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गुरुवार, जून 20, 2019
Feel Yourself ~ Shubhanshu
बुधवार, जून 19, 2019
आपकी वयस्कता ही आपकी आज़ादी ~ Shubhanshu
मरती नदी, मरता जीवन ~ Shubhanshu
मूर्खों की सामूहिक ताकत और अकेले विद्वान ~ Shubhanshu
शनिवार, जून 15, 2019
आचार्य जगदीश: अनसुलझा प्रयोग? ~ Shubhanshu
सोमवार, जून 10, 2019
अतिमूल्यांकित आत्मविश्वास से बचें ~ Shubhanshu
असली बुद्धिमत्ता यह जानना है कि आपको कुछ भी नहीं पता है ~ सुकरात
एक मूर्ख खुद को बुद्धिमान और बुद्धिमान खुद को हमेशा अज्ञानी समझता है ~ शेक्सपियर
इन दोनों कथनों पर रिसर्च हुई और यह निष्कर्ष निकाला गया कि दरअसल इन दार्शनिकों का कहना था कि खुद को अतिमूल्यांकित (Overestimate) करने वाले लोग मूर्ख सदृश कार्य करते हैं।
इससे अतिआत्मविश्वास उतपन्न हो जाता है और हमारी कार्यक्षमता घट जाती है। इसलिए बेहतर है कि हम पहले से ही खुद की भावी कार्यशैली व कार्यक्षमता का मूल्यांकन न करें बल्कि उसे आजमाते रहें, यह सोच कर कि अभी आप नए हैं और अभी भी सबकुछ नहीं जानते हैं।
इस विषय में एक और वाक्य याद आ रहा है:
"आप कुछ जान सकते हैं, दूसरों से कुछ ज्यादा जान सकते हैं लेकिन सबकुछ जानने का दावा हमें बिना प्रमाण के नहीं करना चाहिए।" ~ Vegan Shubhanshu Dharmamukt 2019©
रविवार, जून 09, 2019
धर्ममुक्त यानि Atheism Upgraded ~ Shubhanshu
मैं नास्तिक शब्द का प्रयोग आपकी प्रचलित समझ के लिए करता हूँ लेकिन ये शब्द best नहीं है। धर्ममुक्त बेहतर है। कैसे? देखिये, जब से पृथ्वी बनी तब से सब धर्ममुक्त थे लेकिन नास्तिक तब बना, जब आस्तिक आया। आस्तिकता आई, सबने अपनाई फिर उसमें तर्क करने वालों ने उसका खंडन किया और नास्तिकता अपनाई। अब उनका सारा जीवन आस्तिकता का खंडन करके ही कटने लग गया।
उन पर जुल्म हुए तो वो नफरत से भरते गए। जुल्म इसलिये हुए क्योंकि वे जबरन नास्तिकता को लोगों को दे रहे थे जबकि लोगो को आस्तिकता मे मज़ा आ रहा था। इसीलिए उन्होंने नास्तिको को ढूंढ-ढूंढ कर मारा/जलाया। इस तरह बेमतलब में नास्तिकता, आस्तिकता की दुश्मन बन गई। दोनो लड़ने लगे। समझना-समझाना समाप्त हो गया और रह गया कष्टमय और नफरत में सुलगता बदतर जीवन।
जबकि सब पहले धर्ममुक्त थे और अपना मस्त जीवन जीते थे। न कोई विचारधारा थी और न ही कोई सोच। सब अपना जीवन संतुलन में जीते थे। जिसका जो कर्तव्य और अधिकार था वह निर्विवाद स्वीकार किया जाता था। फिर कुछ धूर्तो ने धर्म (रिलिजन) बनाया और धर्ममुक्त समाज संकट में आने लगा। धर्मों ने ईश्वर की कल्पना करके उससे सबको डराया और गुलाम बनाने लगे। सीधे लोगों पर उन्होंने पहले अच्छे व्यवहार से विश्वास स्थापित किया फिर उन्होंने सूद समेत सब वसूलना शुरू किया। झुको और झुकाओ। फूट डालो और राज करो की नीति से लोगों को लड़वा कर वे उनके सगे बन गए।
जो इनको समझ गए वो इनका विरोध करने लगे। तब उन्होंने शैतान की कल्पना की और कहा कि ये लोग शैतान के इशारे पर कार्य करते हैं। इनसे नफरत करो। धर्ममुक्त होते तो अपना जीवन जीते। ये लड़-भिड़ रहे, इसका मतलब है कि इनको कोई लालच है तुमसे। इस बात में दम था, आस्तिक मान गए। फिर अब एक नास्तिक की value क्या रह गई? सब उनको paid एजेंट समझने लगे। उनकी बताई हर बात को धोखा मान कर अनदेखा करने लगे। नास्तिकता बुराई में तब्दील कर दी गयी। फिर बदलाव कैसे होता?
