Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, अक्टूबर 05, 2019

राज़ कुमार/कुमारी का ~ Shubhanshu



समाज के गुप्त रहने वाले घृणित ज़हरबुझे सत्य को सबके सामने लाने और देश को एक आधुनिक और स्वस्थ खुली सोच का बनाने की कड़ी में एक बार पुनः आपका स्वागत है। 

आज हम चर्चा करेंगे, नाम के आगे/पीछे लगाए जाने वाले लिंगभेदी शब्द कुमार/कुमारी पर।

कभी-कभी दूरदर्शी सोच की कमी के कारण बड़े-बड़े विद्वान भी इस तरह की समस्याओं पर ध्यान नहीं देते लेकिन ये सब पाखण्ड कभी बिना मकसद के नहीं होते। इनका मकसद क्या है? क्यों ये शब्द लोगों के नाम में डाला जाता है इसका राज़ आज मैं आपको बताने जा रहा हूँ।

दोस्तों, जैसे कि आप जानते ही होंगे कि कुमार शब्द हिंदी के कुंवारा से बना है जो राजस्थान में कुंवर बन गया और फिर उधर से शेष भारत में ये कुमार में बदल गया।

राजाओं के खानदान में वंश परंपरा का बहुत महत्व होता है। राजा का खून ही राजा बनेगा, यही नियम है। ऐसा आनुवंशिक कारणों से समझा जाता है जबकि ये कारण प्रभावी और अप्रभावी वर्ग में बंटे होने के कारण राजाओं के बेटे हमेशा राजा जैसे या उससे बढ़ कर नहीं भी निकलते बल्कि मंदबुद्धि भी निकल जाते हैं। भाई-बहन से जन्मा बच्चा ही राजा का वंशज हो सकता है। दूसरे वंश से आई स्त्री अपना 50% खून (लक्षण) बच्चे में मिलाती है। जो कि अर्ध वंशज ही होता है दोनो का। अतः वंश परंपरा ज्यादा महत्व नहीं रखती। क्योंकि वास्तविक बुद्धिमान शिशु के लिए दोनो सेक्स पार्टनर को जन्म से ही बुद्धिमान होना होगा। तब भी कुछ प्रतिशत मामलों में परिणाम विपरीत निकल सकते हैं। अतः वंशवाद के जाल से निकलें। ये बंधन है।

(लुहार का बेटा/बेटी लुहार, डॉक्टर का बेटा/बेटी डॉक्टर, वकील का बेटा/बेटी सदा वकील ही नहीं बन सकते। उनकी अपनी मर्जी होती है कि वे जो मर्जी हो वो बनें।)

इसी के चलते, वे अपने बेटों और बेटियों के नाम में कुमार (राजकुँवर/राजकुमार और राजकुमारी लिखते/बुलाते थे। इसका अर्थ है कि राजा के वारिस और बेटी की अभी शादी नहीं हुई। अतः प्रजा अगले राजा (नर शिशु) के लिए व्याकुल न हो।

विवाह के दौरान नया वंशज लाने की प्रक्रिया शुरू हो गई, ये दिखाने हेतु प्रजा को भोज पर बुलाया जाता है और वधु को उसका पिता दहेज देता है। इससे वह अपने समृद्ध होने को दर्शाता है। जबकि यही परंपरा आज गले की फांस बन चुकी है। इसे रोकने के लिए कानून तक बने लेकिन लोग ही नहीं चाहते कि ये गन्दगी समाज से जाए, इसलिये वे रिपोर्ट न करके इसके परिणामस्वरूप कष्ट भोगते हैं।

विवाह के उपरांत राजकुमार का नाम बदल कर राजा और वधु का नाम राजकुमारी से रानी कर दिया जाता है। इसका मतलब है कि अब दोनो कुंवारे नहीं रहे। उनके सेक्स अंग अब अगले राजा को पैदा करने के लिए प्रयोग (used) हो गए।

अब जब समय बदला तो जनता भी खुद को राजा समझने लगी। देखा देखी में उनको लगता कि ये तो वो भी कर सकते हैं, करने लग गए। न सिर्फ विवाह की परंपरा अपनाई बल्कि नाम के आगे भी कुमार/कुमारी लिखने लग गए। लेकिन ये सिर्फ देखा-देखी नहीं था। पूर्वज जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं।

समाज में होने वाले प्रत्येक पाखण्ड का एक घृणित मतलब होता है। और वह है इंसान को गुलाम बनाने के लिये मानसिक बेड़ियां पहनाना। ऐसे ही नहीं सब लोग एक सा सोचने लगे। इसके पीछे पीढ़ियों का षडयंत्र है।

सोचो, अगर लड़की नाम के आगे/पीछे कुमारी लगाती है तो क्या उसे कुमारी का मतलब नहीं पता? बचपन में ही बता दिया जाता है कि जिसका विवाह नहीं हुआ वह कुंवारा/कुंवारी। यह इस विश्वास के साथ बताया जाता है कि वे कभी विवाह से पूर्व किसी को भी अपना कुंवारापन खोने नहीं देंगे। इसीलिए 25 वर्षीय ब्रह्मचर्य आश्रम बना जो कि भारतीय संस्कृति में मौजूद बाकी 3 आश्रमो; ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास में से पहला है।

ब्रह्मचर्य मतलब, ब्रह्म का आचरण। ब्रह्म मतलब ब्राह्मी लिपि पढ़ने का आचरण। सभी वेद और ग्रँथ इसी लिपि में लिखे गए थे। विद्या ग्रहण करने का कार्य करने का समय 25 वर्ष। इस दौरान सेक्स करना अपराध है, कारण था उससे उतपन्न शिशु को संभालने के कारण विद्या हासिल न कर पाना।

इसके तुरन्त बाद व्यवस्था विवाह करवाया जाता है जो कि ऐसा है जैसे होटल में लेट कर खाना आर्डर करना। इसीलिए मातापिता लड़की से लेकर दहेज, प्रीतिभोज आदि, सबकी व्यवस्था करते हैं। लड़के को बस रात में दूध पीकर सेक्स (मेरिटल रेप) के मजे लेने हैं। लड़की को जल्द से जल्द बच्चों को पैदा करना है। इस सब में जो खर्च हो रहा, लड़के को सिर्फ उसका इंतज़ाम करना है। यही कुल कार्य है जो मातापिता अपनी सम्पत्ति के हस्तांतरण के लिए, इच्छा रहित बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ करके करते हैं।

