क्या है ये नास्तिक/Atheist शब्द?
समस्त धर्मग्रंथों में वर्णित और उनको लिखने वाले प्रपंची लेखकों द्वारा बनाया गया और लिखा गया उनके धर्मग्रंथों में एक अपराधी का घृणित नाम: नास्तिक।
मतलब हम धर्ममुक्त होकर भी उनके ही बनाये एक लेबल को स्वीकार कर रहे हैं? जबकि एक बच्चा जब तक धर्म के जाल मे नहीं पड़ता वह इंसान ही होता है। वह भी नहीं मानता कुछ भी। तो उसमें और हम में क्या अंतर?
प्रकृति में हम आये, जैसे और जंतु आये। वैसे ही जीते भी क्यों नहीं? क्यों हमें आज प्रकृति असुविधा भरी जगह लगने लगी है? क्यों कीचड़ पांव में गन्दी लगने लगी है? क्यों धूल मिट्टी किसकिसाती है अब दांतों में? क्यो ज़मीन पर गिरा भोजन हम नहीं खाते अब? क्यो हम जानवरों के आज़ाद और प्राकृतिक जीवन से दूर भाग रहे हैं? क्यों आज हमको कीड़े मकोड़े और मच्छरों के काटे जाने का डर हो गया है? क्यों हमे अब अपने बगलों और पसीने की गंध दुर्गंध लगने लगी है?
क्यों बाल धुल कर उनको संवारना एक आदत बन गई? क्यों ज़रा सी ठंड पड़ते ही स्वेटर रजाई खरीदने दौड़ पड़ते हैं हम? क्यों 5 मिनट भी खाली नहीं बैठ पाते है हम? क्यों हमें हर समय मनोरंजन चाहिए जब भी कार्य न कर रहे हों? क्यों हम कुछ सोचने की जगह दूसरों से उधार लिया ज्ञान अपनाते और बांटते हैं? क्या हो गया है हमको? क्या हो गए हैं हम?
भले ही आबादी बढ़ा कर कचरा सोच वाले लोग बढ़ा लिये हमने। बढ़ा लिया कंक्रीट या फूस का जंगल, असली वन और उसके मालिकों (जन्तुओ) को नष्ट करके। मशीनें बना कर अंतरिक्ष में फेंक दीं। अपने ही उपर गिराने के लिये। हरे ऑक्सीजन वाले वृक्ष काट कर 2 फुटिया अनाज की घास उगा कर, वनों को मैदान बना डाला।
अरे अब वर्षा कैसे होगी? इन 2 फुटिया पौधों से बादल न बनते रे। सूख जाएंगे ये भी, फिर क्या करोगे? धरती का सीना फाड़ के उससे पानी निकालोगे? उसे भी सुखा दोगे? वह पानी जो आज़ाद वनस्पतियों के लिये था? उससे गुलाम वनस्पतियों को सींचोगे? आखिर कब तक?
एक दिन यह पानी भी खत्म हो जाएगा। एक दिन ये हवा भी खत्म हो जाएगी। रह जाएगा धुंए के बादलों से ढका आकाश। जिससे बरसेगा तेजाब। मरोगे फिर तिल तिल कर के। ऑक्सीजन के सिलेंडर जैसे सोने के दाम में बिकेंगे। पानी तो पेट्रोल से भी महंगा हो जाएगा। पूछोगे कि इतना महंगा क्यों? तो जवाब आएगा, ले ये तेज़ाब पी ले।
पेट्रोल खत्म होगा, खनन का कारोबार बंद होगा और रह जाएगी सुरंगों से छलनी, ये खोखली, कांपती धरती। जो गिरा देगी तुम्हारे सपनों के घरों को। मिला लेगी मिट्टी को वापस अपने सीने से। दब जाओगे तुम अपने ही खरीदे मलवे में। इंतज़ार करते राहत का। लेकिन कोई नहीं आएगा।
आधुनिक बनना था तो ज़रा अपनी संख्या पर भी गौर कर लेते। अपनी गिरती सामर्थ्य पर भी गौर कर लेते। आलसी होकर विज्ञान से कार्य लेकर शरीर को खराब कर डाला। अब gym चाहिए तुमको मेहनत बर्बाद करने के लिए। एक जगह कार्य करने का पैसा लोगे, गला काट कर के भी, तो दूसरी तरफ गला काट प्रतियोगिता में महंगे होते जा रहे हेल्थ क्लब में पैसा बहा कर मेहनत करोगे।
TV के सामने बैठे हुए भजन सुनते रहते हो या समाचार? या लगे हुए हो जवानी बर्बाद करते हुए सेक्स की चाह में? नशे में डूब चुके हो? कानून को जेब में रखे हुए। ज़िन्दगी को दांव पर लगाए हुए। धर्म और संस्कार की बेड़ियों में जकड़े हुए। जो 2 टांगों के बीच में ताला लगाए खड़ा है। डरते हो खुद से ही। भीतर ही भीतर धर्म के सही निकल जाने का भय भी है।
नर भी तड़प रहा, मादा से मिलन को और मादा भी तड़प रही, नर से मिलन को लेकिन समाज को तो सिर्फ बच्चे चाहिए। वीर्य और शुक्राणु के मिलन से बना एक वंशज। वह भी पुरुष क्योंकि उसमें योनि नहीं होती। सक्रिय उत्तेजक स्तन नहीं होते। गर्भाशय नहीं होता। कोई क्या बिगाड़ लेगा उसका? लेकिन वह भी नहीं बचा। उसे भी होमो सेक्सुअल top बलात्कारी खा गए।
क्या करोगे इस समाज का? जो धरा है आसमान पर। झूठ के बादल पर टिका। रोते हो सिसक सिसक कर। तकिए में मुहँ दबा के। कहीं आवाज़ न निकल जाए बाहर। कमज़ोर न दिखो किसी को। भले ही कांच के बने हो भीतर से तुम। लेकिन हेलमेट बन कर निकलोगे बाहर। इतना गुस्सा। इतनी नफरत। कहां से आई? इतनी हवस? क्या यही है आपका तथाकथित समाज? तथाकथित ईश्वर के द्वारा बनाये गए नियमो में और उसके साथ साथ कानून से बंधा हुआ?
सच कह रहा हूँ अभी नहीं चेते तो चेतन होने के लिये कुछ बचेगा ही नहीं। आप अपनी आबादी नहीं बढ़ा रहे हैं। बर्बादी बढ़ा रहे हैं। Stop breeding! Or it will be stop by vanishing your breed itself automatically! Be aware! मैं हूँ Shubhanshu SC Vegan, आपका आखिरी और सच्चा पथप्रदर्शक! 2019© 2019/01/07 04:11