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बुधवार, सितंबर 11, 2019
पृथ्वी गोल है या गुम्बदाकार? ~ Shubhanshu
सरफेस टेंशन के कारण हर पिंड गोल हो जाएगा अगर कोई और गुरुत्वाकर्षण उसे अपनी ओर न खींचे। उदाहरण, सभी तारे और ग्रह। अब पृथ्वी भी भीतर से लावा भरी है तो ये कुछ अलग तो है नहीं। इसलिये पृथ्वी भी spherical ही हुई। अब कोई सवाल ही नहीं उठता। जो अन्य बातें समझ न आ रही हों तो स्पेस science की पढ़ाई करें। हर देश की अंतरिक्ष संस्था ने नासा के दिये सुबूतों को खुद अपने यान भेज कर जांचा है। अतः फ्लैट अर्थ सोसाइटी के संस्थापक ने भी अपने चपटी धरती वाले दस्तावेज जला कर आत्महत्या कर ली थी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
मंगलवार, सितंबर 10, 2019
क्या रक्तदान करना Vegan है? ~ Shubhanshu
शुभ: रक्तदान चूंकि स्वयं किसी को दिया जा रहा है तो यह क्रूर नहीं है। vegan का मतलब है पशुक्रूरता मुक्त जीवन। दूध जानवर का है। उससे बिना अनुमति के लेना, उसका अपमान, अपराध और उसके बच्चे के साथ क्रूरता है। किसी के भी जीवन में दखल देना, बांधना, कैद करना, उससे कुछ लेना, काम लेना आदि सबकुछ क्रूरता है। जानवर की जगह इंसान रख कर देखिये समझना आसान होगा।
सोम्यध्रुव प्रेम: मुझे तो लगा कि शाकाहारी होना vegan होता है।
शुभ: न न 2 हिस्से हैं इसके। एक है भोजन और दूसरा है जीवनशैली। भोजन के रूप में पशुओं से बिना लिखित अनुमति के कुछ लेकर हम पशुक्रूरता करते ही हैं तो वो भी nonvegan फ़ूड कहलाता है। दरअसल vegan भोजन को प्लांट based डाइट कहा जाता है। केवल भोजन से vegan बने लोगों को Dietary Vegan कहा जाता है जो कि चमड़े, रेशम, लाख आदि अखाद्य पशुउत्पाद का प्रयोग करके भी vegan कहे जाते हैं लेकिन पथ्य vegan केवल।
इसी सिद्धान्त पर किसी का वीर्य उसकी अनुमति से निगलना, किसी लड़की का दूध उसकी अनुमति से पीना vegan है। इसे एथिकल vegan होना कहते हैं। यही अगर पशु का है तो vegan नहीं है। क्योंकि वह आपकी भाषा में कभी भी अपनी सहमति नहीं दे सकता। अतः ये सब पशुक्रूरता से ही जुड़ा है।
अगर ऐसा न हो तो हम अपनी लार भी न निगल पाते और न ही अपनी माँ का दूध ही पी पाते। अपना खून, दूध और आंसू, वीर्य, नाक आदि का सेवन vegan है और किसी दूसरे मानव का भी अगर वह आपको खुशी से दे।
जब हम एथिकल Vegan होकर मानव के बॉडी fluid निगलते हैं तो वह प्लांट बेस्ड डाइट में नहीं आता लेकिन नैतिक (एथिकल) रूप से vegan ही रहता है। चूंकि रक्त, मानव दूध, वीर्य, आँसू, पसीना आदि एक व्यस्क व्यक्ति के लिये कोई भोजन का रूप नहीं हैं, इसलिये इनको भोजन नहीं माना जा सकता। लेकिन चूंकि आनन्द के लिये या अनजाने में इनका सेवन हो जाता है तो आप इथिकल vegan रहेंगे ही।
इसी कड़ी में मच्छर, मक्खी, कीड़े जो आपको काटते हैं, जानवर जो आपको नुकसान पहुँचा रहा है को मारना आत्मरक्षा में आएगा और नैतिक रूप से वह जंतु अपनी मौत व पीड़ा का स्वयं जिम्मेदार होगा और आप vegan ही बने रहेंगे।
यदि इसके एक्सट्रीम स्तर पर जाएं तो अगर कोई मानव अपना मांस आपको लिखित रूप में आफर करे तो वह भी एथिकली vegan ही होगा लेकिन मांस के अपने स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव हैं अतः हम इस स्तर पर कोई भी हरकत का समर्थन नहीं करते। साथ ही यह अपराध भी हो सकता है कुछ देशों में जहां इसे cannibalism (आदमखोरी) के तहत अपराध माना जा सकता है।
Aanand B: इतनी बडी बडी बातें। रहम करो जरा। वैसे आपके हिसाब से शहद किस प्रकार के भोजन में आता है? उसके लिए मधुमखियों को मारा नही जाता है बल्कि उसके लिए मधुमक्खियां पाली जाती है और यह प्लांट से आता है।
शुभ: अनुमति ली आपने मधुमक्खी से लिखित में?