लेकिन आजकल ऐसा नहीं हो सकता। अशिक्षा, गरीबी में आपकी सोच/इच्छाशक्ति दब जाती है। कंडोम, pull out, IUV, नसबंदी, ipill, माला डी, मेरी सहेली, डिम्पा इंजेक्शन आदि विधियों से बच्चा होने पर अंकुश लगाया जाने लगा है। अतः अब खुल कर सेक्स किया जा सकता है बिना किसी बच्चे की चिंता किये।

सामान्यतः 10 वर्ष की आयु में इंसान का दिमाग 100% विकसित हो जाता है। बस इसमें ज्ञान की कमी रह जाती है। 10 वर्ष की आयु से ही इंसान में सेक्स के प्रति आकर्षण बढ़ने लगता है लेकिन कपड़ों के कारण वह तुरन्त जाग्रत नहीं हो पाता। इसी आयु के करीब लड़कियों में भी माहवारी शुरू हो जाती है। अतः प्रकृति के अनुसार वह अपनी आयु के बालक के साथ सेक्स कर सकती हैं, अधिक आयु के साथी के साथ नहीं क्योंकि अधिक आयु में यौनांगों का आकार बढ़ता है।

लेकिन ऐसा इसलिये करना उचित नहीं है क्योकि प्रथम तो बच्चा होगा नहीं क्योंकि लड़के में कम उम्र में शुक्राणुओं की भारी कमी होती है और अगर बच्चा हो भी गया तो वे दोनों उसे न तो पाल सकेंगे और न ही लड़की नार्मल डिलीवरी कर सकेगी क्योंकि पेल्विक बोन छोटी होने के कारण सम्भवतः बच्चा मर सकता है और उसके गर्भाशय में पड़े रहने से इन्फेक्शन भी हो सकता है।

(वैसे भी डेयरी को अच्छा बता कर कुछ डॉक्टरों ने लड़कियों को कुपोषित कर दिया है। डेयरी वाला विटामिन अधिक मात्रा में जाकर पहले वाला भी निकाल देता है। शरीर जब भी कुछ अधिक मात्रा में पाता है तो उसे निकाल देता है और साथ ही बनाना भी बन्द कर देता है। अतः डेयरी प्रोडक्ट से उल्टी क्रिया होती है और अस्थिभंगुरता उतपन्न हो जाती है। भारतीय 100% लड़कियों में आयरन और कैल्शियम की कमी पाई जाती है जो कि हर समय कपड़ों में लिपटे रहने के कारण सूर्य के प्रकाश से मिलने वाले विटामिन D की कमी से होता है।

कैल्शियम तो पानी में भरपूर होता है, उसी से तो व्हेल का कंकाल, मछली का अस्थि पंजर और शंख/सीप का खोल बनता है बस शरीर इसे विटामिन D के होने पर ही सोखेगा जो कि सूर्य प्रकाश से आसानी से सम्भव है। एक बार 10 मिनट के लिए नँगे होकर धूप सेंकना कई महीनों तक के लिए विटामिन D बना देता है। विदेश में इसीलिये भी लोग धूप सेंकते हैं। साथ ही स्किन कैंसर से बचने के लिए भी धूप ज़रूरी है।)

कंडोम भी बच्चों के लिंग के आकार के नहीं आते और बाकी गर्भनिरोधक दवा का कम उम्र में इस्तेमाल का क्या लाभ/नुकसान हैं, मुझे ज्ञात नहीं। भारत में बहुत समय तक 11 साल की लड़कीं से वयस्क पुरूष सेक्स करता आया है जो कि बड़े आकार के लिंग को छोटी योनी में डालने के कारण उसे गम्भीर रूप से फाड़ कर घायल कर सकता है। कई मौतें होने के बाद तय हुआ कि 12-14 वर्ष (मतभेद) से कम आयु की लड़की का विवाह अपराध है। बाद में इसमें भी समस्या आने पर इसे बढ़ा कर 15 वर्ष कर दिया गया।

मतलब ये है कि 15 वर्ष की आयु में लड़की बच्चा पैदा करने योग्य मानी जाती है कानूनन। अब हुआ ये कि पढ़ाई करने की आयु से पहले ही बच्चा हो जाये तो लड़की पढ़ाई कैसे करेगी? इसलिये इसे बढ़ा कर 16 किया गया। फिर इस पर आरोप लगे कि सिर्फ 10th तक की पढ़ाई करवा कर लड़की की पढ़ाई छुड़ाई जाने लगी। तब इसे बढ़ा कर 18 कर दिया गया। यानी 12th पास होते ही विवाह। लड़के की आयु 21 वर्ष रखी ताकि वह स्नातक भी कर ले। साथ ही समाज की सोच कि लड़की की उम्र कम होनी चाहिए लड़के से, इसका भी तुष्टिकरण (वोटों की व्यवस्था) हो जाये।

अब जब जनता की आदत पड़ी है 10 से 14 साल की उम्र में सम्भोग करने की तो कानून क्या कर लेगा? लेकिन संस्कार नाम के कानून अपना काम करते हैं। विवाह से पहले सेक्स नहीं करना है ये सोच इतना डरा कर भर दी जाती है कि लड़की बलात्कारी से भी विवाह को राजी हो जाती है। उसे सिर्फ यही डर शेष रह जाता है कि अब उसकी शादी कहीं नहीं होगी।

अब जैसे हर बात के कई side effects होते हैं, इसका भी हुआ। अब कोई भी विवाह का वादा (झांसा) देकर महिला को उसके संस्कारो से मुक्ति दिला सकता है। जबकि विवाह जैसा कुछ न होता तो लड़की अपनी मर्जी से ही किसी से सेक्स करती। जीवन भर आवास, भोजन और सेक्स का विवाह रूपी ऑफर कुबूल करके वो सेक्स करे तो ये सिर्फ लालच है। इसी को फुसलाना कहा जाता है। संविधान में यह अपराध घोषित है।

