Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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मंगलवार, जून 05, 2018

Life is bed of roses! (Yours, not mine)

जीवन, गुलाबों से भरा बिस्तर नहीं है।

हालांकि यह बात पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि यह क्यों कहा गया मेरे पास इसका भी तर्क है।

यह वाक्य उनसे कहा जाता है, जो समझते हैं कि ज़िन्दगी गुलाबों से भरा हुआ बिस्तर है। वे ऐसा क्यों सोचते हैं? ज़रूर वे भी बिना बुनियाद के ऐसा नहीं सोच रहे।

वास्तव में, यह सच है कि हर किसी को अपने जीवन में गुलाब भरे बिस्तर ज़रूर मिलते हैं लेकिन उनमें आधा बिस्तर कांटों से भी भरा होता है। यही वह बात है जिसे जो जानते हैं, वे इसे सिर्फ एक धोखा मानते हैं जबकि जो इस बिस्तर पर लेट कर नहीं महसूस कर पाये वे उसमें छिपे कांटों को भी गुलाब समझ बैठते हैं।

ज़िन्दगी बहुत चालाक है। वह पहले कांटे डालती है, फिर गुलाब की पंखुड़ियों से उनको छिपा देती है। इससे जीना आसान हो जाता है। हम ऊपर से उसे सुगंधित और मुलायम समझ कर उसे अपना लक्ष्य बना लेते हैं और जीवन जीते जाते हैं।

पर सच तो यह है कि हासिल कुछ भी नहीं होता। जल्दी लेट गए तो काँटें चुभ जायेंगे और देर कर दी तो पंखुड़ियां सूख कर बर्बाद हो जायेंगी। अतः यह एक धोखा ही है। इसीलिये कहा जाता है कि "life is not a bed of roses!"

तब क्या किया जाए? मैंने सारी जिंदगी, इस ज़िन्दगी को समझने में ही लगा दी और कुछ हद तक इसकी पहेली को सुलझा भी लिया। लेकिन वो कहते हैं न, जब किसी का पेट भरता है, तो ज़रूर कोई उस रात भूखा भी सोया होता है।

आज के जीवन में अकेले बच्चों को पालना कोई आसान कार्य नहीं है लेकिन आसान तो अकेले कुआँ खोदना भी नहीं है जब सामने ताज़ा पानी टोटी से निकल रहा हो।

कहने का अर्थ है कि बेकार का काम भले ही मेहनत से किया जाए लेकिन उसकी कोई कीमत नहीं होती। फिर भी हम सब ऐसा करते हैं। बेकार का काम।

हम सब दरअसल एक लालच से प्रलोभित हैं। वही bed of roses वाला। हर कोई पढ़ाई, विवाह, बच्चे यह सोच कर करता है क्योंकि उसे लगता है कि भविष्य में वह सुख से रहेगा।

लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। फिर वह कौन से लोग हैं जो सबको उकसाते हैं? Bed of roses के सपने दिखाते हैं? कैसे दावा करते हैं कि उन्होंने bed of roses का सुख भोगा है?

मैंने पड़ताल की। बड़ी बातें सामने आईं। पहली तो यह कि 96% लोग झूठ बोल रहे थे। दूसरी यह कि 4% लोग सच में bed of roses पर लेटे थे। इतनी बड़ी बात को इन्होंने आग की तरह 96% लोगों के बीच फैला रखा था। जब 1 इंसान यह सुख भोग सकता है तो मैं भी भोग सकता हूँ, ऐसा सोच कर लोग जीता-जागता गवाह बन कर पेश आते रहे।

कमाल तो यह था कि सभी दुखी थे लेकिन उनका कोई दोस्त बहुत सुखी था। जब हम उस दोस्त से मिले तो उसने भी यही कहानी सुना दी। असली सुखी दोस्त तो जैसे एक अफवाह था। सभी उसकी सच्चाई को खुद पर रख कर मजबूती दे रहे थे; उस अफवाह को।

लेकिन अफवाह उड़ी कैसे? यह भी सोचने वाली बात थी। हमने बहुत मेहनत की। सालों लगे रहे खोजने में कि कौन है वह सबसे सुखी इंसान?

