Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, नवंबर 08, 2019

लड़का, लड़की और पैसा का क्या सम्बन्ध है? ~ Shubhanshu

आइये जानते हैं कि आखिर लड़की और पैसे में क्या सम्बन्ध होता है कि लड़कियां पैसे वाले बुढ्ढों से भी इश्क करती दिख जाती हैं।

जवाब है:

विवाह की अवधारणा धन से जुड़ी है और बेरोजगार लड़कियों के लिये कमाऊ लड़का चाहिए न! फिर जब डेट करते पकड़े गए तो शादी ही हो जाये यही तमन्ना होती है।

धनी होगा लड़का तो माता पिता हाँ कर देंगे। और इसीलिए लड़कियों को जाति, धर्म, व व्यवसाय से भी उतना ही मतलब होता है जितना माता-पिता को।

हमें ऐसी लड़कियों को पैदा करना है जो लड़को की तरह आज़ाद और दबंग हों। खुद लीगली धन कमाने का जुनून होना चाहिए और मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट का भी। तभी ये दुनिया समानता के शिखर पर पहुँचेगी। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

रविवार, अक्टूबर 27, 2019

पारखी लोग ढूंढो ~ Shubhanshu


अगर आपको कोई इज़्ज़त नहीं दे रहा जबकि आप महान हैं तो आप अपनी संगत बदलो। उस जगह जाओ, जहां पारखी लोग रहते हों।

महान लोगों में यही टैलेंट होता है कि वे सदा जगह बदलते रहते हैं या अकेले रहते हैं। पारखी लोग गाहे-बगाहे पहले से कहीं इकट्ठा हैं। आपको उनको ढूढने के लिये खुद के टैलेंट को दर्शाना होगा mass स्तर पर। जो आपको आपके टैलेंट से पसंद करे उनके साथ जाओ। वो अपने जैसे लोगों से मिलवाएगा।

दिल्ली में एक शो में मुझे बुलाया गया था। मेरा पहला standup कॉमेडी शो था। मैं अच्छा नहीं कर सका। दिल्ली की जनता बहुत कठोर है। उनको बहुत ही ज्यादा मंझा हुआ खिलाड़ी पसंद है। मैं अंतर्मुखी होने के कारण भीड़ से डरता हूँ। नर्वस हो गया था। back stage पर जब मैं उदास खड़ा था तो एक लड़के ने मुझे ऑटोग्राफ के लिये पूछा।

मैंने कहा, मजाक कर रहे हो क्या? मेरा तो पूरा शो बेकार गया।

वो बोला, "दिल्ली की सबसे घटिया ऑडियंस आज मैंने देखी। आपके जैसा टैलेंट मैंने कभी नहीं देखा। मैं एक रंगमंच का owner हूँ और आपको आमंत्रित करता हूँ कि आप मेरे साथ काम करें।

इतना अच्छा इंसान कहीं नर्वस न हो जाये इसलिये मैं आपको cheer करने के लिए खुद को रोक नहीं पाया और आपको ढूंढता हुआ यहाँ चला आया। बेस्ट ऑफ लक bro।"

इसी तरह कोई न कोई पारखी आपको सैकङो में से एक मिलता रहेगा। उनसे जुड़िये और देखिये कि जौहरी हीरे की कीमत कितनी बताता है। ~ Vegan Shubhanshu 2019©

सोमवार, अक्टूबर 21, 2019

गर्व से बोलो, धर्ममुक्त जयते ~ Shubhanshu



जब हम कहते हैं, "जय मूलनिवासी" तो अर्थ हुआ, "मूलनिवासी जीते"। "जय भारत" का अर्थ हुआ "भारत जीते"। इसमें व्यक्तिपूजा नहीं परन्तु समूह पूजा है।

इस तरह की पूजा में समस्या पहले भी आ चुकी है। जब भारत माता की जय बोली जा रही थी तो सैद्धांतिक रूप से वो  एक धार्मिक देवी की ही जय थी।

मान्यता है कि विवेकानंद वेदांत के अतिरिक्त पाखण्ड के विरोधी थे लेकिन उन्होंने भारत माता को सशरीर देखा था। जो कि उनको साफ पाखण्डी बताता है। इसी को आधार बना कर ये नारा बन गया था।