जबकि बदलाव लाने के लिए दबाव, बल की आवश्यकता नहीं होती। एक नास्तिक लड़ने पहुँच जा रहा, घमण्ड और गुस्से के कारण जबकि एक धर्ममुक्त मस्ती में नाच गा रहा। उसे मस्त देख कर सबको लगा कि ये कौन है जो इतना खुश है? हमें तो दुनिया भर के कष्ट हैं। उन्होंने उसका पीछा किया, उसको आज़ाद और बिना धर्म/ईश्वर/उपासना के प्रसन्न देखा तो उनकी समझ में आया कि हां, ये धर्म गुरु हमको मूर्ख बना रहे हैं। ये व्यक्ति निःस्वार्थ अपना जीवन मस्ती में जी रहा। इससे सीखो। नास्तिक का तो कोई स्वार्थ होगा तभी हमारी ज़िंदगी में हस्तक्षेप कर रहे हैं। ऐसा सोच कर आस्तिक धर्ममुक्त होने लगे और बदलाव स्वयं आने लगा।
खुद देखिये कि कैसे और क्या फर्क है धर्ममुक्त और एक जबरन भिड़ने वाले नास्तिक में। नास्तिकता को एक और ऊंचाई पर ले आइये। फिर से वापस आज़ाद धर्ममुक्त बन जाइए और देखिये कैसे विज्ञान अपना कार्य करने लगता है जो इस धर्म-अधर्म के कारण रुका हुआ है।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर।
न काहुँ से दोस्ती, न काहू से बैर।
धर्ममुक्त जयते, ज़हरबुझा सत्यमेव जयते। ~ Shubhanshu Dharmamukt
शनिवार, जून 01, 2019
धर्ममुक्त होना ही समय की मांग है ~ Shubhanshu
सनातन के लिए राम-कृष्ण-शिव-हनुमान आदि,
इस्लाम के लिये मोहम्मद,
सिख के लिए नानक व गुरु पुस्तक,
इसाई के लिये जीजस,
बौद्ध के लिये तथागत,
अम्बेडकरवादी के लिये बाबा साहेब,
जैन के लिए महावीर,
मार्क्सवादी के लिए कार्ल मार्क्स,
आदि पूजनीय हैं और इनकी बाकायदा मूर्तिपूजा (इस्लाम और सिख को छोड़ कर, सिख में तस्वीर व पुस्तक पूजन और इस्लाम में नाम की तस्वीर पूजन) चालू है। हमारे लिए ये सभी इतिहास के महापुरुष हैं (राम आदि को छोड़ कर क्योंकि उनका कोई पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध नहीं है)।
इनका आज के आधुनिक/वैज्ञानिक ज़माने में महिमामंडन, पुष्प पूजा व दिखावे वाला सम्मान करना मध्यकालीन युग मे वापस लौटने जैसा होगा। जो कि पुनः पाखण्ड का जनक बनेगा (काफी हद तक बन चुका है)।
ये सभी लोग खुद को नास्तिक साबित कर लेते हैं क्योंकि ये प्रसिद्ध लोग ईश्वर के रूप में वर्णित नहीं हैं। मानव के रूप में वर्णित हैं। नास्तिक केवल ईश्वर में भरोसा नहीं रखता। इस नियम से ये सभी धर्म (अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद अभी पंजीकृत धर्म नहीं लेकिन लक्षण समान हैं) नास्तिकों को भी धार्मिक बना रहे हैं।
