Zahar Bujha Satya

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गुरुवार, मई 03, 2018

विवाह से मुक्ति यानि जीवन में संतुष्टि!

कह दीजिये अपने घरवालों से कि हमको अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद करने हैं। हम पर जबरन नई जिम्मेदारी (जो अभी है ही नहीं) मत थोपो। ज़िम्मेदारी अपने आप आ जाती है लोगों पर। जबरन ली नहीं जाती। सेक्स की ज़रूरत जिनको है, उसके लिये विवाह कहीं से भी ज़रुरी नहीं।

कानून में कोई भी रोक नहीं कि कोई भी स्वतन्त्र नागरिक परस्पर सहमति से एक दूसरे के साथ संभोग न कर सके। सबको छूट है। चाहे वह कोई रिश्तेदार ही क्यो न हो या कोई समूह ही क्यों न हो। विवाह एक अनुबंध (एग्रीमेंट) है जिसे करने के बाद तोड़ना अपराध है। इसीलिये जब तक दोनो पक्ष राजी नहीं होते तब तक मुकदमा चलता है।

समस्या आती है, बच्चों के पैदा करने पर। तो जो प्रेम को तिलांजलि देना चाहते हैं वे बच्चा कर सकते हैं। बच्चे पैदा होने पर प्यार बंट जाता है और समय के साथ खत्म हो जाता है। यह पृकृति है। उसका काम ही बच्चे पैदा करवाना है। वह हुए और बस आपस में आकर्षण खत्म होने लगता है।

बच्चे न सिर्फ एक अतिरिक्त ज़िम्मेदारी बन जाते हैं बल्कि समाज/राष्ट्र में उनकी अधिकता पालन पोषण की गुणवत्ता में कमी पैदा करती है। परिणाम स्वरूप वे गलत राह पकड़ते है और अपराध जन्म लेता है।

हर गलत व्यक्ति/अपराधी का जन्मदाता एक खराब जोड़ा है जिसने उसे पैदा किया। बच्चे को सज़ा देने का कोई लाभ नहीं क्योकि वह फिर वही करेगा जिसके लिये उसे तैयार किया गया है। प्रोडक्ट खराब हो तो सज़ा प्रोडक्ट को नहीं बल्कि उसके निर्माता को दी जाती है।

हम 150,0000000 से भी ज्यादा (प्रति सेकेंड हजारों की संख्या में बढ़ते और मरते हुए) हो चुके हैं। समाज अपराध और लैंगिक अनुपात की समस्या से जूझ रहा है। संकीर्ण मानसिकता ने लोगों को कुंठित करके ज्वालामुखी भड़का दिए हैं। लीगल पोर्न, सेक्स एडुकेशन और हस्तमैथुन जैसे विषय अभी तक वर्जित हैं। अगर अभी हम विवाह और बच्चो से मुक्ति पाने के विषय में नहीं सोच सके तब प्रेम तो खत्म है ही। हम भी एक दूसरे को नोच कर एक दूसरे को जल्द ही खत्म कर देंगे।

हम जानते हैं कि कुछ लोग सिर्फ माँ-बाप बनने के लिए ही आये हैं। हम उनको नहीं बदल सकते। उनको प्रेम नहीं सिखा सकते उनकी पृवृत्ति ही ऐसी है। इसे natalism की instinct कहते हैं। इनको सिर्फ खेलने के लिये बच्चे चाहिए क्योकि पति दिन भर कमाने में व्यस्त रहता है।

वे कभी देश को निर्जन नहीं होने देंगे लेकिन शायद हम तब जनसँख्या कम करके, रोजगार और संसाधनों को बढ़ा कर प्रतिव्यक्ति आय को बढ़ा देंगे (क्योकि अभी देश का सीमित धन बहुत लोगों में बंटा हुआ है और आय कम होती है) और यही असफल माता-पिता एक सफल नागरिक का पालन पोषण करके  देश में हम जैसे ज़िम्मेदार लोगो को पैदा करेंगे।

तभी हम एक उत्तम राष्ट्र की ओर बढ़ने में सक्षम होंगे। विजयी मेरा भारत देश! ~ शुभाँशु जी 2018©

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