Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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सोमवार, अप्रैल 30, 2018

शुभाँशु: एक ठग

हम में से अधिकतर विद्वान बहुत ज़ल्दी निराश हो जाते हैं। सबकुछ बहुत जल्दी जानने की चाह हमको ज्ञानी बना देती है लेकिन परेशान भी बहुत कर देती है। दरअसल हम में से बहुत लोग सबकुछ जानने के लिये नहीं बने या बनना ही नहीं चाहते।

जो यह बात नहीं जानते, वे कुएं से निकल कर, एक बड़े तालाब को ही दुनिया समझ बैठते हैं। गलती उनकी नहीं है। जब भी कोई छोटे से कुएं से बाहर निकलता है तो वह सीमित तालाब उसे दुनिया ही नज़र आतीं है, जैसे जब तक हम अंतरिक्ष में नही गए हम बस पृथ्वी को ही सबकुछ समझ बैठे थे।

आज हमें पता है कि ross 128 ख नाम का पृथ्वी के समान एक और ग्रह मिल चुका है। उस पर मानव के बसने की उम्मीद बढ़ती जा रही है। लेकिन हम में से ज्यादातर विद्वान क्या कर रहे हैं? बस इस छोटे से पृथ्वी रूपी तालाब के चक्कर काट कर खुद को पूर्ण हुआ समझ लेते हैं। उतना जानकर ही हम 50 वर्ष की उम्र में बस मृत्यु की राह देखने लगते हैं।

मैं भी कभी कभी ऐसा ही सोचने लगता हूँ। जैसे अब बस हुआ। यह मानव की आत्म घाती इंस्टिंक्ट कहलाती है। जबकि सत्य तो यह है कि जीवन के खुशनुमा पल एकांतवासी बन कर भी मिलते हैं लेकिन कथित परलोकवासी बन कर कभी नहीं। लाशें नहीं बोलतीं। लाशें नहीं सिखातीं। लाशें सड़ती हैं। लाशें दुर्गंध फैलाती हैं। लाशें बीमारी फैलाती हैं। हमकों लाश नहीं बनना। हमको तो दुनिया में ज्ञान की सुगंध फैलानी है।

जब तक विद्वान जीवन जीते हैं बस उतने ही दिन अच्छाई फलती-फूलती है। जब उन विद्वानों की मृत्यु होती है, तब सारी दुनिया अनाथ हो जाती है।

मैं इसीलिये जीवन जी रहा हूँ क्योकि लोगों को मैं अभी कुछ विद्वान लगता हूँ, उनको मेरी ज़रूरत है। जबकि मैं अभी भी कुएं से निकल कर तालाब में आया और अब उस से आगे जाने वाले अन्य विद्वानों की तरह का एक सामान्य सा मूर्ख इंसान रूपी मेढ़क ही हूँ।

मैं भी कभी कुएं को तो कभी तालाब को पूरी दुनिया ही समझ बैठा था लेकिन आशा की किरण किसी न किसी कोने से आती दिखती ही रही और मैं फुदक कर एक दिन तालाब से बाहर निकल ही आया। यह दुनिया पहले वाली दोनो दुनिया से बेहतर थी। मैंने अपनी कंफर्ट ज़ोन छोड़ दी थी और संघर्ष की एक नई राह पकड़ कर जीवन को फिर से रोमांच से भर दिया।

दुनिया 1. कूप या कुंआ (स्थानीय परिवेश: देश यात्रा व देशी पुस्तके)
दुनिया 2. तालाब (बाहरी परिवेश: विदेश यात्रा व विदेशी पुस्तकें)
दुनिया 3. समुद्र (गूढ़ ज्ञान की दुनिया, छिपी हुई दुनिया, रहस्य और हर समस्या का हल)

और मैं और आप एक मण्डूक (मेढ़क: उभयचर प्राणी)

इस तीसरी दुनिया में मैं आज विचरण कर रहा हूँ। जो ब्रह्मांड जैसी विशाल है। वैसे ही हमारे लिये समुद्र भी बहुत विशाल है। इसे देखने के लिये बहुत जीवन चाहिए। बहुत ज्यादा, बहुत बहुत बहुत ही ज्यादा। लेकिन वह कैसे मिले? जर्जर ज़िस्म, चारपाई पकड़े हुए, 100 वर्ष जीवन जीने से तो मर जाना बेहतर। फिर कैसे रहें चिरंजीवी? चिरयुवा?