क्या आप इस तरह की नास्तिकता चाहते हैं? यदि हाँ तो बताइये समाज में क्या फर्क पड़ेगा? सारा पाखण्ड यहीं का यहीं रह गया। वह हवाई ईश्वर तो पहले भी पूजा नहीं जाता था। फिर ऐसे नास्तिक पैदा करके क्या उखाड़ लिया हम सब ने? इसलिये व्यक्तिवाद छोड़ना ही होगा। महापुरुषों की जगह पुस्तको और उनकी शिक्षाओं की जगह हमारे मन में है। उनका मूर्ति/तस्वीर/नाम पूजन से कोई लाभ नहीं होने वाला बुद्धिमान मानव को।
इसलिये यह परम आवश्यक था कि एक नई विचारधारा लाई जाए जो मानव की शुद्धि करके उसे कठपुतली से वापस इंसान बना दे। मानव जब अस्तित्व में आया तो वह सभी प्रकार के पाखंडों से मुक्त था। वह किसी भी religion (धर्म) से मुक्त था। वह वास्तविक धर्ममुक्त था। फिर उसने आविष्कार किये और आधुनिक बनता गया। जिन्होंने आविष्कार किये वे धर्म/ईश्वर से मुक्त थे बाकी लोग (96%) को परिवार के चलते कुछ सोचने/करने/खोजने का मौका ही नहीं मिला।
चिंता और थकान में वे सोच न सके और अंधविश्वास में घिरते गए। कुछ धूर्त बुद्धि के विद्वानों ने धर्म की अवधारणा बना कर उनको विज्ञान से दूर रखा और इस तरह मेहनतकश लोग धार्मिक बनते चले गए। उनको लगा कि सोचने के लिए ये धर्मगुरु है न! इस तरह दुनिया धार्मिक हो गयी और 4% लोग आज़ाद सोच के चलते सफल होते गए। धर्मगुरु भी इन्हीं 4% में हैं क्योंकि दरअसल ये एकदम नास्तिक हैं। लेकिन धर्म भी इनके ही पुरखो ने बनाया तो धंधा है, अपनाना ही पड़ेगा।
इतनी सी गणित है दुनिया की। फिर क्या करें? कैसे इन 96% लोगों को भावी परिवार की ज़िम्मेदारी से आज़ाद करें, ताकि वे आज़ाद सोच सकें? इसलिये विवाहमुक्त, शिशुमुक्त, धर्ममुक्त जीवन का विचार आया और बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण करके ही हम लोगों को समझा सकते हैं। अन्यथा आज 7 अरब को जगाओ तो अगले दिन फिर 7 अरब लोग पैदा हो जाएंगे। जल, जंगल, ज़मीन सीमित है और मानव असीमित।
भविष्य में एक दूसरे को ही खाना है तो आज पैदा न करने में क्या बुराई है दोस्तों? सोचो, समझो, 10 बार पढ़ो इसे, जो मैंने आपको बताया, उसको बार-बार परखो। मेरे कहने से मत मानो। खुद आज़माओ, खुद देखो करके। फिर अगर समझ में आये तो अमल में लाना। तुम्हारा ही कल्याण होगा। धर्ममुक्त जयते! ज़हरबुझा सत्यमेव जयते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 3:22 am, शनिवार 1 जूनधर्ममुक्त
मंगलवार, मई 28, 2019
समीक्षा: भारत की राजनीति ~ Shubhanshu
बहुत दिनों बाद एक राजनीतिक पोस्ट डाल रहा हूँ। ये समीक्षा है पिछले 20 वर्षों की। लोग कहते रहे कि राजनीति पर लिखो। मैं सोचता रहा कि इस गन्दगी पर क्या लिखूं? कलम गन्दी हो जाएगी। पर्यावरण अराजकतावादी होकर लोकतंत्र में रहता हूँ। जिस से मतलब नहीं उस पर लिखना भी एक परीक्षा है।