आखिरकार हमने उसे ढूंढ ही लिया।

उसका राज़ पता किया और हैरान रह गए कि उसने अपने जीवन में कुछ खास नहीं किया था। उसे वह खुशी विरासत में मिली थी। लेकिन उसको वह विरासत देने वाले ने कोई अच्छी ज़िन्दगी नहीं जी थी। वह कष्टों में जिया और किस्तों (installments) में मरा।

हम मोटे तौर पर धीरू भाई अम्बानी और उनके दो बेटों को इस कहानी में fit कर सकते हैं।

तो क्या सीख मिली?

हमने सीखा कि ज़िन्दगी को bed of roses बनाया जा सकता है लेकिन दूसरे के लिये। खुद के लिये नहीं। खुद की तो बची हुई पंखुड़ियों को भी दूसरे के बिस्तर के कांटों के बदले रखना है। खुद के लिये पूरे कांटों की सेज सजानी है। तभी दूसरे के हिस्से में केवल गुलाब आ सकेंगे।

तो अब हम क्या करें? दूसरों को फूल दे दें और खुद के लिये कांटे रख लें? दूसरों को अपने हिस्से का सुख भी बाँट दें ताकि कम से कम वे तो चैन से जी सकें। जो सुख हमने हासिल करने की चाभियाँ खोजी हैं वे दूसरों में बांट जायें?

हाँ यही बेहतर है। मेरे कोई बच्चे नहीं हैं। अपने बच्चे बिगड़ जाते हैं क्योकि हम उनको सही सज़ा नहीं दे पाते और न ही सही परवरिश।

इसलिये सोशल मीडिया पर मौजूद बहुत से बच्चों को अपना समझ कर उनको अपने ज्ञान और अनुभव के मोती बाँट रहा हूँ। वैसे भी मेरा बिस्तर लेटने लायक कहाँ था। Oops!

कभी असमय जागते देखना तो समझ लेना कि कांटों पर लेटा हूँ। नींद कैसे आएगी? अब बस जब सोऊंगा, तब दोबारा न उठने के लिए। ~ शुभाँशु जी 2018©

नोट: सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। कोई भी समानता सिर्फ संयोग मात्र होगी।

सोमवार, जून 04, 2018

अशुभ: प्रेम संघर्ष

बहुत साल पहले एक लड़की को वास्तविक जीवन में दोस्ती के लिए निवेदन किया था।

दरअसल, बहुत अकेला हो गया था मैं। जब भी अपने सहपाठियों के मध्य बैठता था तो क्या सही है और क्या गलत है पर बहस कर बैठता था। जब मैं उनको निरुत्तर कर देता तो वे चिढ़ जाते थे जबकि मुझे लगता था कि दोस्ती मजबूत होगी।

धीरे-धीरे घटिया लोग मुझसे दूर होते गए और अच्छे समझे जाने वाले लल्लू लोग मुझे पसन्द ही नहीं थे। बेवकूफ होना; सीधा होना, अच्छा होना नहीं होता। सीधे दोस्त, हर जगह कायरता की बातें करते, डरते और हारते थे। मैं एक अलग ही प्रजाति था। सीधा तब तक जब तक आप मुझे टेढ़ा होने पर मजबूर न कर दें।

यह प्रजाति कहीं थी ही नहीं। या तो हिंसक लोग थे या फिर एक दम लुल्ल। मैं क्या था कोई कभी समझ नहीं सका। लोग व्हाईट और ब्लैक में अच्छी और बुरी बातों को बांटते रहे और मैंने एक ग्रे शेड चुन लिया। मतलब जब तक गांधीगिरी चलती है चलाओ फिर हिटलर गिरी इस्तेमाल करो।

शक्ल से एक दम लुल्ल लगने वाला मैं अचानक जब अपना रूप बदलता था तो बड़े-बड़े दादाओं के हाथ कांप जाते थे। 2 कदम कब अपने आप वे पीछे चले जाते थे, उनको आज भी नहीं पता चल सका कि यह हुआ कैसे?

आप मुझे, लूट नहीं सकते, आप मुझे ठग नहीं सकते, आप मुझे विश्वास में लेकर धोखा दे सकते हैं लेकिन कीमत चुकाने के लिये तैयार रहना होता है क्योकि मैं किसी को भी उसकी गलती का एहसास दिलाये बगैर नहीं छोड़ता।

फिर क्यों लोग मेरे पास टिकते? मेरा फायदा न उठा सके तो मेरे पास बैठने का क्या फायदा? है न? हम सब दोस्ती अपने स्वार्थ के लिये ही तो कर लेते हैं?

