मनोरंजन को छोड़ कर किसी को जज करने का हक आपको तब तक नहीं है जब तक आप अगले से अधिक योग्य न हों। छोटी मोटी भूल-चूक कोई भी कर सकता है उसके आधार पर जज करना नहीं कह सकते। जैसे यदि कोई स्पेलिंग गलत लिख गया है तो उसे भूल कहा जा सकता है। कोई अगर गलत व्याकरण लिखता है या बोलता है तो यह उसका अज्ञान हो सकता है न कि बुद्धि का आंकलन। बुद्धि दरअसल आपकी कार्यक्षमता, दूरदर्शी सोच, नए उपाय और ज्ञान का सदुपयोग करके किसी समस्या का समाधान कर देना है। बुद्धि कभी किसी पूर्व लिखित ज्ञान को स्थायी नहीं मानती और उसे नए तर्क से बदल भी सकती है। बुद्धि का प्रमुख स्तर वास्तविक और प्रमाणिक तर्को से निर्धारित कर सकते हैं।
जो जितना ज्यादा तर्क कर सकता है या जितना ज्यादा विषयों में नया खोज सकता है वह अधिक बुद्धि (IQ) वाला हो सकता है। एक तार्किक व्यक्ति निश्चित रूप से बुद्धिमान होता है जो कि विषय, ज्ञान, आदि के बदलने पर भी अपना तर्क करने का स्वभाव नहीं छोड़ता। वह अनपढ़ होने पर भी तर्क कर सकता है। शिक्षा, ज्ञान का बुद्धि से उसे ग्रहण करने, समझने तक की योग्यता प्राप्त करने में योगदान अवश्य है लेकिन एक अनपढ़ भी जीनियस हो सकता है।
उत्तम की उत्तरजीविता का मूल अर्थ यही है कि पर्यावरण के अनुकूल और अपना जीवन बचाये रख कर जो भी जंतु अपनी प्रजाति बचाये रखने में सफल होता है उसे बुद्धिमान प्रजाति कह सकते हैं लेकिन इस हिसाब से मच्छर और कॉकरोच भी खरे उतर सकते हैं क्योंकि वे इंसान से भी ज्यादा पुराने हैं और आज भी इंसान के पिछवाड़े पर लट्ठ किये हुए हैं।
दरअसल इनमें अनुकूलन का स्तर अधिक था इसलिये ये अब तक जीवित हैं। इसमें इनकी शारीरिक संरचना का महत्वपूर्ण योगदान है न कि बुद्धि का। अतः बुद्धि को समझने के लिये हमें अप्राकृतिक अनुकूलता को समझना होगा। जैसे मानव शिकार नहीं कर सकता। न तो उसके पास पैने पंजे व दांत हैं और न ही सूंघने, दौड़ने और रात में देखने की शक्ति। अतः कभी भी मांस खाना मानव के लिये न तो शारीरिक रूप से सम्भव था और न ही व्यवहारिक रूप से।
परन्तु हिंसक जानवरों से रक्षा करने की भावना ने मानव जैसे तुच्छ, कमज़ोर जंतु में बड़े दिमाग के कारण उपाय किये और मानव ने पत्थरों से घायल करने/मारने के औजार बनाये। ये शायद एक के मन में ही विचार आया होगा और उसे मुखिया बना दिया गया होगा। वो पहला जीनियस था।
अब बाकी कम बुद्धि के मानवों ने इस उपाय का दुरुपयोग शुरू किया और निर्दोष जानवरों को भी मारने लगे। यहाँ से बुद्धि का दुरुपयोग शुरू हुआ। इसी तरह किसी की बुद्धि ने अच्छा कार्य किया और किसी की बुद्धि ने बुरा। बुद्धि 3 तरह से कार्य कर सकती है। हमले के लिये, रक्षा के लिए और रचनात्मक कार्यों के लिये।
प्रायः यह उचित मात्रा में, सभी में नहीं पाई जाती। इसीलिये बुद्धिमान को मुखिया चुना जाता है। जानवरों में मुखिया बलशाली/ताकतवर होता है जबकि मानवों में मुखिया बुद्धिमान व/या बलशाली दोनो या न्यूनतम अलग-अलग भी समझा जाता है। जैसी भी समूह की आवश्यकता हो। बुद्धि का यह असमान प्राकृतिक वितरण प्रतियोगिता की भावना को जन्म देता है और मानव परिस्थितियों के अनुसार अच्छा, बुरा या रचनात्मक कार्य करने लगता है। जिनसे रक्षा, विनाश और लाभदायक तीनो तरह के कार्य लगातार होते रहते हैं।
विनाशकारी बुद्धि, मानसिक विक्षिप्तता, परिस्थितियों वश पैदा हुई बदले, ईर्ष्या, नफरत और दुष्टता की भावना पर नियंत्रण करने हेतु कानून बनाये गये। रचनात्मक कार्यो का स्वागत किया गया लेकिन रचनात्मक कार्यो पर इन धूर्त व दुष्ट बुद्धि वालों की नज़र रहती है। अतः उनसे मुकाबला करने के लिये रचनात्मक खोज व कार्य करने वाले को अपनी सुरक्षा को उच्च स्तरीय रखना होगा अन्यथा उसकी खोज गलत कार्यो में लग सकती है और जो सभी के लिये कष्टकारी/विनाशकारी होगा।
अतः बुद्धि का उच्च स्तर ही आधुनिक विज्ञान है और इसका उपयोग व दुरुपयोग आपकी बुद्धि पर निर्भर करता है। मैं तो उपयोग करना चुनूँगा, और आप? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
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