जीवन, गुलाबों से भरा बिस्तर नहीं है।
हालांकि यह बात पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि यह क्यों कहा गया मेरे पास इसका भी तर्क है।
यह वाक्य उनसे कहा जाता है, जो समझते हैं कि ज़िन्दगी गुलाबों से भरा हुआ बिस्तर है। वे ऐसा क्यों सोचते हैं? ज़रूर वे भी बिना बुनियाद के ऐसा नहीं सोच रहे।
वास्तव में, यह सच है कि हर किसी को अपने जीवन में गुलाब भरे बिस्तर ज़रूर मिलते हैं लेकिन उनमें आधा बिस्तर कांटों से भी भरा होता है। यही वह बात है जिसे जो जानते हैं, वे इसे सिर्फ एक धोखा मानते हैं जबकि जो इस बिस्तर पर लेट कर नहीं महसूस कर पाये वे उसमें छिपे कांटों को भी गुलाब समझ बैठते हैं।
ज़िन्दगी बहुत चालाक है। वह पहले कांटे डालती है, फिर गुलाब की पंखुड़ियों से उनको छिपा देती है। इससे जीना आसान हो जाता है। हम ऊपर से उसे सुगंधित और मुलायम समझ कर उसे अपना लक्ष्य बना लेते हैं और जीवन जीते जाते हैं।
पर सच तो यह है कि हासिल कुछ भी नहीं होता। जल्दी लेट गए तो काँटें चुभ जायेंगे और देर कर दी तो पंखुड़ियां सूख कर बर्बाद हो जायेंगी। अतः यह एक धोखा ही है। इसीलिये कहा जाता है कि "life is not a bed of roses!"
तब क्या किया जाए? मैंने सारी जिंदगी, इस ज़िन्दगी को समझने में ही लगा दी और कुछ हद तक इसकी पहेली को सुलझा भी लिया। लेकिन वो कहते हैं न, जब किसी का पेट भरता है, तो ज़रूर कोई उस रात भूखा भी सोया होता है।
आज के जीवन में अकेले बच्चों को पालना कोई आसान कार्य नहीं है लेकिन आसान तो अकेले कुआँ खोदना भी नहीं है जब सामने ताज़ा पानी टोटी से निकल रहा हो।
कहने का अर्थ है कि बेकार का काम भले ही मेहनत से किया जाए लेकिन उसकी कोई कीमत नहीं होती। फिर भी हम सब ऐसा करते हैं। बेकार का काम।
हम सब दरअसल एक लालच से प्रलोभित हैं। वही bed of roses वाला। हर कोई पढ़ाई, विवाह, बच्चे यह सोच कर करता है क्योंकि उसे लगता है कि भविष्य में वह सुख से रहेगा।
लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। फिर वह कौन से लोग हैं जो सबको उकसाते हैं? Bed of roses के सपने दिखाते हैं? कैसे दावा करते हैं कि उन्होंने bed of roses का सुख भोगा है?
मैंने पड़ताल की। बड़ी बातें सामने आईं। पहली तो यह कि 96% लोग झूठ बोल रहे थे। दूसरी यह कि 4% लोग सच में bed of roses पर लेटे थे। इतनी बड़ी बात को इन्होंने आग की तरह 96% लोगों के बीच फैला रखा था। जब 1 इंसान यह सुख भोग सकता है तो मैं भी भोग सकता हूँ, ऐसा सोच कर लोग जीता-जागता गवाह बन कर पेश आते रहे।
कमाल तो यह था कि सभी दुखी थे लेकिन उनका कोई दोस्त बहुत सुखी था। जब हम उस दोस्त से मिले तो उसने भी यही कहानी सुना दी। असली सुखी दोस्त तो जैसे एक अफवाह था। सभी उसकी सच्चाई को खुद पर रख कर मजबूती दे रहे थे; उस अफवाह को।
लेकिन अफवाह उड़ी कैसे? यह भी सोचने वाली बात थी। हमने बहुत मेहनत की। सालों लगे रहे खोजने में कि कौन है वह सबसे सुखी इंसान?
आखिरकार हमने उसे ढूंढ ही लिया।
उसका राज़ पता किया और हैरान रह गए कि उसने अपने जीवन में कुछ खास नहीं किया था। उसे वह खुशी विरासत में मिली थी। लेकिन उसको वह विरासत देने वाले ने कोई अच्छी ज़िन्दगी नहीं जी थी। वह कष्टों में जिया और किस्तों (installments) में मरा।
हम मोटे तौर पर धीरू भाई अम्बानी और उनके दो बेटों को इस कहानी में fit कर सकते हैं।
तो क्या सीख मिली?
हमने सीखा कि ज़िन्दगी को bed of roses बनाया जा सकता है लेकिन दूसरे के लिये। खुद के लिये नहीं। खुद की तो बची हुई पंखुड़ियों को भी दूसरे के बिस्तर के कांटों के बदले रखना है। खुद के लिये पूरे कांटों की सेज सजानी है। तभी दूसरे के हिस्से में केवल गुलाब आ सकेंगे।
तो अब हम क्या करें? दूसरों को फूल दे दें और खुद के लिये कांटे रख लें? दूसरों को अपने हिस्से का सुख भी बाँट दें ताकि कम से कम वे तो चैन से जी सकें। जो सुख हमने हासिल करने की चाभियाँ खोजी हैं वे दूसरों में बांट जायें?
हाँ यही बेहतर है। मेरे कोई बच्चे नहीं हैं। अपने बच्चे बिगड़ जाते हैं क्योकि हम उनको सही सज़ा नहीं दे पाते और न ही सही परवरिश।
इसलिये सोशल मीडिया पर मौजूद बहुत से बच्चों को अपना समझ कर उनको अपने ज्ञान और अनुभव के मोती बाँट रहा हूँ। वैसे भी मेरा बिस्तर लेटने लायक कहाँ था। Oops!
कभी असमय जागते देखना तो समझ लेना कि कांटों पर लेटा हूँ। नींद कैसे आएगी? अब बस जब सोऊंगा, तब दोबारा न उठने के लिए। ~ शुभाँशु जी 2018©
नोट: सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। कोई भी समानता सिर्फ संयोग मात्र होगी।
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