Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, दिसंबर 28, 2019

ईश्वर और उनके दूतों का आमरण अनशन ~ Shubhanshu


एक बार सभी धर्मो के ईश्वर और उनके मृत संस्थापक घर आकर
बोले: हमको क्यों नहीं मानता है बे?
शुभ: नहीं मानूँगा। क्या कर लोगे?
त्रिशूलधारी: क्या बोला बे?
गजमानव: अरे काहे गुस्सा हो रहे हैं पिता जी?
शूलीधारी: आओ साथियों, यहाँ गुस्से से काम नहीं चलेगा।
पगड़ी-दाढ़ी धारी: ये आदमी खतरनाक है। कुछ करना पड़ेगा।
छुरी धारी: जो बोले...सो निहाल...निकालेगा कोई हल।
नग्न पुरुष: अहिंसा परमो धर्म:।
घुंघराले बाल धारी: आइए शांति से बात करते हैं।
(सब मिल कर मंत्रणा करते हैं)
सभी एक साथ: तय हुआ है कि भूख हड़ताल करेंगे।
शुभ: आप सब तो अमर हो। लगे रहो। हाथ कंगन को RC क्या? पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या? शुरू हो जाओ।
तब से ये सब दिल्ली के रामलीला मैदान में आमरण अनशन पर हैं। 10 साल हो गए। इसलिये आपकी मदद नहीं कर रहे। परेशान न हों। दिल्ली चलो। इनके साथ अनशन पर लग जाओ। शायद कोई मदद कर दे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

गुरुवार, दिसंबर 26, 2019

वोट न देने वाले निर्दोष हैं ~ Shubhanshu


बहुमत का ही मूल्य होता है। जो लोग नेता नहीं चुने उनकी कोई वैल्यू ही लोकतंत्र में नेता चुनने में नहीं होती। दरअसल जिस तरह से पुराने नेता ही बार-बार सत्ता में आकर गाली खाते हैं उससे जो विपक्षी है वे भी एक से दोषी हैं। वोट न देने वाले ही किसी भी प्रकार से दोषी नहीं हैं। 

इसीलिए पढ़ालिखा धनी वर्ग कभी वोट देने के लिये ट्रॉली में भर के और धक्के खाकर लाइन में लग कर वोट देने नहीं जाता।

सिर्फ पैसे के लालच में गरीब और मध्यम वर्ग का वह तबका जाता है जो किसी न किसी धार्मिक, जातीय, या नफ़रत की भावना से या फिर वोट देना ज़रूरी है ऐसा समझ कर देने जाता है। छात्र तो अपने छुटभैया नेता के साथ मिल कर गुंडागर्दी कर सकें इसलिये अपने जानने वाले को वोट देकर लुभाते हैं।

और ये नेता कौन बनने आता है? गली का गुंडा, पुजारी, नेता का लड़का, उसकी पत्नी, बेटी, कोई व्यापारी, अभिनेता-अभिनेत्री, कोई संत, साधु, प्रसिद्ध हस्ती, अंडरवर्ल्ड के लोग आदि आसानी से नेता बन जाते हैं। अच्छे लोगों को नेता बनाने के लिये अन्ना हजारे जैसा आंदोलन ही कभी-कभी काम कर सकता है और वैसा आंदोलन बार बार नहीं होता।

कुछ लोग कहते हैं कि जो वोट नहीं देते उनके कारण गलत नेता चुने जाते हैं तो वे मूर्ख हैं क्योंकि जो वोट देना नहीं चाहता वो नोटा का बटन दबाएगा और उससे क्या बदल जायेगा? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, दिसंबर 23, 2019

कंडोम प्रयोग करने की आदत डालिये ~ Shubhanshu


यदि मोनोगेमस सेक्स चल रहा है तो मैथुन भंग विधि का प्रयोग कर सकते हैं। न कंडोम की ज़रूरत है और न ही पिल की। pill केवल आपातकाल में प्रयोग किया जा सकता है।

मैथुन भंग में सभी लोग अभ्यस्त नहीं होते इसलिये ये केवल उन्हीं के लिये उचित है जो biology जानते हैं और खुद पर बहुत नियंत्रण है। साथ ही इसमें कुछ प्रतिशत गर्भधारण का डर बना रहता है लेकिन मेरे मामले में वर्षों से ये सफल रहा है।

कंडोम सबसे बेस्ट है सभी महिला-पुरूष हमेशा जेब/पर्स में डीलक्स निरोध का 5 in 1 pack (5₹ में 5 पीस) रखें। 😍

Pills के बारे में डॉक्टर की राय से ही चलें। ~ Shubhanshu 2019©

बिन फोटू सब सून ~ Shubhanshu


फेसबुक पर लड़की अपनी सेल्फी न डाले तो उस id के पीछे क्या-क्या हो सकता है? कुछ अनुमान प्रस्तुत हैं:

