मैं अपनी गलतियों से सीखा हूँ इसलिये कोई पथ प्रदर्शक नहीं मिला मुझे। जो भी सीखा है वह बहुत कड़वा है। लेकिन पचने में आसान। दवाई जैसा। नीम पर करेला चढ़ा जैसी कड़वी दवाई।
इसीलिये आत्मविश्वास से भरा हुआ हूँ। जो आपको कभी ego तो कभी घमण्ड लग सकता है।
कोई मुझे आत्ममुग्ध कह कर अपमानित करता है तो कोई आत्म मंथन करने वाला ज्ञानी कह कर सम्मानित भी करता है।
किसी को मेरा समर्पण धमकी लगता है तो किसी को वह मेरा बड़प्पन लगता है।
ये लोग ही हैं जो मुझे कभी काला और कभी सफेद बताते हैं, लेकिन मैंने जब भी खुद को देखा, तो खुद में बस एक चमकदार आईना ही नज़र आया। जिसमें जिसने झांका, उसने खुद को ही पाया। ~ Shubhanshu
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें