Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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गुरुवार, अगस्त 16, 2018

अच्छा इंसान

कुछ नास्तिक अच्छे नहीं होते। वही हमारी छवि धूमिल कर रहे हैं। उनको सिर्फ इतना पता है कि रचनाकार में विश्वास न करो लेकिन बाकी सब करते रहो जो गलत है लेकिन अच्छा लगता हो।

जैसे भ्र्ष्टाचार करना, धोखा देना, चोरी, दूसरों को तुच्छ समझना, गाली देना, लड़कियों को खिलौना समझना आदि।

आस्तिकों और विपरीत सोच के लोगों से नफरत करना और उनको व्यक्तिगत रूप से अपमानित करना भी।

जबकि अच्छा इंसान होना सबसे बड़ा और बेहतर है। मैं ऐसा ही हूँ या बनना चाहता हूँ। आओ देश जोड़ें। तोड़ने के लिये तो दुनिया खड़ी है! 💐 ~ शुभाँशु सिंह चौहान धर्ममुक्त वीगन 2018©

एक मूर्ख की पोस्ट

बुद्धिमान व्यक्ति भीड़ से दूर रहता है। भीड़ स्वतः ही मूर्ख बन जाती है। चाहें उसमें कुछ विद्वान भी हों। जहाँ जनसँख्या कम होती है, वह brain उस जगह या देश को प्रस्थान कर जाता है। जो अभागे नहीं कर पाते, वह अकेले रह कर इस एहसास को पैदा कर लेते हैं।

इन्हीं कारणों से बुद्धिमान व्यक्ति देश से चिपक कर नहीं बैठता। वह अपने जीवन को महत्व देता है और उनको नहीं समझाता जो समझना नहीं चाहते।

यही प्रक्रिया ब्रेन ड्रेन कहलाती है। अर्थात देश से बुद्धिमान व्यक्तियों का पलायन। उस मूर्खतापूर्ण व्यवहार के कारण जो उनके साथ उनके पैतृक देश में रोज होता है।

इस प्रकार देश में केवल खुद को देशभक्त या राष्ट्रवादी कहने वाले मूर्ख लोग बढ़ जाते हैं क्योंकि वे अपने देश से चिपक जाते हैं और विदेशों से नफरत करते हैं।

यह लोग बस हंगामा करने, दंगा करने, देशभक्ति के गीत गाने, सँस्कृति की रक्षा के नाम पर आधुनिक और विद्वान लोगो के साथ हिंसा करने, महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझने और धर्म को राष्ट्र से जोड़ने को ही राष्टवाद कहते हैं।

यह नक्शे पर खिंची लाइन को देश कह कर बाकी दुनिया को नीचा दिखाने, समझने पर ज़ोर देते हैं और उसके लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। इनके लिए धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं और इससे वे अपनी गलतियों को भी सही मान कर हमेशा पिछड़े बने रहते हैं।

मुझे हैरानी है कि RSS के राजनैतिक उपभाग BJP ने कैसे अपनी नीतियों के विरुद्ध जाकर ऑनलाइन सरकार और स्मार्टसिटी जैसी आधुनिक परियोजनाओं को बल दिया। आधारकार्ड, डायरेक्ट खाते में सब्सिडी, 100% FDI, कैशलेस इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, शौचालयों का निर्माण, प्रीपेड बिजली, जनसुनवाई app, आवास योजनाएं, आदि जनउपयोगी कार्य कर दिखाए।

लेकिन यह अच्छे संकेत हैं कि हिंदुत्ववादी rss अब अपने मूल्यों से पीछे हट रही है और यह हमारे लिए अच्छे संकेत हैं।

लेकिन सरकार मूर्खता करना भी नहीं छोड़ रही। पहले विमौद्रीकरण में अव्यवस्था, फिर रोडशो, यज्ञ, व ऐशोआराम, सरकार के प्रचार में जनता का धन बर्बाद करना आदि जन विरोधी गतिविधियों ने आरएसएस और BJP के मध्य एक खाई खोदने का काम शुरू कर दिया है जिसका अब मिलाजुला प्रभाव देखने को मिल रहा है।

