Plant based diet कुदरती है। यह भूख और रुचि अनुसार किया जाए। प्रायः जानवर स्वस्थ रहते हैं जबकि वे न तो साफ रहते हैं और न ही उनके कुदरती आवास में उनके लिए कोई चिकित्सक होता है।
समान्य सी बात है। जैसे हम जीने के लिए बने वैसे न जियें तो मर जायेंगे।
कुदरती खाने से मतलब यह नहीं है कि हम बाजार से खरीद कर न खाएं या पैक्ड फ़ूड न खरीदें बल्कि अपने शरीर की वास्तविक प्रव्रत्ति को पहचानें और उसके अनुसार भोजन करें। वास्तविक भोजन की पहचान कैसे की जाए इस पर बहस का समापन वर्षों पहले हो गया है लेकिन कुछ लोग पशुजगत से धन कमाने के लालच में विज्ञान में अपनी गलत राय डाल चुके हैं जिनका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं था।
सही सत्य प्रमाण के साथ हाल ही में पिछले वर्ष 2017 में वैश्विक भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करती एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ने उजागर कर दिया है अतः हम अब कह सकते हैं कि जंतु और कार्बनिक रसायन विज्ञान की किताब में भोजन से सम्बंधित पाठ कुछ प्रतिशत गलत बना कर डाला गया है। जिससे पशुओं का व्यापार किया जा सके।
डॉक्यूमेंट्री English में है और इसे भारत में दिखाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। youtube पर इसे देखा जा सकता है या नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम किया जा सकता है। http://www.whatthehealthfilm.com
मनुष्य की जनसँख्या ख़त्म करने का यह कूटनीतिक तरीका धन बटोरने की नीयत से वर्षों पहले ही कट्टर धार्मिकता की आड़ में लाया गया था। इसे विज्ञान में चुपके से घुसा दिया गया। ठीक वैसे ही, जैसे प्राचीन ग्रन्थों में प्रक्षिप्त श्लोक डाल कर उनको मजाक बनाया गया।
अपितु उनको हटा कर जो संस्करण प्रकाशित किये जा रहे हैं उनका मैंने अध्ययन नहीं किया है क्योंकि मुझे ऑनलाइन free pdf फ़ाइल नहीं मिली लेकिन फिर भी इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि कोयले को कितना भी साफ कर लीजिए, वह रहता कोयला ही है।
अतः उनको पढ़ कर यदि कोई अच्छी बात पता चलती है तो अपना लीजिये, अन्यथा आधुनिक जीवन में पुरानी बातों का ज्यादा महत्व होता भी नहीं है।
आखिर कौन थे वे सनातन के दुश्मन जिन्होंने इन प्रक्षिप्त श्लोकों को बीच में घुसा कर इन धर्मग्रंथों को मजाक बना डाला?
संकेत: उस समय सनातनियों के दुश्मन चार्वाक मत और बौद्ध मत के नास्तिक लोग थे यह बात खुद एक धर्मग्रंथ में लिखी है। 😀😁😂
आज भी यही कार्य जारी है। अगर कहीं आपको गायत्री मंत्र और अन्य मंत्रों व ग्रन्थों के अश्लील अर्थ दिखें तो समझिये आपको उन मिलावट करने वालों के वंशज मिल गए। 😀😁😂
यह तरीका सही नहीं था क्योंकि ऐसा करके अब वैदिक प्रचारकों को बहाना मिल गया कि उनके धर्मग्रंथों में छेड़छाड़ की गई है। अतः वह इस हरकत से मजबूत ही हुए हैं। इसीलिए कहता हूं कि मक्कारी करना छोड़िये। इसका तुरन्त असर तो होता है लेकिन अस्थाई। स्थायी असर मक्कार पर होता है। वह भी घातक।
सत्य कहने के लिये झूठ का सहारा न लीजिये अन्यथा आप पर कोई विश्वास ही नहीं करेगा। ज़हरबुझे सत्य का स्वाद कड़वा अवश्य हो सकता है लेकिन जब यह कार्य करता है तो इससे मीठा कुछ नहीं। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018© 2018/12/09 16:12