जब आप इस तीसरी दुनिया में जाते हैं तो जीवन अपने आप लम्बा और शरीर युवा होने लगता है। शरीर अपने आप एडजस्ट करता है खुद को, बदली हुई दुनिया के अनुसार। हमें ऐसा ज्ञान मिलने लगता है जो पहले सर्वथा असम्भव था। यानि वह अब जब आपकी सच्ची आवश्यकता बना, तब सम्भव हो गया। जवान और अमर होना अब सम्भव हो चुका। मृत्यु अब अंतिम सत्य नहीं।

कोई भी जीव अब तक नहीं बचा इसलिये हम कहते हैं कि मृत्यु अंतिम है। इससे कोई पार नहीं जा सका। लेकिन फिर यह क्यो भूल जाते हैं कि पहले कोई हवाई यात्रा भी तो नहीं करता था, मोबाइल पर फेसबुक-ट्विटर-व्हाट्सप्प-इंस्टाग्राम आदि भी तो नहीं चलाता था।

पहले वाले जीव-जंतु-मानव अभावग्रस्त थे लेकिन हम लोग तो सम्पन्न हैं। उम्मीद ने ही हमको जीवन दे रखा है। फिर भी हम उसे छोड़ देने में देर नहीं लगाते। यह कैसा शुक्रिया है? यह कैसा सम्मान है उम्मीद का? उसे गले लगा कर मान देने की जगह फटकार? छी, थू है ऐसे तिरस्कार पर।

जब भी सब दरवाजे बंद दिखें तो हमको नये दरवाजे के खुलने की उम्मीद लग जानी चाहिए। न मिले तो समझ लीजिए कि आपको वह अब खुद बनाना है।

याद रखिये मैं आपको सबकुछ घोल कर नहीं पिलाने वाला। इशारा कर सकता हूँ लेकिन चम्मच से नहीं खिला सकता। मैं बहुत स्वार्थी व्यक्ति हूँ। सबकुछ लुटा कर चैन और सुकून खरीद लेना चाहता हूँ। मुस्कुराहट देकर मुस्कुराहट प्राप्त करता हूँ। सौदेबाज हूँ, सौदागर हूँ। छलिया हूँ। आपसे आपके दुःख की धूप ठग कर सुख की छांव का चूना लगा दूँगा।

मैं आया ही इसीलिये हूँ, आप सबको ठगने के लिए। ~ शुभाँशु जी 2018©

रविवार, अप्रैल 29, 2018

माता-पिता की ज़िम्मेदारी हैं अवयस्क बच्चे

सभी जगह डेटिंग शुरू करनी होगी। लड़कों को "संस्कारी" लड़कियां भाव नहीं देतीं तो कुंठा में वे बच्चो को शिकार बना लेते हैं और आप लोग लगे रहिये सयंम का उपदेश देने में या गुड टच बैड टच 6 महीने या 6 साल की बच्चियों को घोलके पिलाने में क्योकि उनको तो कुछ समझ में आएगा नहीं।

पता नहीं यह कैसी सुरक्षा है? जो उनको रेप करेगा तो पहले मुहँ बन्द करेगा या उसे चिल्लाने का मौका देगा? बेवकूफ लोग, गधे।

छोटे बच्चों को अपने साथ रखने में क्या मरती है माता-पिता की जो उनको अकेला छोड़ देते हैं? जब तक 18 के नहीं होते बच्चों की ज़िम्मेदारी माता-पिता की है। उनके साथ कुछ हो तो सज़ा अपराधी से ज्यादा माता-पिता को दी जाए तो ज़रूर रेप रुकेंगे बच्चों के।

सेक्स एडुकेशन भी सिर्फ समझदार हो रहे बच्चो को दे सकते हैं। 10-12 वर्ष के बाद लगभग। इससे पहले तो उनके भीतर कुछ यौवन के लक्षण भी नहीं दिखते।

सेक्स एजुकेशन में सेक्स करने का तरीका, उसके फायदे और नुकसान समझाए जाते हैं। साथ ही अगर कोई अपनी मर्जी से कर बैठता है तो क्या करना चाहिए सुरक्षा के लिये आदि। सारी दुनिया का ठेका तो मैं लिए बैठा हूँ। आप लोग ऐश करो। 😬 ~ शुभाँशु जी 2018©

फुलझड़ी और बारूद

समाज को, उसके बंधनो को जो लोग अच्छा समझते हैं, वही दरअसल समाज के दुश्मन हैं। यही वे लोग हैं जो तमाम अच्छी सोच वाले बनकर भीतर से घटिया ही बने रहते हैं। सबसे निम्नस्तरीय सोच वाले वह हैं जो दूसरों के लिये बड़ी बड़ी बातें करेंगे जैसे,

"आप अपनी लड़की को खूब पढ़ाइये, चाहें जैसे कपड़े पहनाइए। हमारे यहाँ लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता। पढ़ाने से लड़कियां बिगड़ जाती हैं (तभी इनके लड़के बिगड़ गए पढ़ाई करके) और आधुनिक कपड़े वाली लड़कियाँ (इनके) लड़कों का शिकार बन जाती हैं।"

मतलब दूसरा करे तो कोई दिक्कत नहीं है क्योकि खुद की नज़र दूसरों के ऊपर रहती है। लेकिन अपने वाले परम्परागत ढंग से ही चलने चाहिए। यह दरअसल उसी तटस्थता के नियम की झलक है जो आपको धर्मनिरपेक्ष होने के  संदर्भ में दर्शाया जाता है, जैसे,

"आप मना लो होली, दिवाली हम भी गुझिया खाने, रंग लगाने आ जायँगे। आप भी आ जाना ईदी खाने को हमारे यहाँ।"

"खान साहब, हमारे यहाँ दुर्गापूजा और जागरण है आपको सादर आमंत्रित किया है"

"आ जाएंगे जी। ज़रुर आ जाएंगे।"

"आप आये नहीं पूजा में खान साहब?"