धार्मिक जड़ता और आरएसएस के 1925 के बने उद्देश्य आज छछून्दर बन कर bjp रूपी सांप के गले में फँस गए हैं। जिसे वह न तो उगल पा रही है और न ही निगल पा रही है। फिलहाल यह जनता, सब जानती है और यह अपने लिए जो भी चुनती है यह उसकी अपनी इच्छा है जिस पर हम कोई सवाल उठाना उचित नहीं समझते।

कम से कम तब तक जब तक सिविल परीक्षाओं में IAS की तरह देश के नेता नहीं चुने जाते। धन्यवाद! ~ शुभाँशु SC धर्ममुक्त Vegan 2018©

बुधवार, अगस्त 15, 2018

डर और ईश्वर

बहुत समय पहले जब इंसान इकट्ठा होकर रहना सीख रहा था तब बहुत सी समस्याएं आने लगीं। इंसान सामाजिक नहीं था लेकिन जंगली जानवरों के डर ने उन्हें सामाजिक बना दिया।

एक दूसरे के दुश्मन भी डर के मारे साथ रहने लगे। कुछ बूढ़े लोगों ने देखा कि डर बड़े काम की चीज है।

लेकिन बूढ़े और कमजोर लोगों की जवान लोग अकेले में बेइज़्ज़ती करने लगे लेकिन सबके सामने सम्मान करते थे।

उन्होंने कबीले के कई नियम बनाए और देखा कि लोग तभी उनको मानते थे जब वे देखे जा रहे होते थे। अकेले में सब नियम तोड़ रहे थे। शिक्षा उस समय थी नहीं। क्या करते?

उन्होंने माना कि अगर कोई उन पर नज़र रखता है तो लोग गलत काम नहीं करते। इसलिये उन्होंने सबसे कहा कि तुमको कोई देख रहा है।

अब इस बात को लागू करने के लिए तरह तरह के उपाय किये गए। उन्ही उपायों को आज धर्म/सम्प्रदाय कहा जाता है जो लगभग 4200 हैं।

आज भी cctv कैमरा वही काम कर रहा है जो बुजुर्गों ने पहलेे ईश्वर नाम का cctv लगवाया था।

10/6/16 09:27 PM

स्वतंत्रता दिवस पर आपके लिये तोहफा

एक सवाल जिसका आप सभी तर्कपूर्ण दें जवाब।

😎कागज का आविष्कार किसने किया?.. इंसान ने।

😎आग का आविष्कार किसने किया?..इंसान ने।

😎चक्के का आविष्कार किसने किया?..इंसान ने।

😎खेती का आविष्कार किसने किया?...इंसान ने।

😎बड़े बड़े घर, बंगले किसने बनाये?...इंसान ने।

😎जहाज का आविष्कार किसने किया?...इंसान ने।

😎हवाई जहाज का आविष्कार किया?...इंसान ने।

😎कंप्यूटर का आविष्कार किसने किया?...इंसान ने।

😎मोबाइल्स फोन का आविष्कार किया?...इंसान ने।

😎गाड़ियाँ किसने बनायीं?...इंसान ने।

😎घर में आराम, सुख चैन के लिए जो चीजे इस्तेमाल करते हो वो किसने बनायीं? वो भी इंसान ने।

😎जिस FB, Whats app पे ये पोस्ट पढ़ रहे हो उसे किसने बनाया?...इंसान ने।

😎समाज किसने निर्माण किया?...इंसान ने।

😎धर्म का निर्माण किसने किया?...इंसान ने।

😎मंदिर मस्जिद किसने बनाये?...इंसान ने।

😎मंदिरों, मस्जिदों में भगवान, अल्लाह, GOD किसने बिठाये?...इंसान ने।

🌟कमाल की बात है कि एक भी काम भगवान ने नहीं किया है🌟 

👉जो कुछ भी किया इंसान ने ही किया है।

👉फिर भी लोग इंसान से ज्यादा भगवान के चमत्कार को मानते हैं।

👉हम इन्सानों ने ही अपने स्वार्थ के लिए भगवान का निर्माण किया है।

🌟कमाल की बात है एक भी काम भगवान ने नहीं किया है।🌟

👉🏾क्योंकि :-

1) मनुष्य के अलावा दुनिया का एक भी प्राणी भगवान को नही मानता।

2) जहाँ इन्सान नही पहुँचा वहाँ एक भी मंदिर - मस्जिद या चर्च नही मिला।

3) अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग देवता है। इसका मतलब इन्सान को जैसी कल्पना सूझी वैसा भगवान बनाया गया।