अपना मतलब निकल जाने पर छोड़ दीजिए और वो किसी से नहीं कहेगी क्योंकि फिर उसकी दूसरी जगह शादी नहीं होगी। विवाह के कॉन्सेप्ट से लड़कियों का शोषण, date rape, धोखा करना बेहद आसान हो गया है। जबकि ये न हो तब देखो, कैसे लड़कियों को फुसलाना असम्भव हो जाता है। वह तब केवल अपनी मर्जी से ही सेक्स करेगी। शोषण समाप्त। कोई जबरदस्ती करे तो सीधा पुलिस में रिपोर्ट करेगी क्योकि उसे लाज-शर्म का कोई डर नहीं होगा और न ही 'शादी नहीं होगी तो क्या होगा?', इस बात का रोना-पीटना।

लेकिन इच्छाशक्ति विहीन समाज का निर्माण किया जा चुका है। नाम के आगे कुमारी लगाए घूमने वाली लड़की इस sexual status को माथे पर चिपका कर घूमती है कि उसने आज तक सम्भोग नहीं किया। इसे वो गर्व का विषय मानती है। सीधे विवाह के बाद ही ये स्टेटस हटेगा और इसकी जगह श्रीमति लग जायेगा। जबकि पुरुषों का क्या? जो नाम में श्रीमान और कुमार लगाये घूम रहे?

बलात्कारी सँस्कृति वाला समाज इस तरफ ध्यान नहीं देता। पुरुष इस स्टेटस को विवाह के बाद भी लगाए रखते हैं ताकि किसी कुमारी लगाये हुई लड़की को विवाह का झांसा दे सकें। उनके नाम के आगे लगा श्रीमान बचपन से लेकर मृत्यु तक नहीं हटता जबकि महिला पहले कुमारी और फिर श्रीमती बना दी जाती है।

अब सवाल उठता है कि क्या कुंवारा पन जांचा जा सकता है? कुछ लोगों को लगता है कि हाँ, परन्तु वे लोग ये नहीं जानते कि जांचने की विधि 100% कार्य करनी चाहिए तभी उसे जांचने की विधि कह सकते हैं। जैसे, कैंसर जांचने की विधि सोनोग्राफी/मेमोग्राफी साफ बताएंगी कि कैंसर है या नहीं है। जबकि कौमार्य परीक्षण सिर्फ महिला के लिये होता है। मैने कई कम उम्र (10 से 17 वर्ष) की लड़कियों से बात की कि वे अपने कौमार्य की जांच करें। 10 में से 9 ने नकारात्मक जवाब दिए। इसका मतलब, क्या वे उस उम्र में सेक्स कर चुकी थीं? संभव नहीं। अगर सम्भव भी मान लें तो फिर आप ये मान लो कि 10-17 वर्ष की आयु के आते 90% लडकिया सेक्स कर चुकी होती हैं। जो कि आपने मान लिया, जबकि सत्य कुछ और है।

अब गौर करते हैं कि कौमार्य है क्या? कौमार्य दरअसल त्वचा का बना एक रिंग होता है। कभी-कभी ये जालीदार भी हो सकता है। ये एक अवरोध है बड़े लिंग के लिये। छेद छोटा करने का उद्देश्य जैसे, हमउम्र बच्चे के पतले लिंग के प्रवेश के लिये अधिक घर्षण पैदा करना हो सकता है। दुर्लभ जालीदार कौमार्य एक आनुवंशिक गलती हो सकती है, अतः उसे अनदेखा करना ही उचित रहेगा।

आयु के साथ ये छल्ला घटता जाता है और 15-18 वर्ष की आयु तक समाप्त होने लगता है। कुछ में हार्मोनल असंतुलन/आनुवंशिकता के कारण 18 से अधिक आयु तक भी रह सकता है। अतः हम सभी लड़कियों के कुंआरी होने का दावा कौमार्य फटे होने/अनुपस्थित होने पर नहीं कर सकते। फटने के लिए व्यायाम, साइकिल चलाना, दौड़ना, penetrative masturbations आदि ज़िम्मेदार हो सकते हैं। तब? हम सब जानते हैं कि हस्तमैथुन को विवाह/सेक्स करना नहीं कह सकते।

100% जाँच सफल न होने के कारण कौमार्य को कुंवारे होने का प्रमाणपत्र नहीं माना जा सकता।

अब आते हैं पुरुष के कौमार्य के ऊपर, शिश्न (penis) के पिछले हिस्से में एक लकीर शिश्नमुंड के छिद्र से जुड़ी होती है। जब लिंगमुंड पर चढ़ी उप त्वचा को पीछे खींचा जाता है तो ये भी खिंच जाती है और इसमें फटास आ जाती है। यह भी शिश्न के मैल को साफ करने के दौरान कई बार टूट जाती है। हस्तमैथुन भी ज्यादा जोर से करने पर ये टूट जाती है और कई बार ये उपत्वचा के शिश्नमुंड के किनारों से चिपके होने पर भी बल पूर्वक उतारने में भी टूट जाती है। कम चिकनाई के सम्भोग से भी ये टूट सकती है और अधिक चिकनाई के सम्भोग से ये बिना छतिग्रस्त हुए भी रह सकती है। 

अतः ये भी लड़के के कुंवारे होने का प्रमाणपत्र नहीं हो सकती। अब जब हम जान चुके हैं कि कुंवारे होने का कोई प्रमाण सम्भव नहीं है तो फिर इसे अनदेखा करना चाहिए। आप सेक्स करे हुए हों तो भी आप कह सकते हैं कि ये किसी और कारण से हुआ होगा।

अगर आप सोचते हैं कि पहले सेक्स के बाद किसी अन्य से सेक्स करने पर उसे पता चल जाएगा तो वह आपके डर से ही से ही सम्भव है, कौमार्य/लकीर टूटने से नहीं।

अब आते हैं उनके ऊपर जो कौमार्य/लकीर की मांग करते हैं। ये वे लोग हैं जो अपने साथी को दर्द से तड़पता हुआ और खून से लथपथ देखना चाहते हैं। खुद के कुंवारे होने का प्रमाण नहीं और दूसरे से सर्टिफिकेट चाहिए। अगर कोई पहले से सेक्स करा हुआ है तो क्या हो गया? अब तो वह आपके साथ है। मैं तो कहता हूं कि गर्भवती भी हो कोई तो क्या हो गया? अपने ही खून का बच्चा पैदा करना ही क्यों है? ऊपर ये बात समझाई गयी है कि आप सिर्फ 50% खून अपने बच्चे में डाल सकते हैं यदि आप सगे भाई-बहन नहीं हैं। जबकि उधर अनाथालय में बच्चे अपने लिए माँ-बाप की राह देख रहे। आप कितने खुदगर्ज हैं इस बात से पता चलता है, न कि सिर्फ अपना ख्याल रखने से। अपना ख्याल रखना तो हम सबसे कहते हैं लेकिन "अपने ही खून का बच्चा पैदा करना" ये किसी से नहीं कहते।

