Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

सोमवार, जून 04, 2018

अशुभ: प्रेम संघर्ष

बहुत साल पहले एक लड़की को वास्तविक जीवन में दोस्ती के लिए निवेदन किया था।

दरअसल, बहुत अकेला हो गया था मैं। जब भी अपने सहपाठियों के मध्य बैठता था तो क्या सही है और क्या गलत है पर बहस कर बैठता था। जब मैं उनको निरुत्तर कर देता तो वे चिढ़ जाते थे जबकि मुझे लगता था कि दोस्ती मजबूत होगी।

धीरे-धीरे घटिया लोग मुझसे दूर होते गए और अच्छे समझे जाने वाले लल्लू लोग मुझे पसन्द ही नहीं थे। बेवकूफ होना; सीधा होना, अच्छा होना नहीं होता। सीधे दोस्त, हर जगह कायरता की बातें करते, डरते और हारते थे। मैं एक अलग ही प्रजाति था। सीधा तब तक जब तक आप मुझे टेढ़ा होने पर मजबूर न कर दें।

यह प्रजाति कहीं थी ही नहीं। या तो हिंसक लोग थे या फिर एक दम लुल्ल। मैं क्या था कोई कभी समझ नहीं सका। लोग व्हाईट और ब्लैक में अच्छी और बुरी बातों को बांटते रहे और मैंने एक ग्रे शेड चुन लिया। मतलब जब तक गांधीगिरी चलती है चलाओ फिर हिटलर गिरी इस्तेमाल करो।

शक्ल से एक दम लुल्ल लगने वाला मैं अचानक जब अपना रूप बदलता था तो बड़े-बड़े दादाओं के हाथ कांप जाते थे। 2 कदम कब अपने आप वे पीछे चले जाते थे, उनको आज भी नहीं पता चल सका कि यह हुआ कैसे?

आप मुझे, लूट नहीं सकते, आप मुझे ठग नहीं सकते, आप मुझे विश्वास में लेकर धोखा दे सकते हैं लेकिन कीमत चुकाने के लिये तैयार रहना होता है क्योकि मैं किसी को भी उसकी गलती का एहसास दिलाये बगैर नहीं छोड़ता।

फिर क्यों लोग मेरे पास टिकते? मेरा फायदा न उठा सके तो मेरे पास बैठने का क्या फायदा? है न? हम सब दोस्ती अपने स्वार्थ के लिये ही तो कर लेते हैं?

"दोस्त नहीं है यार?" यह वाक्य ज़हर बुझा लगता था मुझे। जब भी कोई आपका लाभ उठाना चाहे और आप उसे मना करो तो यह सुनने को मिलता है। कुछ दिन में मैं इसका भी रहस्य समझ गया। अब जो भी यह शब्द बोले, वह समझिये गया काम से।

दोस्ती निःस्वार्थ होनी चाहिए। दिल से दिल मिलने चाहिए, जेब से हाथ नहीं। इसी आदर्श दोस्ती को ढूंढता रहा मैं।

फिर क्या हुआ? मैं अकेला होता गया। नितांत अकेला। लगा, सारा जीवन ऐसे ही बिताना होगा। पुरुषों के कठोर व्यवहार, उजड्डता और बद्तमीजी भरे व्यवहार ने मेरी नज़र में उनकी क्षवि गिरा दी। 

मेरा ध्यान मीठी आवाज़ और सुंदर चेहरे, कोमल तन, खींचने लगे। प्रेम भरी बातचीत ने लड़कियों के प्रति respect पैदा कर दी। लेकिन पाया कि वे सभी अस्थायी मित्र थीं। किसी के कब्जे में गिरफ्तार। उनके बॉयफ्रेंड थे। पहले लगा कि मेरे जैसे निःस्वार्थ मित्र होंगे लेकिन वे तो possessive हवस के पुजारी ही थे।

कई लड़कों से अनजाने में झगड़ा होते-होते बचा। अब लड़कियों से थोड़ा डर लगने लगा। पता नहीं कब कोई उसका पुराना आशिक, मुझे नया आशिक समझ कर उड़ा डाले?

अबकी बार मैं जब किसी से मिला तो साफ पूछ लिया कि कोई ज़िंदा बॉयफ्रेंड तो नहीं? ज़िंदा इसलिये क्योकि ये लड़के ex-girlfriend को भी किसी लड़के के साथ नहीं देख पाते। उनके लिये वे कार या स्कूटर की वह Stepney बन जाती हैं जो मुश्किल समय मे फिर से इस्तेमाल की जा सकती है।

मैं फिर से अकेला होता गया। जिनका कोई बॉयफ्रेंड नहीं होता दरअसल या तो वे बॉयफ्रेंड के कॉन्सेप्ट से ही नफरत करती निकलतीं या फिर उनको लड़कियों में ही रुचि होती थी।

मैं क्या ढूढ़ रहा था? क्या सामने था? और क्या है यह सब जो हो रहा था? इन्हीं प्रश्नो से जूझता रहता था। जिन लड़कियों से समूह में दोस्ती हुई वे कुछ दिन बाद दोस्त-भाई कहने लगीं मुझे। यह भाई शब्द इसलिये आक्षेपित किया गया था क्योंकि चारों लड़कियों की इस दौरान नए लड़को से दोस्ती हो गई जो उनसे शादी करना चाहते थे और मैं बेचारा प्लेटोनिक love वाला।

भाई का अर्थ था, "शुभ, हम engage हैं। तुम्हारी line closed।"

यही हुआ भी। शादी में दावत के न्योते आये लेकिन शुभ वहाँ कभी नहीं गया। ऐसा साफ लगने लगा था कि विवाह का concept मुझसे मेरे मित्र छीन रहा था। वही मित्र जो कहते थे, बेस्ट फ्रेंड forever! विवाह सबको निगल गया। 

देखिये यह विवाहित लड़कियाँ क्या करती हैं?

1. सिम तोड़ के फेंक दो।

2. ब्लॉक करो सभी खास पुरुष दोस्तों को।

3. Good bye!

बस यही होता आया। मुझे कुछ असुरक्षित सा लगने लगा कि मुझे यहाँ भारत में कोई लड़कीं नहीं मिलने वाली जो दोस्त बन सके हमेशा के लिये। मैने लड़कों से यह बातें कहीं तो वे बोले, "अरे बेवकूफ है साला, आज तक प्रोपोस ही नहीं किया और कह रहा है कि लड़की नहीं पटती। जा किसी को भी जाकर दोस्ती के लिए प्रोपोस कर, मान जाए तो कुछ दिन में I love you बोल दे, फिर मान जाए तो शादी के लिये प्रपोज कर दे। कमरे पे ले जा, सुहागरात मना और फिर शिकार पर निकल जा।"

लेकिन मुझे तो किसी अंजान लड़की को ऐसे धोखा देना बहुत गलत लगा। मुझे न जाने क्यों जैसे कोई ऐसा मेरे साथ करे तब कैसा लगेगा? जैसा महसूस हुआ। बहुत बुरा लगा। सोचा कमरे तक नहीं, शादी तक नहीं, सिर्फ दोस्ती तक ही सही लेकिन क्या अंजान लड़की को दोस्ती के लिये पूछना ठीक रहेगा? क्रमशः

आपबीती: शुभाँशु जी 2018©

Note: समस्त पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। यदि किसी घटना और पात्र से कोई समानता पाई जाए तो यह एक संयोग मात्र होगा। धन्यवाद्।

कोई टिप्पणी नहीं: