आपको ज़रा सा भी लाभ पहुचाते हैं। लड़का हो क्या लड़की, महिला हो या पुरुष, बड़ा हो या छोटा, जवान हो या बूढ़ा, उसके वास्तविक गुण गाइये, उनकी कृतज्ञता को महसूस करके मदहोश हो जाइए। उनके, फैन बन जाइये। यही श्रेष्ठ है क्योंकि सच्ची तारीफ करने के पैसे नहीं लगते लेकिन इससे बड़े से बड़े लोग खरीदे जा सकते हैं।
आपका दोस्त और शुभचिंतक ~ Shubhanshu 2019© 2019/03/13 01:54
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