Aanand B: 😂 नहीं, लेकिन मधुमक्खियां कई बार अपने छत्ते छोड़ देती है और उसमें से बहुत सा शहद मिलता है। अब अनुमति के लिए भी वो नही होती है। तब तो वह शहद लेना vegan होगा न?
शुभ: तब आप दूसरों को ऐसा दुष्प्रचार करने के दोषी होगे जो इस बात को बहाना बना कर क्रूरता करके इस बात का लेबल लगा कर वही शहद मार्किट में बेचने लगेंगे। साथ ही आप ये नहीं कह सकते कि वे अपना शहद लेने वापस नहीं आएंगी। मधु सदियों तक खराब नहीं होता है। मिस्र के पिरामिड में रखा शहद आज तक ताज़ा है। इसलिए अगर वे कभी वापस आई, जो कि वे आती हैं ऐसा पाया गया है तो आप पशुक्रूरता के दोषी होंगे। साथ ही उस में मधुमक्खी की लार और पेट के अम्ल होते हैं जो पराग रस को पचा कर मधु में बदलते हैं। शहद दरअसल मधुमक्खी के पेट की उल्टी है। तो वह पथ्य रूप से भी vegan नहीं है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
खुद को स्वीकार करना ही सुकून है ~ Shubhanshu
मैंने आज सामान्य इंसान की तरह सोच कर देखा कि पोस्ट बनानी हो तो क्या लिखें? बहुत देर तक सोचने के बाद भी कुछ समझ न आया तो ये लिखा अपनी तरह सोच के।
शायद इसीलिए हमारे आसपास कॉपी-पेस्ट और कूड़ा पोस्ट ही ज्यादा मिलती हैं। जो शर्मिंदा हैं वे दूसरों के विचार ही चेप कर काम चला रहे। खुद का या तो कोई विचार ही न है या वो इतना बचकाना है कि हंसी उड़ जाए।
ये लोग कमेंट करते समय तो अपनी संगत और लोगों की सोच के अनुसार दूसरे की सोच पर तानाशाही करेंगे लेकिन इनकी खुद की वाल पर कोई विचार खुद का न होगा। आसान नहीं है ज़हरबुझा सत्य अपने बारे में लिखना।
सब दूसरों को दोष देकर खुद को पाक साफ बता देते हैं। मतलब कोई दोषी है ही नहीं। इसीलिये ये मानव आज बर्बाद और दुखी हैं। मैं 35 वर्ष का हूँ, बहुजन हूँ और बेरोजगार हूँ, जमापूंजी से मिले ब्याज से कम से कम में खर्च में जीवन यापन कर रहा हूँ। ये सब कहने में मुझे भी काफी समय लगा क्योकि ये सब बातें शादी करने वालो को ही पूछनी और बतानी चाहिए।
शादी तार्किक रूप से गलत है और इस पर बहस का कोई लाभ नहीं क्योकि आप तो सिर्फ अपनी मर्दानगी साबित करने के लिये करते हैं। सेक्स तो विवाह से पहले और बाद में भी आप कर ही लेते हो। अतः विवाह और बच्चों से मैं कोसों दूर हूँ।
मेरा खानपान एक दम साधारण। दाल, चावल, रोटी, साग, छोले-भटूरे, समोसे, गोलगप्पे, यिप्पी नूडल, मैगी आदि यही सब खाता हूं। रोज नहीं इनमें से बदल-बदल कर कभी कभी। घर में पड़ा रहता हूँ। सोचता रहता हूँ। फ़िल्म-सीरीज-गेम्स यही सब pc पर देखता रहता हूँ। किसी से न मिलता हूँ और न ही किसी का फोन उठाता हूँ।
एक तरह से दुनिया से कटा हुआ और एकांतवास में। कुछ खास लोगों से मिल लेता हूँ कभीकभार। कभी कभी सरकारी काम भी कर आता हूँ जैसे टैक्स जमा करना। दाढ़ी 1 फुट की हो जाती है तो ट्रिमर से काट देता हूँ। बाल भी बढ़ कर आंखों में घुस रहे हैं। उनको भी संभालना दिक्कत का काम है। कुछ करना है उनका भी। नाई के पास सालों से न गया।
कम नहाता हूँ, मंजन भी रोज नहीं करता। कपड़े भी जब दुर्गंध आती है, तभी धोता हूँ या दाग लगे हों। अपने बिस्तर पर सारा दिन नँगा पड़ा रहता हूँ। झाड़ू नहीं लगाता जब तक फर्श दिखना बन्द न हो जाये या मैं फिसल कर गिरने न लगूं धूल पर। जागने सोने का कोई टाइम फिक्स नहीं है।