जब जवाहरलाल नेहरू आये तो वे इस नौंटकी को समझ न सके और इसमें उन्होंने समझाया कि भारत माता दरअसल भारत के लोग हैं। उनकी जय हो।

इस तरह एक जबरन डाला हुआ मतलब तो बना दिया लेकिन भारत माता को भारत के लोग कहना तर्कसंगत तो कहीं से नहीं हुआ।

फिर हद तो तब हुई जब हर जगह मंदिरों में काल्पनिक भारत माता जो कि विवेकानंद की रची कल्पना थी, मूर्ति के रूप में नज़र आने लगी और भारत माता, अन्य देवियों की तरह पूजी जाने लगी।

इससे क्या लाभ हुआ? अब मान लो कि जय मूलनिवासी बोलने पर कोई 1 व्यक्ति की पूजा नहीं हुई लेकिन क्या एक समुदाय के प्रति श्रेष्ठता की भावना पक्षपाती नहीं हुई? कल को मूलनिवासी देवता बना कर मंदिर बन जायेगा और फिर उस पर भी चढ़ावा चढ़ेगा।

जय भारत वाला नारा भी कल भारत देव नाम से मूर्ति बन कर मंदिर में सजेगा तब? सोच लो, इस तरह भारत माता का लँगड हो चुका है। सम्भव है दोबारा हो। लेकिन अगर हम जय धर्ममुक्त बोलें तो?

धर्ममुक्त न तो कोई व्यक्ति है और न ही कोई बेजान वस्तु और न ही कोई समूह। ये एक विचार धारा है, साम्यवाद की तरह लेकिन इसमें कोई जटिल परिभाषा नहीं। सभी प्रकार के सम्प्रदाय/रिलिजन/मजहब से मुक्त हो जाना, वापस सामान्य इंसान बन जाना, अपनी बुद्धि से चलना ही धर्ममुक्त होना है। एक दम शानदार और खुद को आजमाने का मौका। शरीर तो 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो गया था लेकिन दिमाग केवल धर्ममुक्त होना ही आज़ाद करा सकता है।

फिर भी क्या पता? कल को कोई मूर्ख धर्ममुक्त देवता भी बना डाले और हमारे और कश्मीर जी के मास्टर प्लान की बैंड बजा डाले तो क्या होगा?

इसलिये अगर जोश बढाना ही है तो सोचा कि दूसरों से कुछ और बड़ा किया जाए। हमने और बढ़िया सोचा और हमे एक शब्द दिखा जिसकी सदियों से कोई मूर्ति नहीं बनी थी, और वो था "सत्यमेव जयते" (भारत सरकार का आधिकारिक शब्द)। अर्थात सत्य की सदा विजय होती है या कहें सत्य सदा जीतता है। देखिये, इस तरह के वाक्य में कोई संज्ञा ही नहीं है। केवल एक भाव है जो सत्य कहलाता है। ये सार्वभौमिक है और शाश्वत है। इसकी कोई मूर्ति बना भी ले तो उसका कोई अर्थ नहीं बनेगा।

फिर क्यों न हम इन्हीं शब्दों में धर्ममुक्त भी रखें? धर्ममुक्त जयते! अर्थात धर्ममुक्त  इंसान जीतता है। धर्ममुक्त कोई भी बन सकता है अतः ये सत्य के समान एक भाव है। इसमें कोई भेदभाव नहीं। समानता है। कोई जातपात नहीं, कोई भेदभाव नहीं, सिर्फ अच्छाई! अतः बोलते रहिये, "धर्ममुक्त जयते, धर्ममुक्त जयते, धर्ममुक्त जयते", "जीतेगा भई जीतेगा, हर धर्ममुक्त जीतेगा।" ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

रविवार, अक्टूबर 20, 2019

काल्पनिक रावण ब्राह्मण और विदेशी था ~ Shubhanshu



पूरे विश्व में बच्चा पिता का माना जाता है। उसका ही वंश उसके पुत्र से चलाया जाता है। माँ का कार्य केवल बच्चा पैदा करके पालना होता है। इसीलिए चाहें वो किसी भी जाति, धर्म, वंश, रंग, स्थान की हो, स्वीकार कर ली जाती है। इसीलिए love जिहाद जैसा गिरोह बना जो हिन्दू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसा कर विवाह करता था। क्योंकि लड़की कोई भी हो, वंश लडके का चलता है। मेरी बहन ने भी भाग कर एक मुसलमान लड़के से विवाह कर लिया था। अब हमारा और उसका कोई सम्पर्क/सम्बन्ध नहीं है।