आप सबको देख कर आपके हित में सोचता रहता हूँ। आपको चोट लगती है तो मुझे भी लगती है। आप मेरे विरोधी हो या साथी। मेरा दिल नहीं जानता ये सब। बस रो पड़ता हैं आपको मूर्खता करते देख कर।
जब भी टोकता, गाली खाता। फिर भी डटा रहता। बिना गाली दिए, कुढ़ता रहता, अंदर ही अंदर लेकिन कोई मुझे देख कर सीखता होगा, ये सोच कर नहीं बना बुरा कभी।
फिर भी बदनाम हो गया। अपने ही साथियों ने काट खाया। आपकी सूखी आँखो का तो पता नहीं पर मैं ज़रूर रो रहा हूँ। कनपटियों में भारी दर्द है। आंसू धुंधला कर रहे। टाइपिंग मुश्किल हो रही लेकिन फिर भी मैं मूर्ख, अपने बड़े दिल के कारण ढीठ हूँ। अच्छा इंसान होना भी अभिशाप है। एक दिन नहीं बीतता जब लोग आपको रुलाते नहीं।
फिर भी मैं अपनी चाल में चलता रहा और सब मुझे समाज का दुश्मन समझते रहे, लेकिन मैं जानता था इस वास्तविक समाज को। इसे वो चाहिए ही नहीं जो आप सब दे रहे हो। अब जब vvpat मिलान ने evm को सही साबित कर दिया तो बहुत से चुनावी मेंढकों के सुर बदल गए।
अपनी कमजोरी और लाचारी को छुपाने के लिए चुनाव प्रक्रिया पर ही चढ़ते रहे। जब 10 साल कांग्रेस सत्ता पर चढ़ी रही तब bjp evm पर चिल्लाती रही। कॉंग्रेस के भर्रष्टाचार से तंग आकर अन्ना हजारे ने लोकपाल आंदोलन करके bjp को जितवाया। जिससे केजरीवाल विद्रोह करके नेता बन गए।
bjp ने आते ही कांग्रेस के रुके हुए कार्यों को करवा कर लोगों को खुश कर दिया। बड़े रिस्क लिए जिससे बदनामी हुई। लेकिन स्मार्टसिटी, फ्री wifi, मेक इन इंडिया जैसे कार्यो से पढ़े लिखे लोगों को लगा कि ये सरकार वैसी नही जैसी पिछले 10 सालों से हम सब सोच रहे थे।
बातें आधुनिकता, विज्ञान की हुई, मेट्रो, बुलेट का ज़माना आया। ऑनलाइन बिलिंग शुरू हुई और कई कार्य ऑनलाइन हो गए। हाँ, अमित शाह और इनके साथियों ने मूर्खता पूर्ण हरकतें कीं, पंडे-पुजारियों ने अपने उल्टे-पलटे बयान देकर फजीहत करवाई। टाइम पत्रिका में लोकनायक मोदी जी डिवाइडर बन गए।
अपराधियों को धर्म के नाम पर वोट दिलवा कर विश्वास कम कर लिया और गाय, यज्ञ आदि नोटँकी पर धन बर्बाद किया जिससे उनकी खुले आम हंसी उड़ी। फिर घोटाले में फंसने पर फ़ाइल जल जाना आदि हरकतों से चौकीदार चोर जैसे नामों से पुकारा गया।
अजीब बयानों के कारण विपक्ष में मजाक उड़ाया गया और व्यक्तिगत क्षवि खराब हुई। लेकिन विकास कार्य भी हुए ये माना जायेगा। इन्हीं वर्षों में आधार, जनधन मुफ़्त खाता, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, cng और बैटरी वाली गाड़ियां सस्ती होना, gst, इनकम टैक्स का 250000 से 500000 तक छूट, मुकेश अम्बानी का मोदी के माध्यम से jio को प्रोमोट करवाना आदि, सब कुछ जनता को लुभाने वाले कार्य थे। जिनसे विपक्ष भी धरातल पर इनके पक्ष में हो गया।