काफी हद तक जंगली जीवन जी लेता हूँ। मच्छरों के बच कर। पार्टनर आती है तो बातें होती हैं। हंसी-ठिठोली और नोक-झोंक करके साथ में समोसे या छोले-भटूरे व सॉफ्ट ड्रिंक लेते हैं।
सेक्स पार्टनर के साथ आखिरी ओर्गास्म स्कोर:
पार्टनर- 6, शुभ- 1, राउंड- 3
स्वीकार कर लेने में क्या बुराई है? मुश्किल है क्योंकि दूसरे आपके जैसे नहीं। लेकिन आप भी दूसरों के जैसे नहीं यह भी तो अच्छी बात है। खास तौर पर जब कि मैं खुश और अपनी मर्जी का मालिक हूँ। जो अच्छा लग रहा, वही कर रहा हूँ। दुनिया, लड़कियां लोग सब अपना जीवन जैसे चाहें जियें लेकिन मैं भी अपनी मर्जी से जीकर खुद को महसूस कर रहा।
कल ख़बरों में पढ़ा कि बरेली का एक रिक्शे वाला IPS अफसर बन कर फेसबुक पर 3000 लड़कियों से रोमांस कर रहा था। इधर फेसबुक पर सिर्फ लड़कियों को मुझे तंग करने, मेरी डिटेल निकालने और मना करने पर इन्सल्ट करने के सिवाय और कुछ नहीं आता। कुछ तो फ्री का भैया समझ कर बस टोलफ्री हेल्पलाइन बना कर बैठ जाती हैं। अतः मुझे फेसबुक पर लड़कियों से दोस्ती में कोई खास रुचि नहीं रह गई है। लड़कों में भी सिर्फ वही मित्र हैं जो मुझे समझते हैं और मेरे विचारों से प्रभावित हैं।
झूठ बोल कर ही लड़कियों को आकर्षित किया जा सकता है क्योंकि अधिकतर लड़कियों को सिर्फ पैसा और फ्री का घर चाहिए होता है। लड़का तो एक टिकट मात्र है उस आजीवन नौकरी का। जिस पर वे गर्व कर सकें कि पावरफुल आदमी है। इसकी धाक होगी शहर में। दरअसल उसे अपने कोतवाल सइयां से तानाशाही की उम्मीद होती है। पुलिस से जनता भयभीत रहती है जबकि मुझमें कुछ ऐसा है कि पुलिस भयभीत रहती है मुझसे। 10 मिनट किसी पुलिसवाले से बात कर लूं तो वो ड्यूटी पर जा रहा हूँ बोल के उल्टी दिशा में निकल लेता है, जबकि पहले मुजरा देखने जा रहा होता है।
मुझे इस तरह की लड़कियों में कोई इंटरेस्ट नहीं होता। इस तरह के लोग बस एक दीमक हैं। सुंदरता से कुछ नहीं होता अगर विचार अच्छे न हों। अगर कुछ करना है तो अपने बल पर करो। पढ़ी-लिखी हो, लड़कों से बेहतर स्कोर है तो करो न स्ट्रगल? क्या समस्या है? बाहर लालच दे रहे लड़कों को मत देखो। कल को पलट जाए तो क्या करोगी? सेल्फकॉन्फिडेन्स, सेल्फडिफेंस, सेल्फडीपेंड रहना सीखो तभी पूरी लाइफ अपने हाथों में होगी।
मेरे पास मेरे लायक सब कुछ है। अगर आप को सिर्फ प्रेम चाहिए तो वो मेरे पास है। घर भी है अगर आप उसका मूल्य किश्तों में चुकाना चाहो। लेकिन झूठ, धोखा और अकर्मण्यता में मेरी अपने भर की कमाई से मैं शेयर कैसे दे सकता हूँ? ऐसा नहीं है कि मैं गरीब हूँ। लेकिन मुझे कम से कम में काम चलाना अच्छा लगता है। साथ ही अगले को सेल्फडीपेंड बनाना भी। कल को मैं न रहा तो उसका क्या होगा? इसीलिये।
Polyamory जीवन शैली के चलते प्रेमिकाओं के लिए स्थान खुला है लेकिन यह कहना एक विज्ञापन होगा इसलिये अभी सिर्फ दोस्तों के लिये जगह है। फिर भी फेसबुक से कोई उम्मीद नहीं है। अभी कुछ दिन बाद मैं हीरो बन के जाऊंगा घूमने, तब लड़कियों को कुछ नई बातें बताऊंगा। वहीं से मिलेगी मुझे नई दोस्त, शिष्य और प्रेमिका भी। आप भी दोस्तों, ये झूठ का चोला उतार कर, मेरी तरह नँगे हो जाओ। कमाल का सुकून मिलेगा। नमस्कार। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© "Daring किया मैंने भी आज माँ!"