1. साधारण लड़का (लड़की बन कर, लड़कियों की पसन्द जानकर, बाद में असली id से सेटिंग करने की चाह में)
2. गैंडा (खुद समझिये)
3. Engaged Girl (लड़की जिसकी मंगनी हो चुकी या किसी लड़के के साथ relationship में है)
4. Married Girl doing Inappropriate acts without knowledge of her husband. (शादीशुदा महिला गैर मर्दों की तलाश में)
5. असली लड़की सेक्स चैट करने के चक्कर में। (दूसरी असली id पर भजन गाने वाली)
6. बुजुर्ग लेकिन ठरकी महिला।
7. बेहद बदसूरत शक्ल की असली लड़की/महिला जिसे पता है कि उसे असलियत में देख कर कोई भी भाग जाएगा।

ऐसे ही अगर लड़के की id में जानकारी नकली और फ़ोटो गायब है तो कुछ अनुमान प्रस्तुत हैं:

1. गैंडा
2. बदनाम अपराधी
3. Giggalo (पुरुष वैश्या, महिला हेतु)
4. आपराधिक पोस्ट करने वाला (अफवाह विशेषज्ञ)
5. गाली बाज़/बदतमीज
6. एक से अधिक आपातकाल ID बनाने और कोई same id की रिपोर्ट न करे।
7. महिला से सेक्स चैट करने की तलाश में
8. कोई मिशन/संस्था/आंदोलन चलाने वाले अपने logo को DP में लगाये हुए।

बाकी आप सुझाइए।

Note: समझ आये तो ठीक, न आये तो कोई पोस्ट पर हंसेगा नहीं। OK? ~ Shubhanshu 2019©

हम सब महान हैं लेकिन... ~ Shubhanshu

एक राज़ की बात बताता हूँ।

हम अक्सर महापुरुषों को इतना महान क्यों पाते हैं?

क्योंकि उनकी सभी बातों को उनके चाहने वालों ने बढ़ा चढ़ा कर बताया होता है और केवल अच्छा पक्ष ही।

बाकी वे सब भी उसी साधारण माँ से जन्में हैं जिससे हम-तुम।

हर इंसान महान है।

बस हम सब जानबूझकर खुद को बुरा दिखा रहे हैं।

वरना क्या हम अपनी कमियों को जानते नहीं हैं क्या?

बस दूर नहीं करते। जानबूझकर।

गुस्सा है, नफरत है, अपमान है, चाहत बड़ी और उम्मीद छोटी है। दूसरों से जलते हैं। कोई हमसे बेहतर हार भी गया तो खुद की भी हिम्मत तोड़ देते हैं। नहीं सोचते कि क्या पता अगला कोई गलती कर बैठा या जानबूझकर हार गया। आपकी हिम्मत तोड़ने के लिये। ☺

सच तो ये है कि हम बस महान लोगों से काम निकालने में ही आसानी समझते हैं। हम उन जैसे नहीं हो सकते, कह कर, दरअसल खुद मेहनत करने से बचना चाहते हैं।

आजकल पेट भर गए हैं और सुविधाओं से हम लैस हैं। कल जो ऐसी ज़िंदगी पाने के लिए महान बन गए, वो ज़िंदगी आपने पैदा होते ही पा ली। फिर क्या ज़रूरत है महान बनने की? ऐसे ही ठीक हैं। हैं न? 😊

धर्ममुक्त जयते! ~ Shubhanshu 2019©

रविवार, दिसंबर 22, 2019

All is well is much better than any religion ~ Shubhanshu


शुभ: पंडित जी नास्तिक कौन होता है?
पंडित जी: मैं हूँ।
शुभ: अरे नहीं। ऐसा कैसे?
पण्डित जी: देखिये मैं सब जानता हूँ कि ये मेरा रोजगार है और मैंने आजतक इस मूर्ति के सिवाय कोई देवता न तो देखा है और न ही देखूंगा। ये सब धर्म धंधे हैं। सोचो अगर कोई ईश्वर होता भी तो क्या हम इन मूर्तियों/हवा में अपनी प्रार्थना करके उसको नियंत्रित कर सकते हैं?

यदि हाँ तो फिर वो सर्वशक्तिमान कैसे हुआ? जबकि हम उसको अपने अनुसार चला रहे? पूजा/इबादत/प्रार्थना आदि सब के सब बस आपको तसल्ली देने के धंधे हैं। जिनसे होता कुछ नहीं बस आप को तसल्ली हो जाती है कि सब ठीक होगा। ये तो all is well बोलने से भी मिल जाती है न? बस इस दुनिया में दरअसल कोई आस्तिक है ही नहीं। केवल मूर्ख हैं जो खुद को आस्तिक बोलते हैं।

धंधा कर रहे या तसल्ली को ज्यादा ही गम्भीरता से लेकर मूर्खतापूर्ण हरकते कर रहे। तसल्ली होने पर काम बिना समस्या के हो जाते हैं। अक्सर हम लोग कार्य पूरा होने से पहले ही उसके बारे में गलत सोचने लगते हैं और उसी गलत के आने का इंतजार करते रहते हैं। फिर अधिकतर वो आता है क्योंकि आपने कोई गलती की होती है।

कभी-कभी आप गलती नहीं भी करते तो भी आपको पिछली गलती के कारण आत्मविश्वास नहीं रहता और आप घबराहट में काम खराब कर देते हैं। इसी घबराहट को खत्म करने का कार्य सभी धर्म तसल्ली देकर करते हैं जिससे लाभ होता है। अब तुम ही बताओ, इसमें ईश्वर का क्या लेनदेन?

