Zahar Bujha Satya

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शनिवार, अगस्त 11, 2018

प्रगति और स्वार्थ

अभी की सभी प्रगति लोगों की व्यक्तिगत प्रगति का ही नतीजा है। न अम्बानी को ऊपर उठने की महत्वाकांक्षा जागती, न आज देश में इंटरनेट क्रांति आती।

जाने अनजाने स्वार्थी इंसान लोगों का भला करता है। रतन टाटा ने अपने लिये सबकुछ किया लेकिन दरअसल वह हमारे लिये ही कर रहा था। उसने लोगों को मोटरसाइकिल के दाम मे कार दे दी। जबकि और कम्पनियाँ मारुति 800 से ज्यादा कुछ नहीं दे सकी जिसको अफोर्ड करना भी आम आदमी के लिये मुश्किल था।

थॉमस एडिसन भी महत्वाकांक्षी था। गरीबी से तंग आकर उसने मेहनत की, दिमाग लगाया और अकेले ही अपने स्वार्थ की पूर्ति करते करते हर पृथ्वीवासी को अपने एहसान तले दबा दिया।

मैंने भी अपनी खुशी के लिये लिखना शुरू किया लेकिन दुनिया की खुशियां उसमें भर डालीं। कोई भी स्वार्थी हो ही नहीं सकता क्योकि अकेले यह शब्द एक भृम है।

धार्मिक लोग भी तुलसी का उदाहरण देते हैं कि उसने अपने स्वार्थ 'स्वान्तः सुखाय' के लिये रामचरित मानस नाम का अनुवाद किया लेकिन उसे इस्तेमाल घर घर ने किया। भले ही वह कल्पना हो लेकिन क्या हम कल्पना नहीं करते? वह भी लेखक था। स्वार्थ से ही सफल हो गया।

स्वार्थ के बिना कोई जीवित रह ही नहीं सकता। आप भोजन करते हो खुद के लिये, पानी पीते हो खुद के लिए, सांस लेते हो खुद के लिए, सोते हो खुद के लिए फिर कैसे इनको कोई छोड़ सकता है? स्वार्थी लोग ही दुनिया बदलते हैं। निस्वार्थ कोई होता ही नहीं।

स्वार्थ सिर्फ क्षणिक हो तो ही स्वार्थ लगता है। स्वार्थ के साथ जब तक क्षणिक नहीं लगता वह अपना बुरा मतलब नहीं दिखा सकता। इसलिये क्षणिक स्वार्थ से बचिए। दीर्घकालिक स्वार्थ में डूब जाइये। यही समाज सेवा है। यही सामाजिक प्रगतिशीलता की चाभी है। ~ Vegan Shubhanshu SC 2018©

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