"अरे क्या बताएं, उसी समय बिटिया को दस्त लग गए और उसे दवाई दिलाने ले जाना पड़ा। बताइये क्या करते?"

"अरे पांडे जी, आप ईदी खाने नहीं आये। आपके लिये बिरयानी बनवाई थी।"

"हमारा उपवास था उस दिन खान भाई। इसलिये आपको तकलीफ नहीं दी। खान साहब"

इस तरह से चलता है भाई चारा। अंदर क्या चलता है वह भी देखिये।

"अब क्या बताएँ पांडे जी को कि हमारे यहाँ मूर्ति पूजा हराम है। ख़ुदा माफ करना, धर्म की रक्षा के लिये झूठ बोलना पड़ा!"

"हरे राम, हरे राम, अब क्या कहें खान साहब को, उनकी बिरयानी ख़ाकर धर्म थोड़े ही भृष्ट करना है। माफ करना राम जी, धर्म की रक्षा के लिये झूठ बोलना पड़ा! हरि ॐ तत्सत!"

क्या है यह झूठा समाज? खाली दिखावा? बस एक चिंगारी का इंतज़ार करता हुआ विस्फोटक? और जब नेता चुनोगे तो मुद्दे तो चाहिए ही जिन पर आपको सबसे ज्यादा गुस्सा हो। वही न जिसके कारण आपको धर्मरक्षा करनी पड़ती है? कि काश दूसरे धर्म वालों के बीच रहना ही नहीं पड़ता तो कितना अच्छा होता?

भारत कभी धर्म तटस्थ (कथित धर्मनिरपेक्ष) था ही नहीं। बस दिखावा करना था ताकि चैन से जी सकें। लेकिन क्या नेता ऐसा होने देंगे? आप अपनी कास्ट, धर्म और पैरवी करने वाले को ही तो वोट देते हैं। क्यों? क्योकि आपको उससे उम्मीद हैं और बाकियों से नफरत।

उम्मीद भी किस बात की? यही कि हमको अलग कालोनी/राज्य/देश मिल जाये, लड़के-लड़कियों को गैर धर्म में रिश्ता न जोड़ना पड़े। अलग सुविधायें मिल जाएं। सब कुछ धर्मानुसार होता रहे; चाहें वह कितना भी गलत ही क्यों न हो। पुरखों ने किया तो कुछ तो बात होगी! यही सोच कर पाप पुण्य और पुण्य पाप में बदलते रहते हैं।

हम सब धर्म/सम्प्रदाय की बारूद से बने बम बने घूम रहे हैं और नेता फुलझड़ी लेकर आपके करीब आ रहे हैं। सावधान रहें। वैसे भी आप बारुद को आग पकड़ने से रोक नहीं सकते। क्या फुलझड़ी को कभी फूंक मार के बुझा पाया है कोई? ~ शुभाँशु जी 2018©

शुक्रवार, अप्रैल 27, 2018

Porn: एक हस्तमैथुन प्रेरक और बलात्कार से बचाने वाला

पोर्न विश्वभर में (जहाँ भी मुस्लिम नहीं हैं) सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त व्यापार है। मनोविज्ञान कहता है कि अच्छा और वैध पोर्न लोगो की कामुकता को घरों में ही खत्म् कर देता है (हस्तमैथुन/सेक्स टॉय के द्वारा)।

इससे व्यक्ति बिना काम वासना के अपना जीवन आसानी से गुजार लेता है। जो लोग पोर्न नहीं देखते या देखते हुए हस्तमैथुन/सेक्सटॉय इस्तेमाल नहीं करते वह ज़रूर अपनी कुंठा को भड़काते हैं और बलात्कार के लिए प्रेरित हो सकते हैं। समस्या पोर्न नहीं है बल्कि उसे देखते समय हस्तमैथुन न करना है।

कृपया पोर्न देखते समय कामोत्तेजित हों तो अपने आस पास किसी महिला/पुरूष को न दबोचें बल्कि हस्तमैथुन कर के अपनी कामुकता को नाली में बहा दें। धन्यवाद! 💐 ~ शुभाँशु जी।

विशेष note: बच्चा पोर्न सम्पूर्ण विश्व में प्रतिबंधित है और बलात्कार की सच्ची घटनाओ का फिल्मांकन भी। किसी का निजी वीडियो और ऐसा कोई भी वीडियो जो आपराधिक घटना को प्रेरित करे, उसे वेबसाइट में दिए गए रिपोर्ट लिंक से रिपोर्ट कर दें। वह हटा लिया जाता है। पोर्न के बस यही रूप घातक हैं बाकी वरदान हैं, हर बलात्कारी को अपने कमरे या बाथरूम में बन्द रखने के लिये। ~ शुभाँशु जी 2018©