सीधी बात है कि कोई ईश्वर अगर होता तो दुनिया में कोई समस्या ही नहीं होती। जिस दिन निचले स्तर का व्यक्ति/जन्तु/वनस्पति भी सुखी हो जाएगी उस दिन मैं ईश्वर को मान लूंगा कि वह सभी कुछ ठीक से चला रहा है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

अपनी तो जैसे-तैसे कट जाएगी! आपका क्या होगा? जनाबे आली? ~ Shubhanshu



जो भी विद्वान इस तरह की पोस्ट (चित्र देखें) पेल रहे, आप एक बात बताओ।

नास्तिक हो या धर्ममुक्त? नास्तिक हो तो कैसे नास्तिक हो जो एक से नफरत और बाकी धर्म से प्रेम है?

धर्ममुक्त हो तो आपको क्या डर या परवाह है कि कोई किसी धर्म को बाहर कर देगा?

जाति मुक्त हो या नौटँकीबाज?

जातिमुक्त हो तो SC/ST का लेबल हटाओ। फिर किस बात का डर? न पूछो न बताओ जातिमुक्त देश बनाओ।

नाम से जाति खोजने वालों को मारो 10-10 थप्पड़। यही कमीने जातिवादी हैं। बाबा साहब भीम राव राम जी अम्बेडकर, रामा स्वामी अययर पेरियार, भगत सिंह आदि लोगों ने तो अपना नाम नहीं बदला या अपना परिवार नाम नहीं हटाया!

फिर ये कौन से जातिमुक्त लोग हैं जो नाम में जाति खोज रहे? नाम के आगे पीछे कुछ और ही तूतियापा लगा ले रहे? आपकी मर्जी है कि आप अपने नाम में क्या लगाते हैं लेकिन जातिवादी नहीं है दिखाने के लिये नाम की ऐसी तैसी न कीजिये। अजीब सरनेम से आप वैसे ही विशेष जाति समुदाय के दिखने लगते हो। जो अपना उपनाम छुपाता है अपने आप आरक्षित वर्ग का समझा जाता है। फिर कैसे हो गया जातिमुक्त कोई सरनेम हटा कर? जातिमुक्त मन से होता है इंसान। नाम से नहीं।

मारो इनको थप्पड़ और नहीं मार सकते तो सब अपने नाम सवर्ण जैसे रख लो। क्या समस्या है?

नौटंकी बाज ही हो तो ये बताओ कि SC/ST से तो सारा काम चलता है देश का तो उनको कोई निकाल कर अपना ही जीवन बर्बाद क्यों करेगा? 85% लोगों को कोई कैसे निकाल सकता है? बुद्धि है या नहीं?

सभी लोग मिल कर नास्तिक हों इसकी बात करनी चाहिए आपको न कि धर्मों का संरक्षण कर रहे। सभी नास्तिक धर्ममुक्त बनिये। फिर देखिए कौन आपको परेशान करता है। धर्ममुक्त जयते। ~ Shubhanshu 2019©

शनिवार, दिसंबर 07, 2019

मैं बोलूंगा तो बोलोगे, बोलता है ~ Shubhanshu


महिला (मादा) को डरा कर रखा जाता है। वो अपने मन की बात कह नहीं पाती। पुरुष को ज्यादा आज़ाद रखा जाता है इसीलिए पुरुष प्रधान दुनिया हो गई। बात सिर्फ बच्चा पालने की थी जिसके कारण महिला के हाथ बांधे गए। बाकी सभी जानवरो में मादा ही सबसे ज्यादा मजबूत और खतरनाक होती है। इंसांनो में भी यही सत्य है लेकिन परवरिश और सामाजिकता ने शेर को गीदड़ बना कर रखा है और इसका प्रमुख ज़िम्मेदार धर्म और संस्कृति हैं।

अपराध सदा से होते रहे हैं। आज मीडिया बिजनेस बन गया है तो खबर फैलाने का काम करने लगी है। पहले बात दबा दी जाती थीं आज सनसनी बना कर note कमाए जाते हैं। खुद देखिये कोई दुर्घटना हो जाये तो लोग उसकी वीडीओ बनाते हैं न कि मदद करते हैं। आज सनसनी मनोरंजन की तरह फैल रही है।