Demonetization से भले ही लोगों को समस्या हुई लेकिन इससे सरकार को लगभग 10720 करोड़ रुपये का लाभ हुआ और नकली नोटों का चलन कम हुआ। इससे भी ऊंचे तबके के पढ़े-लिखे वर्ग में मोदी की तारीफ सुनने को मिली।
करोड़ो रूपये अपने प्रचार में लगाना, नमो tv से धोखाधड़ी करके प्रचार करना, 15 लाख का जुमला, बहुत गलत बातें होंगी लेकिन जो जनता को अच्छा लगा, जनता ने उसे देखा। विरोध इतना ज्यादा हुआ कि सब जगह मोदी ही मोदी छा गया। विरोधी ही दरअसल मोदी के असली प्रचारक थे। जो इनको नहीं जानता था वो भी इनका ही नाम गुनगुनाने लगा।
मैं रुका रहा। मैं इस विरोध के खेल से दूर रहा। कुछ भी करना उनको ही सहयोग होता लेकिन मुझे भी विरोध न करने पर मोदी एजेंट कहा गया। संघी बोला गया। मैं चुप रहा। जानता था कि न्यूटन का तीसरा नियम अपना कार्य करेगा। वही हुआ। पक्ष-विपक्ष सबने bjp-मोदी कर-कर के मोदीमय भारत बना दिया और उनको इतनी सीटें दिलवा दीं जितनी पहले वे न पा सके।
आपको क्या लगता है ये अब कम होंगी? नहीं अब पता नहीं bjp कितने वर्षों तक काबिज रहने वाली है। 22 दल अब बर्बाद हो गए। कोई अब राजनीति में शायद ही वो बात पैदा कर सकेगा जो bjp इनकी कामचोरी के कारण फायदा उठा गयी। जोश सब ठंडा हो जाएगा।
अब कोई बड़ी गलती ही bjp को सरकार से गिरा सकती है, जिसकी उम्मीद अब कम ही है। विरोधियों ने उनको सभी छेद दिखा दिए। उन्होंने भर लिए और अब ये जहाज कैसे डूबेगा? खुद सोचो।
विरोध करने की जगह खुद क्या करोगे, इसका प्रचार करते। जनता का दिल जीतते। जय भीम, नमो बुद्धाय की जगह जय विकास बोलते और करते। लेकिन नहीं, आपको तो बस 1000-1200₹ की मूर्ति लगा कर ही विकास मिल गया था। विपक्ष के भाषणों में दम नहीं था, उनमें भी मोदी ही घुसा हुआ था।
उधर वो चौकीदार मन की बात मोबाइल पर सुना रहा था, रेडियो पर सुना रहा था। उसने सब के दिमाग पर कब्जा कर लिया और इधर बस आस्तिक-नास्तिक चलता रहा। सिक्का अपना खोटा हो तो बोलने का हक चला जाता है और फिर बिना सुबूत evm पर रोना और कुछ कर न पाना, "नाच न आये आंगन टेढ़ा" जैसा ही लगा मुझे तो।
मुझे जो उड़ती-उड़ती पता है, लिख रहा हूँ। कोई नेट से डाटा कॉपी करके डालने का नाटक नहीं करता। दिल से लिखता हूँ ताकि दिल में उतर जाए। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 4:25 PM 28 may
सोमवार, मई 27, 2019
क्या चिकित्सक आपको धीमी मौत दे रहे हैं?