हर कहानी, हर फिल्म में आप देख सकते हैं कि जब लड़की विवाह पूर्व गर्भवती होती है तो वो सबसे एक ही सवाल सुनती है, "किसका बच्चा है?" इसका अर्थ ये हुआ कि समाज बच्चा महिला का नहीं मानता। इनके अनुसार महिला केवल एक पात्र है जिसमें बच्चा पुरुष रख गया। आज कानून भी बच्चे के पिता को ही बच्चे का मूल स्वामी मानता है और इसी वजह से बच्चे की मां का परिवार नाम बदल कर लड़के के परिवार नाम पर रख दिया जाता है। जो बताता है कि लड़की कोई भी हो चलेगी। उसके कोई गुण नर बालक में नहीं आते।

मेडिकल साइंस के अनुसार भी नर बालक में पिता के गुण ही प्रभावी होते हैं। इसी तरह मादा बच्चे में भी सिर्फ माँ के ही गुण प्रभावी होते हैं। अतः यदि कोई ब्राह्मण यदि किसी बहुजन या किसी भी अन्य वंश की स्त्री से विवाह कर ले तो उसका वंश ब्राह्मण ही कहलायेगा।

कपोल कल्पित वाल्मीकि रामायण के रचयिता रत्नाकर थे जो कि ब्रह्मा के मानस पुत्र ऋषि प्रचेता और माँ चार्शिणी (वर्ण अज्ञात) के पुत्र थे। अतः ये भी ब्राह्मण थे। इनका नाम बाद में वाल्मीकि पड़ गया था।

अब आते हैं रावण के वर्ण और राष्ट्रीयता पर। पुस्तक के अनुसार रावण सीलोन नामक देश में रहता था जिसे आज श्री लंका कहा जाता है। यह एक दूसरा देश है जो भारत से बिल्कुल अलग थलग है। अतः रावण विदेशी था। रावण के पिता ब्राह्मण ऋषि विश्रवा और माता का नाम राक्षसी कैकसी था। अतः उपर्युक्त विवेचनानुसार रावण भी ब्राह्मण था। इतिसिद्धम! ~ Shubhanshu 2019©

ऑनलाइन तो मत डरो ~ Shubhanshu



हम सब असल जीवन में उपनाम छुपा सकते हैं क्योंकि आप किसी जातिवादी के कंट्रोल में हो सकते हैं लेकिन फेसबुक पर उपनाम छुपाने का मतलब है कि आपकी इतनी ज्यादा फटी पड़ी है, जातिवादियों से कि जैसे फेसबुक पर भी वो आपको थप्पड़ लगा देंगे या लाठी से कूट देंगे।

जो मूर्ख आपको ऐसी नाम बदलने की सलाह दे रहा है वो वाकई में फटीचर ही होगा दिमाग से। जिसकी किसी जातिवादी ने नाम पूछ के ले ली खबर। ऐसे फटीचरो से सलाह न लें। अपना नाम जो है वही रखें। अपनी पहचान बनाइये और नाम कमाइए। आखिर इंसान जीता किस लिए है? सम्मान के लिये। जो भी नाम पर उंगली उठाये उस की गेंद में पूरा बाँस डाल दीजिये। ब्लॉक कर दीजिये। ख़त्म हुआ। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

रविवार, अक्टूबर 13, 2019

अप्प दीपो भव: ~ Shubhanshu


जय भीम न बोलने पर पुजारी के हाथ तोड़े, जान से मारने का प्रयास किया, ठाकुर कालोनी में जय भीम न बोलने वालों को जान से मारने की धमकी वाले पर्चे डाले गए, यदि ये सब धार्मिक कट्टरता नहीं है तो क्या है?

जब हम इस तरह के मुद्दे उठाते हैं तो हमें हमारे नाम में सिंह चौहान देख कर जातिवाद किया जाता है जो कि ढोंगी दलितों की असलियत सामने लाता है। अनुसूचित जाति का होने पर भी मुझे ठाकुरों के साथ पढ़ाई के लिये रहना था। अतः पापा ने बचपन में ही मेरे नाम में सिंह चौहान जोड़ दिया ताकि मैं सवर्णों की कट्टरता का शिकार न बनूँ।

जब नास्तिकों के साथ जुड़ा तो इधर भी वैसा ही कट्टरपंथ दिखा। अब जो नाम मुझे सवर्ण कट्टरपंथियों से बचाता था, वही मुझे दलित कट्टरपंथियों से पिटवाने लगा। दोनो में कोई फर्क नहीं था। फेसबुक पर सुदेश, जितेंद्र और भी बहुत से इन जैसे लोग दलित कट्टरपंथी हैं, जो मेरे नाम को और मेरे निष्पक्ष होने को गलत ठहराते हैं।

मेरा पूरा नाम मुझे घटिया सोच वाले नकली नास्तिकों की असलियत दिखाता है जो सम्भवतः किसी नास्तिक समझें जाने वाले धर्म से भी जुड़े हैं। भीम चरित मानस भीम धर्म के लिये तैयार है, भीम कथा की पर्ची कटने लगी हैं। बौद्ध धर्म का प्रचार चरम पर है। अब अगर मैं इनके साथ खड़ा हुआ तो मैं फिर वहीं जाता दिखता हूँ जहाँ से चल कर आया था।

इसीलिये कृपया कट्टरता कौन कर रहा है ये देखिये। किसी व्यक्ति की जय बोलना सबका निजी मत है, लेकिन उसे दूसरे से बुलवाने का कार्य कट्टरता है। तानाशाही है। वैसे ही जैसे जय श्री राम न बोलने पर धार्मिक भीड़ द्वारा मारपीट।

मैं उसी कट्टरता का सही आकलन करता हूँ जो वास्तविक होती है, और जो समस्या वास्तविक है उसी से खतरा है।

जय भीम बोलो, वरना मरो जैसे पर्चे बाँट कर दलित संगठन उसी तरह से मुकर गए जिस तरह हिन्दू संगठनों ने अपने कार्य (गांधी हत्या) करे और बाद में मुकर गये।

कीचड़ से कीचड़ धोकर क्या मिलेगा? कीचड़ ही न? बेहतर होता भीम चरित मानस और भीम कथा/भजन की जगह संविधान में अपने अधिकारों और कर्तव्यों को सिखाया जाता। बेहतर होता जो हर दलित अपनी आरक्षण और शिक्षा के अधिकार का फायदा उठा कर सरकारी वकील बनता।

आज बाबा साहेब जैसे कितने वकील हैं? शायद ही कोई हो। मैं वकील न बन सका, मेरी मजबूरी थी लेकिन क्या आप सब भी मजबूर हैं? सोचो इससे पहले कि बहुत देर हो जाये!

PS: जयभीम, नमो बुद्धाय नहीं रटो, वो तो थे, जो भी थे, अब नहीं हैं। उनसे सीखो, लेकिन अपनी राह सिर्फ खुद बनाओ, याद रखो बुद्ध की एक मात्र शिक्षा: अप्प दीपो भव: ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 

संदर्भ: 

विवाहमुक्ति, यौनशिक्षा और बलात्कार ~ Shubhanshu


लिंगानुपात विपरीत हो जाये तो स्थिति बदलेगी ही। लेकिन ऐसा सिर्फ लड़की पैदा करके नहीं होना। उसके माता-पिता द्वारा लड़कों जैसा पालनपोषण भी होना चाहिए। अभी तो लड़कियां एक तरह से मजबूरी समझ कर पैदा की जा रही हैं लड़के की प्रतीक्षा में।

संख्या कोई तब तक नहीं बढ़ाएगा जब तक विवाह लड़की का सौदा जैसा रहेगा। कोई लड़को जैसी आशा रखे लड़की से, तभी कुछ सुधार आ सकता है, उनकी हालत में। इसके लिए लड़कियों को उच्च शिक्षा देना कारगर होगा। जो कि माता-पिता चाहते नहीं।