"दोस्त नहीं है यार?" यह वाक्य ज़हर बुझा लगता था मुझे। जब भी कोई आपका लाभ उठाना चाहे और आप उसे मना करो तो यह सुनने को मिलता है। कुछ दिन में मैं इसका भी रहस्य समझ गया। अब जो भी यह शब्द बोले, वह समझिये गया काम से।

दोस्ती निःस्वार्थ होनी चाहिए। दिल से दिल मिलने चाहिए, जेब से हाथ नहीं। इसी आदर्श दोस्ती को ढूंढता रहा मैं।

फिर क्या हुआ? मैं अकेला होता गया। नितांत अकेला। लगा, सारा जीवन ऐसे ही बिताना होगा। पुरुषों के कठोर व्यवहार, उजड्डता और बद्तमीजी भरे व्यवहार ने मेरी नज़र में उनकी क्षवि गिरा दी। 

मेरा ध्यान मीठी आवाज़ और सुंदर चेहरे, कोमल तन, खींचने लगे। प्रेम भरी बातचीत ने लड़कियों के प्रति respect पैदा कर दी। लेकिन पाया कि वे सभी अस्थायी मित्र थीं। किसी के कब्जे में गिरफ्तार। उनके बॉयफ्रेंड थे। पहले लगा कि मेरे जैसे निःस्वार्थ मित्र होंगे लेकिन वे तो possessive हवस के पुजारी ही थे।

कई लड़कों से अनजाने में झगड़ा होते-होते बचा। अब लड़कियों से थोड़ा डर लगने लगा। पता नहीं कब कोई उसका पुराना आशिक, मुझे नया आशिक समझ कर उड़ा डाले?

अबकी बार मैं जब किसी से मिला तो साफ पूछ लिया कि कोई ज़िंदा बॉयफ्रेंड तो नहीं? ज़िंदा इसलिये क्योकि ये लड़के ex-girlfriend को भी किसी लड़के के साथ नहीं देख पाते। उनके लिये वे कार या स्कूटर की वह Stepney बन जाती हैं जो मुश्किल समय मे फिर से इस्तेमाल की जा सकती है।

मैं फिर से अकेला होता गया। जिनका कोई बॉयफ्रेंड नहीं होता दरअसल या तो वे बॉयफ्रेंड के कॉन्सेप्ट से ही नफरत करती निकलतीं या फिर उनको लड़कियों में ही रुचि होती थी।

मैं क्या ढूढ़ रहा था? क्या सामने था? और क्या है यह सब जो हो रहा था? इन्हीं प्रश्नो से जूझता रहता था। जिन लड़कियों से समूह में दोस्ती हुई वे कुछ दिन बाद दोस्त-भाई कहने लगीं मुझे। यह भाई शब्द इसलिये आक्षेपित किया गया था क्योंकि चारों लड़कियों की इस दौरान नए लड़को से दोस्ती हो गई जो उनसे शादी करना चाहते थे और मैं बेचारा प्लेटोनिक love वाला।

भाई का अर्थ था, "शुभ, हम engage हैं। तुम्हारी line closed।"

यही हुआ भी। शादी में दावत के न्योते आये लेकिन शुभ वहाँ कभी नहीं गया। ऐसा साफ लगने लगा था कि विवाह का concept मुझसे मेरे मित्र छीन रहा था। वही मित्र जो कहते थे, बेस्ट फ्रेंड forever! विवाह सबको निगल गया। 

देखिये यह विवाहित लड़कियाँ क्या करती हैं?

1. सिम तोड़ के फेंक दो।

2. ब्लॉक करो सभी खास पुरुष दोस्तों को।

3. Good bye!

बस यही होता आया। मुझे कुछ असुरक्षित सा लगने लगा कि मुझे यहाँ भारत में कोई लड़कीं नहीं मिलने वाली जो दोस्त बन सके हमेशा के लिये। मैने लड़कों से यह बातें कहीं तो वे बोले, "अरे बेवकूफ है साला, आज तक प्रोपोस ही नहीं किया और कह रहा है कि लड़की नहीं पटती। जा किसी को भी जाकर दोस्ती के लिए प्रोपोस कर, मान जाए तो कुछ दिन में I love you बोल दे, फिर मान जाए तो शादी के लिये प्रपोज कर दे। कमरे पे ले जा, सुहागरात मना और फिर शिकार पर निकल जा।"

