Zahar Bujha Satya

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सोमवार, अप्रैल 23, 2018

नास्तिकता और धर्ममुक्त विज्ञानवाद ~ शुभाँशु जी

आज आपको बताता हूँ कुछ ऐसा जिसे पढ़ कर आपको अच्छा लगेगा। झटका भी लगेगा और थोड़ी देर तक भूकम्प भी आता लगेगा।

नास्तिकता:

नास्तिकता अथवा नास्तिकवाद या अनीश्वरवाद (English: Atheism), वह सिद्धांत है जो जगत् की सृष्टि करने वाले, इसका संचालन और नियंत्रण करनेवाले किसी भी ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण के न होने के आधार पर स्वीकार नहीं करता। (नास्ति = न + अस्ति = नहीं है, अर्थात ईश्वर नहीं है।) नास्तिक लोग ईश्वर (भगवान) के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण न होने कारण झूठ करार देते हैं। अधिकांश नास्तिक किसी भी देवी देवता, परालौकिक शक्ति, धर्म और आत्मा को नहीं मानते। हिन्दू दर्शन में नास्तिक शब्द उनके लिये भी प्रयुक्त होता है जो वेदों को मान्यता नहीं देते। नास्तिक मानने के स्थान पर जानने पर विश्वास करते हैं। वहीं आस्तिक किसी न किसी ईश्वर की धारणा को अपने धर्म, संप्रदाय, जाति, कुल या मत के अनुसार बिना किसी प्रमाणिकता के स्वीकार करता है। नास्तिकता इसे अंधविश्वास कहती है क्योंकि किसी भी दो धर्मों और मतों के ईश्वर की मान्यता एक नहीं होती है। नास्तिकता रूढ़िवादी धारणाओं के आधार नहीं बल्कि वास्तविकता और प्रमाण के आधार पर ही ईश्वर को स्वीकार करने का दर्शन है। नास्तिकता के लिए ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने के लिए अभी तक के सभी तर्क और प्रमाण अपर्याप्त है।

धर्ममुक्त विज्ञानवाद: 

नास्तिक दर्शन पर आधारित धर्मों समेत सभी धर्मों, ईश्वर, महापुरुषों के जय उदघोष, व्यक्ति पूजा, जयंतियां, सभी तरह के त्योहार व राष्ट्रीय त्योहार भी, राष्ट्रगीत, राष्ट्र गान, स्कूलों और ऑफिसों में प्रार्थना, किसी प्रकार का कर्म कांड जैसे महूर्त निकलवाना, मृत्युभोज, यज्ञ, हवन, ग्रँथों का पाठ, कथा वाचन, आदि पाखंड का पूर्णरूप से परित्याग करना।

यह सभी हम सबका कीमती समय खराब करने वाले कार्य हैं जिनका वास्तविक जीवन जो कि आधारभूत भोजन, कपड़ा, आवास व मैथुन से बना है से कोई वास्तविक लेना देना नहीं है।

विवाह की प्रक्रिया भी इसमें पाखण्ड माना गया है। जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है। कोर्ट मैरिज 2 प्रकार की है जिसमें एक धर्मानुसार है और दूसरी विशेष प्रकार की है। यदि नास्तिक हैं तो विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करते हैं। जो कि एक मोनोगैमी अनुबंध होता है।

मानव वैज्ञानिक व प्राकृतिक रूप से पोलिगेमी है इसलिये विवाह का मोनोगैमी अनुबंध वैज्ञानिक रूप से गलत माना जाता है। साथ ही 1001 अन्य कारण हैं जिनके कारण विवाह संस्था में मनुष्य आनन्द से नहीं रह पाता। स्वभाव को आप नहीं बदल सकते इसलिये झूठे वादे न करें। धोखा अवश्य मिलेगा। जिनको लगता है कि ऐसा नही है वे सीधे लोग हैं जिनको अपने साथी पर अंध्विश्वास है। बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी? ~ धर्ममुक्त विज्ञानवादी शुभाँशु जी 2018©

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