4) दुनिया मे अनेक धर्म पंथ और उनके अपने-अपने देवता है। इसका अर्थ भगवान भी एक नही।

5) दिन प्रतिदिन नये नये भगवान तैयार हो रहे है।

6) अलग-अलग प्रार्थनायें है।

7) माना तो भगवान - नही तो पत्थर ' यह कहावत ऐसे ही नही बनी।

दुनिया मे देवताओं के अलग-अलग आकार और उनको प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग पुजा विधान।

9) अभी तक किसी इन्सान को भगवान मिलने के कोई प्रमाण नही है।

10) भगवान को मानने वाला और नही मानने वाला भी समान जिंदगी जीता है।

11) भगवान किसी का भी भला या बुरा नही कर सकता।

12) भगवान भ्रष्टाचार, अन्याय, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद, हिंसक अराजकता रोक नही सकता।

13) छोटे मासुम बच्चों पर बंदुक से गोलियाॅ दागने वालों के हाथ भगवान नही पकड़ सकता।

14) मंदिर, मठ, आश्रम, प्रार्थना- स्थल जहाॅ माना जाता है कि भगवान का वास होता है वहाँ भी बच्चे महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं।

15) मंदिर, मस्जिद, चर्च को गिराते समय एक भी भगवान ने सामने आकर विरोध नही किया।

16) बिना अभ्यास किये एक भी छात्र को परीक्षा में भगवान ने पास किया हो ऐसा एक भी उदाहरण आज तक सुनने को नही मिला।

17) बहोत सारे भगवान ऐसे है जिनको 25 साल पहिले कोई नही जानता था।और अब वह प्रख्यात भगवान हो गये हैं।

18) खुद को भगवान समझने वाले अब जेल कि हवा खा रहे है।

19) दुनिया मे करोडों लोग भगवान को नही मानते। फिर भी वह सुख चैन से रह रहे है।

20)हिन्दु अल्लाह को नही मानते। मुस्लिम भगवान को नही मानते। इसाई भगवान और अल्लाह को नही मानते। हिन्दु मुस्लिम गाॅड को नही मानते। फिर भी भगवानों ने एक दूसरे को नही पूछा कि ऐसा क्यो?

😍 ज्ञान का दीप जलाओ 😍

भगवान् नाम की पैदाइश शैतान दिमाग की उपज है। जिस दिन मंदिरों,मसजिदों,गिरजाघरों में और इन मानव निर्मित तथाकथित भगवानों के आगे चढ़ावा चढ़ना बंद हो जाएगा, उसी दिन ये पुजारी इन मंदिरों से इन मूर्तियों को निकाल कर अपना दूसरा काम-धंधा शुरू कर देंगे।

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अगर अब भी समझ नहीं आया तो ज़हर खा कर मुक्ति लीजिये क्योंकि वैसे भी अपना जीवन ज़हर भरा बना दिया है आपकी धर्म और राजनीति की दुनिया ने। ~ Shubhanshu 2018©

http://zaharbujhasatya.dharmamukt.in/2018/08/blog-post_77.html

ज़िद है मेरी

दोस्तों, मैंने अपना पूरा जीवन विश्व सुधार को समर्पित किया है। जितना समय मैं आपको देता हूँ, जितना मैं लिखता हूँ, जितना प्रेम से बात करता हूँ यह सब करना आसान कार्य नहीं है मेरे लिए। सब कुछ छोड़ कर आपके लिये आया हूँ।

मेरी अपनी पारिवारिक ज़िन्दगी भी उजड़ गई इस नशे में जो मुझे न जाने कब से चढ़ा है। सभी जानने वाले लोग छोड़ गए। दोस्त नहीं रहे। नौकरी नहीं रही। घर बार न रहा। सब चला गया। रह गया तो सिर्फ मेरा सपना। जिसे कोई पूरा नहीं होने देना चाहता और हम हैं कि ज़िद पर अड़े हैं।

