कोई मेरे जैसा भी बनना चाहता है जान कर अजीब सा लगा। मैं हूँ क्या? केवल एक इंसान ही तो न? वो तो सब हैं? हैं न? या नहीं हैं? लोगों की नज़र में मैं कोई नहीं। लोगों को बड़े-बड़े वादे करने और लच्छेदार भाषण देने वाले पसन्द हैं। मेरी मजबूरी है कि मैं झूठ नहीं बोल सकता। और सुना है कि झूठ ही तो बिकता है। सत्य कहीं डूब मरता है शर्म के मारे। तो मैं भी शर्म से डूब मरने के लिये ही बना हूँ।
इसीलिए लोगों के बीच नहीं जाता। छुप कर रहता हूँ। उनसे घबराहट सी होती है अब तो। अलग होना ही गलत होना हो गया है। जबकि मैं तो बस वही कर रहा हूँ जो मुझे सही लग रहा है। वो भी सिर्फ अपने साथ। किसी की स्वतंत्रता में दखल कैसे दे दूं अगर मैं खुद स्वतंत्रता का प्रेमी हूँ?
फिर भी लोगों को मैं पसन्द नहीं आता। सच कहूँ तो मुझे भी वो पसन्द नहीं आते। उनकी सौ बुराइयों को मैं जानता हूँ। मेरी वो एक भी नहीं साबित कर पाते। फिर भी मैं बुरा हूँ क्योंकि भीड़ से अलग हूँ। सब के जैसा दिखने वाला रोबोट नहीं हूँ न?
मैं असफल रहा लोगों के बीच रहने में। मैं असफल रहा प्रसिद्ध होने में। मैं असफल रहा भीड़ को खुश करने में। मैं बस खुश कर सका तो केवल खुद को। बस यही मेरी कामयाबी है।
और यकीन मानिये मैं बस इतना ही सफल होना चाहता हूँ। फिर भी आश्चर्य है, मेरे जैसा कोई क्यों होना चाहेगा? शायद उसे पता नहीं वो क्या सोच रहा है। मैं कुछ नहीं हूँ और वो भी कुछ नहीं हो जाएगा। तब पछताएगा। ~ Shubhanshu 2019©
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें