Zahar Bujha Satya

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सोमवार, अप्रैल 23, 2018

ईश्वर ~ Shubhanshu

इंसान जैसा खुद को देखता है वैसा ही मानवीकरण हर वस्तु/विषय का कर देता है। जैसे; गंगा, भारत, गाय, ईश्वर आदि। जैसे वह खुद कुछ बनाता है, सोचता है कि जो उसने नहीं बनाया, वह भी किसी ने बनाया होगा।

रोज जो मौसम बदलते हैं, धूप आती जाती है, भूकम्प, बाढ़, तूफान आते जाते हैं, महामारी आती जाती है, सूर्य, चन्द्र, तारे दिखते हैं, दिन और रात होते हैं आदि उसको लगता है कि इसे भी कोई कर रहा है। बैंगन, पेड़, बकरे के ऊपर उसे धार्मिक चिंन्ह देख कर लगता है कि ईश्वर ने बना दिये हैं।

दुर्घटना, बम विस्फोट, ग्लोबल वार्मिंग, जनसँख्या, नफरत, बीमारियां तो इंसान खुद ही बना कर नाम ईश्वर पर लगा कर बच लेता है। दरअसल ईश्वर का आविष्कार किया ही इसीलिये गया था क्योंकि मानव को अपनी गलतियों/अपराधों का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई निर्जीव बिंदु चाहिए था जो प्रतिरोध न कर सके। वह उसने कल्पना में बना लिया।

वह जानता था कि कोई वायुमण्डल को भेद कर कभी अंतरिक्ष में नहीं जा सकेगा इसलिये उसने ईश्वर को उसी स्थान पर है, कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन अनुमान से पहले ही NASA, ISRO, CNSA, USSR आदि अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान अंतरिक्ष में पहुँच गए और सर्वप्रथम उन्होंने पृथ्वी को नारंगी के आकार का बता कर लगभग सभी झूठे धर्म/सम्प्रदायों का किस्सा खत्म कर दिया।

अब मरते क्या न करते? एक समाज जो हमेशा से पृथ्वी को कभी न घूमने वाला बता कर चपटा बताता था वह औंधे मुहँ जा गिरा। उसके संस्थापक ने आत्महत्या कर ली और बाकी बचे लोग ढाक के तीन पात वाली कहावत पर कार्य करने लगे। अर्थात वे कहने लगे कि NASA, ISRO, USSR, CNSA जैसी संस्थाएं दरअसल बोगस हैं। जिनके जैसा कोई है ही नहीं। यह सिर्फ कंप्यूटर पर अंतरिक्ष दिखाते हैं। दरअसल कोई अंतरिक्ष है ही नहीं।

इनके अनुसार, सेटेलाइट सब समुद्र में गिर जाते हैं। ग्रह दरअसल तारे हैं। सूर्य और चन्द्र भी पृथ्वी की तरह चपटे हैं। सूर्य और चन्द्र गुब्बारे जैसे हल्के और बहुत ही नज़दीक हैं। सूर्य तारा नहीं है। सूर्य और चन्द्र चपटी पृथ्वी पर बारी बारी से घूमते हैं। कोई गुरुत्वाकर्षण बल नहीं है। सब घनत्व के सिद्धांत पर चलते हैं। चन्द्रमा की अपनी रौशनी है। उनके हिसाब से सम्पूर्ण सोलर सिस्टम झूठ है। पृथ्वी के किनारे पर बर्फ जमी है। इसलिए कोई उधर नहीं जा पाता। केवल उत्तरी ध्रुव है। तारे जितने बड़े दिखते हैं उतने ही बड़े हैं। ऊपर चिपके हुए हैं। एक गुम्बद पर जो कि पारदर्शी है।

न न यह मैं बकवास नहीं कर रहा हूँ। जो इनको सच मानते हैं वह आपको पागल कर देंगे, मर जायँगे लेकिन सत्य स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे ऐसे कुतर्क देंगे कि कम बुद्धि वाले लोग तो उनकी यह सब बकवास मान भी जायँगे।

मैं कह रहा हूँ कि खाली हवा में एक वाक्य उड़ा दिया गया कि ईश्वर है। न साबित किया न किसी ने उस पर सवाल किया। किधर है पूछा तो कह दिया सब जगह है। इसे देख नहीं सकते, छू नहीं सकते खाली महसूस करो। अबे यार जब इंद्रियां ही बेकार हैं तो महसूस क्या करें? घोड़ा?

कुछ भी खुद नहीं बन सकता, इसलिये ईश्वर ने बनाया। लेकिन फिर उस ईश्वर को किसने बनाया? है जवाब?

अब सवाल आता है कि क्या मानव को ईश्वर की अवधारणा पर डटे रहने की लत लग गई है? क्या इसी को धर्मान्ध होना कहते हैं? फिर अगर मानव इतना ही बड़ी मात्रा में मूर्ख है तो फिर बुद्धिमान कौन है?

मैं तो ठहरा मूर्ख ही। ज्यादा बहस नहीं कर सकता। चलो मान लिया सबकुछ किसी दूसरे ग्रह के वैज्ञानिक बना गए। अब कोई सवाल?

चलो छोड़ो दोस्तों। फिर कोई कहेगा कि हमें मूर्ख कह रहे हो? बॉडी बनाने से कुछ नहीं होता। आपकी पोस्ट कचरा है, आज से like, comment बन्द। ~ शुभाँशु जी 2018© (Vegan Shubhanshu Singh Chauhan)

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