लेकिन मुझे तो किसी अंजान लड़की को ऐसे धोखा देना बहुत गलत लगा। मुझे न जाने क्यों जैसे कोई ऐसा मेरे साथ करे तब कैसा लगेगा? जैसा महसूस हुआ। बहुत बुरा लगा। सोचा कमरे तक नहीं, शादी तक नहीं, सिर्फ दोस्ती तक ही सही लेकिन क्या अंजान लड़की को दोस्ती के लिये पूछना ठीक रहेगा? क्रमशः

आपबीती: शुभाँशु जी 2018©

Note: समस्त पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। यदि किसी घटना और पात्र से कोई समानता पाई जाए तो यह एक संयोग मात्र होगा। धन्यवाद्।

रविवार, जून 03, 2018

यायावर यानी जूम्बी

Nhilism की आड़ में एक नए वैचारिक यायावरों की पीढ़ी पनप गई है। यह वही लोग हैं जिन्होंने ब्लूव्हेल जैसे खेलों को जन्म दिया, सामूहिक आत्महत्या करवाईं और न जाने कितने विद्वानों को मौत के मुहँ में धकेल दिया।

अमरबेल* एक ऐसा ही पौधा होता है जो एक हरे भरे वृक्ष पर उगना शुरू करता है और उसका खून पीकर खुद को बढ़ाता है। यह अपनी ही थाली में छेद करने वालों की तरह होती है। जब यह पनपती है तो पेड़ मुरझाता है। जब यह जवान होती है तो पेड़ वृद्ध हो जाता है। यह इसी वृक्ष के साथ खत्म हो जाती है उसे खत्म करके।

इस बेल के अवशेष हवा के साथ उड़ते हैं और फैलते जाते हैं। इन्हीं की मानव प्रजाति कहलाती है यायावर/घुमंतू/कंजड़/बंजारा आदि। जंतुओं में आंतरिक उदाहरण होंगे फीताकृमि और बाहरी में जोंक।

यह वे लोग हैं जो अपना जीवन यापन किसी व्यापार, खेती या नौकरी से नहीं करते बल्कि जहाँ इनको जो मिल जाता है फलता-फूलता हुआ; उसे नोच कर खा जाना, उसका वंश मिटा देना, उस जमीन पर उगने वाली हर खाने योग्य प्रजाति को खा कर नष्ट कर देना, ज़मीन से बीज तक ख़ाकर उसे बंजर बनाना इनका उद्देश्य होता है। यह वह जगह छोड़ते ही तब हैं जब वह जगह उजड़ जाती है।

उजड़ा चमन छोड़ के नया चमन उजाड़ने चल देते है यह कंजड़/बंजारे। बेमतलब की ज़िंदगी, न कोई मकसद न कोई निश्चित राह। बस नकारात्मक सोच से सींचे हुए अमर बेल की तरह फिर से आबाद को बर्बाद करने निकल पड़ते हैं यह लोग।

अब ऑनलाइन कंजड़ों/यायावरों का क्या मतलब है? ये तो घर में हैं। इन पर सुविधाओं का पूरा इंतज़ाम है। दरअसल यह वैचारिक यायावर हैं। जिनका नकारात्मक उद्देश्य विश्व को निराशावाद में धकेलना और आपस में लड़ा भिड़ा कर समाप्त कर देना है।

यह आपके ऊंचाई पर दिखते ही आपसे जुड़ेंगे और तुरन्त ही आपको हतोत्साहित और तंग करना शुरू कर देंगे। ये आपको गुस्सा दिलाएंगे, और आपको उकसाने का पूरा प्रयास करेंगे ताकि आप एक गलती करो और आपका विध्वंस कर दिया जाए।

जब आप इनको टोकेंगे तो यह कहने लगेंगे, "निंदक नियरे राखिए...

