Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, मई 04, 2018

मेरा वर्जित सत्य

मैं 8वी कक्षा से सेक्स के बारे में सब जानता हूँ। पोर्न कुछ किताबों से फिर बाद में 9वी में आकर इंटरनेट पर खुद ढूंढा। बहुत पैसे खर्च किये पोर्न को देखने में। फिर cd ली, फिर dvd, लेकिन मुझे सामान्य पोर्न ही ठीक लगा और मैंने देखा और हस्तमैथुन भी किया लेकिन कभी ज्यादा नहीं किया।

सभी तरह के पोर्न देख कर मुझे कुछ फील नहीं होता है, सिर्फ कुछ मॉडल से ही फीलिंग आती हैं। मेरी पसन्द भी सबकी जैसी नहीं। असली जीवन में भी मुझे केवल कुछ ही लड़कियों से आकर्षण हुआ, हर कोई मुझे महिला ही नहीं लगती। लड़का ही लगती है। कोई-कोई ही होती है ऐसी जिनसे मैं शर्मा जाता हूँ।

तब से अब तक बहुत शोध किया है पोर्न पर लेकिन मेरे भीतर कभी कोई दुर्भावना उतपन्न नहीं हुई। न ही मेरे दोस्तों के मन में। वे सामान्य जीवन जीते हैं। लड़कियों का सम्मान करते हैं और एक मित्र जो 8वी कक्षा से साथ है वह भी मेरी तरह विवाहमुक्त हो गया जब उसको उसकी प्रेमिका ने धोखा दे दिया।

उस समय मेरे सहयोग से उसे उसकी प्रेमिका से मिलाने के भरसक प्रयत्न किए गए लेकिन लड़की चाहती ही नहीं थी उसे पाना, तो सम्भव न हो सका। फिर वह हार कर मेरी बताई बातों पर गौर करने लगा कि मैं क्या कहता रहा उसे हमेशा। उसके बाद उसने मुझसे जानकारी मांगी, मैंने दी और वह धर्ममुक्त और विवाहमुक्त हो गया। ~ शुभाँशु जी 2018©

गुरुवार, मई 03, 2018

विवाह से मुक्ति यानि जीवन में संतुष्टि!

कह दीजिये अपने घरवालों से कि हमको अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद करने हैं। हम पर जबरन नई जिम्मेदारी (जो अभी है ही नहीं) मत थोपो। ज़िम्मेदारी अपने आप आ जाती है लोगों पर। जबरन ली नहीं जाती। सेक्स की ज़रूरत जिनको है, उसके लिये विवाह कहीं से भी ज़रुरी नहीं।

कानून में कोई भी रोक नहीं कि कोई भी स्वतन्त्र नागरिक परस्पर सहमति से एक दूसरे के साथ संभोग न कर सके। सबको छूट है। चाहे वह कोई रिश्तेदार ही क्यो न हो या कोई समूह ही क्यों न हो। विवाह एक अनुबंध (एग्रीमेंट) है जिसे करने के बाद तोड़ना अपराध है। इसीलिये जब तक दोनो पक्ष राजी नहीं होते तब तक मुकदमा चलता है।

समस्या आती है, बच्चों के पैदा करने पर। तो जो प्रेम को तिलांजलि देना चाहते हैं वे बच्चा कर सकते हैं। बच्चे पैदा होने पर प्यार बंट जाता है और समय के साथ खत्म हो जाता है। यह पृकृति है। उसका काम ही बच्चे पैदा करवाना है। वह हुए और बस आपस में आकर्षण खत्म होने लगता है।

बच्चे न सिर्फ एक अतिरिक्त ज़िम्मेदारी बन जाते हैं बल्कि समाज/राष्ट्र में उनकी अधिकता पालन पोषण की गुणवत्ता में कमी पैदा करती है। परिणाम स्वरूप वे गलत राह पकड़ते है और अपराध जन्म लेता है।