और हाँ, रेप को लेकर में आश्वस्त नहीं हूँ कि कोई लाभ लिंगानुपात बढ़ने से वास्तव मे हो सकता है। रेप करने के पीछे सामान्य कारण है लड़कियों का सामान्य लड़कों से नफरत करना। बाकी कारण उसके बाद शुरू होते हैं। लड़कियाँ सेक्स को लेकर इतनी डरी हुई है कि साधारण प्रेम भी बलात्कार में बदल जाता है।

वे चाहते हुए भी सेक्स को हाँ नहीं कहती और करना भी चाहती हैं। इसीलिए प्रचलित है कि लड़कियों की न में उनकी हाँ होती है, जबकि मैं कहता हूँ कि लड़कियों की हाँ में ही उनकी न भी होती है। बस लड़के कभी समझ नहीं पाते।

कारण है उनके भीतर सेक्स के प्रति भरा डर और जिस घर में हम रहते हैं उससे निकाले जाने, पीटे-मारे जाने का डर। प्रेगनेंसी का डर तो दरअसल इन सबकी शुरुआत होती है। अन्य कारण है वीडियो/फ़ोटो द्वारा बदनाम होना, विवाह न हो पाना। जबकि विवाह जैसी व्यवस्था खत्म कर देने से बदनामी शब्द समाप्त हो जाता है और सेक्स शिक्षा देने से सेक्स से डर भी निकल जाता है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

बुधवार, अक्टूबर 09, 2019

मेरे अनसुलझे रहस्य : अनोखे सपने ~ Shubhanshu



स्वप्न में अगर वो हो रहा है जो आप हकीकत में कर नहीं पाते तो सपना कभी खत्म न हो ये मन करता है और अगर बुरा सपना आये तो लगता है कि आते ही टूट क्यों नहीं गया?

मैं उन दुर्लभतम इंसानो में से एक हूँ जिसको कुछ अलग सा बनाने में उनके अनसुलझे रहस्य वाले स्वप्नों का बड़ा हाथ है। मेरा पहला लेखन कार्य एक ऐसे सपने को लिखना था जो कि कहीं स्थित पौराणिक मंदिर में छिपे खजाने तक जाने का रास्ता सुझाता है। (कहानी: रहस्यमय खजाने की खोज)

मैं कभी नहीं समझ सका कि इन सपनो को कोई मस्तिष्क कैसे बना सकता है? मेरे स्वप्न पूर्व आधारित जानकारी पर आधारित नहीं होते, वे मुझे नई जानकारी देते हैं। ये अभी तक के विज्ञान के अनुसार असम्भव है।

मैंने एक फ़िल्म देखी थी इन्सेप्शन। उसमें किसी रसायन द्वारा स्वप्न को प्रोग्राम करने, उसमें कई स्टेज पर जाने का सफलतापूर्वक परीक्षण करके दिखाया गया था। मैं जानता था कि ये कल्पना है लेकिन अवश्य ही ये किसी वास्तविक तर्क, अध्धय्यन, प्रयोगों पर आधारित होगा। उसी को बढ़ा-चढ़ा कर ये फ़िल्म बनी होगी।

मैंने ज्यादा खोजबीन नहीं की। लेकिन मुझे कुछ ऐसे स्वप्न आये थे जो कि 2 से 3 स्तर तक मुझे ले गए। मैने उनको लिख लिया है। मेरे स्वप्न आम नहीं, इनको बचपन से न जाने कितने ही लोगों को सुना-सुना कर देख चुका। स्वप्न इतनी जानकारी भरे होते थे कि उन पर आसानी से कहानी लिखी जा सकती हैं। मेरे 90% कहानियों को मेरे सपनो ने लिखा है और उनकी विचित्रता आप लोग उन कथाओं को पढ़ने के बाद ही समझ सकेंगे।

मेरे सपनों ने मेरी होने वाली सभी सम्भव हत्याओं और दुर्घटनाओं द्वारा मृत्यु को दिखाया है। भविष्य और भी दिखायेगा या नहीं या वाकई इनमें से कोई मेरी मौत की वजह बनेगा या मैं भविष्य देख कर सावधान हो गया हूँ और अपनी तमाम मौत की आहटों को टाल गया हूँ? अब इस पर तो हम कोई राय नहीं दे सकते।