लेकिन आप उनकी तुरन्त निंदा कर दें तो ये आपको ब्लॉक करके भाग जायेंगे। यह इनका बस कवच होता है। खुद निंदा सहने की ताकत इनमें नहीं होती।

यह बस आपकी वह निंदा भी सबको दर्शा कर आपकी क्षवि धूमिल कर देंगे। सकारात्मक सोच कहती है कि नकारात्मक सोच वालों से दूर रहिये। बहुत ज्यादा दूर। नहीं तो यह आपको भी अपने जैसा नकारात्मक बना देंगे। यानी अपने जैसा जूम्बी/यायावर! अब या तो आप इनसे सहमत हो कर इनके समूह में शामिल हो जाइये या फिर यह आपको नष्ट कर देंगे। हतोत्साहित होकर आप लिखना छोड़ देंगे और यह फिर किसी को निगलने आगे बढ़ जायंगे।

वैचारिक आतंकवादी भी कह सकते हैं। यह आपकी हर अच्छी पोस्ट पर कुतर्क करने चले आयेंगे यानी बिना प्रमाण के नकारने। अपनी ही नकारात्मक सोच थोपने। यह ज़ूम्बी हैं। इन्होंने आपको काट लिया तो आप भी इनके जैसे बन जायँगे।

यह खुद घायल होते हैं, किसी लाइलाज बीमारी से जो इनको नकारात्मक सोचने को मजबूर करती है कि सबकुछ सम्भव नहीं।

सावधान। सावधान। सावधान।

जब भी यह शब्द या इनके पर्यायवाची शब्द आपको किसी के प्रोफाइल में दिखें तो समझ जाइये कि आपने एक ज़ूम्बी को पहचान लिया है। यह एक दूसरे को पहचानने के लिये एक पहचान होती है। फिर एक ज़ूम्बी के साथ आपको क्या करना है, शायद मुझे बताने की आवश्यकता नहीं होगी। ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/06/03 17:02

https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B2

शनिवार, जून 02, 2018

वस्त्र पुलिस ज़िंदाबाद

महिलाओं को गैरज़रूरी शरीर ढँकना, शर्मगाहों (यौन अंग) ढंकने, यहाँ तक कि चेहरा भी छुपाने 😂 की सलाह आपको धार्मिक पुरूष देंगे। उनको खुद से बचाने के लिये। 😂 तो इनकी रिश्तेदार महिलाओं, गलती से भी इनको अपना चेहरा मत दिखा देना। उसमें भी एक छेद दिखता है इनको। अपने ही लोगों से बचाने के लिये कानून नहीं बल्कि वस्त्र पुलिस की ज़रूरत है।

वस्त्र पुलिस ज़िंदाबाद!

साले बलात्कारी धार्मिकता के चोले ओढ़े घटिया लोग। जिनको खुद पर भरोसा नहीं। छी। कैसे बलात्कारी सँस्कृति और धर्म हैं जो खुद पर काबू रखना नहीं सिखाते बल्कि वस्त्रों में छिपा कर बन्द मुट्ठी लाख की बना देते हैं। जबकि वह खाक की है। टेढ़े-मेढ़े शरीरों को कोई शौक से नहीं देखता। ढंकते वही हैं जिनका शरीर बेडौल होता है। अपनी कमी छुपाने का बहाना है कि वे अपना ख्याल नहीं रखते।

हम नँगा देखना चाहते हैं? हाँ जी हम सब नँगे पैदा होते हैं तो क्या हमें कोई नहीं देखना चाहता? आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सूट-बूट में पैदा हो?

नहीं, आप उसे नँगा ही पैदा होता देखना चाहते हो। नवजात शिशु से बलात्कार करने वालों को ऐसा कुछ करना चाहिए कि बच्चे भी कपड़े पहन के पैदा हो। 😬

कपड़े पहन कर क्या दिखाना चाहते हो? कि अगर कानून के मुताबिक न पहनें तो कानून के डर के बिना अपने ही लोग आपके साथ बलात्कार कर देंगे? अगर सिर्फ कपड़ा ही बलात्कार रोकता है तो कानून किस के लिए बनाया है? ख़त्म करो कानून। जब आपकी वस्त्र पुलिस है न! ~ Vn. Shubhanshu SC 2018©

शुक्रवार, जून 01, 2018

कचरा पोस्ट

बुद्धिमान व्यक्ति भीड़ से दूर रहता है। भीड़ स्वतः ही मूर्ख बन जाती है। चाहें उसमें कुछ विद्वान भी हों। जहाँ जनसँख्या कम होती है, वह brain उस जगह या देश को प्रस्थान कर जाता है। जो अभागे नहीं कर पाते, वह अकेले रह कर इस एहसास को पैदा कर लेते हैं।