शनिवार, सितंबर 07, 2019
Polyamory ~ Shubhanshu
प्रेम बिना बंधन के। 1 से कई लोग प्रेम कर सकते हैं तो सब साथ में बात क्यों नहीं करते? जिस तरह मुस्लिम 4 पत्नियों के साथ एक साथ रहता है, वैसे ही बाकी लोग भी अपने सभी प्रेमियों/प्रेमिकाओं के साथ रह सकते हैं
प्रेम में अगर विवाह न हो तो ये ईर्ष्या में नहीं बदलेगा। दूसरे को हटाने की जगह उससे दोस्ती ही असली प्रेम है। जैसे अपने प्रेमी की पसंद की वस्तु या व्यक्ति का ख्याल रखना प्रेम है। न कि उसकी पसंद की वस्तु को तोड़ देना।
इसको अपनाने के लिये आपको करना क्या है?
कुछ नहीं, आज सभी के एक से अधिक प्रेमी और प्रेमिका होते हैं। बस उनको आपस में मिलकर एक दूसरे से दोस्ती करनी है और उनके सामने भी वैसे ही रहना है जैसे अकेले में सहज रहते हैं। असहज नहीं महसूस करना है।
जो लोग विवाह के चक्कर में हैं, वे अपने साथियों को धोखा देते हैं। यह विश्वास दिला कर कि वे मोनोगेमस हैं। जबकि आप और हम सब पोलिगेमस हैं। इसीलिये ज़रा-ज़रा सी बात पर ब्रेकअप होते हैं और नया साथी मिल जाता है।
इसलिये यह झूठ बीच में से निकाल देना है। सभी को पता होना चाहिए कि वे किस रिश्ते में हैं। इसीलिए विवाह की जगह लिव इन चुनें और किसी नए प्रेमी और प्रेमिका को मना करके उसको आत्महत्या करने पर मजबूर न करें। जैसे राजकपूर की फ़िल्म संगम, बॉलीवुड फिल्म गर्ल फ्रेंड व ऐसी ही अनेक सच्ची घटनाएं जहां प्रेम त्रिकोण या चौकोर, पँचभुज, षटकोण आदि रहा हो। इन सभी घटनाओं में मोनोगेमस विवाह ने हत्या और आत्महत्या को बढ़ावा दिया।
इंसान बनिये। धोखा मत दीजिये। प्रेम का सम्मान कीजिये। किसी को धोखा मत दीजिये। सबको सत्य बता दीजिये कि आपके अलावा भी कोई मेरी ज़िंदगी में आ सकता है। सब साथ रहेंगे परिवार की तरह। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
शुक्रवार, सितंबर 06, 2019
कोई भी perfect हो सकता है, लेकिन... ~ Shubhanshu
"कोई भी परफेक्ट नहीं होता।" एक नकारात्मक वाक्य है लेकिन दरअसल इसे जल्दबाजी में नकारात्मक लोगों ने इस तरह से कहा है। यह एक पॉजिटिव बात है लेकिन लोग इसे पॉजिटिव way में नहीं कहते क्योंकि उनको "नहीं" सुनने की पुरानी आदत है। क्या आपने बचपन से अपनी 99% फरमाइशों को अगले का "नहीं" सुन कर दफन नहीं किया?