महिलाओं और पुरुषों के हित में जारी।

Good touch & Bad touch

लड़कों की कक्षा में-
शुभाँशु जी: सुनो लड़कों। आज हम आपको बताएंगे गुड टच और बैड टच के बारे में। अगर कोई लड़की जब तक आप 18 वर्ष के नही हो जाते तब तक आपकी टांगों के बीच के अंग को छूने की कोशिश करे तो उसे रोकें और शोर मचा दें। बचाओ-बचाओ करके। बाकी जगह पर अकारण न छुआ जाए बल्कि आपकी इच्छा से छुआ जाए तो वह गुड टच होगा।
लड़के: ठीक है सर।

लड़कियों की कक्षा में-
शुभाँशु जी: सुनो लड़कियों। आज हम आपको बताएंगे गुड टच और बैड टच के बारे में। अगर कोई लड़का जब तक आप 18 वर्ष के नही हो जाते तब तक आपकी टांगों के बीच में बने स्थान को छुए तो उसे रोकना और शोर मचा दें। बचाओ बचाओ करके। बाकी जगह पर अकारण न छुआ जाए बल्कि आपकी इच्छा से छुआ जाए तो वह गुड टच होगा।
लड़कियाँ: ठीक है सर।

अब क्या इसमें भी चुटकुला ढूंढ रहे हैं? गम्भीर पोस्ट है यह। क्षद्म नारीवादियों के लिये बनाई है। जो गुड़ खाएं लेकिन गुलगुले से परहेज की बात करते हैं। 18 वर्ष का समय भी नहीं बताते और सीने को भी गुप्तांग बताते हैं। जबकि वह तो होता भी नहीं बच्चों में। हो भी तो अकारण छूने पर कोई भी विरोध करेगा ही। मैं भी करता हूँ। बेहतर होगा कि पूंर्ण सेक्स शिक्षा दी जाए। इस अधूरे नियम में बहुत भारी खतरे हैं जो अभी आपको पता नहीं हैं। नहीं होते तो आपको न्यूज़ में इसका फायदा दिखता। बाकी फिर कभी! ~ शुभाँशु जी 2018©

सोमवार, अप्रैल 23, 2018

संविधान की खिल्ली उड़ाते कानून ~ Shubhanshu

कोई भी कानून हो, उसके लिए सबसे जरुरी है:

1. Gender Neutral/लिंग तटस्थ: मतलब पुरुष और स्त्री दोनो गुहार लगा सकें। उदाहरण: महिला पुरूष पर बलात्कार का मुकदमा कर सकती है लेकिन पुरुष महिला पर नहीं कर सकता। यह गलत है।

2. Strong evidence: यानी जुर्म कैसे सिद्ध होगा? क्या सिर्फ बयान से ही मान लिया जाएगा? उदाहरण: यदि बलात्कार हुआ है तो केवल महिला के बयान को ही सुबूत मान कर अभी गिफ्तारी हो जाती है। यह गलत है।

3. Misuse Collase: यानि अगर झूठा आरोप लगाया गया है तो झूठे आरोप लगाने वाले को उतनी ही सजा। उदाहरण: अभी यह सिर्फ भुक्तभोगी के द्वारा की गई कार्यवाही पर निर्भर है।

तभी हम कानून के दूरुपयोग को रोक पाएंगे और कानून सही रूप से प्रभावी होगा। नहीं तो दूसरे कानूनों की तरह यह भी आपसी मनमुटाव को हल करने का और अपनी नाजायज़ मांग मनवाने का एक और तरीका बन जायेगा। इस से उन झूठे भृष्टाचारी लोगों को सबक मिलेगा जो एक आम सच्चे व्यक्ति को झूठे मूकदमे मे फँसा कर शोषित करते हैं। अभी जो 80% भ्रष्टाचारी लोग झूठे मुकदमे लगाते हैं, उन्हें सजा मिलेगी और देश का भला होगा।

महिला कानूनों को एक बार फिर से स्क्रूटनी (संशोधन) की ज़रूरत है। वह सम्विधान के मूल से इतर जा रहे हैं। न्याय को न्याय ही रहना चाहिए तभी वह स्वागत योग्य बनेगा।  2018/02/21 13:33 ~ Mr. Vegan Shubhanshu Singh Chauhan

ऊंची उड़ान का जादू ~ Shubhanshu

मुझे हर बात पर त्याग करने वाली, आत्मसमर्पण कर देने वाली कायर नारी नहीं देखनी। मुझे अपनी इच्छानुसार दुनिया का निर्माण करने वाली बहादुर नारी देखनी है। मुझे एक साथ चलने वाले मित्र पसन्द हैं या जो मुझे आगे भी बढ़ने की प्रेरणा दे सकें।