तो खुदगर्जी से निकलिये। कुँवारे पन का ढोंग बन्द कीजिये। पश्चिमी देश कुँवारे होने को असफलता की निशानी मानते हैं। इसका मतलब है कि आप को अब तक कोई सेक्स साथी नहीं मिला। आप में आकर्षण नहीं है या आप रूढ़िवादी हैं। मजे लेने की कोई उम्र नहीं होती। जितनी जल्दी आप इसे ले सकते हैं, सुरक्षित रहकर, उतना अच्छा है आपके स्वास्थ्य के लिए, क्योंकि इच्छा तो होती ही है। उसे दबाना मतलब दिमाग को खराब करना।

जिनकी ये इच्छा पूरी नहीं होती और जिनको खुद पर कंट्रोल कम होता है वे अक्सर मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं। अधिकतर मानसिक रोगी सेक्स के न मिल पाने के कारण मानसिक रोगी बने हैं। सबसे पहला आधुनिक masturbatory system चिकित्सकों ने ही बनाया था। हिस्टीरिया के मरीजों का इलाज करने के लिए। इस हिस्टीरिया की पहचान वही है जो हमारे देश में "माता आने" पर लड़कियों में दिखती है। उनको सेक्स की बहुत आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति न होने पर जिस प्रकार हाथी "मस्त/पागल" हो जाते हैं, वैसे ही इंसान भी हो जाते हैं।

विदेशों में इसके लिए ब्रोथल (एक तरह के वेश्यालय) बने हैं। जहाँ मातापिता खुद अपने लड़कों को सेक्स करवाने के लिए वहाँ ले जाते हैं। लड़कों को सेक्स समय पर न मिलने के कारण उनमें गुस्सा, नफरत, वहशीपन और पढ़ाई में मन न लगने जैसी समस्या हो जाती हैं। पुरूषों द्वारा भीभत्स बलात्कार करना भी इसी कारण से सम्भव हुआ है।

मैंने कक्षा 8 से मानसिक तनाव होने पर हस्तमैथुन करना शुरू किया और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ जबकि उससे पहले हर वर्ष फेल होकर supplementary exam और सिफारिश से पास होता रहा। मेरे सहपाठी काफी समय से करते थे और पढ़ाई में भी अच्छे थे। आज तरह-तरह के male और female masturbators उपलब्ध हैं। male/female सिलिकॉन सेक्स डॉल भी उपलब्ध है। जो आपको सेक्स साथी के जैसा एहसास दे सकते हैं।

अतः सेक्स, मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए पुराने समय में और आज भी बाल विवाह करवाये जाते हैं। जो कि बच्चा पैदा करने के कारण आज के समय में जीवन बर्बादी की ओर धकेल देते हैं। जबकि होना ये चाहिए कि उनको हस्तमैथुन/सुरक्षित सम्भोग की जानकारी (sex education) देकर पढ़ाई में उनका मन लगवाना चाहिए। सर्वे बताते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा पोर्न महिलाओं द्वारा देखा जाता है। सोचिये कि वे कितना हस्तमैथुन करती होंगी? पुरुष तो करता ही है।

आपने देखा कि 

1. कुंवारापन किसी विधि से 100% नहीं जांचा जा सकता है।
2. कुंवारे होने की मांग करने वाले घटिया रूढ़िवादी लोग हैं।
3. वंशवादी/रूढ़िवादी लोग मूर्ख और घटिया हैं क्योकि बिना एकदम करीबी रक्तसम्बन्धी से बच्चा पैदा किये बिना ये सम्भव ही नहीं। साथ ही incest (रक्त सम्बन्धों में सम्भोग) को भी ये लोग पाप मानते हैं। तो ये सम्भव ही नहीं।
4. सेक्स/हस्तमैथुन शरीर और मस्तिष्क के लिये बेहद ज़रूरी है।
5. नाम में कुमार और कुमारी लगाना उन्हीं घटिया लोगों को तुष्ट करना है क्योंकि हमारा sexual status कभी भी बदल सकता है लेकिन नाम नहीं। (हालांकि हम शपथपत्र देकर अपना नाम कभी भी बदल सकते हैं, लेकिन ये सुविधाजनक नहीं है।)

एक और बात, जो अपना बच्चा पैदा करना चाहते हैं, उनको अपनी बुद्धि से अधिक बुद्धि वाले से बच्चा पैदा करना चाहिए तभी उनकी अगली पीढ़ी पहले के मुकाबले अधिक सुधर सकती है। अतः वह साथी किसी भी जाति/धर्म/गोत्र का हो, इससे फर्क नहीं पड़ता, बस बुद्धिमान होना चाहिए। ~ Shubhanshu (VSSC) 2019©  2019/10/05 12:57 

सोमवार, सितंबर 30, 2019

सुंदरता और रंग का रहस्य ~ Shubhanshu


सवाल: बहुत से लोग खुद काले/बदसूरत हैं लेकिन उनको पसन्द सुंदर और गोरे लोग ही आते हैं। ऐसा क्यों?

शुभ: दरअसल वे खुद को नहीं, दूसरों को देख कर बड़े हुए होते हैं। सुंदरता, गौर वर्ण, सुरीली आवाज, स्टेमिना (नृत्य) आदि आनंद प्रदान करते हैं। जबकि प्रेम पक्की दोस्ती मात्र है। तो प्रेम में तो कोई बंधन नहीं लेकिन सेक्स में है थोड़ा। बाकी दिमाग है, जैसा शरीर वो पसंद करता है, उसको आप और हम बदल नहीं सकते।

देखिये, प्रकृति का नियम है सर्वश्रेष्ठ का चुनाव। सर्वश्रेष्ठ कौन? जिसका तन-बदन मजबूत और एक समान ज्यामिति में हो। यही सुंदरता निर्धारित करता है। रंग गोरा हो तो वह कम मेहनत करने वाले अमीर घर का लगता है अर्थात उसके साथ रहना आराम दायक होगा। मीठी आवाज से आंनद आता है, और झगड़े नहीं होते इसलिये मीठी आवाज वाले लोग भी पसंद आते हैं। इसका पता गाना गवा कर लोग करते हैं। नृत्य का मतलब होता है कि लड़की या लड़का सेक्स के समय थकेगा या नहीं? सबकुछ जो आपको दुनिया में दिखता है उसकी असली जड़ सेक्स ही है।