सही वाक्य होता है, "कोई भी परफेक्ट हो सकता है लेकिन अस्थायी समय के लिये।" अब इस वाक्य ने पिछले वाक्य के सामान्तर बात कही है, ऐसा प्रतीत हो रहा है लेकिन इस बार, सकारात्मक तरीके से। इस सब को समझने के लिये पॉजिटिव दिमाग का होना अत्यंत आवश्यक है।
देखिये, कोई भी परफेक्ट हो सकता है लेकिन अस्थायी समय के लिये। जैसे, यदि कोई अपने आप को कहे कि वह परफेक्ट है (परफेक्ट में कोई और परिवर्तन नहीं किया जा सकता) तो हम उससे कहेंगे कि कोई भी परफेक्ट हो सकता है, लेकिन अस्थायी समय के लिये।
अब वह सोचेगा कि मतलब, "यह पूर्णता (perfection) अस्थायी है।" अगर कोई केवल अस्थायी समय के लिए परफेक्ट हो सकता है तो मेरा लगातार परफेक्ट बने रहना असम्भव है। अतः मुझे और सुधार करते रहने होंगे।
इस सोच में लोगों ने "और सुधार सम्भव है।" कहने के स्थान पर कह दिया कि "Perfection संभव नहीं है।" नकारात्मक कहने-सुनने की पुरानी आदत के कारण।
इस बात को इस तरह समझ सकते हैं कि अगर वास्तव में कोई थोड़े समय के लिये भी परफेक्ट "नहीं" होता तो यह शब्द अस्तित्व में ही "नहीं" होता और हम किसी कार, मोटरसाइकिल, लडकी, लड़का, मकान, तस्वीर, फ़िल्म को देख कर खुशी से "परफेक्ट" नहीं कह पाते।
परफेक्शन हमारे किसी चीज या कार्य को, अधिकतम जानकारी के हिसाब से, बेहतरी के अभ्यास से, कुछ समय के लिये, आ सकता है लेकिन जल्द ही कोई, उससे ज्यादा अभ्यास करके, उससे बेहतर, नया व अस्थाई, परफेक्ट उदाहरण ला सकता है। अतः यह समय पर और काबिलियत पर आधारित एक अस्थायी स्थिति है।
किसी के लिये वह उदाहरण अत्यधिक उपयोगी होने के कारण, उस समय परफेक्ट लग सकता है लेकिन जो उससे ज्यादा की आशा रखता है, उसके लिए वह सदा imperfect ही रहेगा।
ये बात आपको मेरे अलावा कोई व्यक्ति बताया हो, तो बताना। मेरा यह विश्लेषण कितना परफेक्ट है? ये आप के हिसाब से तय होगा। अतः आप में से कोई भी परफेक्ट हो सकता है, लेकिन सिर्फ थोड़े समय के लिये! 😊 ~ Dharmamukt Shubhanshu
गुरुवार, सितंबर 05, 2019
Demonetization क्यों? ~ Shubhanshu
शुभ: कॉमन सेंस है कि पेपर और छपाई का 50% खर्च बचाने के लिये। बैंक में जगह कम घिरे इसलिये भी। साथ ही लाने ले जाने का भाड़ा कम हो। हमको भी अब बटुए में 50% कम करेंसी रखनी पड़ेगी।
प्रश्न: 1000 और 500 के नोट ही पहले बन्द क्यों किये गए?
शुभ: इन्हीं नोटों में ज्यादा सुरक्षा खामियां थीं और उनकी कॉपी पाकिस्तान और चीन बना कर भारत भेज रहा था। उस समय तक यही सबसे बड़े नोट थे इसलिये इनकी ही ज्यादा स्मगलिंग होती थी।
प्रश्न: Demonetization का कारण क्या था?
शुभ: वही, नकली नोटों और अवैध कमाई वालों के कब्जे से धन बाहर निकलवाना जो कि बैंक में न जाकर कहीं भण्डारित कर लिए गए या नष्ट कर दिए गए। हर एक निश्चित अंतराल पर नोटों की डिजाइन और कलर बदलना एक सुरक्षा नीति है ताकि पुराने नोटों को नष्ट करने पर देश की अर्थव्यवस्था पर आंच न आये। हर note रिज़र्व बैंक की सम्पत्ति है। उसे नष्ट करना सीधे अपराध तथा अधिक समय तक चलन में न रखना यानि खर्च न करना एक नैतिक अपराध है। उसे बैंक में जमा करने से वह मॉनिटर होता है और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। बदले में आपको ब्याज भी मिलता है और घर के पास ही शॉपिंग व ATM से कैश निकालने हेतु एक डेबिट कार्ड भी मिलता है।
कम धन रखने वालों के लिए बेसिक सेविंग अकाउंट होता है। जो कि बिना किसी फीस के चला सकते हैं। Atm कार्ड भी फ्री मिलेगा।
एक दम से बन्द करने और 250000 प्रति 3 माह की लिमिट लगाने पर जिनके पास काला धन था वे सब भी पकड़ में आ गए। 1 वर्ष तक का समय दिया गया था नोट बदलने के लिए। फिर भी इस छूट का फायदा उठा कर धोखाधड़ी करके जनता ने धन को सफेद करवा लिया।
इसी कारण अचानक गरीब जनधन खाते 250000 रुपए से भर गए थे। दरअसल इन बेइमान लोगों ने इन गरीबों से साठगांठ करके रुपये इनके नाम से जमा करवा के निकाल लिए। इस तरह अधिकतर काला धन पकड़ में न आ सका। फिर भी 10700 करोड़ रुपया वापस नहीं लौटा इसका मतलब था कि इतना धन जला दिया गया था या गायब हो चुका था चलन से।
इस तरह रिज़र्व बैंक ने 10700 करोड़ रुपए की कमाई करी इस प्रक्रिया से। यह अतिरिक्त धन देश की अर्थव्यवस्था को ऊंचा करने में काम आया।
प्रश्न: आप मोदी भक्त हो क्या?
