Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, मार्च 11, 2020

निर्गुण ईश्वर की विचार धारा और अनीश्वरवादी जाति-धर्ममुक्त




सभी धर्मों में घुलनशील बन जाना भी आपका धार्मिक होना ही है। सबका मालिक एक है बोलने वाले साई बाबा (चांद मोहम्मद) इसका प्रमाण हैं कि धार्मिक सद्भावना का होना आपको आस्तिक होने से नहीं रोकता। बल्कि सभी धर्मों को एक ईश्वर तक ले जाने वाले रास्ते की अवधारणा को पुष्ट करता है।

धार्मिक सद्भावना दरअसल एक खुली निर्गुण आस्तिक विचारधारा है। ये धार्मिक नफ़रत से तो लाख बेहतर है ही लेकिन ये केवल एक धर्मजातिमुक्त परन्तु निर्गुण आस्तिक के भीतर ही पाई जा सकती है। कबीर और अन्य बहुत से निर्गुण उपासक बहुत प्रचलित रहे हैं।

जबकि धार्मिक शब्द, धर्म (रिलीजन) के प्रति प्रेम पर आधारित है। ये प्रेम केवल अपने धर्म से हो तो स्वधार्मिक होगा और अगर स्वयं, विज्ञान व सहानुभूति/दया पर केंद्रित होगा तो वह होगा तर्कवादी ईश्वर जाति धर्ममुक्त। मैं ऐसा ही हूँ। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

मंगलवार, मार्च 10, 2020

Women are friends, not Salves





मैं दोनों चित्रों में एक अंतर देखता हूं। 2 महिलाएं अपने चेहरे को दिखाने से डरती नहीं हैं। उनकी संस्कृति में कोई फर्क नहीं है। धार्मिक पुरुषों ने कभी भी महिलाओं को एक इंसान नहीं माना, उनके लिए, वे केवल एक सेक्स गुड़िया हैं, जिन्हें खरोचों से बचाने के लिये और केवल उनके उपयोग के लिए cover किया जाना चाहिए।

इन धर्मों के लिए महिला की यौन इच्छा सिर्फ एक मिथक है। महिलाएं सेक्स करने के लिए बनी एक वस्तु नहीं हैं। यदि आपको लगता है कि हाँ वह है, तो तुम भाड़ में जाओ, तुम्हारा धर्म भाड़ में जाए और तुम्हारी पूरी मानसिकता भाड़ में जाये।

उन्हें आज़ाद छोड़ दें या उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करें। उनकी मदद करो। वे हमारी दासी नहीं हैं, वे हमारी दोस्त हैं। झूठे नायक मत बनो। पति मत बनो, एक स्वामी मत बनो और किसी को भी एक दासी मत बनाओ। अपने आप को उनके स्थान पर रखें और आप महसूस कर सकते हैं कि वे हर रोज क्या महसूस कर रही हैं। ~ Shubhanshu Dhrmamukt 2020 © Poisonous Truth उर्फ Zahar Bujha Satya (तकलीफ तो होगी ही)

English Version:

I see a difference in both pictures. 2 women don't afraid to show their faces.

In the culture of them there is no difference. Religious males never considered women as a being, for them, they are only a fuckable sex doll, which needs to be covered to prevent tear and wear for their use only. Women's sexual desire is just a myth for these religions.

Women are not a object to fuck. If you think yes she is, then Fuck yourself, fuck you, and fuck your fucking religion and fuck your whole mentality.

Leave them or encourage them to become self depend. Help them. They are not our slave, they are our friends.

Don't be a hero. Don't be a husband, don't be a master and don't make anyone a salve.

Put yourself at the place of them and you can feel what they are feeling everyday. ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Poisonous Truth aka Zahar bujha Satya (ज़हरबुझा सत्य ~ तकलीफ तो होगी ही।)

शनिवार, फ़रवरी 22, 2020

दोगले परिवार: क्रूरता और अहिंसा ~ Shubhanshu






प्रश्न: जो माता पिता बचपन में हम पर इतना अधिक क्रूर होते हैं, वही पोते-पोतियों के लिये अहिंसक क्यों बन जाते हैं?

शुभ: उनका लालच होता है खुद का वंश चलाने का जो कि काफी समय से चल रहा एक कार्य है। कोई कार्य यदि ज्यादा लंबे समय से किया जा रहा हो तो वह एक परम्परा बन जाता है। जिसे विरासत कहते हैं। इसमें केवल काम के इंसान से मतलब रखा जाता है। उनको अपना नाम ज़िंदा रखना है। इसलिये वे पोते-पोतियों को पटाते हैं। अब आपसे क्या मतलब? आपने उनका काम कर दिया। अब आपकी क्या ज़रूरत?