हर गलत व्यक्ति/अपराधी का जन्मदाता एक खराब जोड़ा है जिसने उसे पैदा किया। बच्चे को सज़ा देने का कोई लाभ नहीं क्योकि वह फिर वही करेगा जिसके लिये उसे तैयार किया गया है। प्रोडक्ट खराब हो तो सज़ा प्रोडक्ट को नहीं बल्कि उसके निर्माता को दी जाती है।

हम 150,0000000 से भी ज्यादा (प्रति सेकेंड हजारों की संख्या में बढ़ते और मरते हुए) हो चुके हैं। समाज अपराध और लैंगिक अनुपात की समस्या से जूझ रहा है। संकीर्ण मानसिकता ने लोगों को कुंठित करके ज्वालामुखी भड़का दिए हैं। लीगल पोर्न, सेक्स एडुकेशन और हस्तमैथुन जैसे विषय अभी तक वर्जित हैं। अगर अभी हम विवाह और बच्चो से मुक्ति पाने के विषय में नहीं सोच सके तब प्रेम तो खत्म है ही। हम भी एक दूसरे को नोच कर एक दूसरे को जल्द ही खत्म कर देंगे।

हम जानते हैं कि कुछ लोग सिर्फ माँ-बाप बनने के लिए ही आये हैं। हम उनको नहीं बदल सकते। उनको प्रेम नहीं सिखा सकते उनकी पृवृत्ति ही ऐसी है। इसे natalism की instinct कहते हैं। इनको सिर्फ खेलने के लिये बच्चे चाहिए क्योकि पति दिन भर कमाने में व्यस्त रहता है।

वे कभी देश को निर्जन नहीं होने देंगे लेकिन शायद हम तब जनसँख्या कम करके, रोजगार और संसाधनों को बढ़ा कर प्रतिव्यक्ति आय को बढ़ा देंगे (क्योकि अभी देश का सीमित धन बहुत लोगों में बंटा हुआ है और आय कम होती है) और यही असफल माता-पिता एक सफल नागरिक का पालन पोषण करके  देश में हम जैसे ज़िम्मेदार लोगो को पैदा करेंगे।

तभी हम एक उत्तम राष्ट्र की ओर बढ़ने में सक्षम होंगे। विजयी मेरा भारत देश! ~ शुभाँशु जी 2018©

समय सत्य को स्वीकारने का है और समाधान ढूंढने का।

गांव में जब शेर आ जाया करते थे तो जंगल की सीमा पर कुछ बकरे बाँध दिए जाते थे। शेर उनको खा कर वापस लौट जाते थे और गाँव सुरक्षित रहता था।

Porn वह बकरे हैं और शेर वह desperate ठुकराए हुए लड़के हैं जिनको संस्कारी लड़कियों ने कभी भाव नहीं दिया। पिता ने और टीचर ने हस्तमैथुन करने को शीघ्रपतन और नामर्दी का कारण बताया। प्रॉस्टिट्यूशन अवैध होने के कारण वहाँ ठगी हो जाती है तो आखिर में वे करें तो क्या करें?

पिछली post में हमने हस्तमैथुन के लाभ बताये थे। इसलिये ताकि जो लोग पोर्न देख कर कामोत्तेजना बढाते तो हैं लेकिन उसे हस्तमैथुन से बुझाते नहीं। इसी कारण पोर्न पर कुछ लोग गलत होने का आरोप लगाते हैं लेकिन सीमित मात्रा में डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक इसको समाज को नियंत्रित करने वाला बताते हैं।

संभोग की क्रिया को अपने जुगाड़, हाथ, सेक्स टॉय से करने को हस्तमैथुन करना कहते हैं। यह एक समान है संभोग के। दिन में 3 बार से ज्यादा करने से अंग दुखने लगते हैं यही वास्तविक सम्भोग में भी होता है।

जिन लोगों को इस पोस्ट से खुद पर नियंत्रण करने का लाभ मिले वह कृपया टिप्पणी में अवश्य बताये। धन्यवाद्! आलोचक कृपया इस पोस्ट से दूर रहें। यह समय आलोचना का नहीं समाधान का है। मुझे चाहिए एक बलात्कार मुक्त समाज। कैसे भी। ~ शुभाँशु जी 2018©

बुधवार, मई 02, 2018

स्वप्रसंशा: हीन भावना निवारक! आत्महत्या निरोधक!