"जो हो नहीं सकता, वही तो करना है।
ऐसी ज़िन्दगी, जिसमें ज़िन्दगी न हो, तो...
मुझे मरना है।" ~ Shubhanshu 2018©

रविवार, अगस्त 12, 2018

सेक्स प्रकृति है

प्रकृति को रोक नहीं सकते आप। सेक्स पर नियम बनाने से सेक्स की कुंठा में आज  बच्चियां/बकरियां शहीद हो रही हैं। उधर लडकिया क्या कर रही हैं? लेस्बियन बन रही हैं। इस संस्कृति का ढोंग आपको कामसूत्र की किताब, मंदिरों की कामुक मूर्तियों में नहीं दिखता? बर्बाद कर दिया मेरा देश तुम्हारी दोहरी संस्कृति ने। वह संस्कृति जो लिंग-योनी पूजती है। उसे पवित्र मानती है और तुम उसे घिनौना बोल कर कमरे ढूंढते हो किसी के साथ घिनौना बनने के लिए?

कितना दोहरा है समाज। सदियों पहले से सेक्स को आज़ाद रखा गया। सेक्स की आज़ादी ने बलात्कार को शून्य बनाये रखा। देश में मुगल आक्रमण से पहले महिलाओं के शरीर इतने नहीं ढंके जाते थे जितना उनके आने के बाद ढंके जाने लगे। जब हिन्दू-मुस्लिम साथ रहने लगे तो उनमें रोमांस होने लगा। प्यार ने अपनी कलियाँ खोलीं। प्यार जातपात और धर्म से ऊपर उठने लगा। तभी धर्म के ठेकेदारों को अपना धंधा खतरे में जाता लगा।

राजनेताओं को अपना वोट बंटता लगा। धर्म और जाति के नाम पर जो वोट बैंक थे सबको दो धर्मों के प्रेम ने खतरे में डाल दिया। परिणाम क्या होना था? मार दिया गया उन मासूमों को काट कर, जला कर जिन्होंने अपनी प्रकृति से विद्रोह नहीं किया। ऑनर किलिंग मतलब अपने ही बच्चों की अपने काल्पनिक सम्मान की खातिर हत्या। सिर्फ सेक्स जैसे साधारण सी, आधारभूत ज़रूरत के खिलाफ? शर्म उस समय नहीं आई तो आज क्या आएगी।

जिनको शर्मनाक कार्य करने में गर्व होता है, जिनको गांधी जैसे दुर्बल, इंदिरा, राजीव जैसे निहत्थों को मारने में, खालिस्तान, पाकिस्तान, तेलंगाना, हरिजनिस्तान, कश्मीर बनाने में गर्व होता है, देश के टुकड़े करने में, हर महिला को सेक्स की विषयवस्तु समझने में, तिजोरी/रत्न जैसा वस्तु से तुलना करने में, अपने उपनाम, जाति, स्टेटस पर गर्व का गरबा करने से फुर्सत नहीं ऐसे लोगों को सत्य बताना भी सत्य का अपमान सा लगता है।

लिखना मुश्किल हो रहा है, दिख नहीं रहा, आँखों में पानी भर आया है, रुक ही नहीं रहा। आंसू पोछ कर एक-एक शब्द लिख रहा हूँ। शायद अब इस देश से इंसान मिट चुके हैं। शायद इस देश में अब देश नहीं रहा। अगर अब भी कोई फर्क नहीं आया तो आ भी नहीं सकेगा। भारत को विश्व गुरु बनाने की बातें करने वालों ने ही मेरा देश खा लिया। :-( ~ ज़हरबुझा सत्य via Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 6:18am 2018©

ज़िन्दगी और सत्य ही हैं गुरु

ज़िन्दगी और सत्य से बड़ा कोई गुरु नहीं और यह सबके साथ रहते हैं। किसी व्यक्ति को गुरु बना कर उनकी पूजा करने वाले, उनकी कमी बताने वाले से नफरत करने लगते हैं। व्यक्तिगत हमले करते हैं, पुरानी दोस्ती और एक् दूसरे की प्रतिभा को मानसम्मान देना भूल जाते हैं और हकीकत को स्वीकार करने की क्षमता खो देते हैं।