बाकी जो नृशंसता बढ़ी है उसके पीछे कानून का डर है। अपराधी को लगता है कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। इसलिये वो हत्या करना बेहतर समझते हैं बजाय कैद होने के।

समस्या तो ये कुंठा है जो सामाजिक बंधनो के कारण उपजती है। जानवर आज़ाद हैं विवाह और कपड़ो से और वे प्रकृति के अनुसार जीते हैं। जबकि इंसान को बंधनो और कानून के जाल में फंसा दिया गया है वो अब मर जाना चाहता है अपराध करके ही सही। जैसे आप सब देख रहे कि लोग मरने के लिये ही बलात्कारी बनते हैं। सेक्स इतना ज़रूरी हो गया है और मिल नहीं पा रहा। समस्या ज़रूरत अधिक और उसकी आपूर्ति की कमी है। इसीलिये छीनाझपटी मची हुई है।

आप भी कानून तोड़ दोगे अगर भोजन करने पर 7-10 साल की कैद की सज़ा रख दी जाए। आप भी छीनोगे रोटी किसी रोटी वाले से और मार डालोगे उसे जला कर क्योंकि ज़िंदा छोड़ेंगे तो जेल जाना पड़ेगा और कौन जेल जाना चाहता है?

99% प्लान बना कर हत्या करने वाले हत्यारोपी कभी पकड़े नहीं जाते। इसी कारण सुपारी लेकर हत्या करने का व्यवसाय तक बना लिया गया है। कानून हत्या रोकने में विफल है। वही पकड़ा जाता है जो खुद ही पकड़ा जाना चाहता है। दरअसल लोग दूसरे को तभी मारते हैं जब खुद की जान की कोई चाहत नहीं बचती या फिर वे आत्मरक्षा में मार डालते हैं। 1% संस्कृति और इज़्ज़त की ख़ातिर कत्ल करके अपनी मौत/आजीवन कारावास को चुन लेते हैं।

Note: दिल्ली की बस में ज्योति की नृशंस बलात्कार के बाद हत्या करने के केस में मिली फांसी की सज़ा के 6 साल बाद भी कानून अभियुक्तों की तरफ से सजा कम करने की अपील, राष्ट्रपति से फांसी को उम्रकैद में बदलने की याचिका का इंतज़ार कर रहा है। अभी हाल ही में 7 दिन का उनको नोटिस दिया है कि अपनी जान बचाने की कोशिश कर लो नहीं तो 7 दिन बाद कभी भी फांसी हो जाएगी। ज़ाहिर है कि उनको मरना ही पसंद है। ~ ज़हरबुझा सत्यवादी शुभाँशु 2019©

शुक्रवार, दिसंबर 06, 2019

बलात्कार: कारण, बचाव व सुझाव





सम्भोग सभी लिंग-योनि धारी जंतुओं की एक अत्यावश्यक प्रकृति है। ये कोई जानबूझकर कर किया गया कार्य नहीं है। बलात्कार एक शारीरिक हवस की न रोकी जा सकने वाली प्रवृत्ति है। इसको कहीं न कहीं तो निकलना ही है। ये कुंठित पुरुष समाज और महिलाओं के लिये सेक्स को हउआ समझने वाली सोच का परिणाम है। बलात्कार के समय बल प्रयोग विरोध के कारण व हत्या कठोर सज़ा के डर के कारण होती है। अपराधी कभी नहीं पकड़े जा सकते यदि वे cctv camera, वीडियो आदि में न पकड़े जाएं।

सुबूत मिटाने/हत्या करने के मामले में या महिला के शर्म के मारे मुहँ न खोलने के आश्वासन से आश्वस्त होकर ज़िंदा छोड़ने से वे केवल 10% मामलों में फंसते हैं। बाकी 90% बलात्कार पीड़ित महिला इस घटना को दबा जाती हैं। बलात्कार का लगातार विरोध करने, जेल भेजने की धमकी देने से महिलाओं की जान को सबसे अधिक खतरा होता है। जान बचाने के लिये या तो आप मार्शल आर्ट में ब्लैकबेल्ट हों या शांति से जो हो रहा है, उसे हो जाने दें और जब जान बच जाए तो सीधा थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज करें। घायल हैं तो सीधा नजदीकी चिकित्सक से सम्पर्क करें।

कुछ मामलों में बलात्कारी, सज़ा से बचने के लिये व पूरी सेफ्टी के लिए महिला को विरोध न करने पर भी मार डालते हैं। ऐसी स्थिति में कानून का डर ही महिला की जान लेता है और उसका हम कुछ नहीं कर सकते। ज़िंदा बची महिलाओ में केवल उन्हीं के द्वारा रिपोर्ट लिखाई जाती है जिनके बॉयफ्रेंड या पति को बलात्कार के समय हुई मारपीट से बने निशानों, फटे कपड़ों से पता चल जाता है और वो बलात्कारी को सज़ा दिलवाने हेतु महिला पर दबाव डालते हैं। शेष सभी बलात्कार की शिकायतें झूठी और female ego के चलते किसी पुरुष (प्रायः प्रेमी के विवाह से मुकरने पर) को सबक सिखाने हेतु दर्ज करवाई जाती हैं। अधिकतर मामलों में ये ब्लैक मेल करना या किसी के द्वारा आर्डर लेकर परेशान करना होता है और कोर्ट के बाहर मोटी रकम लेकर ऐसे केस वापस ले लिये जाते हैं। बलात्कार के विरुद्ध बने कानून का 'महिला के केवल शिकायत करने भर से' बिना प्रमाण के गिरफ्तारी होने के नियम के कारण, इसका दुरुपयोग भी बहुत होता है।