अब दिमाग इस को डिफाइन नहीं करता। वह इसको बिना आपको चुनाव का कारण दिए आपका sexmate चुन देता है। हर जंतु अपने से बेहतर के साथ सम्भोग करना चाहता है। ताकि बेहतर पीढ़ी विकसित हो। उसी के लक्षण हैं सुंदरता और रंग को देखना और प्रेम करना। इसमें गलत कुछ भी नहीं। बस समझने के लिए विज्ञान का सहारा लेना पड़ सकता है। बहुत कुछ और भी बातें हैं जिन पर पहले भी लिखा जा चुका है अतः अभी यहीं पर विदा लेता हूँ धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

रविवार, सितंबर 29, 2019

प्रकृति प्रेमी होने की सीमा ~ Shubhanshu


बचपन मे मैं भी प्रकृति के पीछे पागल था। लेकिन इतना नहीं कि सीधे शिकारी आदिवासी ही बन जाऊं। आदिवासी भी जानवर नहीं होते। उनकी अपनी सभ्यता होती है। वे भी अपनी परमपरा और अंधविश्वास में लिप्त होते हैं। सबसे ज्यादा अंधविश्वास वहीं से आये हैं।

बनो तो वास्तविक जानवर बनो, आदिवासी नहीं; लेकिन फिर सरकार, सुविधा, विज्ञान, चिकित्सा का उपयोग भी कतई त्यागना होगा। दूरगामी सम्पर्क और सभी आधुनिक कार्य भी त्यागने होंगे। खुले में सोना होगा। शेर, तेंदुए, भेडिये, लकड़बग्घा, सांप आदि से सीधा सामना करना होगा। न हथियार न कोई उपाय करना होगा। भयँकर बीमारियों से मर जाना होगा, बिना कोई दवा खाए।

प्रकृति में मृत्यु दर 100% है। जो इस के विरुद्ध नहीं हो सका वो मर जायेगा। अगर मैं भला मानस हूँ तो मैं वाकई लम्बा जीना चाहूंगा। मानव मृत्यु दर कम करने, अधिक आनन्द लेने के लिये ही प्रकृति से थोड़ा दूर हुआ है। अतः अगर स्वस्थ और प्रकृति प्रेमी रहना है तो आधुनिकता और प्रकृति दोनो में सामंजस्य बैठाना होगा। सिर्फ बातें करके आधुनिकता को कोसने से कोई लाभ नहीं, कहने से पहले करके दिखलाना होगा। ~ Shubhanshu SC 2019©

शनिवार, सितंबर 28, 2019

Narcissism (आत्ममुग्धता) ~ Sbubhanshu


एक मानसिक स्थिति जिसमें व्यक्ति खुद से प्रेम करता है। खुद की सफलता पर प्रसन्न होता है। और बेहतर होता जाता है। और तरक्की करता है। खुद का ध्यान रखता है। अच्छा खाता, पहनता है, अच्छी संगत में जाता है। जीवन में और लोगों से वैसे ही व्यवहार करता है जिससे उसे बदले में भी वही व्यवहार मिले। ऐसे लोग ही तो जीवन में सफल होते हैं।

आत्मविश्वास से लबरेज लोगों ने ही प्रेरणा बनकर दुनिया बदली है। नकारात्मक लोग दूसरो को दोष देते हैं जबकि सकारात्मक खुद को। तो जो सकारात्मक होते हैं वे आत्ममुग्ध हो ही जाते हैं क्योंकि उनको खुद को ही बदलने का काम शेष रह जाता है। दुनिया तो हमसे ही बनी है और अगर हम खुद से प्रेम करें तो पूरी दुनिया से कर सकते हैं।

अतः अपनी छोटी-छोटी सफलताओं पर गर्व कीजिये। क्या पता कब आपकी अंतिम रात हो और खुद पर गर्व करने लायक कुछ कर ही न पाओ। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

गुरुवार, सितंबर 26, 2019

सपनो का सौदागर ~ Shubhanshu


दरअसल जो महिला, जैसे माँ, लड़कियों पर पिता की तरह बंधन लगाती हैं, उससे ऐसा आभास होता है कि वे भी पिता जैसा सोचती हैं। लेकिन दरअसल ये एक डर है कि जिस तरह माँ ने पति के घर में एडजस्ट कर रखा है वैसे ही बेटी भी अगर न कर पाई तो उसको भी ससुराल में रखना मुश्किल होगा।

ये गुलामी की सोच, महिला को सदा बच्चा ढोने की मशीन बनाने के कारण पैदा हुई और महिला आज भी उसी परमपरा को धर्म से प्रेरणा पाकर निभा रही है। उस पर गर्व भी कर रही क्योकि महिमामण्डित कर दिया जा जाता है बलि के बकरे की कुर्बानी को बलिदान कह कर।

अतः आत्मनिर्भर न होना, पति के घर में रह कर उसकी गुलामी करना ही मजबूरी बन गया है। इसी मजबूरी में वो दूसरो को भी अच्छा गुलाम बनने को प्रेरित करती हैं ताकि अपने मालिको (सास-ससुर-ननद-पति) को खुश रख सकें। जब भी कोई लड़की अपनी आज़ादी की बात करती है या विवाह के इतर कुछ करने की सोचती, रिस्क उठाती है तो घर समेत सारा समाज कहता है कि आपकी लड़की हाथ से निकल गई। मतलब लड़की कंट्रोल (गुलामी) से निकल गई।

आज़ादी, महिला के लिये अभिशाप समझी जाती है, इस वंशवादी समाज में। इस से निकलने के लिये, 'करो या मरो' की नीति लागू करनी होगी। ये आज़ादी भी कीमत मांगती है। यलगार मांगती है। क्रांति मांगती है।

परिवार को अपनी समाज में इज़्ज़त के अलावा कोई मोह अपने बच्चे से नहीं होता। आप उनके जाल से निकलना चाहते हैं तो मोह अपने सपनो से करो, दुनिया आप पर मोहित हो जाएगी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© "सपनो का सौदागर"