कच्चा भोजन तक खाना मुश्किल हो जाता है उसे क्योंकि वह प्रसंस्करित (processed) खाद्य पदार्थ खाने के लिये नहीं बना। उसे जो सीधे और स्वादिष्ट खाने को मिलता है वही खाता है। जैसे मीठे-खट्टे फल, कंद, मूल आदि।
मांस, सींग, दांत, कस्तूरी, दूध, अंडे, चमड़े के अतिरिक्त शहद, लाख, रेशम, मूंगा, मोती, कीड़े से बना लाल रंग, कैंथरइडीन oil, सांडाह oil, पशुओं पर परीक्षण किए जाने वाले वनस्पति उत्पाद आदि भी पशुक्रूरता के अंतर्गत रजिस्टर उत्पाद हैं। जिनका विश्वव्यापी विरोध् बीते 100 सालों से चल रहा है। अब इस आंदोलन ने और भी गति पकड़ ली है क्योंकि लोग omnivores जीवन को अब खतरनाक मानने लगे हैं।
कम शारीरिक श्रम के कारण अब पशुउत्पाद के घातक स्वास्थ्य परिणाम आने लगे हैं। केवल पशुउत्पाद ही cholesterol और अन्य घटक जैसे केसीन प्रोटीन लिए होते हैं। मानव की धमनियां 30 वर्ष की आयु के बाद से कठोर होने लगती हैं। उनका लचीला पन समाप्त होने लगता है और इस उम्र के बाद से अब तक जो भी खाया-पिया था वह संयुक्त रूप से अपना रंग दिखाने लगता है। हम अपनी आदतें आसानी से नहीं बदल सकते अतः जो 30 वर्ष तक कुछ न बिगाड़ पाया वह आगे भी नहीं बिगाड़ पायेगा जैसी सोच से ग्रस्त हो जाते हैं और मृत्यु आसानी से हमारे करीब पहुँच जाती है।
लचीलापन खत्म होने से लोहे के पाइप की तरह कठोर हो चुकी रक्त की धमनियों में यह cholesterol रक्तकणों के साथ मिल कर एक थक्का बनाता है और धमनियों में फंसने लगता है। इससे ह्रदय को ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है। जब यही रास्ता इतना अधिक अवरुद्ध हो जाता है कि मस्तिष्क तक रक्त नहीं पहुँचता तो मृत्यु हो जाती है।
साथ ही यह भी पाया गया है कि दूध, अंडे, माँस में तरह तरह के कैंसर पैदा करने वाले कारक मौजूद होते हैं जो कि आपको मधुमेह, कैंसर, पथरी जैसे घातक रोगों से मार सकते हैं। बीते वर्षों में अपने बेहतर स्वास्थ्य के वादे के कारण वीगनिस्म विश्व भर में फैल गया है और 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस घोषित कर दिया गया है। साथ ही vegan समर्थन दर्शाने हेतु पशुक्रूरता के विरोध में और प्रेम के पक्ष में वीगनिस्म का झंडा भी अब बन चुका है।
केसीन यानी दूध की प्रोटीन दरअसल एक sedative पदार्थ है जिसकी आदत पड़ जाती है। यह अमाशय में पहुँचते ही डोपामाइन को उत्प्रेरित करके हमे अच्छा महसूस करवाता है और हमे इसकी आदत पड़ जाती है। चीज़, पनीर, छेना आदि शुद्ध केसीन के बने उत्पाद हैं। जिनको जो भी एक बार खा लेता है वह बार-बार खाने को मजबूर हो जाता है। खुद को शाकाहारी बोलने वाले सनातनी लोगों की पसंदीदा सब्जी पनीर ही मिलेगी। अतः उनको माँस ही पसन्द आता है।