इन्हीं कारणों से बुद्धिमान व्यक्ति देश से चिपक कर नहीं बैठता। वह अपने जीवन को महत्व देता है और उनको नहीं समझाता जो समझना नहीं चाहते।

यही प्रक्रिया ब्रेन ड्रेन कहलाती है। अर्थात देश से बुद्धिमान व्यक्तियों का पलायन। उस मूर्खतापूर्ण व्यवहार के कारण जो उनके साथ उनके पैतृक देश में रोज होता है।

इस प्रकार देश में केवल खुद को देशभक्त या राष्ट्रवादी कहने वाले मूर्ख लोग बढ़ जाते हैं क्योंकि वे अपने देश से चिपक जाते हैं और विदेशों से नफरत करते हैं।

यह लोग बस हंगामा करने, दंगा करने, देशभक्ति के गीत गाने, सँस्कृति की रक्षा के नाम पर आधुनिक और विद्वान लोगो के साथ हिंसा करने, महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझने और धर्म को राष्ट्र से जोड़ने को ही राष्टवाद कहते हैं।

यह नक्शे पर खिंची लाइन को देश कह कर बाकी दुनिया को नीचा दिखाने, समझने पर ज़ोर देते हैं और उसके लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। इनके लिए धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं और इससे वे अपनी गलतियों को भी सही मान कर हमेशा पिछड़े बने रहते हैं।

मुझे हैरानी है कि RSS के राजनैतिक उपभाग BJP ने कैसे अपनी नीतियों के विरुद्ध जाकर ऑनलाइन सरकार और स्मार्टसिटी जैसी आधुनिक परियोजनाओं को बल दिया। आधारकार्ड, डायरेक्ट खाते में सब्सिडी, 100% FDI, कैशलेस इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, शौचालयों का निर्माण, प्रीपेड बिजली, जनसुनवाई app, आवास योजनाएं, आदि जनउपयोगी कार्य कर दिखाए।

लेकिन यह अच्छे संकेत हैं कि हिंदुत्ववादी rss अब अपने मूल्यों से पीछे हट रही है और यह हमारे लिए अच्छे संकेत हैं।

लेकिन सरकार मूर्खता करना भी नहीं छोड़ रही। पहले विमौद्रीकरण में अव्यवस्था, फिर रोडशो, यज्ञ, व ऐशोआराम, सरकार के प्रचार में जनता का धन बर्बाद करना आदि जन विरोधी गतिविधियों ने आरएसएस और BJP के मध्य एक खाई खोदने का काम शुरू कर दिया है जिसका अब मिलाजुला प्रभाव देखने को मिल रहा है।
धार्मिक जड़ता और आरएसएस के 1925 के बने उद्देश्य आज छछून्दर बन कर bjp रूपी सांप के गले में फँस गए हैं। जिसे वह न तो उगल पा रही है और न ही निगल पा रही है। फिलहाल यह जनता, सब जानती है और यह अपने लिए जो भी चुनती है यह उसकी अपनी इच्छा है जिस पर हम कोई सवाल उठाना उचित नहीं समझते।
कम से कम तब तक जब तक सिविल परीक्षाओं में IAS की तरह देश के नेता नहीं चुने जाते। धन्यवाद! ~ शुभाँशु जी 2018©

बुधवार, मई 30, 2018

Shubhanshu: एक अकेला

मित्र: आप बताइये शुभाँशु जी, आपको ज्यादा पता है।

शुभ: हाँ, मुझे सच में ज्यादा पता है। क्यों न हो? जिस इंसान ने सारी जिंदगी अपनी मदद से अकेले गुजारी हो उसे ज्यादा पता होना ही होता है। मेरे पास कोई नहीं था जिससे मैं कुछ पूछ सकता।

इसलिये जो किया खुद ही किया। खुद ही जाना, खुद ही दुनिया के सभी रंग देखे। हाँ मैं घायल हुआ, बहुत ज्यादा हुआ लेकिन मरहम भी मुझे ही लगाना था और पट्टी भी मुझे ही बांधनी थी।