असमान लिंगानुपात और प्रत्येक को समय पर संभोग का मनपसंद/नया साथी न मिल पाने की दशा में सम्भोग की इच्छा उग्र हो जाती है। महिलाओं में सम्भोग केवल विवाह के बाद करने की ज़िद के कारण हर महिला से न ही सुनने को मिलता है पुरुषों को। इसका अनुभव आप इसी से लगा सकते हैं कि सोशल मीडिया पर महिला नाम की id को प्रतिदिन अनगिनत सम्भोग के ऑफर पुरूषों द्वारा किये जाते हैं और महिलाएं उनको 'हाँ या न', न बोल कर सीधे गुस्से में अपमानित कर देती हैं। यहाँ तक कि उनके निजी संवाद के स्क्रीनशॉट भी लगा कर उनको अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। फिर ये कुंठित पुरूष कहाँ जाए अपनी भूख मिटाने? बेहतर होगा कि महिलाएं रुचि न होने पर ऐसे लोगों को इज़्ज़त से मना कर दें और यदि वे उसके बाद भी तंग करें तो ब्लॉक कर दें।

नर की यौन भूख या तो हर बार नए पोर्न के साथ हस्तमैथुन से मिट सकती है या समय-समय पर बदलती महिला साथी से क्योंकि 99.99% जंतुओं की तरह मानव भी एक ही साथी के साथ संभोग करने में असमर्थ रहता है। इसी कारण विवाहित हो या अविवाहित, नर बलात्कारी को फर्क नहीं पड़ता। उनके अंग एक ही साथी के साथ सम्भोग नहीं कर सकते। वे शिथिल हो जाते हैं। फिर उल्टा उन के ऊपर उनकी साथी नपुंसकता (लिंग का खड़ा न होना) का आरोप लगाने लगती है। डॉक्टर इसे Eractile Disfuntion का नाम दे देते हैं और लम्बा-चौड़ा बिल फाड़ देते हैं। समस्या फिर भी वही रहती है। दवा ख़ाकर कोई अपनी भूख क्यों मिटाएगा जब ये समस्या सिर्फ अपनी ही पुरानी साथी के साथ होती है तो?

समाज में हस्तमैथुन करने वालों को नफरत से देखा जाता है। उनको मानसिक बीमार और कई काल्पनिक ख़तरों से डराया जाता है जबकि हस्तमैथुन पर्याप्त मात्रा में सेक्स करने के समान है। स्वस्थ वयस्क पोर्नोग्राफी, सेक्स घटनाओं से युक्त पुस्तक, स्वप्न आदि से भी वे सभी रसायन बनते हैं जो सामान्य सेक्स में बनते हैं। 

अतः यदि सामान्य सम्भोग न भी मिले तो कामोत्तेजक माध्यम से हस्तमैथुन करना उत्तम है। यदि परंपरागत हस्तमैथुन से भी अरुचि हो गई हो ('अपना हाथ जगन्नाथ कर-कर के थक गया हूँ' बोल कर लड़की की इच्छा करना) तो सेक्स टॉय खरीदने में शर्म न करें। मैंने इस्तेमाल किये हैं। अच्छे और अपने लायक का चुनाव करें। लुब्रिकेशन महंगा आता है लेकिन आप गूगल करके खुद भी बना सकते हैं। इससे कामोत्तेजना की उग्रता कम होगी और मन में जबरन सम्भोग प्राप्त करने की इच्छा का समापन होगा। फलत: बलात्कार समाप्त।

बाकी महिलाओं से निवेदन है कि अपनी सेक्स की इच्छा को न दबाएं और अपने पसंद के साथी के साथ स्वयं पहल करके गर्भनिरोधक के साथ संभोग का आनन्द उठाएं। इसमें न तो कोई शर्म की बात है और न ही कुछ गलत ही है। हम सब आखिर सम्भोग से ही पैदा हुए हैं और ये उतना ही पवित्र है जितना कि ज़हरबुझा सत्य। पवित्र कार्य करने में धूर्तों द्वारा बनाये गए एकल विवाह का इंतजार न करें। विवाह सिर्फ बच्चा पैदा करके पालने की व्यवस्था है। इसमें सेक्स के आनंद का कोई स्थान नहीं है। सेक्स का आनंद प्रकृति के नियम से ही आ सकता है जो समय के साथ सम्भोग साथी बदलने की मांग करती है। संपूर्ण जगत में प्रकृति का यही नियम है (हंस/सारस की एक प्रजाति को छोड़ कर)।

