Zahar Bujha Satya

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रविवार, अक्टूबर 13, 2019

अप्प दीपो भव: ~ Shubhanshu


जय भीम न बोलने पर पुजारी के हाथ तोड़े, जान से मारने का प्रयास किया, ठाकुर कालोनी में जय भीम न बोलने वालों को जान से मारने की धमकी वाले पर्चे डाले गए, यदि ये सब धार्मिक कट्टरता नहीं है तो क्या है?

जब हम इस तरह के मुद्दे उठाते हैं तो हमें हमारे नाम में सिंह चौहान देख कर जातिवाद किया जाता है जो कि ढोंगी दलितों की असलियत सामने लाता है। अनुसूचित जाति का होने पर भी मुझे ठाकुरों के साथ पढ़ाई के लिये रहना था। अतः पापा ने बचपन में ही मेरे नाम में सिंह चौहान जोड़ दिया ताकि मैं सवर्णों की कट्टरता का शिकार न बनूँ।

जब नास्तिकों के साथ जुड़ा तो इधर भी वैसा ही कट्टरपंथ दिखा। अब जो नाम मुझे सवर्ण कट्टरपंथियों से बचाता था, वही मुझे दलित कट्टरपंथियों से पिटवाने लगा। दोनो में कोई फर्क नहीं था। फेसबुक पर सुदेश, जितेंद्र और भी बहुत से इन जैसे लोग दलित कट्टरपंथी हैं, जो मेरे नाम को और मेरे निष्पक्ष होने को गलत ठहराते हैं।

मेरा पूरा नाम मुझे घटिया सोच वाले नकली नास्तिकों की असलियत दिखाता है जो सम्भवतः किसी नास्तिक समझें जाने वाले धर्म से भी जुड़े हैं। भीम चरित मानस भीम धर्म के लिये तैयार है, भीम कथा की पर्ची कटने लगी हैं। बौद्ध धर्म का प्रचार चरम पर है। अब अगर मैं इनके साथ खड़ा हुआ तो मैं फिर वहीं जाता दिखता हूँ जहाँ से चल कर आया था।

इसीलिये कृपया कट्टरता कौन कर रहा है ये देखिये। किसी व्यक्ति की जय बोलना सबका निजी मत है, लेकिन उसे दूसरे से बुलवाने का कार्य कट्टरता है। तानाशाही है। वैसे ही जैसे जय श्री राम न बोलने पर धार्मिक भीड़ द्वारा मारपीट।

मैं उसी कट्टरता का सही आकलन करता हूँ जो वास्तविक होती है, और जो समस्या वास्तविक है उसी से खतरा है।

जय भीम बोलो, वरना मरो जैसे पर्चे बाँट कर दलित संगठन उसी तरह से मुकर गए जिस तरह हिन्दू संगठनों ने अपने कार्य (गांधी हत्या) करे और बाद में मुकर गये।

कीचड़ से कीचड़ धोकर क्या मिलेगा? कीचड़ ही न? बेहतर होता भीम चरित मानस और भीम कथा/भजन की जगह संविधान में अपने अधिकारों और कर्तव्यों को सिखाया जाता। बेहतर होता जो हर दलित अपनी आरक्षण और शिक्षा के अधिकार का फायदा उठा कर सरकारी वकील बनता।

आज बाबा साहेब जैसे कितने वकील हैं? शायद ही कोई हो। मैं वकील न बन सका, मेरी मजबूरी थी लेकिन क्या आप सब भी मजबूर हैं? सोचो इससे पहले कि बहुत देर हो जाये!

PS: जयभीम, नमो बुद्धाय नहीं रटो, वो तो थे, जो भी थे, अब नहीं हैं। उनसे सीखो, लेकिन अपनी राह सिर्फ खुद बनाओ, याद रखो बुद्ध की एक मात्र शिक्षा: अप्प दीपो भव: ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 

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