Zahar Bujha Satya

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शनिवार, जून 15, 2019

आचार्य जगदीश: अनसुलझा प्रयोग? ~ Shubhanshu

सामान्यतः जंतु तकलीफ महसूस करते हैं क्योंकि उनमें मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र होता है। सामान्यतः वनस्पतियों में मस्तिष्क और तंत्रिकाओं का पूर्णतः अभाव होता है इसलिये जगदीशचंद्र बसु का प्रयोग क्षद्मविज्ञान से अधिक प्रतीत नहीं होता।

मस्तिष्क हीन जंतु जैसे जेलीफिश और बहुत से जलीय स्थिर जंतु खुद पौधे जैसे दिखते हैं होते हैं वे दर्द महसूस नहीं करते बल्कि जलीय दबाव के प्रति क्रिया दर्शाते हैं। उसे एक निर्जीव क्रिया समझा जा सकता है।

पौधों की जन्तुओ से तुलना करने वाले मूर्ख लोगों को यह पता होना चाहिए कि पौधे और जंतुओं को जोड़ने वाली कड़ियाँ सिर्फ अपवाद होती हैं जो कि वर्गीकरण में भिन्न स्थान पर रखी जाती हैं।

मूल वर्गीकरण पौधे और जंतु में किया गया है जो कि मस्तिष्क हीन जीवन और मस्तिष्क युक्त तंत्रिका तंत्र से व गतिमान अवस्थाओं, जंतु-वनस्पति कोशाओं के मूलभूत अंतर पर और मानव से उसकी समानता पर जंतु जगत में और सजीव परन्तु जड़ निकायों के रूप में पौधों (वनस्पतियों) में किया गया है।

स्वपोषी में भी क्लोरोफिल वाली वनस्पतियों के अतिरिक्त कवक व मशरूम शामिल हैं जो अपना भोजन मृतोपजीवी के रूप में स्वयं ही बनाते है। प्रकृति में भोजन स्वयं बनाने वाली प्रत्येक खाने योग्य वस्तु/जीव जो किसी का अन्य का शिकार न करती हो वह प्राथमिक भोजन होती है।

जो जैसे पाचन तंत्र के साथ पैदा हुआ है उसे वैसा ही भोजन करना चाहिए और मानव वनस्पति आधारित पाचनतंत्र के साथ पैदा हुआ है यही अंतिम सत्य है। सर्वाहारी जंतु के रूप में भालू और बंदर आपके सामने हैं उनसे खुद की तुलना करके खुद देख लें। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018©

नीचे जगदीश चन्द्र बसु का प्रयोग दिया गया है जिसमें वे पौधों में बिजली का करंट है, ऐसा साबित कर रहे हैं। जबकि वनस्पति विज्ञान में कहीं भी विद्युत स्पंदन का ज़िक्र नहीं मिलता (इनके प्रयोग को छोड़ कर)। विद्युत स्पंदन का बिना मस्तिष्कीय प्रोसेस के दर्द महसूस करने, प्रेम महसूस करने से क्या मतलब हो सकता है ये समझ से बाहर है, भले ही वे विद्युतीय प्रतिक्रिया देते भी हों। उस विद्युत का उपयोग वह भावनाओं को व दर्द को महसूस (process) करने के लिए किस अंग का प्रयोग करते हैं? वे अगर यह भी समझा देते तो मैं भी मान जाता इनकी महान खोज को।

वनस्पति के साथ जगदीश चन्द्र बसु का प्रयोग

बायोफिजिक्स (Biophysics) के क्षेत्र में उनका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने दिखाया कि पौधो में उत्तेजना का संचार वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल) माध्यम से होता हैं ना कि केमिकल माध्यम से। (जबकि विद्युत रासायनिक रूप से ही उतपन्न होती है) बाद में इन दावों को वैज्ञानिक प्रयोगो के माध्यम से सच साबित किया गया था। आचार्य बोस ने सबसे पहले माइक्रोवेव के वनस्पति के टिश्यू पर होने वाले असर का अध्ययन किया था। उन्होंने पौधों पर बदलते हुए मौसम से होने वाले असर का अध्ययन किया था। इसके साथ साथ उन्होंने रासायनिक इन्हिबिटर्स (inhibitors) का पौधों पर असर और बदलते हुए तापमान से होने वाले पौधों पर असर का भी अध्ययन किया था। अलग अलग परिस्थितियों में सेल मेम्ब्रेन पोटेंशियल के बदलाव का विश्लेषण करके वे इस नतीजे पर पहुंचे कि पौधे संवेदनशील होते हैं। वे "दर्द महसूस कर सकते हैं, स्नेह अनुभव कर सकते हैं, इत्यादि"।

मेटल फटीग और कोशिकाओ की प्रतिक्रिया का अध्ययन

बोस ने अलग अलग धातु और पौधों के टिश्यू पर फटीग रिस्पांस का तुलनात्मक अध्ययन किया था। उन्होंने अलग अलग धातुओ को इलेक्ट्रिकल , मैकेनिकल, रासायनिक और थर्मल तरीकों के मिश्रण से उत्तेजित किया था और कोशिकाओ और धातु की प्रतिक्रिया के समानताओं को नोट किया था। बोस के प्रयोगो ने simulated (नकली) कोशिकाओ और धातु में चक्रीय(cyclical) फटीग प्रतिक्रिया दिखाई थी। इसके साथ ही जीवित कोशिकाओ और धातुओ में अलग अलग तरह के उत्तेजनाओं (stimuli) के लिए विशेष चक्रीय (cyclical) फटीग और रिकवरी रिस्पांस का भी अध्ययन किया था।

आचार्य बोस ने बदलते हुए इलेक्ट्रिकल स्टिमुली के साथ पौधों बदलते हुए इलेक्ट्रिकल प्रतिक्रिया का एक ग्राफ बनाया, और यह भी दिखाया कि जब पौधों को ज़हर या एनेस्थेटिक (चेतना शून्य करने वाली औषधि ) दी जाती हैं तब उनकी प्रतिक्रिया कम होने लगती हैं और आगे चलकर शून्य हो जाती हैं। लेकिन यह प्रतिक्रिया जिंक (zinc) धातु ने नहीं दिखाई, जब उसे ओक्सालिक एसिड के साथ ट्रीट किया गया।

क्या बिना मस्तिष्क के ऐसा हो सकता है? क्या इनको अभी और रिसर्च की ज़रूरत महसूस नहीं हुई? अवश्य ही यह प्रयोग अधूरा है।

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