इसलिये मैं डॉक्टर भी बना, वकील भी, अपनी रक्षा भी खुद करनी थी तो मैं पुलिस भी बना, अपना गुरु भी मैं ही हूँ और अपना शिष्य भी मैं ही हूँ। आज आप मुझसे पूछ सकते हैं लेकिन याद रखिये मुझे किसी ने नहीं बताया था। ~ शुभाँशु जी 2018©

मंगलवार, मई 29, 2018

सुखद और दुःखद पल: Shubhanshu

शुभाँशु जी की ज़िंदगी के भारत में 2 बहुत ही सुखद और दुःखद पल:

1. असली आयशा टाकिया अभिनेत्री से ईमेल पर 2 साल व्यक्तिगत सम्पर्क। 2006-2007 (सुखद)

2. शुभाँशु की मोबाइल wapsite http://tagtag.com/shubhanshu पर आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी आर्टिकल पढ़ कर, असली ओसामा बिन लादेन से 15 अगस्त 2005 को दिल्ली बम धमाकों की और शुभाँशु की हत्या की धमकी मिलना और अमरउजाला अखबार की हेडलाइन बनना। (2005)

चूँकि सूचना दी जाने से पुलिस सक्रिय हो गयी थी तो वह योजना ओसामा ने 3 माह आगे टाल दी। लेकिन 3 माह बाद लापरवाही कर दी गयी। परिणाम स्वरूप 11 बम धमाकों में 3 माह बाद काफी लोग मारे गए। ~ शुभाँशु जी 2018©

मेरी सभी post को पढ़ने का उचित तरीका व नियम।

1. एक ग्लास ठंडा पानी जग के साथ पास में रखें। घबराहट में काम आएगा।
2. घबराहट दूर करने वाली चूसने वाली गोली खरीद लें।
3. गुस्सा, इससे बचने के लिये 10 तक गिनती गिने मुट्ठी बन्द करके। लम्बी सांस लें। फिर छोड़ें।
4. आदत डालने के लिये timeline पर खुद रोज नियम बना कर post चेक करें।
5. अकेले बैठ कर पढ़ें और पढ़ने के तुरन्त बाद किसी के पास न जाएं। हिंसक होने की आशंका रहती है।
6. तबियत ज्यादा खराब हो जाये या पतले दस्त लग जाएं तो कृपया अस्पताल का नम्बर साथ रखें।
7. कोई अच्छा सा टट्टी खोलने वाला लैक्सटिव भी रखें। हर बार दस्त नहीं लगते कई बार टट्टी भी बन्द हो जाती है कई लोगों की।

आशा करता हूँ कि आप यह उपाय अपनाएंगे तो अधिक समय तक टिके रहँगे (धरती पर) अन्यथा ब्लॉक का बटन दबा कर मुक्ति लें। ~ शुभाँशु जी 2018©

Nudism: हमाम में सब नँगे

चलो सभी फालतू कपड़ों को आग लगा दें। खुद को गंदगी समझना बन्द कर दें। जिसे छिपाना पड़े। आप यह पतले, मोटे, गोरे, काले, बड़े, छोटे, स्वर्ण, अछूत का भेद खत्म कर दें।

समानता बिना कपड़े उतारे कभी नहीं मिलने वाली। आप जो भी खरीद लीजिये। दूसरा उस से महंगा खरीद कर चिढायेगा।

इसे खत्म करना होगा। यह बहुत कुछ बदलने वाला है। किसी को पता भी नहीं कि फैशन इंडस्ट्री विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इंडस्ट्री है। क्या यह ज़रूरी थी?

नहीं। हमें बस एक कम्बल, एक चादर की ज़रूरत है, मौसम की मार से बचने के लिए। एक कमर से बंधा बैग या पिट्ठु बैग चाहिए अपना ज़रूरी सामान लेकर चलने के लिये। जो आज भी हम लेकर चलते हैं।

सुरक्षा के लिये विशेष जैकेट प्रयोग करना होगा। प्रदूषण से बचने के लिए मास्क। जब यह आम होने लगेगा। तब इसके लिए सुविधाएं और इसका भी बाजार आ जायेगा। करना क्या है? विश्वास, सुरक्षा, सहयोगी माहौल चाहिए। सुरक्षा के लिये पिस्टल लीजिये। होलेस्टल में डाल कर पहनिए उसे।