90% महिलाओं को कभी भी पुरुषों से चरमसुख नहीं मिला है इसलिये वे संभोग में रुचि नहीं ले पाती हैं। पुरूषों की इस लचर हालत का जिम्मेदार स्त्री की तरफ से पहल (seduce) न होना है। इसके चलते वे अधिक उत्तेजित हो जाते हैं और foreplay न करके सीधे योनी की ओर निशाना लगाते हैं जो कि महिला को उत्तेजित नहीं करता। इस तरह जब तक स्तन मर्दन, क्लोटोरिस की रगड़न, योनी में घर्षण आदि से स्त्री उत्तेजित होती है, तब तक पुरुष समापन की ओर बढ़ चुका होता है। इसे आमतौर पर शीघ्रपतन समझ लिया जाता है जबकि 90% मामलों में ये केवल एक तरफा सम्भोग में रुचि लेने के कारण होता है।

सही तरीका यह है कि दोनो साथी एक समान कामोत्तेजित हों, तभी सम्भोग प्रारम्भ किया जाए। सम्भोग की पूर्णता के लिये मिशनरी अवस्था प्रमुख है। इसमें स्तनमर्दन, चुम्बन, क्लोटोरिस की मालिश, गले पर चुम्बन, नाभि को चाटना, स्तन की चुचुक (nipples) जीभ से चाटना व चूसना, धुली हुई योनि को ऊपर के भाग सहित चाटना, कान को होठों से दबाना आदि उत्तेजना वर्धक संवेदनशील स्थल हैं जिनसे आप अपनी साथी को कामोत्तेजित कर सकते हैं। पुरुषों के भी इन्हीं स्थलों पर व धुले हुए लिंग पर महिला अपने होठों के प्रयोग से उसे उत्तेजित कर सकती है यदि वह सम्भोग के लिये तैयार न हो। अस्थाई मुख मैथुन भी पुरुष के लिंग को शिथिलता की अवस्था से निकाल सकता है।

बाकी की 10% में से भी 8% वे हैं जिन्होंने एक बार चर्मोत्कर्ष हस्तमैथुन या किसी अनुभवी से प्राप्त कर लिया हो और फिर उससे दोबारा सेक्स करने का मौका न मिला हो। बाकी की 2% को ही मेरी तरह अनुभवी और संभोग के रहस्यों को समझने वाले पुरुषों ने चरमसुख हर बार और कई-कई बार दिया है और यही सबसे सुखी महिलाओं में भी गिनी गई हैं।

Note: सभी आंकड़े अनुभव और असली सर्वेक्षण से प्राप्त ज्ञान से अनुमानित। आंकड़ें पुलिसलाइन की पारिवारिक अदालत की सलाहकार, डॉक्टरों, मनोवैज्ञानिको और वक़ीलों से हुई बातचीत पर आधारित। इनमें समय के साथ अंतर आ सकता है। ~ Shubhanshu 2019©

गुरुवार, दिसंबर 05, 2019

असत्य से मुक्ति ही शक्ति है ~ Shubhanshu



मैं विवाह विरोधी नहीं हूँ।
मैं शिशु विरोधी नहीं हूँ।
मैं धर्म विरोधी नहीं हूँ।
मैं समाज विरोधी नहीं हूँ।
मैं राजनीति विरोधी नहीं हूँ।
मैं पशुभक्षियों का विरोधी नहीं हूँ।
मैं इन सब से मुक्त हूँ।

मैं मुक्त हूँ, इसका मतलब ये नहीं कि ज़हरबुझा सत्य बताना व अपनाना मेरा काम नहीं। सत्य किसी के भी विरुद्ध हो सकता है जो असत्य हो।

जब मैं विवाहमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके मध्य क्लेश और अनबन की चिंता होती है क्योंकि आप अपना मन मार के जीते हो।

जब मैं शिशुमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता होती है। जिन पर आप बाद में बोझ बनकर लटक जाते हो।

जब मैं धर्ममुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके परिवार की चिंता होती है क्योंकि आप को झूठा दिलासा देकर लूटा और मारा जा रहा है।

जब मैं समाजमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपकी आज़ादी के खोने का डर होता है। समाज गैरकानूनी रोकरोक करता है। अपनी मर्जी थोपता है।

जब मैं राजनीतिमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके जीवन के हर स्तर पर चिंता होती है कि राजनीति की वर्तमान दशा केवल छल और कपट से राज़ करने की, कुटिल नीति है जिसका उद्देश्य आपको मतदान के लिए उकसाने हेतु चारा (लाभ/योजनाएं) डाल कर, और मूर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा करना और माल बटोरना (घोटाला, प्रचार, दान) मात्र है।