शुभ: सही पकड़े, अंधभक्त! 💐 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
मंगलवार, सितंबर 03, 2019
साम्यवादी क्रांति योजना ~ Shubhanshu
1. मजदूरों को लाभ में हिस्से का लालच दीजिये।
2. उनको असंतुष्ट होने का आभास दिलाओ और हड़ताल करवाओ।
3. मांग पूरी न होने पर सभी मजदूरों को अमीरों के प्रति "मालिक मजदूरों पर निर्भर हैं" कह कर भड़काओ। (जबकि यदि मजदूर रोज कमाते खाते है तो वे हड़ताल के दौरान धन कहां से लाते हैं? यह सवाल उनके गरीब होने पर प्रश्न खड़े करता है।)
4. सारे देश में मजदूरों को अमीरों के प्रति नफरत से भर दीजिये।
5. सारे मजदूरों को इकट्ठा करके उनको हथियार देकर अमीरों की हत्या करने के लिए छोड़ दीजिये।
6. कानून सबको गोलियों से भून देगा और उन लाशों के ढेर पर खड़े होकर बचे हुए मजदूरों को भड़काओ कि ये सब कानून वाले अमीरों के चाटुकार हैं। इन्होंने बेगुनाहों को मारा है जो बुरे परजीवियों को मार आये थे। इनको गोरिल्ला युद्ध में मारो और हथियार लूटो। (इस समय यही किया जा रहा है नक्सलियों द्वारा)।
7. आखिरकार सब मजदूर मर जाएंगे और फिर ये साम्यवाद का तरीका ठीक नहीं है कह कर आंदोलन खत्म करो। और दोबारा से नए मजदूरों को भड़काओ।
लाभ: इनके सरगना जितना भी लूट सकेंगे वो तो मिल ही जाएगा। लूट का माल जमा करने वाला मजे लेगा उससे और मजदूरों को घरों में घुस कर बलात्कार करने का मौका दिया जाएगा लोगों की महिलाओं से। मजदूर इसी बात से खुश हो जाएंगे। इस तरह ये एक प्रकार का बस हत्याकांड और लूटपाट और बालत्कार का प्लान है और कुछ नहीं। इसका जितना आप अभी विरोध करेंगे उतना ही आपके घर, सम्पत्ति, महिलाएं, बच्चे , बुजुर्ग और परिवार सुरक्षित रहेंगे।
सोमवार, सितंबर 02, 2019
महापुरुषों के प्रति मेरे विचार ~ Shubhanshu
1. भीम राव राम जी अंबेडकर का लोकतांत्रिक व अंधविश्वास विरोधी पक्ष (राजनैतिक व धार्मिक नहीं)।
2. तथागत गौतम बुद्ध का नास्तिक, अहिंसा व स्वयंगुरु पक्ष (आध्यात्मिक, बोधिसत्व, पुनर्जन्म व निर्वाण पक्ष नहीं)।
3. कार्ल मार्क्स, लेलिन व भगत सिंह का नास्तिक पक्ष (साम्यवादी व हिंसात्मक पक्ष नहीं)।
4. मोहन दास करमचंद गांधी का अहिंसा पक्ष (आस्तिक व राजनैतिक पक्ष नहीं)।
5. रजनीश ओशो का अधार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तर्कवादी पक्ष (आध्यात्मिक पक्ष नहीं)
ये मेरे महापुरुषों के प्रति विचार हैं, जो कि मुझे किसी को भी सर्वेसर्वा घोषित करके पूजा करने व भक्त बनने से रोकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
गुरुवार, अगस्त 29, 2019
आदिवासी, भूमाफिया और सरकार ~ Shubhanshu
आदिवासियों को भड़काना बेहद आसान है। वे अनपढ़ हैं, अतः उनको केवल पुरानी बातें ही समझ आती हैं। भूमाफिया दरअसल नक्सलियों को हाइजैक कर चुके हैं और उनके ज़रिए आदिवासी समुदाय को खत्म कर रहे हैं। ये कथित नक्सली दरअसल भारतीय सेना की वर्दी पहन कर आदिवासियों को ही मारते हैं व उनकी महिलाओं से बलात्कार करते हैं।
इनसे बचाने के लिए ही सरकार ने सुरक्षा बलों को आदिवासियों के बीच भेजा और उनको वहां से निकाला ताकि वे भूमाफियाओं द्वारा मारे न जाएं। संसाधनों पर अवैध कब्जा न हो इसके लिए सरकार ने आदिवासियों का पुनर्वास करवाया और उनको पहले से बेहतर रहने का स्थान दिया। इससे वे मुख्य धारा में भी आ गए और सरकार को आर्थिक मदद भी मिल गयी जो देश हित में सबके काम आएगी। वैध खनन के लिए सरकार टेंडर प्रकाशित करती है जो कि सक्षम पूंजीपति स्वीकार करते हैं और सरकार से करार करके आर्थिक मदद प्रदान करते हैं। इससे देश का विकास करना सम्भव हो जाता है। जिन वनों को काटा जाता है उनको दरअसल वृक्षारोपण द्वारा स्थान्तरित कर दिया जाता है अन्य स्थान पर, जहां मानव आबादी कम होती है। इस व्यवस्था की ज़िम्मेदारी पर्यावरण मंत्रालय लेता है।