अब आप खुद तय कर लीजिये कि आपको क्या चाहिए, बदलाव या दड़बे की दबी-कुचली परन्तु महिमामण्डित ज़िन्दगी। बलि की बकरी की तरह सजी हुई, चुपड़ी रोटी वाली, कैदखाने वाली आसान परन्तु आँसू भरी ज़िन्दगी या आज़ादी की सूखी रोटी वाली खुली हवा की उड़ान, जहाँ कोई रोक-टोक नहीं। आज़ादी, लड़कों से भी ज्यादा।

मैं भी आज़ाद हुआ हूँ। इस नकली समाज में पुरुष भी आज़ाद नहीं। मैं भी बेड़ियां तोड़ कर आया हूँ। अब आपकी बारी है। कमज़ोर हैं बेड़िया, बस आपको इसका पता नहीं है। हिम्मत नहीं है आपमे। मुझमें भी नहीं थी। फिर एक दिन सोचा जब मरना ही है एक दिन तो क्यों न आज ही मर के देखा जाए? बस फिर क्या था, डर उड़न छू हो गया और सब दीवारें कागजी हो गईं।

इन नासमझ समाज वालों ने हमें कमज़ोर समझ कर खाली देखने के लिए पिंजड़े बना रखे थे। थे वे बहुत कमजोर। बस उंगली लगाने से टूट गए वे ताले जिनको मैं सोचता था कि हाथी भी न तोड़ पायेगा लेकिन फिर सब बदल गया जब मैंने एक हाथी को डंडे जैसे खूंटे से बंधे देखा। सोचा, कि यह इतना बड़ा हाथी इस एक खूँटे से कैसे बंधा बैठा है?

मैं महावत के पास गया, उससे पूछा, "भाई यह इतना बड़ा हाथी इतने से खूँटे से कैसे बंधा है?"

वह बोला, "साहब, जो जितना बुद्धिमान होता है, उसे मूर्ख बनाना उतना ही आसान होता है। हाथी बुद्धिमान जानवर है इसलिये मात खा गया। उसने भी इंसानों की तरह धारणा बना रखी है।"

मैने पूछा, "कैसी धारणा?"

महावत बोला, "हम इस हाथी को जब यह छोटा बच्चा था, तब लाये थे। उस समय इसे हमने बछिया की तरह खूंटे से पहली बार बांधा था। उसने खूब ज़ोर लगाया, खूब खींचा लेकिन धीरे-धीरे थक कर बैठ गया। वह समझ गया था कि वह खूँटा उससे कभी नहीं उखड़ेगा। बस यही धारणा उसमें घर कर गई।

जबकि गधे को आप नहीं बांध सकते वह ज़रूर आपको किसी दिन दुलत्ती मार के, रस्सी छुड़ा कर भाग सकता है क्योकि वह मूर्ख है लेकिन यह बुद्धिमान यह मान कर बैठ गया कि अब यह खूंटा कभी नहीं टूटेगा।

वह निराश हो गया। आज यह हाथी बहुत बड़ा हो गया है लेकिन उसे ज़रा भी एहसास नहीं है कि वह जिस तरह बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ फेकता है इस मामूली खूँटे को तो ज़रा सा झटका देकर नोच सकता है।

यह सब उसकी धारणा (माइंडसेट) का नतीजा है। वैसे ही जैसे हम अपने से बड़ों को नहीं टाल पाते और उनसे डरते हैं, वैसे ही जैसे बचपन में डरते थे। जबकि आज वे हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। ये हाथी भी इंसान ही होते हैं साहब। बस आप लोग इनको जानवर समझते हो।"

मैं जैसे सोते से जागा। हैरान, अवाक सा एक तरफ चलने लगा। शायद किसी गलत दिशा में भटक गया।

एक जगह बाज़ को मुर्गियों के दड़बे में बैठा देखा। बहुत हैरानी हुई कि यह क्या है? पास जाकर देखा कि सच में बाज ही है, लेकिन यह क्या? वह दाना खा रहा है? पास गया तो वह फड़फड़ा कर मुर्गियों की तरह मुझसे दूर हो गया। मैंने अपने सिर को झटका, कि कहीं मैं पागल तो नहीं हो गया? मैं बहुत देर तक वहाँ उस अजूबे को देखता रहा, तब तक, जब तक उस दड़बे के मालिक ने मुझे नहीं टोका।

"क्या हुआ साहब? क्या देख रहे हैं? कहीं मुर्गी चुराने का इरादा तो नहीं?" दड़बे का मालिक बोला।

"अरे नहीं, बस वह इस अजूबे को देख रहा था।" मैं सकपका कर बोला।

"अरे इस बाज को? इसकी भी रोचक कहानी है, कहिये तो सुनाऊं।" वह आदमी मुझे पास में पड़ी चारपाई पर ले आया।