विशेष: आपको मेरा लहजा स्वप्रसंशा वाला लग रहा होगा। जब आप अगले से कम होते हैं तो हम उसके ऊपर घमण्ड करने का आरोप लगा कर तुष्ट हो जाते हैं। हमें बड़े से बड़ा शख्सियत वाला व्यक्ति एक दम दीन-हीन गिड़गिड़ाने वाली हालत में ही पसन्द आता है और आश्चर्य की बात तो यह है कि एक घमंडी व्यक्ति भी ऐसे ही देखना चाहता है सभी को। फिर घमंडी/अहंकारी/एरोगेंट कौन हुआ? मैं तो अपने बारे में सत्य लिख रहा हूँ आप पढ़ रहे हैं। फिर भी मैं आपको अगर घमंडी दिखा तो खुद सोचिये कि अगर मैं घमंडी होता तो आपको ज़लील कर रहा होता। जबकि मैं तो आपको अभी तक जानता भी नहीं। फिर आप कोई भी हों, मुझे जब पता नहीं तो क्या फर्क पड़ता है? अपने बारे में एक अकेला रहने वाला इंसान खुद अपनी तारीफ कर भी रहा है तो अच्छा है न! अपनी बुराई वह करे जो बुरा हो।

अगर आप दूसरे को झुका हुआ देखना चाहते हैं तो घमंडी आप हैं। जो सिर उठा के चलते हैं दुनिया उसी के आगे सिर झुकाती है, सम्मान से।

"हमको इतनी शक्ति देना कि जग विजय करें,
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें।" ~ शुभाँशु जी! 💐

हाँ मैं सनकी हूँ। पागल भी हूँ। सत्यवादी ऐसे ही होते हैं।

मैं केवल यूनिवर्सल truth देने का प्रयास करता हूँ। भले ही समझा नहीं पाता कम शब्दों में। लोगों को 3 घण्टे के प्रवचन समझ आ जाते हैं लेकिन मेरी 30 शब्दों की पोस्ट समझ में नहीं आ पाती। इसीलिये कमेंट में चर्चा होने लगती है। मैं कोई आम विषय नहीं उठाता। मैं वह विषय उठाता हूँ जिसे उठाते हुए लोग थर-थर कांपते हैं। ब्लॉक हो जाने से डरते हैं और मित्र खो देने का खतरा उठाने से बचते हैं।

जबकि मैं बस सत्य का पथिक हूँ जो सत्य है वह सुनाता/दिखाता/पढ़ाता रहूँगा। शायर भी हूँ, गीतकार भी, लेखक और उपन्यासकार भी, वैज्ञानिक भी हूँ और आविष्कारक भी (अभी पेटेंट नहीं) कवि भी हूँ और विश्लेषक भी, लेकिन आपको मैं बस वही दिखाता हूँ जो कड़वा लगे क्योकि सत्यवादी जो ठहरा। इसलिये आप यह सब अनदेखा कर देते हैं और बस एक शब्द आपको याद रहेगा कि मैं सनकी हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

जनसँख्या विस्फोट: एक सच्चाई और एक अभिशाप

क्या विवाह और बच्चे न करने से यह ग्रह निर्जन हो जाएगा? यह समय पर छोड़ दीजिये। कोई परफेक्ट नही होता। सभी कभी एक से नहीं होते। यह बहुत आदर्शवाद की स्थिति है कि सब एक सा सोचे। कुछ लोग प्रेम नहीं करना चाहते, इसलिये ही विवाह करते हैं। उनकी ज़रूरतें पूरी हो जाएं बस। वही जनसँख्या बढ़ाते हैं। प्रेमी तो जान दे देते हैं। उनके वंश नहीं चलते।