ऐसे लोग देश, दुनिया के लिये खतरा हैं जो किसी को परफेक्ट मान लेते हैं। ओशो, मार्क्स, अम्बेडकर, गाँधी, अन्ना, एडिसन, आइंस्टाइन, टेस्ला, बुद्ध, नानक, महावीर आदि बहुतों को भगवान् बनाया जा चुका है जबकि सबका काला पहलू अवश्य है। इसलिये इनको साधारण इंसान जैसा मान कर उनके कर्मों को याद रखना चाहिए न कि उनसे भावनात्मक लगाव रखना चाहिए।

भावनाओं में बहकर ही दंगे, अपराध और ज़ुल्म होते हैं। इस दुनिया में सिर्फ विचारों का सम्मान होना चाहिए। व्यक्ति का साधारण सम्मान होना चाहिए। जो लोग इस बात को नहीं समझते, वही भविष्य के अपराधी हैं।

धार्मिक लोग किसी महापुरुष के नाम पर ही कत्लेआम करते हैं। जो धार्मिक नहीं वह किसी महापुरुष को ढाल बना कर उनके कंधे पर बन्दूक रख कर चलाता है। यह भी उनसे कम नहीं हैं।

ऐसे लोगों से सावधान रहें जो अपने निजी क्षणिक स्वार्थ के लिये किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की तस्वीर, नाम आदि को अपनी ढाल बना कर बात करते हैं और उनको सबसे बेहतर बताते हैं। यह स्थिति ईश्वरीकरण कहलाती है। वही बात जिससे हम सभी बचना चाहते हैं।

मेरी उपरोक्त बात बहुतों को कड़वी लगेगी। मैं कड़वा ही बोलता हूँ। छुपाया गया सत्य कड़वा होता है, ज़हरबुझा होता है और हमने ज़हरबुझे सत्य को सामने लाने का बीड़ा उठाया है। आपको अच्छा लगे या बुरा। सत्य आपके सामने घुटने नहीं टेकेगा।

जबकि सत्य के आगे बाकी सबको झुकना चाहिए। यही सार्थक है। यही ज़रूरत है। यह कार्य जो कर ले समझिये उसका जीवन सफल! मैं सत्य के आगे झुकता हूँ और किसी के आगे नहीं। आप से भी यही उम्मीद है। आपकी भलाई इसी में है। सबकी भलाई इसी में है कि सत्य को स्वीकार लो। सत्यमेव जयते! ~ ज़हरबुझा सत्य via vegan Shubhanshu SC 2018©

शनिवार, अगस्त 11, 2018

आर्थिक आरक्षण?

आर्थिक आरक्षण की मांग करने वाले दोस्तों के लिये मेरा उत्तर:

आर्थिक मदद समाजकल्याण विभाग देता है न। सम्विधान में लिखा है कि जब तक सम्बंधित आयोग यह साबित नहीं करेगा कि आरक्षित वर्गों को समान अवसर मिलने चालू हो गए है आरक्षण प्रति 10 वर्ष आगे बढ़ता जाएगा।

इसका निर्धारण सम्बंधित आयोग आरक्षित वर्ग के प्रति होने वाले अपराध, शोषण आदि के मामलों को गिन कर करता है। जिनमें sc/st एक्ट भी शामिल है। आरक्षण बनाये रखने के लिये एक मात्र शर्त है कि आरक्षित वर्ग के प्रति कोई अपराधी न पकड़ा जाए। इसके लिए दलित नेता सवर्णो को गाली-गलौच करके उकसाते हैं ताकि यह सब चलता ही रहे। नहीं तो आरक्षण खत्म हो जाएगा।

उदाहरण के लिये आप आरक्षित वर्ग के नेताओं के पिछलग्गुओं की बोली देखिये। नफरत और अपमान से भरा व्यवहार देखिये। यह सब जान बूझ कर झगड़ा करवाने का प्लान है ताकि वे अपने आरक्षण को बचाये रख सकें।

