शुभ: रक्तदान चूंकि स्वयं किसी को दिया जा रहा है तो यह क्रूर नहीं है। vegan का मतलब है पशुक्रूरता मुक्त जीवन। दूध जानवर का है। उससे बिना अनुमति के लेना, उसका अपमान, अपराध और उसके बच्चे के साथ क्रूरता है। किसी के भी जीवन में दखल देना, बांधना, कैद करना, उससे कुछ लेना, काम लेना आदि सबकुछ क्रूरता है। जानवर की जगह इंसान रख कर देखिये समझना आसान होगा।
सोम्यध्रुव प्रेम: मुझे तो लगा कि शाकाहारी होना vegan होता है।
शुभ: न न 2 हिस्से हैं इसके। एक है भोजन और दूसरा है जीवनशैली। भोजन के रूप में पशुओं से बिना लिखित अनुमति के कुछ लेकर हम पशुक्रूरता करते ही हैं तो वो भी nonvegan फ़ूड कहलाता है। दरअसल vegan भोजन को प्लांट based डाइट कहा जाता है। केवल भोजन से vegan बने लोगों को Dietary Vegan कहा जाता है जो कि चमड़े, रेशम, लाख आदि अखाद्य पशुउत्पाद का प्रयोग करके भी vegan कहे जाते हैं लेकिन पथ्य vegan केवल।
इसी सिद्धान्त पर किसी का वीर्य उसकी अनुमति से निगलना, किसी लड़की का दूध उसकी अनुमति से पीना vegan है। इसे एथिकल vegan होना कहते हैं। यही अगर पशु का है तो vegan नहीं है। क्योंकि वह आपकी भाषा में कभी भी अपनी सहमति नहीं दे सकता। अतः ये सब पशुक्रूरता से ही जुड़ा है।
अगर ऐसा न हो तो हम अपनी लार भी न निगल पाते और न ही अपनी माँ का दूध ही पी पाते। अपना खून, दूध और आंसू, वीर्य, नाक आदि का सेवन vegan है और किसी दूसरे मानव का भी अगर वह आपको खुशी से दे।
जब हम एथिकल Vegan होकर मानव के बॉडी fluid निगलते हैं तो वह प्लांट बेस्ड डाइट में नहीं आता लेकिन नैतिक (एथिकल) रूप से vegan ही रहता है। चूंकि रक्त, मानव दूध, वीर्य, आँसू, पसीना आदि एक व्यस्क व्यक्ति के लिये कोई भोजन का रूप नहीं हैं, इसलिये इनको भोजन नहीं माना जा सकता। लेकिन चूंकि आनन्द के लिये या अनजाने में इनका सेवन हो जाता है तो आप इथिकल vegan रहेंगे ही।
इसी कड़ी में मच्छर, मक्खी, कीड़े जो आपको काटते हैं, जानवर जो आपको नुकसान पहुँचा रहा है को मारना आत्मरक्षा में आएगा और नैतिक रूप से वह जंतु अपनी मौत व पीड़ा का स्वयं जिम्मेदार होगा और आप vegan ही बने रहेंगे।
यदि इसके एक्सट्रीम स्तर पर जाएं तो अगर कोई मानव अपना मांस आपको लिखित रूप में आफर करे तो वह भी एथिकली vegan ही होगा लेकिन मांस के अपने स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव हैं अतः हम इस स्तर पर कोई भी हरकत का समर्थन नहीं करते। साथ ही यह अपराध भी हो सकता है कुछ देशों में जहां इसे cannibalism (आदमखोरी) के तहत अपराध माना जा सकता है।
Aanand B: इतनी बडी बडी बातें। रहम करो जरा। वैसे आपके हिसाब से शहद किस प्रकार के भोजन में आता है? उसके लिए मधुमखियों को मारा नही जाता है बल्कि उसके लिए मधुमक्खियां पाली जाती है और यह प्लांट से आता है।
शुभ: अनुमति ली आपने मधुमक्खी से लिखित में?
Aanand B: 😂 नहीं, लेकिन मधुमक्खियां कई बार अपने छत्ते छोड़ देती है और उसमें से बहुत सा शहद मिलता है। अब अनुमति के लिए भी वो नही होती है। तब तो वह शहद लेना vegan होगा न?
शुभ: तब आप दूसरों को ऐसा दुष्प्रचार करने के दोषी होगे जो इस बात को बहाना बना कर क्रूरता करके इस बात का लेबल लगा कर वही शहद मार्किट में बेचने लगेंगे। साथ ही आप ये नहीं कह सकते कि वे अपना शहद लेने वापस नहीं आएंगी। मधु सदियों तक खराब नहीं होता है। मिस्र के पिरामिड में रखा शहद आज तक ताज़ा है। इसलिए अगर वे कभी वापस आई, जो कि वे आती हैं ऐसा पाया गया है तो आप पशुक्रूरता के दोषी होंगे। साथ ही उस में मधुमक्खी की लार और पेट के अम्ल होते हैं जो पराग रस को पचा कर मधु में बदलते हैं। शहद दरअसल मधुमक्खी के पेट की उल्टी है। तो वह पथ्य रूप से भी vegan नहीं है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
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