मैं कुछ महान लेखकों की लंबी पोस्ट पढ़ कर कई बार गद गद हो जाता हूँ कि कितना ज्यादा डेटा हैं इनमें। फिर खुद को याद करता हूँ, जैसे मेरा सीधा FB पर पोस्ट फायर करना। बिना ज्यादा मसाले, डेटा और लम्बज्ञान के। मैं कस्टमर केयर जैसा महसूस करता हूँ। मेरी हर पोस्ट पर "शुभाँशु जी हाय-हाय" के नारे लग रहे होते हैं, लोगों को लम्बी बहस में छोटी-छोटी बातें समझानी पड़ती हैं तब उनमें से डायरेक्ट फायर होती है नई पोस्ट। उसी को उठा कर पोस्ट कर देता हूँ।
अनायास ही नित नई जानकारियां फूटती हैं और नया बाग तैयार होता है। मैं कोई किताब नहीं पढ़ता, कोई नेट पर ज्ञान नहीं खोजता, कोई ज्ञानी व्यक्ति सम्पर्क में नहीं है जिससे सवाल पूछता हूँ। यह ज्ञान कैसे, किधर से निकलता है, मुझे खुद पता नहीं। बस जवाब हाज़िर होता है हर उचित सवाल के साथ और मैं दे देता हूँ। जितनी तेजी से आपको मेरे जवाब मिलेंगे, उतनी तेजी से बहुत कम लोग खुद मुझे जवाब दे पाते हैं।
मैं कोई स्कॉलर नहीं रहा था। मैं अपनी कक्षा का सबसे मूर्ख और दयनीय छात्र रहा हूँ। मुझे कहा गया था कि मैं कभी हाईस्कूल पास नहीं कर पाऊंगा और मैं कर भी नही पाया। फिर एक दिन जोश चढ़ा। मैंने चुनौती स्वीकार की। फिर से पढ़ाई की और पास हो गया। फिर अगली कक्षा में लुढ़क गया। फिर दया की भीख से अगली कक्षा में सरकाया गया। फिर इंटरमीडिएट में अनुत्तीर्ण हो गया।
लगा जैसे पढ़ाई मेरे लिये बनी ही नहीं। फिर भी हार नहीं मानी। दो बार ज़हर खाया। फिर भी बच गया। किसी को पता भी नहीं चला। मैं ज़हरबुझा हो गया। इससे पहले के भी भयंकर किस्से हैं। 9 माह की उम्र में बिजली के झटके से मौत हुई, वापस जीवित हुआ, मोटरसायकिल दुर्घटना में बाल-बाल बचा। चलती ट्रेन से लटक कर मरते-मरते बचा, साला कुछ था ऐसा जो मरने ही नहीं दे रहा था।
फिर मैंने सोचा कि शायद मैं गलत कर रहा हूँ। इसलिये सही करने की सोची। सोचा मुझे हर बार दूसरा मौका मिल रहा है। लग जाओ काम पर। लग गया। पास हो गया इंटरमीडिएट में। फिर तो पहाड़ तोड़ डाले। आगे की पढ़ाई में धुआंधार पास होता गया। डिप्लोमे किये तो सबमें top मारा। सोच रहा था कि क्या मैं इतने आगे के लिये बना हूँ? क्या इसलिये बेसिक में कमज़ोर रह गया?
इसी दौरान पेचिश की बीमारी हो गई। हफ्ते भर व्यस्त रहने के कारण ध्यान नहीं दिया। बढ़ कर खूनी पेचिश हो गई। लगा जान निकल जायेगी। डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने 3000 की दवा और टेस्ट लिख दिये। मेरे पास इतना पैसा नहीं, हिम्मत नहीं और समय भी नहीं था। सोचा, अभी तो बहुत लोग मुझे चाहने लगे हैं। अभी मरना उचित नहीं। इसलिये डॉक्टर के पास दोबारा गया। कहा कि मुझे अभी ठीक करो। मेरे पास यह आखिरी रात है।
डॉक्टर ने मेरी आँखों में सत्य देखा और पर्चे की दवाई काट दी। पूछा कि इंजेक्शन लगवा दूँ? मैंने कहा कि नेकी और पूछ पूछ? डॉक्टर ने 4 इंजेक्शन लिखे। दाम सिर्फ 20 रुपया। उन्ही के अस्पताल में दूसरे डॉक्टर ने डराते हुए इन वेन में इंजेक्शन लगाया। धीरे-धीरे...उंगलियां हिलाते रहना, पलकें झपकाते रहना...हो गया। सवेरे तक मैं बेहतर था। अगले दिन एक और इंजेक्शन लगवाया और बस चंगा हो गया। 2 इंजेक्शन रखे-रखें खराब हो गए और मैं निकल आया इस बवाल से।
परास्नातक के दौरान और बुरा हुआ। शाहजहांपुर के गांधी-फैज-ए-आम कालेज में 2 वर्ष में 2 बार डेंगू बुखार हुआ। 5 दिन में अपने तरीके से और डॉक्टर के तरीके को मिला कर ठीक हो गया। इतनी fast recovery कि डॉक्टर को लगा कि कोई गड़बड़ है, कहा कि आप अस्पताल में भर्ती हो जाओ। मैंने कहा कि डॉक्टर साहब जूलॉजी पढ़ रहा हूँ, अपना ध्यान रख सकता हूँ।
रख भी लिया। पैर जवाब दे गए थे फिर भी किसी को पता तक न चला कि इस लड़के के भीतर सिर्फ 50000 प्लेटलेट्स बची थीं। प्लेटलेट्स काउंट 3 दिन में 4 लाख तक पहुँच गया। कोई मानता नहीं था। सब रिपोर्ट मांगते थे कॉलेज में। लेकर गया। सब हतप्रभ। कोई बोला नकली रिपोर्ट होंगी। मैंने सीखा कि सफ़ाई चाहे जितनी दीजिये वह अगले के अविश्वाश को खत्म नहीं कर सकती।
कालेज के पास नाला था। दिन में भी मच्छर काटते थे। फिर काट लिया अगले वर्ष भी। इस बार कॉलेज ही चला गया। पहली रिपोर्ट लेकर। सबने देखा कि यह मुर्दा दौड़ कैसे रहा है?
रोज शाम को खून की जांच होती और सुबह वह कॉलेज में। सबने देखा कि मैं फिर से 3 दिन में रिकवर हो गया। लैब वाले sir ने एक दिन प्लेटलेट्स काउंट करना सिखाया। सबको अनीमिया निकला। लड़कियों मे ज्यादा और लड़कों में कम। मेरी बारी आई। sir ने 3 बार चेक किया। 3 बार खून निकाला सुई भोंक कर के फिर भी यकीन नहीं आया कि इस लौंडे में पूरी क्लास से ज्यादा खून कैसे। बचे sir जी। उनको भी एनीमिया निकल आया। शर्मिंदा हो गए। मैं तो जैसे साइंस एक्सपेरिमेंट हो गया। अजूबा।
इसी तरह के न जाने कितने किस्से हैं। जो याद आया, धाराप्रवाह लिखता चला गया। पता नहीं क्यों लिखा? बस लिख दिया। दिल में आया और उंगलियों ने छाप दिया। वैसे भी मैं कोई पोस्ट सोच समझ कर लिखता भी नहीं। सोचता तो आप आज मुझे जानते भी नहीं। ~ शुभाँशु जी 2018©