"नेकी और पूछ-पूछ, जल्दी बताइये, आज का तो दिन ही अजीब है।" मैने उत्सुकता से कहा।

"साहब आप मुझे पढ़े-लिखे मालूम पड़ते हैं, किधर यह गरीबों की बस्ती में भटक रहे हैं?" उसने जैसे मुझे डांटने वाले लहज़े में देखा।

"जी वो मैं, थोड़ा अलग हूँ बाकियों से। मुझे किसी ढर्रे पर चलना पसन्द नहीं। अपनी घर की ज़िम्मेदारी से बंधा हुआ हूँ तो समझ में नहीं आता कि क्या है असली आज़ादी? बस वही तलाश रहा हूँ। इसीलिये समय निकाल कर कुछ अपने लिये भी जी लेने चला आया। औरों के लिये तो सभी जीते हैं।" मैं बस बोलता चला गया। कहीं सीने में छिपा दर्द बस निकलने ही वाला था कि मैं सम्भल गया।

"बड़े दिल वाले हैं आप साहब, बहादुर भी हैं। बगावत के लक्षण भी हैं आपमें, लेकिन पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर? क्या सच में आप आज़ाद होना चाहते हैं?" जैसे वह आज़ादी की चाभी लिए बैठा हो। उसने ऐसे कहा तो बरबस बस मैं दिल से बोल उठा, "हाँ, हाँ, हाँ।"

"तो आप गलती से सही जगह आ गए हैं साहब। अब मैं आपको उस बाज का राज़ बताता हूँ। आज से कुछ महीनों पहले एक बाज़ का घोंसला इधर के छोटे पेड़ पर था। एक बार उसके घोंसले से फिसल कर एक अंडा इधर मुर्गियों के पुआल पर गिर गया। मैं सभी अंडे नहीं बेचता और वह अंडा भी उपजाऊ अंडों के साथ चला गया। मुर्गी ने उसे अपने अंडे की तरह पाला। उसने काले सफेद चूजे का भेद नहीं किया।

समय के साथ वह बाज का बच्चा भी चूजों के साथ बढ़ता गया और अपने भाई-बहनों-दोस्तो के साथ खेल-खेल कर मुर्गा ही बन गया। अब यह इसलिये नहीं उड़ता क्योकि इसके पंख कमज़ोर हैं, बल्कि यह इसलिये नहीं उड़ता क्योकि इसे लगता है कि वह उड़ नहीं सकता। इसने धारणा बना ली है कि वह कमज़ोर है। उसमें ताकत नहीं।

कभी-कभी उसकी बर्बाद ज़िन्दगी देख कर उस पर तरस आता है, इसलिये उसे खुले आसमान के नीचे छोड़ रखा है कि शायद किसी दिन अपने जैसे किसी बाज को देख कर इसे अपनी ताकत समझ में आ जाये कि यह दड़बे के लिये नहीं बना। इसे तो आकाश की ऊंचाईयों को छूना है।"

मेरी आँखों में आंसू थे। ऐसा लगा जैसे वह बाज मैं ही हूँ, जो न जाने कब से मुर्गियों में फंसा बैठा हूँ। मैं बहुत देर तक सिसकता रहा, अपने में ही। तब तक, जब तक उस बुजुर्ग ने मुझे पानी लाकर नहीं दिया।

फिर हमारे बीच में कोई बात नहीं हुई। मैने पानी पिया और एक फैसला कर लिया। मैंने उस बाज को पकड़ लिया और उस मकान की छत पर ले गया, एक ज़ोर का धक्का उसे मारा और उसे छत से नीचे फेंक दिया। वह बहुत जोर से चिल्लाया। लेकिन वह नीचे नहीं गिरा। आज मौत के डर से उसकी हिम्मत वापस आ गई और वह उड़ने लगा। 5 मिनट की टेढ़ी-मेढ़ी उड़ान के बाद वह सुरक्षित नीचे उतर आया। जब मैं नीचे आया तो वह गायब था। मैं उसे ढूंढने लगा तो उस बुजुर्ग ने मुझे आसमान में देखने का इशारा किया।

और मैं हैरान रह गया कि वह तो ऊपर था। बहुत ऊपर, बहुत ऊपर...बिल्कुल मेरी तरह। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan  2018/03/14 20:56 2018©

दोहरी मानसिकता ~ Shubhanshu

प्रायः लोगों से यह सुनने को मिलता है कि आपकी मां-बहन-बेटी-मित्र को आप ऐसा करने दोगे, जैसा अन्य स्त्रियों के लिये आप वकालत कर रहे हैं? या अपनी माँ-बहन-बेटी-मित्र को मेरे बिस्तर में भेज दे।

क्या कभी आपने सोचा भी कि आपकी यह मानसिकता क्या दर्शाती है?

