Zahar Bujha Satya

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If you have Steel Ears, You are Welcome!

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रविवार, जनवरी 05, 2020

आओ, चलो, तन-मन से सुंदर हो जाएं ~ Shubhanshu



हम खुद को अच्छे लगने चाहिए, दुनिया में तो सबकी पसंद अलग-अलग होती ही है। महत्वपूर्ण तो ये है कि क्या मन में सच्चाई है आपके और साहस भी? हम लोग अपनी शक्ल के साथ ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। साफ कर लीजिये, वैनिशिंग क्रीम लगा लीजिये, लैक्टो कैलामाइन लगा लीजिये, चेहरा शरीर के मुकाबले ज्यादा सांवला हो रहा है तो सनस्क्रीन लोशन लगा लीजिये।

श्रंगार/मेकअप मत कीजिये। झूठ का आकर्षण छणिक होता है। सुंदरता तो लोगों के जीन तय करते हैं। देखने वाले के भी और दिखाने वाले के भी। फिर भी दोस्ती हो जाये तो सुंदरता महत्वपूर्ण नहीं रहती क्योंकि उससे कहीं ज्यादा आकर्षक और बातें आपके अंदर महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

हमारा मस्तिष्क सिमिट्री में बने चेहरे पसन्द करता है। गोरापन साफसफाई का परिचायक हो सकता है या धूप से बच कर रहने वाले समृद्धि शाली परिवार के सदस्य होने का। हम खुद का चेहरा नहीं देख सकते। चाहें वह सुंदर हो या नहीं, हमारा मन उसकी परवाह नहीं करता लेकिन दूसरों के साथ आपकी जोड़ी बनने में ये बहुत बड़ा योगदान देता है।

प्राचीन काल में बाल सुंदरता के लिहाज से महत्वपूर्ण नहीं होते थे लेकिन ये यौवन के संकेत अवश्य होते हैं। अज्ञात कारणों से आजकल जवान लोगों के बाल भी तेजी से झड़ रहे हैं तो वो यौवन का संकेत लोगों को सुंदरता से जुड़ा लगने लग गया है। लड़कियों को बाल बढाना सेक्सी होने की निशानी लगता है जबकि प्राचीन काल में ये लड़की कभी घर के बाहर नही निकली और कुंवारी है इसका प्रमाण होता था। वही सोच विचार आज मानक बना दिये गए हैं। गंजा लड़का किसी को हैंडसम नहीं लगता और गंजी लड़की भी।

सिनेमा भी प्रायः प्राचीन संस्कृति को समर्थन देता रहा है क्योंकि लोगों को यही पसंद था। कुछ निर्माता प्रयोगवादी होते हैं तो अब इन मानकों को मास स्टैंडर्ड में बदलना सम्भव हो गया है। इसी कड़ी में अब दाढ़ी और गंजेपन मास फैशन बन गए हैं। जो भी अच्छा चरित्र होता है उसका हर स्टाइल मास फैशन बन जाता है। फिर हम क्यों दुःखी हों? जब आपका चरित्र महान होता है तो आपकी हर बात महान हो जाती है।

मैंने बहुत बार आईना देखा है। मैं कोई खास सुंदर नहीं, गोरा भी नहीं। थोड़े दाग धब्बे भी हैं। बाल तो बचपन से ही कम थे, ऊपर से मोटा होकर अपना फिगर भी खराब कर लिया। ज्यादातर लड़कियों को पसंद नहीं आता। लेकिन ऐसा सिर्फ तबतक है जबतक वो मुझे जानती नहीं। अब जो मुझे देखना नहीं चाहती वो मुझे जानेगी कैसे? इसलिये परवाह नहीं करता। मस्त रहता हूँ, खुश रहता हूँ। ऐसे ही, बिना बात के और लोग देखने, पूछने चले आते हैं कि आखिर क्यों खुश हूँ मैं? फिर बातें निकलती हैं और मेरे विचार उन तक पहुँचने लगते हैं फिर कोई मेरे पास से जाना नहीं चाहता।

सुंदरता, रंग, अपंगता, जाति, वंश आदि को बदला नहीं जा सकता (सुंदरता, रंग, बाल आदि में इम्प्लांट, प्लास्टिक सर्जरी को छोड़ दें तो) तो इनका आप को मजाक कभी नहीं उड़ाना चाहिए। कोई इनको बदल नहीं सकता तो उसका अपमान क्यों? यदि कोई बदसूरत है और आप को देखना बर्दाश्त न होता हो तो उसे आप कह सकते हैं कि आपको पसंद नहीं है चेहरा अगले का बजाय उसे बदसूरत कहने के।

झूठ नहीं बोलना है। झूठ बहुत दुखी करता है। आप किसी बदसूरत को खूबसूरत बोल कर मत निकलिए। ये घातक हो सकता है। अगला आईना देखता है। उसे पता है कि वो कैसा है और अगर आप झूठ बोलते हैं तो हो सकता है कि वो समझे कि आप उसको पसंद करते हैं (मेरे साथ ऐसा हो चुका है) और फिर वो आपसे दिल लगा ले तो? तब क्या उसका दिल तोड़ोगे? मुझे तोड़ना पड़ा, इसलिये यदि मुझे कोई चेहरा पसन्द नहीं तो उसे खूबसूरत तो नहीं बोलता लेकिन बदसूरत भी नहीं बोलता। बेहतर होगा कि अनदेखा कीजिये इन बातों को और दूसरी खूबियों को देखिये। खूबसूरती देखने वाले की आंखों में होती है। आपकी सूरत कैसी भी हो। अतः बिना इसकी परवाह किये खूब सेल्फी डालो, DP पेलो। आपका दिन शुभ रहे। ~ Shubhanshu 2020©

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