सवाल तो यह है कि क्या अगर हमने जनसँख्या को न रोका तो क्या यह ग्रह निर्जन नहीं हो जाएगा? ~ शुभाँशु जी 2018©

बिखरे पन्ने: मौत को शह और मात: Shubhanshu

मैं कुछ महान लेखकों की लंबी पोस्ट पढ़ कर कई बार गद गद हो जाता हूँ कि कितना ज्यादा डेटा हैं इनमें। फिर खुद को याद करता हूँ, जैसे मेरा सीधा FB पर पोस्ट फायर करना। बिना ज्यादा मसाले, डेटा और लम्बज्ञान के। मैं कस्टमर केयर जैसा महसूस करता हूँ। मेरी हर पोस्ट पर "शुभाँशु जी हाय-हाय" के नारे लग रहे होते हैं, लोगों को लम्बी बहस में छोटी-छोटी बातें समझानी पड़ती हैं तब उनमें से डायरेक्ट फायर होती है नई पोस्ट। उसी को उठा कर पोस्ट कर देता हूँ। 

अनायास ही नित नई जानकारियां फूटती हैं और नया बाग तैयार होता है। मैं कोई किताब नहीं पढ़ता, कोई नेट पर ज्ञान नहीं खोजता, कोई ज्ञानी व्यक्ति सम्पर्क में नहीं है जिससे सवाल पूछता हूँ। यह ज्ञान कैसे, किधर से निकलता है, मुझे खुद पता नहीं। बस जवाब हाज़िर होता है हर उचित सवाल के साथ और मैं दे देता हूँ। जितनी तेजी से आपको मेरे जवाब मिलेंगे, उतनी तेजी से बहुत कम लोग खुद मुझे जवाब दे पाते हैं।

मैं कोई स्कॉलर नहीं रहा था। मैं अपनी कक्षा का सबसे मूर्ख और दयनीय छात्र रहा हूँ। मुझे कहा गया था कि मैं कभी हाईस्कूल पास नहीं कर पाऊंगा और मैं कर भी नही पाया। फिर एक दिन जोश चढ़ा। मैंने चुनौती स्वीकार की। फिर से पढ़ाई की और पास हो गया। फिर अगली कक्षा में लुढ़क गया। फिर दया की भीख से अगली कक्षा में सरकाया गया। फिर इंटरमीडिएट में अनुत्तीर्ण हो गया। 

लगा जैसे पढ़ाई मेरे लिये बनी ही नहीं। फिर भी हार नहीं मानी। दो बार ज़हर खाया। फिर भी बच गया। किसी को पता भी नहीं चला। मैं ज़हरबुझा हो गया। इससे पहले के भी भयंकर किस्से हैं। 9 माह की उम्र में बिजली के झटके से मौत हुई, वापस जीवित हुआ, मोटरसायकिल दुर्घटना में बाल-बाल बचा। चलती ट्रेन से लटक कर मरते-मरते बचा, साला कुछ था ऐसा जो मरने ही नहीं दे रहा था।

फिर मैंने सोचा कि शायद मैं गलत कर रहा हूँ। इसलिये सही करने की सोची। सोचा मुझे हर बार दूसरा मौका मिल रहा है। लग जाओ काम पर। लग गया। पास हो गया इंटरमीडिएट में। फिर तो पहाड़ तोड़ डाले। आगे की पढ़ाई में धुआंधार पास होता गया। डिप्लोमे किये तो सबमें top मारा। सोच रहा था कि क्या मैं इतने आगे के लिये बना हूँ? क्या इसलिये बेसिक में कमज़ोर रह गया?