उनकी हर पसंदीदा वस्तु में वे इस प्रोटीन को डालना अच्छा समझते हैं। जैसे दम आलू की सब्जी और छोले तक में ये मलाई या दही डाल देते हैं। दही और मक्खन सबसे ज्यादा पशुवसा (देशी घी के नाम से प्रचलित पशु वसा) लिए होता है जो कि दिल का दौरा पड़ने का प्रमुख कारण बनता है। इसे लोग मलाई, दही से निकाल कर मक्खन और बना बनाया खरीद कर भी खाते हैं जो कि स्वादिष्ट लगता है। ये इसी कारण लगभग हर भोजन में डाला जाता है। यह तेजी से पच जाता है और ऊर्जा का अनुभव होता है। लैक्टोज शर्करा भी ऊर्जा देती है। ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थ भी लती बना देते हैं।
दही में यह शर्करा लैक्टोबैसिलस जीवाणु द्वारा खा कर मल द्वारा अम्ल में बदल कर छोड़ दिया जाता है। दही का खट्टा पन इसी मल के कारण होता है। इसमें भी केसीन ही होती है अतः इसकी भी लत लग जाती है। लस्सी आदि अन्य दही के उत्पाद भी आपको मृत्यु के करीब ले जा रहे हैं।
2017 में ओम साईं प्रोडक्शन के सहयोग से एक खोजी पत्रकार ने अपने दादा और पिता की इन बीमारियों से हुई मृत्यु के बाद इस कड़वे सत्य की खोजबीन की। उसने डॉक्टरों के कहे अनुसार सब कुछ किया लेकिन अपने प्रियजनों को बचा नहीं पाया। इसी घटना से उसके मन में डॉक्टरों के प्रति शक बैठ गया और उसने एक खोजी पत्रकारिता के ज़रिए इन सभी हेल्थ ऑर्गनाइजेशनो के US में बने हेडक्वार्टर में खुद जाकर सवाल जवाब किए।
प्रतिक्रिया भयानक थी। इससे पहले भी जिन लोगों ने इस तरह के सवाल जवाब किये थे उनकी लाश तक गायब करवा दी गई थी। मतलब ये संस्थान धोखाधड़ी कर रहे थे। लेखक/पत्रकार ने अपनी खोज जारी रखी और WHO द्वारा घोषित processed मांस पर दी गई गाइडलाइन पर कार्य किया। इस गाइडलाइन में WHO ने बताया है कि मांस में कैंसर, डायबिटीज, ह्रदयघात और पथरी पैदा करने के गुण होते हैं। यह केवल शाकाहारी जंतुओं पर ही प्रभावी होते हैं। इसी कारण प्रकृति में प्रायः शाकाहारी जंतु मांस try भी नहीं करते।
पत्रकार ने ऐसे लोगों पर रिसर्च की जो कि इन बीमारियों से मरने वाले थे। पत्रकार ने उनको 2 हफ्ते vegan भोजन पर रखा और वे ठीक होने लगे। उनकी दवाइयां बन्द करनी पड़ीं और जब उन्होंने खुद इतना बड़ा असर देखा तो उन्होंने पत्रकार को खुशी के आंसुओं के साथ गले लगा लिया। बहुत ही मार्मिक दृश्य था।
दूसरी ओर कुछ लोग कहते पाए गए कि vegan भोजन पर जीवित तो रहा जा सकता है लेकिन ताकतवर नहीं हुआ जा सकता। मसल बनाने के लिये मांस ज़रूरी है। पत्रकार ने खोज जारी रखी और उसे vegan एथलीट मिल गए जो कि बड़े खिलाड़ी थे। उन्होंने बताया कि vegan बनने से पूर्व वे औसत दर्जे के खिलाड़ी थे लेकिन vegan बनते ही उनकी परफॉर्मेंस कई गुना बढ़ गयी। कई पहलवान और बॉडीबिल्डर भी vegan होकर ज्यादा ज़ल्दी मसल गेन कर सके थे।
कई डॉक्टर भी vegan मिले जिन्होंने इस सब को विस्तार से समझाया कि असल सत्य कुछ और है और हमको पढ़ाया कुछ और जाता रहा है। विटामिन बी12 का मांस से ही प्राप्त होना, शक्कर का ह्रदय घात से सम्बन्ध होना आदि बातें बकवास हैं। B12 केवल बैक्टीरिया बनाता है। यह हमारे मुहँ में और आंतों में होता है। यह लगातार बनता रहता है। शरीर को इसकी बहुत अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है।
