सनातन के लिए राम-कृष्ण-शिव-हनुमान आदि,
इस्लाम के लिये मोहम्मद,
सिख के लिए नानक व गुरु पुस्तक,
इसाई के लिये जीजस,
बौद्ध के लिये तथागत,
अम्बेडकरवादी के लिये बाबा साहेब,
जैन के लिए महावीर,
मार्क्सवादी के लिए कार्ल मार्क्स,
आदि पूजनीय हैं और इनकी बाकायदा मूर्तिपूजा (इस्लाम और सिख को छोड़ कर, सिख में तस्वीर व पुस्तक पूजन और इस्लाम में नाम की तस्वीर पूजन) चालू है। हमारे लिए ये सभी इतिहास के महापुरुष हैं (राम आदि को छोड़ कर क्योंकि उनका कोई पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध नहीं है)।
इनका आज के आधुनिक/वैज्ञानिक ज़माने में महिमामंडन, पुष्प पूजा व दिखावे वाला सम्मान करना मध्यकालीन युग मे वापस लौटने जैसा होगा। जो कि पुनः पाखण्ड का जनक बनेगा (काफी हद तक बन चुका है)।
ये सभी लोग खुद को नास्तिक साबित कर लेते हैं क्योंकि ये प्रसिद्ध लोग ईश्वर के रूप में वर्णित नहीं हैं। मानव के रूप में वर्णित हैं। नास्तिक केवल ईश्वर में भरोसा नहीं रखता। इस नियम से ये सभी धर्म (अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद अभी पंजीकृत धर्म नहीं लेकिन लक्षण समान हैं) नास्तिकों को भी धार्मिक बना रहे हैं।
क्या आप इस तरह की नास्तिकता चाहते हैं? यदि हाँ तो बताइये समाज में क्या फर्क पड़ेगा? सारा पाखण्ड यहीं का यहीं रह गया। वह हवाई ईश्वर तो पहले भी पूजा नहीं जाता था। फिर ऐसे नास्तिक पैदा करके क्या उखाड़ लिया हम सब ने? इसलिये व्यक्तिवाद छोड़ना ही होगा। महापुरुषों की जगह पुस्तको और उनकी शिक्षाओं की जगह हमारे मन में है। उनका मूर्ति/तस्वीर/नाम पूजन से कोई लाभ नहीं होने वाला बुद्धिमान मानव को।
इसलिये यह परम आवश्यक था कि एक नई विचारधारा लाई जाए जो मानव की शुद्धि करके उसे कठपुतली से वापस इंसान बना दे। मानव जब अस्तित्व में आया तो वह सभी प्रकार के पाखंडों से मुक्त था। वह किसी भी religion (धर्म) से मुक्त था। वह वास्तविक धर्ममुक्त था। फिर उसने आविष्कार किये और आधुनिक बनता गया। जिन्होंने आविष्कार किये वे धर्म/ईश्वर से मुक्त थे बाकी लोग (96%) को परिवार के चलते कुछ सोचने/करने/खोजने का मौका ही नहीं मिला।
चिंता और थकान में वे सोच न सके और अंधविश्वास में घिरते गए। कुछ धूर्त बुद्धि के विद्वानों ने धर्म की अवधारणा बना कर उनको विज्ञान से दूर रखा और इस तरह मेहनतकश लोग धार्मिक बनते चले गए। उनको लगा कि सोचने के लिए ये धर्मगुरु है न! इस तरह दुनिया धार्मिक हो गयी और 4% लोग आज़ाद सोच के चलते सफल होते गए। धर्मगुरु भी इन्हीं 4% में हैं क्योंकि दरअसल ये एकदम नास्तिक हैं। लेकिन धर्म भी इनके ही पुरखो ने बनाया तो धंधा है, अपनाना ही पड़ेगा।
इतनी सी गणित है दुनिया की। फिर क्या करें? कैसे इन 96% लोगों को भावी परिवार की ज़िम्मेदारी से आज़ाद करें, ताकि वे आज़ाद सोच सकें? इसलिये विवाहमुक्त, शिशुमुक्त, धर्ममुक्त जीवन का विचार आया और बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण करके ही हम लोगों को समझा सकते हैं। अन्यथा आज 7 अरब को जगाओ तो अगले दिन फिर 7 अरब लोग पैदा हो जाएंगे। जल, जंगल, ज़मीन सीमित है और मानव असीमित।
भविष्य में एक दूसरे को ही खाना है तो आज पैदा न करने में क्या बुराई है दोस्तों? सोचो, समझो, 10 बार पढ़ो इसे, जो मैंने आपको बताया, उसको बार-बार परखो। मेरे कहने से मत मानो। खुद आज़माओ, खुद देखो करके। फिर अगर समझ में आये तो अमल में लाना। तुम्हारा ही कल्याण होगा। धर्ममुक्त जयते! ज़हरबुझा सत्यमेव जयते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 3:22 am, शनिवार 1 जूनधर्ममुक्त
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