मंगलवार, सितंबर 24, 2019

क्या मूर्ति/चिन्ह/तस्वीरों का प्रदर्शन उचित है? ~ Shubhanshu



किसी के द्वारा प्रयोग किये जाने वाले फ़ोटो/मूर्ति/चिन्ह का सीधा सम्बन्ध, गुटबंदी करके नफरत करने से होता है चाहे वो कोई भी धर्म या समुदाय का व्यक्ति हो।

इस बात को मुहम्मद ने समझा था और इसको एक प्रयोग से साबित किया था कि मूर्ति/तस्वीर/चिन्ह नफरत की जड़ होती हैं। ये सब राजनीतिक दल केवल दंगा करवाने के उद्देश्यों से बनवाते हैं।

महापुरुषों की जगह पुस्तकों में है।

उनकी अच्छी शिक्षा की जगह हमारे दिमाग में और बुरी बातों की कोई जगह कहीं नहीं होनी चाहिए। तभी हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकेंगे। गांधी/अंबेडकर/पटेल/काशीराम/माया/बुद्ध जैसा महापुरुष/राजनीतिज्ञ या कोई भी देवी-देवता हो, सभी की तस्वीर/मूर्तियों का प्रदर्शन करना, सीधा लड़ाई और नफरत को पैदा करने की जड़ है।

राजनीतिज्ञ जब चाहें किसी से इनको अपमानित करके आप सबका आपस में दंगा करवा कर और दंगा पीड़ितों की मदद करके अपना वोट पक्का कर लेंगे। मरेंगे आपके बच्चे/दोस्त/भाई-बहन, परिजन आदि। घर जलेंगे आपके और आप ही हत्यारों/लुटेरों को वोट देकर सोने से लाद दोगे।

मुझ पर भरोसा न हो तो देखना, कभी दंगों में कोई नेता कभी हताहत हुआ हो तो। दंगों के बाद जो भी आपके पास कंबल/रसद लेकर आये वही है आपका असली दोषी। उसी ने आपका परिवार/घर मकान खा लिया। सोचो, सोचेंगे तभी समझ आएगा कि हम सब कितने बड़े मूर्ख हैं जो इन नेताओं के चक्कर में पड़ जाते हैं। 99% सब एक से हैं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2019©

रविवार, सितंबर 22, 2019

सर्वोत्तम ही प्रकृति को प्यारा है ~ Shubhanshu



सर्वाहारियो और vegansim की बहस में मामला दरअसल वनस्पति आधारित भोजन या क्रूरतामुक्त जीवनशैली का नहीं होता। दरअसल मामला ego का है। ये सर्वाहारी अच्छी तरह से जानते हैं कि vegan डाइट का फायदा क्या है? बस ये स्वाद और संगत बदलने में कमज़ोर हैं। इसलिये इनको बस भीड़ का साथ अच्छा लग रहा है। हम भी कभी इनकी तरह थे तो कोई बात नहीं। हम भी बस अपनी ईगो ही पेल रहे कि हम ही सही हैं।

और ये तो iq पैमाना है बुद्धि शक्ति का जो सबको खुद को अपने-अपने स्तरों पर सही ही बताता है।

कुछ लोग टट्टी खाते हैं, कुछ खून पीते, कुछ इंसान को खाते, इंसांनो/जानवरों का बलात्कार करते, सीरीयल किलर बनते हैं, तो वो भी खुद को जीवन भर सही ही मानते हैं और गर्व तक करते हैं।

Adolf हिटलर और नाथू राम गोडसे को अपनी करनी पर सदा गर्व रहा था और कोई आश्चर्य नहीं कि हमें भी खुद पर गर्व है। तो इस समस्या का कोई इलाज नहीं और सभी का सर्वाइवल भी सम्भव नहीं। कुछ लोग सच्चाई को पूरा प्रतिरोध देते ही हैं तभी तो इस दुनिया में अच्छाई के साथ बुराई भी डटी रहती है।

कुछ लोग दुनिया को बर्बाद करने के लिए बच्चे पैदा करके गर्व करते हैं और कुछ लोग दुनिया को बचाने के लिए ही कभी भी बच्चा न पैदा करके गर्व करते हैं।

कुछ लोग धर्मयुक्त होकर कत्लेआम, जातिवाद, नफरत और राजनीति करके गर्व करते है तो कुछ लोग धर्ममुक्त होकर इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं और गर्व करते हैं धर्ममुक्त जयते कह कर।

कुछ लोग नग्न होने को शर्म का कारण बताते हैं और जबरदस्ती शो औफ करके धन बर्बाद करते हैं और उसमें गर्व करते हैं तो कुछ लोग नग्न होने पर गर्व करते हैं क्योकि शरीर ढकने के लिए नहीं बना, उसे हड्डियों को बनाने के लिए धूप की ज़रूरत होती है और पसीना सुखाने के लिए हवा की भी। साथ ही वस्त्र थोपे नहीं जा सकते, ये सदा ही वैकल्पिक रहेंगे। कोई इसे रोकेगा तो ये मानवाधिकार की हानि होगी।

कुछ लोगों को विवाह करना धार्मिक और कर्तव्यों का निर्वाह लगता है क्योकि वे वंशवादी हैं और इसके आधार पर अपने खून पर गर्व करते हैं जबकि दूसरी तरफ विवाहमुक्त लोग हैं जो इसे समस्त मुसीबतों की जड़ मानते हैं और इससे दूर रह कर ही स्वतन्त्र और गौरवशाली महसूस करते हैं क्योकि ये प्रकृति के बहुविवाह नियम के खिलाफ जाता है और इंसान कभी भी एक ही इंसान से बंधा नहीं रह सकता। इसीलिये रोज तलाक और क्लेश होता है जिसमें हजारों जाने चली जाती हैं और गर्भवती महिलाओं की हर 5 मिनट में मौत हो जाती है।

प्रकृति का नियम है "सर्वोत्तम की उत्तरजीविता" और ये परिणाम केवल समय ही दिखाता है। नमस्ते सभी लोगों। बहुत अच्छा लगा आप सबसे बात करके। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शनिवार, सितंबर 21, 2019

हिंदुत्व बनाम वीगन ~ Shubhanshu



हिन्दू: बीफ ले जा रहे?