कथित नक्सली हमलों में भारतीय सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध में धोखे से सोते समय मार दिया जाता है। उनकी वर्दियो को ये चुरा लेते हैं और इसी वर्दी से सारा इल्जाम सेना पर लगता है। केवल इस सेना के अपमान से ही त्रस्त आकर एक अफसर ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए थे इसकी जांच अभी न्यायालय में चल रही है। बाकी सब के सुबूत मैंने पोस्ट कर रखे हैं ज़हरबुझा सत्य पेज पर समाचार के लिंक के रूप में।
चारु मजूमदार का शुरू किया गया नक्सली आंदोलन उनकी आत्महत्या के साथ ही खत्म हो गया था। अपने आंदोलन का लुटेरा और भाड़े का हत्यारा वाला रूप देख कर इन्होंने आत्महत्या कर ली थी। संदर्भ: विकिपीडिया
इस समय जो लोग सैनिकों और आदिवासियों, दोनो को मार रहे हैं, वे दरअसल भूमाफिया द्वारा दिये गए हथियारों से लैस हैं। गलतफहमी और भ्रम फैलाने का यह नियम माओवाद के सीक्रेट डॉक्यूमेंट में दिया गया है। इसके अनुसार सरकार के प्रति इतनी गलतफहमी और नफरत पैदा कर दो कि निचले स्तर का हर मजदूर/व्यक्ति हथियार की मांग करे। यथास्थिति उनके बच्चों को मार देना या बच्चों के माता पिता को मार देना। और इल्जाम सरकार पर लगाना ताकि बदला लेने के लिये उनके रिश्तेदार तैयार हो जाएं। उनको हथियार देने का सही समय यही होगा।
उनको अकुशल रहने देना। ताकि सेना के सामने वे ज्यादा देर टिक न सकें। इससे सेना पर बच्चों को मारने का आरोप आ जायेगा। जब हथियार सहित सरकार उनके फ़ोटो प्रकाशित करे तो उस बात को अपने पक्ष में करना। ये कह कर कि आदिवासी बच्चों को मार कर सरकार ने हथियार उनके साथ रख दिये। जबकि सरकार तो तटस्थ होती है फिर भी जिंनके घर वाले मारे गए वे सिर्फ तुम्हे अपना हमदर्द समझेंगे।
इसी रणनीति से हम सभी संपत्तियों (जल, जंगल, ज़मीन) पर कब्जा कर लेंगे। वैसे ही जैसे रूस की क्रांति में किया गया था। बिना कत्ल किये किसी की सम्पत्ति हथियाना सम्भव नहीं है। क्रांति हिंसा से ही आ सकती है ये नारा दरअसल हमारे फायदे के लिये बनाया गया है। ऐसा करके ही हम लोगों की संख्या कम करेंगे और संसाधनों पर कब्जा करके सुखी जीवन जिएंगे। जो सपना उनको दिखाया जाएगा वो सिर्फ मृगमरीचिका ही है। फायदा सिर्फ हम भूमाफिया को है।
उपरोक्त निष्कर्ष इंटरनेट पर मौजूद माओवादी गुप्त डॉक्यूमेंट के आधार पर निकला है। इसमें लेखक का व्यक्तिगत विश्लेषण भी शामिल हैं। अधिक जानकारी हेतु स्वयं इस डॉक्यूमेंट को पढ़ें। (केवल इंग्लिश) ~ Shubhanshu धर्ममुक्त 2019©
डिस्क्लेमर: लेखक के व्यक्तिगत विचार। कृपया अपने विवेक का प्रयोग करें। धन्यवाद।
बुद्धि के तीन रूप ~ Shubhanshu
मनोरंजन को छोड़ कर किसी को जज करने का हक आपको तब तक नहीं है जब तक आप अगले से अधिक योग्य न हों। छोटी मोटी भूल-चूक कोई भी कर सकता है उसके आधार पर जज करना नहीं कह सकते। जैसे यदि कोई स्पेलिंग गलत लिख गया है तो उसे भूल कहा जा सकता है। कोई अगर गलत व्याकरण लिखता है या बोलता है तो यह उसका अज्ञान हो सकता है न कि बुद्धि का आंकलन। बुद्धि दरअसल आपकी कार्यक्षमता, दूरदर्शी सोच, नए उपाय और ज्ञान का सदुपयोग करके किसी समस्या का समाधान कर देना है। बुद्धि कभी किसी पूर्व लिखित ज्ञान को स्थायी नहीं मानती और उसे नए तर्क से बदल भी सकती है। बुद्धि का प्रमुख स्तर वास्तविक और प्रमाणिक तर्को से निर्धारित कर सकते हैं।