अफसोस है कि सवर्ण लोग इतने मूर्ख हैं कि वे इनके जाल में फंस कर गलत बन जाते हैं और अपरोक्ष रूप से जातिगत आरक्षण को ही सुरक्षा देते हैं।

यही बस एक राजनैतिक खराब पहलू है जो सही नहीं है। बाकी आरक्षण अपनी जगह ठीक है वह दबाव बनाता है ताकि समानता का अधिकार अपना मतलब न खोए। ~ Shubhanshu SC 2018©

आईना

मैं अपनी गलतियों से सीखा हूँ इसलिये कोई पथ प्रदर्शक नहीं मिला मुझे। जो भी सीखा है वह बहुत कड़वा है। लेकिन पचने में आसान। दवाई जैसा। नीम पर करेला चढ़ा जैसी कड़वी दवाई।

इसीलिये आत्मविश्वास से भरा हुआ हूँ। जो आपको कभी ego तो कभी घमण्ड लग सकता है।

कोई मुझे आत्ममुग्ध कह कर अपमानित करता है तो कोई आत्म मंथन करने वाला ज्ञानी कह कर सम्मानित भी करता है।

किसी को मेरा समर्पण धमकी लगता है तो किसी को वह मेरा बड़प्पन लगता है।

ये लोग ही हैं जो मुझे कभी काला और कभी सफेद बताते हैं, लेकिन मैंने जब भी खुद को देखा, तो खुद में बस एक चमकदार आईना ही नज़र आया। जिसमें जिसने झांका, उसने खुद को ही पाया। ~ Shubhanshu

प्रगति और स्वार्थ

अभी की सभी प्रगति लोगों की व्यक्तिगत प्रगति का ही नतीजा है। न अम्बानी को ऊपर उठने की महत्वाकांक्षा जागती, न आज देश में इंटरनेट क्रांति आती।

जाने अनजाने स्वार्थी इंसान लोगों का भला करता है। रतन टाटा ने अपने लिये सबकुछ किया लेकिन दरअसल वह हमारे लिये ही कर रहा था। उसने लोगों को मोटरसाइकिल के दाम मे कार दे दी। जबकि और कम्पनियाँ मारुति 800 से ज्यादा कुछ नहीं दे सकी जिसको अफोर्ड करना भी आम आदमी के लिये मुश्किल था।

थॉमस एडिसन भी महत्वाकांक्षी था। गरीबी से तंग आकर उसने मेहनत की, दिमाग लगाया और अकेले ही अपने स्वार्थ की पूर्ति करते करते हर पृथ्वीवासी को अपने एहसान तले दबा दिया।

मैंने भी अपनी खुशी के लिये लिखना शुरू किया लेकिन दुनिया की खुशियां उसमें भर डालीं। कोई भी स्वार्थी हो ही नहीं सकता क्योकि अकेले यह शब्द एक भृम है।

धार्मिक लोग भी तुलसी का उदाहरण देते हैं कि उसने अपने स्वार्थ 'स्वान्तः सुखाय' के लिये रामचरित मानस नाम का अनुवाद किया लेकिन उसे इस्तेमाल घर घर ने किया। भले ही वह कल्पना हो लेकिन क्या हम कल्पना नहीं करते? वह भी लेखक था। स्वार्थ से ही सफल हो गया।

स्वार्थ के बिना कोई जीवित रह ही नहीं सकता। आप भोजन करते हो खुद के लिये, पानी पीते हो खुद के लिए, सांस लेते हो खुद के लिए, सोते हो खुद के लिए फिर कैसे इनको कोई छोड़ सकता है? स्वार्थी लोग ही दुनिया बदलते हैं। निस्वार्थ कोई होता ही नहीं।

स्वार्थ सिर्फ क्षणिक हो तो ही स्वार्थ लगता है। स्वार्थ के साथ जब तक क्षणिक नहीं लगता वह अपना बुरा मतलब नहीं दिखा सकता। इसलिये क्षणिक स्वार्थ से बचिए। दीर्घकालिक स्वार्थ में डूब जाइये। यही समाज सेवा है। यही सामाजिक प्रगतिशीलता की चाभी है। ~ Vegan Shubhanshu SC 2018©