एक तो, यह दर्शाता है कि आपकी माता-बहन-बेटी-मित्र आज़ाद नहीं हैं। आपके कब्जे में हैं। आप हैं उनके निर्देशक। आपके पैर की जूती हैं वे। आप जो चाहें उनसे करवा सकते हैं। इसीलिये तो बिना जाने बूझे सीधे किसी पुरुष से ऐसा सवाल कर देते हैं।

दूसरे, यह दर्शाता है कि आपकी नज़र में महिला सिर्फ उपभोग की वस्तु मात्र है। जिसमें जान नहीं होती। इच्छा नहीं होती। प्रतिरोध की क्षमता नहीं होती।

फिर जब आप खुद को नारीवादी कहते हैं तो समझ में नहीं आता कि मैं रोऊँ या हँसूँ? ~ Shubhanshu ©2018 5:50am, 08-03-2018

ईश्वर ~ Shubhanshu

इंसान जैसा खुद को देखता है वैसा ही मानवीकरण हर वस्तु/विषय का कर देता है। जैसे; गंगा, भारत, गाय, ईश्वर आदि। जैसे वह खुद कुछ बनाता है, सोचता है कि जो उसने नहीं बनाया, वह भी किसी ने बनाया होगा।

रोज जो मौसम बदलते हैं, धूप आती जाती है, भूकम्प, बाढ़, तूफान आते जाते हैं, महामारी आती जाती है, सूर्य, चन्द्र, तारे दिखते हैं, दिन और रात होते हैं आदि उसको लगता है कि इसे भी कोई कर रहा है। बैंगन, पेड़, बकरे के ऊपर उसे धार्मिक चिंन्ह देख कर लगता है कि ईश्वर ने बना दिये हैं।

दुर्घटना, बम विस्फोट, ग्लोबल वार्मिंग, जनसँख्या, नफरत, बीमारियां तो इंसान खुद ही बना कर नाम ईश्वर पर लगा कर बच लेता है। दरअसल ईश्वर का आविष्कार किया ही इसीलिये गया था क्योंकि मानव को अपनी गलतियों/अपराधों का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई निर्जीव बिंदु चाहिए था जो प्रतिरोध न कर सके। वह उसने कल्पना में बना लिया।

वह जानता था कि कोई वायुमण्डल को भेद कर कभी अंतरिक्ष में नहीं जा सकेगा इसलिये उसने ईश्वर को उसी स्थान पर है, कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन अनुमान से पहले ही NASA, ISRO, CNSA, USSR आदि अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान अंतरिक्ष में पहुँच गए और सर्वप्रथम उन्होंने पृथ्वी को नारंगी के आकार का बता कर लगभग सभी झूठे धर्म/सम्प्रदायों का किस्सा खत्म कर दिया।

अब मरते क्या न करते? एक समाज जो हमेशा से पृथ्वी को कभी न घूमने वाला बता कर चपटा बताता था वह औंधे मुहँ जा गिरा। उसके संस्थापक ने आत्महत्या कर ली और बाकी बचे लोग ढाक के तीन पात वाली कहावत पर कार्य करने लगे। अर्थात वे कहने लगे कि NASA, ISRO, USSR, CNSA जैसी संस्थाएं दरअसल बोगस हैं। जिनके जैसा कोई है ही नहीं। यह सिर्फ कंप्यूटर पर अंतरिक्ष दिखाते हैं। दरअसल कोई अंतरिक्ष है ही नहीं।

इनके अनुसार, सेटेलाइट सब समुद्र में गिर जाते हैं। ग्रह दरअसल तारे हैं। सूर्य और चन्द्र भी पृथ्वी की तरह चपटे हैं। सूर्य और चन्द्र गुब्बारे जैसे हल्के और बहुत ही नज़दीक हैं। सूर्य तारा नहीं है। सूर्य और चन्द्र चपटी पृथ्वी पर बारी बारी से घूमते हैं। कोई गुरुत्वाकर्षण बल नहीं है। सब घनत्व के सिद्धांत पर चलते हैं। चन्द्रमा की अपनी रौशनी है। उनके हिसाब से सम्पूर्ण सोलर सिस्टम झूठ है। पृथ्वी के किनारे पर बर्फ जमी है। इसलिए कोई उधर नहीं जा पाता। केवल उत्तरी ध्रुव है। तारे जितने बड़े दिखते हैं उतने ही बड़े हैं। ऊपर चिपके हुए हैं। एक गुम्बद पर जो कि पारदर्शी है।

न न यह मैं बकवास नहीं कर रहा हूँ। जो इनको सच मानते हैं वह आपको पागल कर देंगे, मर जायँगे लेकिन सत्य स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे ऐसे कुतर्क देंगे कि कम बुद्धि वाले लोग तो उनकी यह सब बकवास मान भी जायँगे।

मैं कह रहा हूँ कि खाली हवा में एक वाक्य उड़ा दिया गया कि ईश्वर है। न साबित किया न किसी ने उस पर सवाल किया। किधर है पूछा तो कह दिया सब जगह है। इसे देख नहीं सकते, छू नहीं सकते खाली महसूस करो। अबे यार जब इंद्रियां ही बेकार हैं तो महसूस क्या करें? घोड़ा?

