Zahar Bujha Satya

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बुधवार, जून 19, 2019

मरती नदी, मरता जीवन ~ Shubhanshu

जब लोग मरते हैं तो इतना दुःख नहीं होता क्योंकि प्रायः उनके अपने कर्म उनकी दशा के ज़िम्मेदार होते हैं और बहुत हैं, बेवजह जीते हुए पर्यावरण को बर्बाद करते, भूजल, ज़मीन और जंगल बर्बाद करते हुए। लेकिन जब एक नदी की मौत होती है...

तब आँसू आ जाते हैं मेरी आँखों में, क्यों कि एक नदी सिर्फ पानी की एक धारा नहीं होती। वो ज़िन्दगी होती है जंगल, गांव और शहर की। एक बम फटता है तो ज्यादा नहीं मरते, लेकिन जब एक नदी मरती है तो वो मिटा देती है अपनी राह के हर ज़िंदा अस्तित्व को। एक नदी अकेले नहीं मरती। वो साथ ले जाती है, अस्तित्व, जीवन का।

भूजल की कमी से नदी सूखती हैं, कृपया भूजल की जगह क्लोरीन फिल्टर से पानी साफ करके पिएं। इस्तेमाल किया पानी फिर इस्तेमाल करने का जुगाड़ करें। वर्षा का जल नाले में जाने की जगह सोक पिट बना कर भूमि में समाने की व्यवस्था करें। इसे वाटर हार्वेस्टिंग कहते हैं। आपके लिए ही मेरी भी एक पुकार है, ये जीवन आपके ही हाथों में है। चाहों तो आने दो, या चाहों तो जाने दो। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

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