जो जितना ज्यादा तर्क कर सकता है या जितना ज्यादा विषयों में नया खोज सकता है वह अधिक बुद्धि (IQ) वाला हो सकता है। एक तार्किक व्यक्ति निश्चित रूप से बुद्धिमान होता है जो कि विषय, ज्ञान, आदि के बदलने पर भी अपना तर्क करने का स्वभाव नहीं छोड़ता। वह अनपढ़ होने पर भी तर्क कर सकता है। शिक्षा, ज्ञान का बुद्धि से उसे ग्रहण करने, समझने तक की योग्यता प्राप्त करने में योगदान अवश्य है लेकिन एक अनपढ़ भी जीनियस हो सकता है।
उत्तम की उत्तरजीविता का मूल अर्थ यही है कि पर्यावरण के अनुकूल और अपना जीवन बचाये रख कर जो भी जंतु अपनी प्रजाति बचाये रखने में सफल होता है उसे बुद्धिमान प्रजाति कह सकते हैं लेकिन इस हिसाब से मच्छर और कॉकरोच भी खरे उतर सकते हैं क्योंकि वे इंसान से भी ज्यादा पुराने हैं और आज भी इंसान के पिछवाड़े पर लट्ठ किये हुए हैं।
दरअसल इनमें अनुकूलन का स्तर अधिक था इसलिये ये अब तक जीवित हैं। इसमें इनकी शारीरिक संरचना का महत्वपूर्ण योगदान है न कि बुद्धि का। अतः बुद्धि को समझने के लिये हमें अप्राकृतिक अनुकूलता को समझना होगा। जैसे मानव शिकार नहीं कर सकता। न तो उसके पास पैने पंजे व दांत हैं और न ही सूंघने, दौड़ने और रात में देखने की शक्ति। अतः कभी भी मांस खाना मानव के लिये न तो शारीरिक रूप से सम्भव था और न ही व्यवहारिक रूप से।
परन्तु हिंसक जानवरों से रक्षा करने की भावना ने मानव जैसे तुच्छ, कमज़ोर जंतु में बड़े दिमाग के कारण उपाय किये और मानव ने पत्थरों से घायल करने/मारने के औजार बनाये। ये शायद एक के मन में ही विचार आया होगा और उसे मुखिया बना दिया गया होगा। वो पहला जीनियस था।
अब बाकी कम बुद्धि के मानवों ने इस उपाय का दुरुपयोग शुरू किया और निर्दोष जानवरों को भी मारने लगे। यहाँ से बुद्धि का दुरुपयोग शुरू हुआ। इसी तरह किसी की बुद्धि ने अच्छा कार्य किया और किसी की बुद्धि ने बुरा। बुद्धि 3 तरह से कार्य कर सकती है। हमले के लिये, रक्षा के लिए और रचनात्मक कार्यों के लिये।
प्रायः यह उचित मात्रा में, सभी में नहीं पाई जाती। इसीलिये बुद्धिमान को मुखिया चुना जाता है। जानवरों में मुखिया बलशाली/ताकतवर होता है जबकि मानवों में मुखिया बुद्धिमान व/या बलशाली दोनो या न्यूनतम अलग-अलग भी समझा जाता है। जैसी भी समूह की आवश्यकता हो। बुद्धि का यह असमान प्राकृतिक वितरण प्रतियोगिता की भावना को जन्म देता है और मानव परिस्थितियों के अनुसार अच्छा, बुरा या रचनात्मक कार्य करने लगता है। जिनसे रक्षा, विनाश और लाभदायक तीनो तरह के कार्य लगातार होते रहते हैं।
विनाशकारी बुद्धि, मानसिक विक्षिप्तता, परिस्थितियों वश पैदा हुई बदले, ईर्ष्या, नफरत और दुष्टता की भावना पर नियंत्रण करने हेतु कानून बनाये गये। रचनात्मक कार्यो का स्वागत किया गया लेकिन रचनात्मक कार्यो पर इन धूर्त व दुष्ट बुद्धि वालों की नज़र रहती है। अतः उनसे मुकाबला करने के लिये रचनात्मक खोज व कार्य करने वाले को अपनी सुरक्षा को उच्च स्तरीय रखना होगा अन्यथा उसकी खोज गलत कार्यो में लग सकती है और जो सभी के लिये कष्टकारी/विनाशकारी होगा।
अतः बुद्धि का उच्च स्तर ही आधुनिक विज्ञान है और इसका उपयोग व दुरुपयोग आपकी बुद्धि पर निर्भर करता है। मैं तो उपयोग करना चुनूँगा, और आप? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
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