इसी दौरान पेचिश की बीमारी हो गई। हफ्ते भर व्यस्त रहने के कारण ध्यान नहीं दिया। बढ़ कर खूनी पेचिश हो गई। लगा जान निकल जायेगी। डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने 3000 की दवा और टेस्ट लिख दिये। मेरे पास इतना पैसा नहीं, हिम्मत नहीं और समय भी नहीं था। सोचा, अभी तो बहुत लोग मुझे चाहने लगे हैं। अभी मरना उचित नहीं। इसलिये डॉक्टर के पास दोबारा गया। कहा कि मुझे अभी ठीक करो। मेरे पास यह आखिरी रात है।

डॉक्टर ने मेरी आँखों में सत्य देखा और पर्चे की दवाई काट दी। पूछा कि इंजेक्शन लगवा दूँ? मैंने कहा कि नेकी और पूछ पूछ? डॉक्टर ने 4 इंजेक्शन लिखे। दाम सिर्फ 20 रुपया। उन्ही के अस्पताल में दूसरे डॉक्टर ने डराते हुए इन वेन में इंजेक्शन लगाया। धीरे-धीरे...उंगलियां हिलाते रहना, पलकें झपकाते रहना...हो गया। सवेरे तक मैं बेहतर था। अगले दिन एक और इंजेक्शन लगवाया और बस चंगा हो गया। 2 इंजेक्शन रखे-रखें खराब हो गए और मैं निकल आया इस बवाल से।

परास्नातक के दौरान और बुरा हुआ। शाहजहांपुर के गांधी-फैज-ए-आम कालेज में 2 वर्ष में 2 बार डेंगू बुखार हुआ। 5 दिन में अपने तरीके से और डॉक्टर के तरीके को मिला कर ठीक हो गया। इतनी fast recovery कि डॉक्टर को लगा कि कोई गड़बड़ है, कहा कि आप अस्पताल में भर्ती हो जाओ। मैंने कहा कि डॉक्टर साहब जूलॉजी पढ़ रहा हूँ, अपना ध्यान रख सकता हूँ।

रख भी लिया। पैर जवाब दे गए थे फिर भी किसी को पता तक न चला कि इस लड़के के भीतर सिर्फ 50000 प्लेटलेट्स बची थीं। प्लेटलेट्स काउंट 3 दिन में 4 लाख तक पहुँच गया। कोई मानता नहीं था। सब रिपोर्ट मांगते थे कॉलेज में। लेकर गया। सब हतप्रभ। कोई बोला नकली रिपोर्ट होंगी। मैंने सीखा कि सफ़ाई चाहे जितनी दीजिये वह अगले के अविश्वाश को खत्म नहीं कर सकती।

कालेज के पास नाला था। दिन में भी मच्छर काटते थे। फिर काट लिया अगले वर्ष भी। इस बार कॉलेज ही चला गया। पहली रिपोर्ट लेकर। सबने देखा कि यह मुर्दा दौड़ कैसे रहा है?

रोज शाम को खून की जांच होती और सुबह वह कॉलेज में। सबने देखा कि मैं फिर से 3 दिन में रिकवर हो गया। लैब वाले sir ने एक दिन प्लेटलेट्स काउंट करना सिखाया। सबको अनीमिया निकला। लड़कियों मे ज्यादा और लड़कों में कम। मेरी बारी आई। sir ने 3 बार चेक किया। 3 बार खून निकाला सुई भोंक कर के फिर भी यकीन नहीं आया कि इस लौंडे में पूरी क्लास से ज्यादा खून कैसे। बचे sir जी। उनको भी एनीमिया निकल आया। शर्मिंदा हो गए। मैं तो जैसे साइंस एक्सपेरिमेंट हो गया। अजूबा।

इसी तरह के न जाने कितने किस्से हैं। जो याद आया, धाराप्रवाह लिखता चला गया। पता नहीं क्यों लिखा? बस लिख दिया। दिल में आया और उंगलियों ने छाप दिया। वैसे भी मैं कोई पोस्ट सोच समझ कर लिखता भी नहीं। सोचता तो आप आज मुझे जानते भी नहीं। ~ शुभाँशु जी 2018©

बुद्धत्व: 10 जन्मों का निष्कर्ष?