तर्कवादी होने के कारण जहाँ तक हो सकता है, तर्क लगा रहा हूँ लेकिन मैं इस मामले में फेल हो गया। ये सपने मेरे लिये मेरे हमसफ़र, साथी और मेरे रक्षक हैं। नहीं जानता कि इनका राज़ क्या है और खुशी इस बात की है कि यही मेरे सच्चे माँ-बाप हैं। बहुत कुछ लिखूंगा अपनी किताब में अगर कभी लिखी तो। बहुत दिनों से बहुत से सपनो को miss कर दिया। काफी अफ़सोस होता है कि मैं न उनको याद रख सका और न आपको उनका परिचय करवा सका। मुझे माफ़ कर देना। ये सपने आप सबकी धरोहर हैं।

क्या पता? कल इनका दुनिया में कोई सदुपयोग हो सके? या कोई नया राज़ खुले मानव मस्तिष्क की सीमाओं का। ~ मैं हूँ आपका वही दोस्त, Shubhanshu Dharmamukt 2091©

मंगलवार, अक्टूबर 08, 2019

Over qualifieds and unqualifieds are equals ~ Shubhanshu




शुभ: इससे पहले आप मुझे कुछ कहें मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ, कम पढ़े लिखे को भगाने का तो लॉजिक बनता है लेकिन ये ज्यादा पढ़े लिखे को रिजेक्ट करने का क्या लँगड है sir?

बॉस: देखो बेटे, बॉस का काम है नौकर से गुलामी करवाना। नौकर गुलामी तब करेगा जब मालिक से कम सम्मान प्राप्त होगा। मैं आपको नौकरी पर रख भी लूँ तो आपसे कुत्ते की तरह काम नहीं ले सकता। आप मेरे को ही सबके सामने ताना मार दोगे कि साला 2 कौड़ी का आदमी मुझे सिखा रहा है? इससे मेरी साख गिर जाएगी और आपको भी पेमेंट नहीं मिलेगा। हो सकता है, धक्के और दिए जाएं। इसलिये कोई भी मालिक जो आपसे कम योग्य होगा आपको रखने का रिस्क नहीं लेगा।

शुभ: ये बात है। लेकिन अगर मैं हर जायज बात मानने का लिखित आश्वासन दे दूँ तो?

बॉस: मैं रख भी लूँ ऐसा करके और आप पर इच्छाशक्ति हो खुद पर काबू रखने की तो भी आप जल्दी ही आपकी उच्च योग्यता से मेरी जगह ले लोगे और हो सकता है मेरे से ऊपर की भी। मेरे बीवी-बच्चों ने वैसे ही जीना हराम कर रखा है और अगर मेरी जॉब चली गई, जो कि जाएगी ही मुझे लग रहा है तो मैं आपको अपनी मरवाने के लिए क्यों रखूंगा? खुद सोचिये! आप काहे नौकरी के चक्कर में पड़े हैं? आप का नॉलेज मैंने इंटरव्यू में देखा, आप तो किसी प्रोपर्टी अगर हो तो उसपे लोन लेकर अपनी खुद की कम्पनी खड़ी करें। आप employer material हो; employee material बिल्कुल भी नहीं। यहाँ से जाकर मेरी सलाह पर गौर करना। नहीं तो बेकार में परेशान होंगे।

शुभ: Thanks for guidance! समझ नहीं आ रहा कि जो गणित मैंने लगाई थी आपने एकदम अक्षरशः उसको वैसा ही बताया। ये सच है कि मैं आपकी सीट पक्का लपेट लेता। मुझे भी आपकी एक एक खामी दिख रही है। अगर मैं join करता तो सबसे पहले आप ही को कमियां बता-बता कर hopeless कर देता। आपने सही कहा कि मैं नौकरी करने के लिये नहीं बना। देने के लिए बना हूँ। लेकिन उसमें चैलेंज नहीं है। फिर वहीं अटक के रह जाऊंगा। इससे तो अच्छा जैसा हूँ वैसे ही ठीक है। अपनी FD से अच्छी खासी इनकम आ रही है और खेत भी बटाई पर लगे हुए हैं। तो अपना काम तो चलते ही रहना है।