अभी यह अपने कमरे में आप शुरू करें। मिल कर बात करते रहें बाकी घर और मित्र सदस्यों से। फिर हिम्मत करके पारिवारिक विश्वास को जांचें। फिर मित्रो (समान लिंग) को शामिल करें। और फिर एक कम्युनिटी बना लीजिये।

समूह में हम ज्यादा हिम्मत महसूस कर सकते हैं। जब हम क्या सही है और विश्वास करना व निभाना सीखते हैं तो यह गैर जरूरी शर्म खत्म हो जाती है।

जब हम समान लिंग के बाथरूम में होते हैं तो कोई शर्म सामने नहीं आती लेकिन विपरीत लिंग पर हमें भरोसा ही नहीं है। यह बनाना होगा। पहले प्रेमी-प्रेमिका (जोड़े) इसे जोड़ेंगे फिर वह सब भी, जो धीरे-धीरे विश्वास करना सीख जाएंगे।

विश्वास, एक ऐसा शब्द जो कपड़ों का मोहताज नहीं रहना चाहिए। हमाम में सब नँगे होते हैं। मालूम है न? ~ Shubhanshu SC 2018©

आओ ईसाई बनें। पाठ एक। 😂😂😂

ईश्वर ने पृथ्वी की रचना ऐसे की। 😂

याद रखें,

1. दिन की गणना सूर्य के उगने और अस्त होने से होती है। (बिंदु 14)

2. सूर्य से ही प्रकाश (उजियाला 😂) होता है। शाम और भोर सूर्य के गति करने से होती हैं। बिना सूर्य के यह दोनो सम्भव नहीं। (बिंदु 14 के नियम देखें)

3. परमेश्वर की आत्मा जल के ऊपर मंडरा रही है। मतलब ईश्वर मर चुके हैं। उनकी आत्मा निकल कर भटक रही थी।😂 (3)

4. उजियाला होने के बाद भी पृथ्वी पर प्रकाश (उजियाला 😂) करने के लिये सूर्य बनाया (16) और फिर से अंधियारे और उजियाले को अलग करने के लिये उनको काम सौंपा। (18)

5. सूर्य और चन्द्र को 4थे दिन बनाया गया। तब तक दिन की गणना अज्ञात (शायद आधुनिक घड़ी 😂) से की गई। 

6. बिंदु 29 और 30 कहते हैं कि माँस खाना मना है। सभी जंतुओं का भोजन वनस्पति है।

7. बिंदु 26 और 28 कहते हैं कि मनुष्य को कुछ जन्तुओ का अधिकार दिया गया। सम्भवतः अधिकार का अर्थ है उनकी रक्षा का अधिकार न कि उनको इस्तेमाल करने का/मारने का। ~ शुभाँशु जी 2018©

पवित्र बाइबिल Hindi Holy Bible 😂

उत्पत्ति - अध्याय 1

अध्याय 1

1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। 

2 और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अन्धियारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था। 

3 तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया। 

4 और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अन्धियारे से अलग किया। 

5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया॥ 

6 फिर परमेश्वर ने कहा, जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए। 

7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया। 

8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया॥ 

9 फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे; और वैसा ही हो गया। 

10 और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा; तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

11 फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से हरी घास, तथा बीज वाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्ही में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया। 

12 तो पृथ्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ जिन में अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक एक की जाति के अनुसार उन्ही में होते हैं उगे; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

13 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया॥ 

14 फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों। 

15 और वे ज्योतियां आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देने वाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया। 

16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया: और तारागण को भी बनाया। 

17 परमेश्वर ने उन को आकाश के अन्तर में इसलिये रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें, 

18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्धियारे से अलग करें: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

19 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया॥ 

20 फिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें। 

21 इसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्टि की: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

22 और परमेश्वर ने यह कहके उनको आशीष दी, कि फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें। 

23 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन हो गया। 

24 फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात घरेलू पशु, और रेंगने वाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया। 

25 सो परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वन पशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगने वाले जन्तुओं को बनाया: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

26 फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगने वाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें। 

27 तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। 

28 और परमेश्वर ने उन को आशीष दी: और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगने वाले सब जन्तुओ पर अधिकार रखो। 

29 फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीज वाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं: 

30 और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगने वाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिये मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं; और वैसा ही हो गया। 

31 तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया॥