बुद्ध एक अवस्था है। जिसे बुद्धत्व कहते हैं यह सिर्फ एक कल्पना है। कोई नहीं जानता कि उसका पिछला जन्म क्या था। जितने भी केस हैं वे सभी पिछड़े इलाके के हैं और जिनको इसके लिये ही तैयार किया जाता रहा है। लॉजिक ही नहीं है तो कुछ सम्भव ही नहीं। सब फेक है।

इंसान धर्म के लिए क्या नहीं करता। मुस्लिम उग्रवादी आत्महत्या कर लेता है। सिख फांसी चढ़ जाता है। यहूदी शूली चढ़ जाता है। हिन्दू सती, जीभ काट देता है, भूत चढ़ने के ढोंग करते हैं, मुस्लिम जिन आने के ढोंग करते हैं। लेकिन बन्दूक दिखाओ तो हाथ ऊपर। ~ शुभाँशु जी 2018©

बलात्कारी समाज की पहचान

विदेशों में लड़कियाँ छोटे और चुस्त कपड़े इसलिये पहनती हैं क्योंकि वहाँ के लड़के उनको भाव नहीं देते। उनको आकर्षित करने के लिये वे नग्न तक होना चाहती हैं। दरअसल वहाँ अधिकतर लड़के विवाह के खिलाफ हैं और पोर्न तथा सेक्स टॉय से अपनी कामोत्तेजना को शान्त रखते हैं।

इंटरनेट पर जो आंकड़े बलात्कार के देखने को मिलते हैं वे सभी ज्यादातर झूठे होते हैं क्योंकि असली बलात्कार में प्रायः हत्या ही कर दी जाती है सज़ा से बचने के लिये। अधिकतर बलात्कार के मामले पैसे हड़पने के या विवाह का दबाव डलवाने के लिये किये गए प्रयास या बदला होते हैं।

असली बलात्कारी कभी पकड़े ही नहीं जाते हैं। इसीलिए वे कुछ लोग बलात्कार करते ही रहते हैं। हम समाज में महिलाओं के अज़ादख्याली होने के स्तर से ही समाज में पुरुषों की हवस की मात्रा जान सकते हैं।

जितना ज्यादा बदन ढका होगा, उतना ही महिला को पुरूष से बलात्कार का खतरा होता है, इसी आधार पर कोई महिला खुद को खुला या ढका रखती है। ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/05/02 04:51

मंगलवार, मई 01, 2018

विकास का पिता: मजदूर

अगर श्रमिक नहीं होते तो हम आज बंगलों में न बैठे होते। कारें, बसें, इमारतें, सड़के, खेत सिर्फ पत्थरों पर बने होते कोयले से या कंदराओं में, गुफाओं में। क्योकि कागज और कलम भी तो किसी मजदूर की मेहनत से ही बनती है।

मजदूर/श्रमिक हैं तो विकास है, प्रगति है। यह छोटा पेशा नहीं है। इसे सभी को अपनाना चाहिए। इसकी तनख्वाह/वेतन भी ऊंचा होना चाहिए और इसे भी सामान्य नौकरी की तरह समझना चाहिए।

उत्तम विश्व निर्माण में यही पसीने से दुर्गंध मारता असभ्य सा दिखने वाला इंसान ही सभ्यता को यथार्थ में बदलता है। जिसकी सुगंध लिए हम वर्षों तक अपनी धरोहरों पर गर्व करते फिरते हैं। इसलिये एक् श्रमिक/मजदूर को सम्मान से देखो।

मैं आज भी मजदूर बनना गौरव की बात समझता हूँ क्योंकि एक यही ऐसा पेशा था जिसने मुझे शून्य से अनन्त तक पहुचने का रास्ता दिया क्योंकि मैं न तो कभी पूंजी लेकर आया था और न ही भीख मांगने की हिम्मत थी मुझमें। आज एक मई 2018 को मैं शुभाँशु अपने मन की बात इस विषय पर पहली बार आपके समक्ष रख रहा हूँ। उम्मीद है कि आप समझेंगे। नमस्कार! ~ शुभाँशु जी 2018©