साधारण कत्ल की सज़ा उम्रकैद,
भीभत्स कत्ल की सज़ा फांसी।
बलात्कार की सज़ा वयस्क-अवयस्क के आधार पर भिन्न-भिन्न।
फिर सब बलात्कारी फांसी की सज़ा वाला काम करना क्यों पसन्द कर रहे हैं? बलात्कार करके छोड़ देते और पकड़े जाते तो 7 साल जेल जाते लेकिन वो हत्या करके फांसी या उम्रकैद क्यों चाहते हैं?
ज़ाहिर है कि फांसी या उम्रकैद इतनी बेकार सज़ा है कि लोग उसे ही चुनते हैं। 7 साल की छोटी सज़ा ज्यादा है उनके लिए।
दरअसल कत्ल की सज़ा अगर वाकई में मिल जाना आसान होती तो कत्ल होते ही नहीं। कत्ल करने पर कैसे पकड़े जाओगे? यही सवाल सज़ा से बचाता है। सज़ा से बचने के लिये ही कत्ल किया जाता है। फिर उस सज़ा का क्या फायदा जो कभी दी ही नहीं जा सकती? कत्ल रोज़ हो रहे हैं और पकड़े जाते हैं निर्दोष या मूर्ख। असली अपराधी को पकड़ने के लिये पुलिस को शेरलॉक होम्स होना होगा। जो कि सम्भव नहीं लगता।
फिर भी लोग उनको फाँसी दो चिल्ला रहे। अव्वल तो कोर्ट तय करेगी कि पकड़े गए लोग वाकई में वही हैं जिन्होंने अपराध किया है या पुलिस ने अपनी नाक बचाने के लिये आरोपी बनाये हैं कठुआ कांड की तरह। दूसरी बात, वो तो खुद ही अपराधी साबित होने पर फाँसी (यदि दुर्लभतम हत्या हो) या उम्रकैद पाएंगें ही।
अभी से जो आरोपी बनाए गए (साबित नहीं किये गए) लोगों की फ़ोटो डाल कर उनको मार डालने की अपील असली अपराधियों को बचाने की साजिश हो सकती है। साबित होने से पहले ही आरोपियों को मार डालो तो असली बच निकलेगा।
कुछ लोग कह रहे कि सुबूत हो न हो इन अपराधियों ने कुबूल कर लिया है कि अपराध उन्होंने ही किया है तो इनको कोर्ट क्यों ले जा रहे। अभी मार डालो। तो इन मूर्खों से कहना चाहूंगा कि कानून का सम्मान तो करते नहीं। कानून की समझ है नहीं। जंगल राज़ समझा हुआ है। ये वही लोग हैं जो मोबलीचिंग करते हैं। निर्दोषों को घेर कर मार डालते हैं। अरे मूर्खों, कानून अपने हाथ में लेकर आप सब खुद क्यों नहीं उम्रकैद या फांसी चढ़ जाते? दूसरों को क्यों भड़का रहे?
रही बात कुबूलने की तो भला कौन पागल बिना प्रमाण के, जानते हुए भी कि अगर सज़ा हो गयी तो उम्रकैद या फांसी होगी, अपना जुर्म कुबूल करेगा? कोई नहीं।
फिर ये कौन लोग हो सकते हैं?
1. शक के आधार पर पकड़े गए लोग।
2. अपराधियों से मिली भगत के चलते पुलिस द्वारा सेटअप।
3. सरकार की बदनामी को बचाने हेतु गरीबो को पैसों का लालच देकर तैयार किये गए लोग।
4. असली अपराधी (यदि मूर्ख हुए तो)
यदि वे 1 से 3 के अंदर आते हैं तो ये कोर्ट में पलट जाएंगे और पुलिस के दबाव और मारपीट से बचने के लिये जुर्म कुबूला ऐसा कारण बताएंगे। असली अपराधी हुए तो सुबूत की मांग करेंगे। सुबूत अगर पुख्ता हुए तो ही अदालत उनको उनके किये की सज़ा सुनाएगी। जुर्म कुबूला या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ेगा।
जिस तरह से बिना अक्ल का इस्तेमाल किये साथीगण पोस्ट पेल रहे हैं उससे उनकी बुद्धि का पता चलता है। बिना ज्ञान के किसी भी पोस्ट को आगे न बढ़ाया करें। संविधान की बेइज़्ज़ती खुद रुक जाएगी। संविधान का सम्मान करें। केवल यही ईश्वरीय सत्ता के कानून से ऊपर है। न कि थाने के हवलदार और पुलिसकर्मी। Shubhanshu 2019©