जो आपकी संगत में उतपन्न सोच के जैसा लिखे, वह महान लेखक। जो आपकी मूल समस्याओं की जगह अपनी भड़ास दूसरों पर निकालने वाली सोच रखे, वो महान। जो लड़ने-भिड़ने, मारने-काटने की बात करे; बिना तर्क के और इंसाफ को मजाक कहे, वह महान। जो खुद को बदलने की जगह दूसरों को जबरन बदलने के लिए शोर मचाये, वो महान। दरसअल 96% ऐसे लोग मूर्ख हैं और खुद को महान समझते हैं क्योंकि उनकी 'संख्या' ज्यादा है।
उनको महामूर्ख का चुनाव करके उसे सबसे महान बनाना ही होगा क्योंकि उसमें उसकी वाली सारी मूर्खता एक ही जगह पर एकत्र है। जहाँ वह सभ्यता की बात नहीं करता, नृशंसता और हैवानियत की बात करता है। उदाहरण साफ दिखाते हैं कि कैसे एक शांति और विकास की बात करने वाला भीड़ द्वारा कुचल दिया जाता है और कैसे उस भीड़ को भेजने वाला एक हिंसा भड़काने वाले भाषण को देकर (बिना बुद्धि के गाल बजा कर) सर्वप्रिय और सबका मालिक समान बन जाता है।
इस समाज में सामाजिक कौन है? हर किसी को, हर किसी से तो नफरत है। सड़क पर कोई वाहन टकरा जाए तो सब बिना मामला जाने कमज़ोर पर टूट पड़ते हैं। जब कोई घायल हो जाता है तो उसकी वीडियो बना कर साथियों को डराने का मनोरंजन तैयार किया जाता है। घायल जब लाश बन जाता है तब उसे पुलिस उठा कर पंचनामा भर के ठिकाने लगा देती है। जानवर वही सुरक्षित है जिसे आपके धर्म ने बचा लिया। (बाकी सब तो आपके जानी दुश्मन हैं) कोई पानी मांगता है तो कहीं नल नहीं दिखता। उसके हत्थे तक निकाल कर रख लेते हैं लोग, ताकि पानी की बोतल बिक सके। जिस पर पैसा नहीं वो सीधा नाली में मुहँ डाल दे।
किसे समाज बोलते हो आप? उसे, जहां पढ़ने, प्रेम करने और साथ रहने पर कत्ल कर दिया जाता है? जहाँ आपके कपड़े कितने होने चाहिए और कैसे होने चाहिए, ये लोग तय करते हैं? जहाँ अगर कोई कार्य/नौकरी नहीं कर पा रहा तो उसे अपराधी घोषित कर देते हैं?
कोई विवाह नहीं कर रहा तो वो गलत, कोई बच्चा नहीं पैदा कर रहा तो वो गलत, कोई बच्चा पैदा करके उसकी देखभाल नहीं कर पा रहा, तो वो गलत, कोई ईमानदार है, तो वो गलत, कोई (आपसे) ज्यादा बेईमान है तो वो गलत; कोई रिश्वत ले रहा, तो गलत, कोई रिश्वत नहीं ले रहा, तो वो भी गलत।
इस समाज में सही क्या है? सब उसी पटरी पर चलना चाहते हैं जिस पर उनका बाप चला था। चाहें वह पटरी टूट ही क्यों न चुकी हो। चाहें उस पर सिग्नल हो या न हो। अंधी पटरी है, उसी पर चलते जा रहे हैं। न जाने कहाँ जा रहे हैं? न जाने कहाँ ले जाना चाह रहे हैं? न जाने क्या चाहते हैं और कहते हैं कि सुख नहीं मिलता, कोई सुख दे दे।
लोग, उनके पास जाकर सुख मांगते हैं जो खुद सामाजिक नहीं हैं। जो बाबा बन गया, परिवार, समाज, विवाह, नौकरी, बच्चे, सम्पत्ति से दूर हो गया, उससे सुख की चाभी मांगने जाते हैं।
इतना बड़ा मूर्ख है 96% मानव और सीना तान कर श्रेष्ठ बना फिरता है। घरों में दुबक कर, कपड़े में खुद को जलने/ठंढाने से बचाने के लिए, खुद की प्रजाति से ही नग्न रहने में शर्माता हुआ, उसी को जान से मारने के इरादे लिए, उसी के कहने पर चलते हुए, उसी के रहमोकरम पर मिलने वाले चंद, कागज के उसी के बनाये नकली धन से अपना पेट पालने का नाटक करते हुए; दूसरों का पेट काट कर, पशुओं से खुद को श्रेष्ठ बताते हुए नहीं थकता है। भूल जाता है कि वह भी पशु है। उसका वर्गीकरण भी उन्हीं के साथ किया गया है विज्ञान में, लेकिन झूठ (ईश्वर) को मानने वाले सत्य क्यों मानेंगे भला?
कोई-कोई निकल आता है इस भीड़ से। 4 प्रतिशत में अपना नाम लिखाने, तो बाकी के 96% लोगों को आग लग जाती है। वे उसे अपने जैसा मूर्ख बनाने के लिए सबकुछ कर डालते हैं। न मानने पर उसे मार डालने में भी कोई हिचक नहीं। यह 96% संख्या बहुत बड़ी ताकत है। इसे कुछ कह दें, तो ये हमला करेगी।
इसमें बस कुचल देने की ताकत है। हंस कर गले लगाने की इसकी औकात ही नहीं। इसीलिये जला दिए इसने वो हीरे (हीरे को जलाकर नष्ट किया जा सकता है जबकि वह पृथ्वी का सबसे कठोर पदार्थ है) जो 4% में अपना स्थान रखते थे। सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के सब अंडे निकालने की चाहत और उस अंडे के बनने का धैर्य न होना, खिसिया कर मुर्गी ही मार देना, इस भीड़ का ही गुण है।
बच जाते हैं कोई-कोई, जो समझ जाते हैं इस खेल को। बच जाते हैं भीड़ से। सीख लेते हैं अकेले जीना, सीख लेते हैं "जीना"। वही 4% हिस्सा बनाते हैं।
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