मुस्लिम ट्रांसपोर्टर: नहीं, मटन है।

हिन्दू: जाओ।

मुस्लिम ट्रांसपोर्टर: बन गए चूतिया साले ढोंगी।

(थोड़ा आगे जाने पर)

वीगन: मांस ले जा रहे?

ट्रांसपोर्टर: हाँ। लेकिन मटन है। बीफ नहीं।

वीगन: किसका लेकर जा रहे उससे मतलब नहीं। फ़ेसबुक/व्हाट्सएप है? मेरी पोस्ट पढो। ये सब छोड़ दोगे।

ट्रांसपोर्टर: आप वाकई मारोगे नहीं?

वीगन: नहीं, पहले हम आपको प्यार से हर बात समझाएंगें। अगर फिर भी नहीं समझे तो आपको हिंदुओ के पास, बीफ ले के जा रहे, कह कर छोड़ देंगे। 😂😂

ट्रक का नंबर नोट कर लिया और फ़ोटो ले लिए हैं। वैसे भी गोवंशीय पशु वध कानून की गौहत्या निवारण अधिनियम 1955, धारा 3, 5, 8 में अपराध है। 7 साल जेल जाओगे। कुछ नहीं तो हम पुलिस को ही फोन कर देंगे। हम हिंसा नहीं करते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 😂😂😂

शुक्रवार, सितंबर 20, 2019

आर्थिक मंदी का जिम्मेदार कौन? ~ Shubhanshu



जनता के संतृप्त हो जाने के कारण नए उत्पादों की बिक्री न होने से जैसे ऑटोमोबाइल आप एक बार लेते हो या सायकिल तो वह वर्षों तक दोबारा खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। इनका सेकेंड हैंड बाज़ार भी होने के कारण लोग इन से संतुष्ट हो जाते हैं। सड़कों पर भी एक सीमा से ज्यादा वाहन ट्रैफिक जाम करते हैं इसलिए लोग वापस पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर आ जाते हैं और इससे प्रदूषण भी कम हो जाता है।

कभी न कभी इस तरह के हालात आने ही हैं। ये चक्र चलता ही रहता है। इस तरह की घटना से मुक़ाबले के लिये सरकार की बड़ी घोषणाएँ जो व्यापार जगत को आर्थिक मदद देकर उनको बाज़ार में बनाये रखने में मदद करेगी।

1. कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती ; कंपनियों पर कर की दर 25.17% ; दूसरी कोई छूट न लेने पर 22% ; कोई मैट नहीं ।

2.मैनुफैक्चरिंग में निवेश करने वाली नई कंपनी पर कॉरपोरेट टैक्स सिर्फ 17.01%

3. MAT की दर 15%

4. जो कंपनियाँ बाजार से अपने शेयरों को वापस ख़रीदने में निवेश करना चाहती है, उनकी इस ख़रीद से होने वाले मुनाफ़े पर कोई कर नहीं ।

5. कृषि क्षेत्र के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र भी निवेश योग्य धन के मानदंड पर अब इस क्षेत्र के लिये तक़रीबन सालाना 1.45 लाख करोड़ की राजस्व की छूट दी गई है । 

यदि सरकार न हो तो इस लाइन में लगा व्यापार जगत बर्बाद हो सकता है। आपकी मदद करने के लिये ही सरकार का निर्माण आपने ही किया है। आप सब अपनी ही मदद कर रहे हो टैक्स अदा करके। नकारात्मक सोच वाले इसमें भी कुछ न कुछ गंदगी खोज ही लेंगे क्योंकि उनको वही पसंद है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, सितंबर 16, 2019

असफल राजनीति ~ Shubhanshu


दलाल: मैंने बसपा को वोट दिया था इसलिये मैं भाजपा को कोसने का हक रखता हूँ।

शुभ: मतलब बसपा आपके वोट देने से भी हार गई?

दलाल: जी हाँ।

शुभ: क्यों?

दलाल: क्योंकि भाजपा को पूरे देश में सबसे अधिक वोट मिले हैं। बसपा को कम वोट मिले।

शुभ: इसका मतलब है कि बसपा की कोई इज़्ज़त नहीं करता, भाजपा की सब करते हैं तभी सबने उसे वोट दिया होगा?

दलाल: भाजपा को किसी ने वोट नहीं दिया। ये सब EVM में गड़बड़ी करके जीती है।

शुभ: मतलब आपने जो वोट दिया वो भाजपा को चला गया?

दलाल: हाँ।

शुभ: मतलब आपने ही भाजपा को वोट देकर जिताया है?

दलाल: No Comments!

शुभ: कांग्रेस का राज जब था तब अन्नाहजारे का आंदोलन हुआ। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये ही न? फिर उस भ्रष्टाचार वाली सरकार को हटाने के लिए जनता ने क्या चुना?

वही जो उस समय हजारे के आंदोलन में वादे करने आया। वो bjp का ही कोई नेता था जो उस समय live गाड़ी से आया था आंदोलन स्थल पर। जिसे उल्टे पांव वापस किया गया था।

जब जनता कांग्रेस पर थूक रही थी तब विकल्प bjp ही थी क्योकि वो  टक्कर की थी और वही अन्ना के आंदोलन को सपोर्ट करी थी। इसमें EVM दोषी कैसे हुई? तर्क है कोई?

दलाल: No Comments!

शुभ: कोई बात नहीं, होता है। ये बताओ जब कई सालों से रो रहे हो कि EVM से चुनाव नहीं करना है, बैलेट से करना है तो वोट देने क्यों गए? जब वोट भाजपा को ही जाता है तो वोट देकर भाजपा को जिताने आखिर क्यों गए आप?

दलाल: No Comments!

शुभ: बसपा, कांग्रेस और बाकी सारे विपक्षी दल मिल कर भी EVM में गड़बड़ी क्यों नहीं कर पा रहे? आप लोग भी ऐसा करके जीत जाते? पिछले बहुत सालों से EVM पर शक किया जा रहा है फिर भी हर बार भाजपा ही क्यों सेटिंग कर लेती है? 11 दल मिल कर भी सेटिंग नहीं कर पा रहे और जो पार्टी जीत गई, उसने ही सेटिंग कर रखी है, ये कैसे साबित करोगे?

दलाल: चुनाव आयोग मिला हुआ है भाजपा से।

शुभ: जी बिल्कुल, तभी तो EVM में सेटिंग होगी। आप लोग क्यों नहीं मिल जाते चुनाव आयोग से?