vegan लोगों के लिये जिनमें इसकी कमी महसूस हो वे इसे बाहर से खरीद कर खा सकते हैं या अधिक कमी हो तो इंजेक्शन से ले सकते हैं। शक्कर वाली बात बिल्कुल ही बकवास है कि उससे ह्रदय का कोई लेनदेन है। शक्कर शरीर में जाकर ग्लूकोस में बदल जाती है और ग्लूकोस क्या है यह सबको पता है। जिन पशुओं में विटामिन B12 होता है उनके फार्म मालिक उनको वह खिलाते हैं। कुदरत में यह मल में बड़ी आंत से निकल कर भूमि तक पहुँचता है। चरने वाले जानवर इस मल को अल्पमात्रा में खा जाते हैं। उसी से B12 उन के भीतर पहुँचता है।
मानव के सर्वाहारी होने की बात को करीबी सर्वाहारी जंतु भालू से तुलना करके जांचा गया और मानव तुलना करने योग्य भी न लगा। उसने सब कुछ साधनों के प्रयोग से करना सीखा था जबकि भालू इसके लिए ही बना निकला। केनाइन दांत कहीं से भी सर्वाहारी जैसे नहीं थे। आंखों की रात में देखने की क्षमता भी शून्य। नाक भी मांस की गंध के प्रति अरुचिकर निकली। कान और दौड़ने की क्षमता भी बिल्कुल बेकार निकली। साथ ही मारकाट करके खाने वाले जानवर के भोजन को देख कर 98 फीसदी मानवों को उल्टी और बेहोशी तक आ जाती है।
प्रायः रोगाणु युक्त कच्चा मांस खाने से मानव मर जाता है। दूध भी लोग उबाल कर पीते हैं मतलब उसमें भी रोगाणु। यानी वह बिना रोगाणु मुक्त किये मांसाहारी भोजन नहीं कर सकता लेकिन शाकाहारी वाला कर सकता है।
मतलब वह मांस से डरता है, खायेगा कैसे? मजबूरी ही इसका कारण हो सकती है, ठीक वैसे ही जैसे शेर और कुत्ते पेट खराब होने पर घास खाते है। प्राचीन काल में मानव ने मजबूरी में शिकार करने का निर्णय लिया। इससे पहले वह फलों पर जीवन काटता रहा। पेड़ों पर बंदर की तरह चढ़ना सीखा और मांसाहारी जानवरों से रक्षा करने के लिये हथियार और आग का इस्तेमाल किया। आग और पहिये का आविष्कार न किया गया होता किसी विद्रोही द्वारा तो आज मानव की भिंडी बिक गयी होती।
शिकार भी झुंड में और जब किसी कारण से भोजन लायक वनस्पतियों का अभाव हो गया तभी। इसीलिये वह प्रोसेस करके ही मांस खा सकता है जो कि कैंसर, डायबिटीज, पथरी और ह्रदयघात लिये होता है। यानी अभी नहीं तो कुछ समय बाद होने वाली निश्चित मृत्यु।
पत्रकार ने पता किया तो पाया कि ये सभी संस्थान अरबों रुपये egg, meat and dairy industry से दान में ले रहे थे। बदले में उनको इन उत्पादों का प्रचार करना होता है। सोचिये अगर ये सामान्य भोजन है तो इनको इतने महंगे प्रचार की क्या ज़रूरत? सीधी बात है कि ज़हर को अमृत बनाने के लिये इन बड़ी विश्वसनीय संस्थाओं को खरीदा जा चुका है और यही कारण है कि लोग बीमार पड़ते रहते हैं और दवा बनाने वाली कम्पनियां और इस तरह के भोजन रूपी ज़हर को बेचने वाले अमीर बनते रहते हैं। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2018© 5 pm to 6:08pm, Dec 12
संदर्भ: