पंडित जी: मैं हूँ।
शुभ: अरे नहीं। ऐसा कैसे?
पण्डित जी: देखिये मैं सब जानता हूँ कि ये मेरा रोजगार है और मैंने आजतक इस मूर्ति के सिवाय कोई देवता न तो देखा है और न ही देखूंगा। ये सब धर्म धंधे हैं। सोचो अगर कोई ईश्वर होता भी तो क्या हम इन मूर्तियों/हवा में अपनी प्रार्थना करके उसको नियंत्रित कर सकते हैं?
यदि हाँ तो फिर वो सर्वशक्तिमान कैसे हुआ? जबकि हम उसको अपने अनुसार चला रहे? पूजा/इबादत/प्रार्थना आदि सब के सब बस आपको तसल्ली देने के धंधे हैं। जिनसे होता कुछ नहीं बस आप को तसल्ली हो जाती है कि सब ठीक होगा। ये तो all is well बोलने से भी मिल जाती है न? बस इस दुनिया में दरअसल कोई आस्तिक है ही नहीं। केवल मूर्ख हैं जो खुद को आस्तिक बोलते हैं।
धंधा कर रहे या तसल्ली को ज्यादा ही गम्भीरता से लेकर मूर्खतापूर्ण हरकते कर रहे। तसल्ली होने पर काम बिना समस्या के हो जाते हैं। अक्सर हम लोग कार्य पूरा होने से पहले ही उसके बारे में गलत सोचने लगते हैं और उसी गलत के आने का इंतजार करते रहते हैं। फिर अधिकतर वो आता है क्योंकि आपने कोई गलती की होती है।
कभी-कभी आप गलती नहीं भी करते तो भी आपको पिछली गलती के कारण आत्मविश्वास नहीं रहता और आप घबराहट में काम खराब कर देते हैं। इसी घबराहट को खत्म करने का कार्य सभी धर्म तसल्ली देकर करते हैं जिससे लाभ होता है। अब तुम ही बताओ, इसमें ईश्वर का क्या लेनदेन?
सीधी बात है कि कोई ईश्वर अगर होता तो दुनिया में कोई समस्या ही नहीं होती। जिस दिन निचले स्तर का व्यक्ति/जन्तु/वनस्पति भी सुखी हो जाएगी उस दिन मैं ईश्वर को मान लूंगा कि वह सभी कुछ ठीक से चला रहा है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
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