दलाल: No Comments!

शुभ: कोई बात नहीं, होता है। ये बताओ जब चुनाव आयोग ने कहा कि 1 करोड़ रुपये देगा, EVM हैक करके दिखाओ। तब क्या हुआ था? कोई आगे क्यों नहीं आया?

दलाल: वो कह रहा था कि EVM की सील तोड़े बिना उसे हैक करो। बिना खोले EVM हैक कैसे हो सकती है?

शुभ: बिल्कुल, अगर EVM खोली जा सकती है तो उसमें गड़बड़ी करना सम्भव है। लेकिन EVM खोलना तो अपराध है। जिस कम्पनी ने इसे बनाया है उसने इस पर सुरक्षा सील लगाई है जिसे तोड़ना अपराध घोषित है। चुनाव आयोग भी उसे नहीं खोल सकता और न ही कम्पनी अपना पेटेंट रिवर्स इंजीनियरिंग से सुरक्षा के लिए बर्बाद कर सकती है।

बोत्सवाना सरकार इसी कड़ी सुरक्षा के कारण भारत की प्रसिद्ध EVM खरीदने भारत आई। उसने सुरक्षा की पुष्टि हेतु इसे खोलने का आवेदन अदालत में किया और अदालत ने सारी जानकारी लेने के बाद सुरक्षा नियमों के कारण EVM को खोलना अपराध है इसलिये आज्ञा नहीं दी। अब मुझे बताइये EVM को कैसे खोला जा सकता है बिना अपराध किये?

दलाल: अगर कोई अपराध करके इसे खोले, छेडख़ानी करके वापस बन्द कर दे और सुपरवाइजर को खरीद ले तो धांधली हो सकती है।

शुभ: मतलब आपको धांधली करके के सब तरीके पता हैं। फिर भी असफल? कमाल है। चलिये ये बताइये VVPAT क्यों लगाया जाता है?

दलाल: कोई भी गड़बड़ी की गुंजाइश न रह गई हो इसलिये एक पर्ची प्रिंट होकर पक्का करती है कि वोट आपके चुने हुए प्रत्याशी को ही गया है।

शुभ: कमाल है, आप तो वाकई समझदार हैं। जब कोई गड़बड़ी हो ही नहीं सकती है तो भी आप EVM ban करो चिल्ला रहे हैं?

दलाल: VVPAT की सारी मशीनों की पर्चियों को क्यों नहीं गिनता EC?

शुभ: आप लोग अदालत गए थे। उधर से क्या जवाब मिला?

दलाल: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हर मशीन की पर्ची गिनी जाएगी तो फिर चुनाव EVM से कराने का क्या फायदा? रैंडम कोई भी 5-5 मशीनें गिनती के लिए उठा लीजिये और उनसे EVM का मिलान कर लें। कोई भी मशीन गड़बड़ी करी हुई होगी तो वो उनमें से पकड़ में आ जायेगी।

शुभ: फिर क्या हुआ? पकड़ी गई गड़बड़ी?

दलाल: नहीं। सुप्रीम कोर्ट भी EC और भाजपा से मिली हुई है। 😂

शुभ: गजब स्टेटमेंट। भाजपा ने पूरा देश खरीद लिया और आप हाथ में लंदन पकड़े खड़े रह गए? अब आप आखिर में ये भी कहोगे की भाजपा ने मुझे भी खरीद लिया है।

दलाल: वो तो है ही। तुझे कभी जय भीम कहते नहीं देखा, सवर्णों जैसा नाम है, सरकार की दलाली कर रहा है, कानून, सुप्रीम कोर्ट और सिस्टम को ठीक बताता है। तू है ही उससे मिला हुआ।

शुभ: सही पकड़े। आप वाकई विद्वान हैं। कमाल है, सब भाजपा से मिले हुए हैं और आप अकेले कैसे छूट गए भाई साहब? आपके अंदर टेलेंट है। नाम में जाति खोजने का। हारने का। खिसियाने का। हर आदमी जो आप से सवाल करे उसे भाजपा का भक्त बताने का। बेशर्मी का। झंड करवाने का। सिर्फ जाति के नाम पर वोट लेने का। विकास को अपने उस पर रखने का। नाम से ही सवर्णों से इतनी नफरत करने का कि देखते भी नहीं कि सामने बहुजन है या सवर्ण। कीचड़ से कीचड़ धोने का टैलेंट है आपमें। जय भीम।

दलाल: अब तू क्यों बोला जय भीम?

शुभ: क्योंकि आपको दिखतां नहीं कि आपके सामने एक बहुजन ही खड़ा सवाल कर रहा है। विचार तो आप देखते नहीं। नाम से जाति पता करके इज़्ज़त उछालने की ब्राह्मणवाद नीति अपना ली है। जब तक कोई जय भीम न कहे वो बहुजन हो ही नहीं सकता आपके हिसाब से तो साबित करने के लिए बोल दिया। प्रमाणपत्र आप मांगते ही कहाँ हो किसी से जो आपको दिखाऊँ?

दलाल: अरे, फिर ऐसा नाम क्यों रखा?

शुभ: जाति जातिप्रमाण पत्र से पता चलती है। नाम से नहीं। इसीलिये मैंने ये नाम रखा ताकि कोई नाम में जाति खोज कर अपनी जातवादी सोच सामने दिखाए और मैं उसको अपनी ज़िंदगी से हटा दूँ। जो जातिवादि सवर्ण हैं वे मुझसे नफरत न करें और जो बहुजन है उनके अंदर कितना जातिवाद भरा है वो भी दिख जाए।

दलाल: No Comments!

शुभ: आशा है आज आपको थोड़ी शर्म आयी होगी। मुझे तो आपको शर्मिंदा करके बड़ा अच्छा लगा क्योंकि मैंने देख लिया कि क्यों बसपा हारती है। आप जैसे घटिया लोगों के कारण। जो बस अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं। सत्य बोलना नहीं। जब तक बसपा सत्ता में नहीं है, बसपा ने कितने लोगों की मदद करी पार्टी फंड से? कितने लोग बसपा को बहुजन प्रेमी मानते हैं? क्या सिर्फ जयभीम बोलने भर से? मैं राजनीति में विश्वास नहीं करता। कभी वोट नहीं देता। आखिर क्यों? सोचना कभी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©