कुछ भी खुद नहीं बन सकता, इसलिये ईश्वर ने बनाया। लेकिन फिर उस ईश्वर को किसने बनाया? है जवाब?

अब सवाल आता है कि क्या मानव को ईश्वर की अवधारणा पर डटे रहने की लत लग गई है? क्या इसी को धर्मान्ध होना कहते हैं? फिर अगर मानव इतना ही बड़ी मात्रा में मूर्ख है तो फिर बुद्धिमान कौन है?

मैं तो ठहरा मूर्ख ही। ज्यादा बहस नहीं कर सकता। चलो मान लिया सबकुछ किसी दूसरे ग्रह के वैज्ञानिक बना गए। अब कोई सवाल?

चलो छोड़ो दोस्तों। फिर कोई कहेगा कि हमें मूर्ख कह रहे हो? बॉडी बनाने से कुछ नहीं होता। आपकी पोस्ट कचरा है, आज से like, comment बन्द। ~ शुभाँशु जी 2018© (Vegan Shubhanshu Singh Chauhan)

नास्तिकता और धर्ममुक्त विज्ञानवाद ~ शुभाँशु जी

आज आपको बताता हूँ कुछ ऐसा जिसे पढ़ कर आपको अच्छा लगेगा। झटका भी लगेगा और थोड़ी देर तक भूकम्प भी आता लगेगा।

नास्तिकता:

नास्तिकता अथवा नास्तिकवाद या अनीश्वरवाद (English: Atheism), वह सिद्धांत है जो जगत् की सृष्टि करने वाले, इसका संचालन और नियंत्रण करनेवाले किसी भी ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण के न होने के आधार पर स्वीकार नहीं करता। (नास्ति = न + अस्ति = नहीं है, अर्थात ईश्वर नहीं है।) नास्तिक लोग ईश्वर (भगवान) के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण न होने कारण झूठ करार देते हैं। अधिकांश नास्तिक किसी भी देवी देवता, परालौकिक शक्ति, धर्म और आत्मा को नहीं मानते। हिन्दू दर्शन में नास्तिक शब्द उनके लिये भी प्रयुक्त होता है जो वेदों को मान्यता नहीं देते। नास्तिक मानने के स्थान पर जानने पर विश्वास करते हैं। वहीं आस्तिक किसी न किसी ईश्वर की धारणा को अपने धर्म, संप्रदाय, जाति, कुल या मत के अनुसार बिना किसी प्रमाणिकता के स्वीकार करता है। नास्तिकता इसे अंधविश्वास कहती है क्योंकि किसी भी दो धर्मों और मतों के ईश्वर की मान्यता एक नहीं होती है। नास्तिकता रूढ़िवादी धारणाओं के आधार नहीं बल्कि वास्तविकता और प्रमाण के आधार पर ही ईश्वर को स्वीकार करने का दर्शन है। नास्तिकता के लिए ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने के लिए अभी तक के सभी तर्क और प्रमाण अपर्याप्त है।

धर्ममुक्त विज्ञानवाद: 

नास्तिक दर्शन पर आधारित धर्मों समेत सभी धर्मों, ईश्वर, महापुरुषों के जय उदघोष, व्यक्ति पूजा, जयंतियां, सभी तरह के त्योहार व राष्ट्रीय त्योहार भी, राष्ट्रगीत, राष्ट्र गान, स्कूलों और ऑफिसों में प्रार्थना, किसी प्रकार का कर्म कांड जैसे महूर्त निकलवाना, मृत्युभोज, यज्ञ, हवन, ग्रँथों का पाठ, कथा वाचन, आदि पाखंड का पूर्णरूप से परित्याग करना।

यह सभी हम सबका कीमती समय खराब करने वाले कार्य हैं जिनका वास्तविक जीवन जो कि आधारभूत भोजन, कपड़ा, आवास व मैथुन से बना है से कोई वास्तविक लेना देना नहीं है।

विवाह की प्रक्रिया भी इसमें पाखण्ड माना गया है। जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है। कोर्ट मैरिज 2 प्रकार की है जिसमें एक धर्मानुसार है और दूसरी विशेष प्रकार की है। यदि नास्तिक हैं तो विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करते हैं। जो कि एक मोनोगैमी अनुबंध होता है।

मानव वैज्ञानिक व प्राकृतिक रूप से पोलिगेमी है इसलिये विवाह का मोनोगैमी अनुबंध वैज्ञानिक रूप से गलत माना जाता है। साथ ही 1001 अन्य कारण हैं जिनके कारण विवाह संस्था में मनुष्य आनन्द से नहीं रह पाता। स्वभाव को आप नहीं बदल सकते इसलिये झूठे वादे न करें। धोखा अवश्य मिलेगा। जिनको लगता है कि ऐसा नही है वे सीधे लोग हैं जिनको अपने साथी पर अंध्विश्वास है। बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी? ~ धर्ममुक्त विज्ञानवादी शुभाँशु जी 2018©