मैं एक नई रीत शुरू कर रहा हूँ। अब से मैं जन्मदिन नहीं बल्कि अपना स्वतंत्रता दिवस मनाऊंगा। जन्म की तिथि को नहीं, अपने वयस्क होने की तिथि को। वह भी वही होगी लेकिन मैं उस पर वर्ष लिखूंगा हमेशा, वही जो था मेरे 18वें वर्ष में। इस दिन मैं आज़ाद हो गया था, अपने माता-पिता से, मेरे केयर टेकर से, मेरे गार्जियन से। आज़ाद हो गया था अपनी मर्जी से जीने, गलती करने और सज़ा पाने के लिए। हो गया था आज़ाद, चुनने के लिए कि क्या सही है और क्या गलत है मेरे लिए।
ज़िम्मेदार हो गया था खुद के प्रति। मेरा ये शरीर, ये जीवन बड़ी ज़िम्मेदारी है। इसे पूरा खर्च करना है। खुद के लिए। जीवन सुखों के लिए जीना है। दुःख हुआ तो वो भी मेरा हो। मेरा सुख तो मेरा होगा ही। किसी पर आरोप नहीं लगाना है तब से। खुद को आरोपी बनाने में ही ज़िम्मेदारी है। ठोकरें ही तो सिखाती हैं जीना।
भूल गया था दूसरों के गमों को, खुद के कम थे क्या? कौन आया मेरे आंसू पोछने जो किसी और को पंगु बना दूँ? आज जब खुद के दम पर जीने का इंतज़ाम कर लिया तो सफल हूँ। ये सफलता है मेरी खुद की। किसी का कोई हक नहीं इस पर और अब मैं कुछ छोड़ जाऊं तो ये होगा असली एहसान।
याद रखिये आपके मरने के बाद ही आपके बारे में अच्छी बातें होंगी। जीते जी कितनो के भी आंसू पोछिये, जूते ही खाओगे। इसलिये अच्छे से जी लो। आप अपने कर्म भुगतो, दूसरों को उनके भुगतने दीजिये। यही सच्ची समाज सेवा और आपका योगदान होगा। उदाहरण बनूँगा और बाकी उससे सबक लेंगे। याद रखिये सबको ख़ुशी नहीं दे सकते आप। फिर कुछ को हंसा के बाकी को रोता छोड़ोगे तो वो बद्दुआ देंगे। बेहतर है किसी की बद्दुआ और दुआ मत लो।
मर जाने के बाद मेरी सम्पत्ति किसी अच्छे कार्य में लगेगी तो सब गर्व से याद करेंगे। अभी तो बस गाली ही पड़ेंगी। कहेंगे कि शो ऑफ कर रहा है। सब इसके प्रसिद्ध होने के बहाने हैं। कोई एहसान नहीं कर रहा। नेता बनने के चोचले हैं। समझे कुछ?
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