जब मैं जंतुउत्पादमुक्त/जंतुक्रूरतामुक्त (vegan) होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके स्वास्थ्य और समस्त प्राणियों की स्वतंत्रता और अधिकारों की चिंता होती है। उनको भी अपनी प्रकृति अनुसार जीने और अपने भोजन को सिर्फ अपने लिये उपयोग करने और दूसरे को देने से मना करने का हक है।

पशुपालन से विश्व भर में ग्लोबलवार्मिंग का प्रकोप बढ़ा है। जानवरों के झुंड में एक विशेष प्रकार की दुधारू, माँस, अंडे उत्पादक नस्ल का ही उत्पादन और बढ़वार हो रही है। इनके मल, डकार और सांस से 14% ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन हो रहा है। जबकि ये जब जंगल में थे तो इनकी मात्रा इनको खाने वाले जानवर कम करते रहते थे जिससे इनकी मात्रा संतुलन में थी। जब से ये व्यापार बना, तब से इंसान इन जानवरों की खेती करके इनकी मात्रा बढाने लगा।

जानवरों को पहले से उगाया गया अनाज खिलाया जाता है जिसमें पानी और कीटनाशक की बड़ी मात्रा पहले ही खप चुकी होती है। उसके बाद ये बीमार हो कर मर न जाएं इसके लिये इनके भोजन में तमाम एंटीबायोटिक मिलाए जाते हैं। पशुपालन के तरीकों के प्राकृतिक न होने के कारण पशुपालकों को इनके चारे में विटामिन B12 भी खरीदकर मिलाना पड़ता है। अन्यथा मांसाहारी लोग पागल होकर मर जायेंगे।

ये एंटीबायोटिक और B12 भारी मात्रा में मांसाहारी लोगों के शरीर में जाकर उनके शरीर को खोखला करने लगता है और उनका शरीर दूसरी ही बीमारियों का घर बन जाता है। जैसे पथरी, डायबिटीज, ब्रेन हेमरेज, अल्जाइमर, कर्डियक अटैक (दिल का दौरा) आदि। इनमें से दिल का दौरा पशुवसा (बुरा कोलेस्ट्रॉल) के नसों में फंसने से पड़ता है। भारी व्यायाम ही कुछ हद तक इससे बचाव कर सकता है।

इंसान ने अपने स्वार्थ के चलते मांसाहारी पशु मार दिए और बाड़ बना कर इन धन उपजाऊ कम हिंसक पशुओं की रखवाली करने लगा। तब से इनकी बढती जनसँख्या ने ग्रीनहाउस गैसों की अतिरिक्त मात्रा उतपन्न करके साम्यता में खलल पैदा कर दिया। साम्यता का अर्थ है ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन व नाश के बीच में लगने वाला समय। यानि इनकी खपत और उत्पादन में संतुलन बिगड़ गया है। अगर हम इनकी मात्रा घटा दें यानि ये 14% ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन कम कर दें तो साम्यता ठीक हो जाएगी और बाकी स्रोतों से हो रहा इन गैसों का उत्पादन खप जाने के लिये उचित समय मिल जाएगा।

अतः हम पिघलती बर्फ से डूबने से बच जांएगे। उस बर्फ (गेलेशियर) से, जो जमी है तो भूमि सूखी है। जब वो पिघल जाएगी तो जो 30% स्थल जो अभी उपलब्ध है वो भी खत्म होकर पानी में डूब जाएगा। सबसे अंत में पहाड़ी इलाके डूबेंगे लेकिन तब तक वहां निचले स्थल से आये लोगों ने मार काट छीना झपटी मचा कर पहले ही जीवन समाप्त कर दिया होगा।

ये सब अनुमान नहीं है। प्रति वर्ष 1 इंच हम नमकीन पानी में डूबते जा रहे हैं। हर वर्ष पृथ्वी का ताप 1℃ बढ़ रहा है और अफ़सोस कि कुछ लोगों को ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ अफवाह लगती है। कोई बात नहीं, कुछ समय बाद पृथ्वी पर जीवन ही एक अफवाह बन जाएगा, जब यहाँ पर आखिरी कोई जंतु बस समुद्री ही रह जाएगा।

साथ ही भारतीय संविधान में पशुक्रूरता निरोधी कानून की धारा 11 और भारतीय दंड सहिंता की धारा 429 (IPC 429) के तहत किसी भी पशु को तंग करना, मारना, कष्ट देना, हत्या करना, चोट मारना आदि संज्ञेय अपराध है और जिसकी सज़ा 5 वर्ष कारावास व जुर्माना दोनो है।

मेरे लिये समस्त जीव-जंतु (मानव में सिर्फ बुद्धि का फर्क) एक समान मस्तिष्क धारी (केवल 0.001% जंतु मस्तिष्कहीन व पौधे नुमा संरचना वाले हैं) अपना परिवार हैं और समस्त पेड़-पौधे, सभी वनस्पतिभोजी प्राणियों (vegans), जिनकी प्रकृति में संख्या लगभग 99% है; के भोजन, आवास, वस्त्र, औषधि, उत्पाद आदि हेतु आवश्यक उत्पादक हैं।  2019/12/05 17:29 Shubhanshu 2019©

बुधवार, दिसंबर 04, 2019

बलात्कारी फांसी क्यों चाहते हैं?



साधारण कत्ल की सज़ा उम्रकैद,

भीभत्स कत्ल की सज़ा फांसी।

बलात्कार की सज़ा वयस्क-अवयस्क के आधार पर भिन्न-भिन्न।

फिर सब बलात्कारी फांसी की सज़ा वाला काम करना क्यों पसन्द कर रहे हैं? बलात्कार करके छोड़ देते और पकड़े जाते तो 7 साल जेल जाते लेकिन वो हत्या करके फांसी या उम्रकैद क्यों चाहते हैं?

ज़ाहिर है कि फांसी या उम्रकैद इतनी बेकार सज़ा है कि लोग उसे ही चुनते हैं। 7 साल की छोटी सज़ा ज्यादा है उनके लिए।

दरअसल कत्ल की सज़ा अगर वाकई में मिल जाना आसान होती तो कत्ल होते ही नहीं। कत्ल करने पर कैसे पकड़े जाओगे? यही सवाल सज़ा से बचाता है। सज़ा से बचने के लिये ही कत्ल किया जाता है। फिर उस सज़ा का क्या फायदा जो कभी दी ही नहीं जा सकती? कत्ल रोज़ हो रहे हैं और पकड़े जाते हैं निर्दोष या मूर्ख। असली अपराधी को पकड़ने के लिये पुलिस को शेरलॉक होम्स होना होगा। जो कि सम्भव नहीं लगता।

फिर भी लोग उनको फाँसी दो चिल्ला रहे। अव्वल तो कोर्ट तय करेगी कि पकड़े गए लोग वाकई में वही हैं जिन्होंने अपराध किया है या पुलिस ने अपनी नाक बचाने के लिये आरोपी बनाये हैं कठुआ कांड की तरह। दूसरी बात, वो तो खुद ही अपराधी साबित होने पर फाँसी (यदि दुर्लभतम हत्या हो) या उम्रकैद पाएंगें ही।

अभी से जो आरोपी बनाए गए (साबित नहीं किये गए) लोगों की फ़ोटो डाल कर उनको मार डालने की अपील असली अपराधियों को बचाने की साजिश हो सकती है। साबित होने से पहले ही आरोपियों को मार डालो तो असली बच निकलेगा।

कुछ लोग कह रहे कि सुबूत हो न हो इन अपराधियों ने कुबूल कर लिया है कि अपराध उन्होंने ही किया है तो इनको कोर्ट क्यों ले जा रहे। अभी मार डालो। तो इन मूर्खों से कहना चाहूंगा कि कानून का सम्मान तो करते नहीं। कानून की समझ है नहीं। जंगल राज़ समझा हुआ है। ये वही लोग हैं जो मोबलीचिंग करते हैं। निर्दोषों को घेर कर मार डालते हैं। अरे मूर्खों, कानून अपने हाथ में लेकर आप सब खुद क्यों नहीं उम्रकैद या फांसी चढ़ जाते? दूसरों को क्यों भड़का रहे?

रही बात कुबूलने की तो भला कौन पागल बिना प्रमाण के, जानते हुए भी कि अगर सज़ा हो गयी तो उम्रकैद या फांसी होगी, अपना जुर्म कुबूल करेगा? कोई नहीं।

फिर ये कौन लोग हो सकते हैं?

1. शक के आधार पर पकड़े गए लोग।
2. अपराधियों से मिली भगत के चलते पुलिस द्वारा सेटअप।
3. सरकार की बदनामी को बचाने हेतु गरीबो को पैसों का लालच देकर तैयार किये गए लोग।
4. असली अपराधी (यदि मूर्ख हुए तो)

यदि वे 1 से 3 के अंदर आते हैं तो ये कोर्ट में पलट जाएंगे और पुलिस के दबाव और मारपीट से बचने के लिये जुर्म कुबूला ऐसा कारण बताएंगे। असली अपराधी हुए तो सुबूत की मांग करेंगे। सुबूत अगर पुख्ता हुए तो ही अदालत उनको उनके किये की सज़ा सुनाएगी। जुर्म कुबूला या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ेगा।

जिस तरह से बिना अक्ल का इस्तेमाल किये साथीगण पोस्ट पेल रहे हैं उससे उनकी बुद्धि का पता चलता है। बिना ज्ञान के किसी भी पोस्ट को आगे न बढ़ाया करें। संविधान की बेइज़्ज़ती खुद रुक जाएगी। संविधान का सम्मान करें। केवल यही ईश्वरीय सत्ता के कानून से ऊपर है। न कि थाने के हवलदार और पुलिसकर्मी। Shubhanshu 2019©