जैसे यदि आपने अपने मन से किसी के साथ विवाह या बच्चा किया तो वंश अशुद्ध हो जाएगा। इसलिये घर वाले आपके लिये सम्भोग साथी स्वयं चुनते हैं। उनको आपकी खुशी की परवाह कभी नहीं होती। उनको अपना कार्य करना है जो पुरखे सौंप गए। यानि पहले पूर्वजों की निशानी बनाये रखना।

यदि आपने उनके वंश से बाहर विवाह या बच्चा किया तो वे आपका कत्ल (ऑनर किलिंग) तक कर देंगे। इसी तरह जब पोता हो गया तो अब वो ही ज़रूरी है। बाकी सब बेकार हो गए। उसकी सुरक्षा ही वंश के आगे बढ़ने की गारंटी है।

ये केवल शुद्ध स्वार्थ है। कोई प्रेम नहीं है फैमिली सिस्टम में। शुरुआत में मारपीट का कारण आपको अपना गुलाम बनाने से है ताकि आप उनकी मर्जी के खिलाफ कतई न जाएं। इसके लिए आपको पालतू जानवर की तरह प्रेम का ढोंग और कुटाई दोनो करके साम दाम दंड भेद से गुलाम बनाया जाएगा। प्रेम इसलिए क्योंकि आप का use भी तो करना है न? 😊 नेत्र ओपनम or not? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

बुधवार, फ़रवरी 19, 2020

3 कौड़ी का नास्तिक ~ Shubhanshu



विद्वान: ईश्वर सत्य है।

शुभ: ok लेकिन प्रमाण?

विद्वान: प्रमाण नहीं, लेकिन तर्क है कि दुनिया किसने बनाई? हमें किसने बनाया?

शुभ: उद्विकास पढ़ लो। विज्ञान में सबसे पहले इसी का उत्तर दिया गया है। जंतुविज्ञान में जीवन की उत्तपत्ति नाम का पाठ पढ़िये। ये दुनिया संयोगों और दुर्घटनाओं से अपने आप बनी।

आपने जो कहा कि किसी ने बनाया तो फिर आप जिसकी कल्पना करके प्रसन्न हो रहे उसे किसने बनाया और उसे भी किसी ने बनाया तो उसने दुनिया क्यों बनाई? बिना परीक्षण और प्रमाणों के ईश्वर गढ़ कर धंधा करना तो ठीक है लेकिन धंधा है ये न मान कर उसे तर्क और प्रमाण मान लेना मूर्खतापूर्ण है।

वैज्ञानिक विधि ही दरअसल हर समस्या का हल है। इसका इस्तेमाल करके ही आप सत्य का पता प्रमाण के साथ पा सकते हैं।

सत्य को असत्य व भ्रम से अलग करने के लिये अब तक आविष्कृत तरीकों में वैज्ञानिक विधि सर्वश्रेष्ठ है। संक्षेप में वैज्ञानिक विधि निम्न प्रकार से कार्य करती है:

(१) ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण करिए,
(२) एक संभावित परिकल्पना (hypothesis) सुझाइए जो प्राप्त आकडों से मेल खाती हो,
(३) इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी (prediction) करिये,
(४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियां प्रयोग से प्राप्त आंकडों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आकडे और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
(५) उपरोक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकडों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाय।

किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या परिकल्पना की सबसे बडी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश (scope) होनी चाहिये। जबकी मजहबी मान्यताएं ऐसी होतीं हैं जिन्हे असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिये 'जो जीसस के बताये मार्ग पर चलेंगे, केवल वे ही स्वर्ग जायेंगे' - इसकी सत्यता की जांच नहीं की जा सकती।

खुद की उपलब्धियों पर गर्व करना अच्छी बात है लेकिन दूसरों को प्रेरित करने की जगह उनको तुच्छ समझना मूर्खतापूर्ण है जबकि ऐसा करके आप स्वयं को तुच्छ साबित कर रहे क्योंकि कोई जन्म से ज्ञानी नहीं होता। ज्ञानी भी कभी अज्ञानी था। अधिकतर जिनको कुछ कर नहीं मिलता वही करने वालों को मूर्ख समझते हैं। होते खुद हैं। ज़िन्दगी झंड और फिर भी घमंड ऐसे ही लोगों के लिए बना एक मुहावरा है।

विद्वान: चल हट 3 कौड़ी का नास्तिक साला! घमंडी। भाग नहीं तो अभी गर्दन दबा दूंगा। ईश्वर का अपमान करता है? अभी मोबलीचिंग करवा दूंगा। निकल।

शुभ: 🤣😂🤣😀😀😂🤣😀😂🤣😃😂😅😄😆😎 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शनिवार, फ़रवरी 01, 2020

ये हुई अक्ल की बात ~ Shubhanshu

संविधान में सैकड़ों परिवर्तन हुए हैं और होते रहेंगे। तो ये संविधान बचाने कौन लोग निकले हैं? क्या इनको संविधान में संशोधन या संशोधन निरस्त करने की क्षमता प्राप्त है? क्या ये संविधान के विशेषज्ञ हैं? कानून जनता से पूछ कर नहीं बनते। वो मानवाधिकार के आधार पर बनते हैं।

जो भी कानून इन अधिकारों का पालन नहीं करता, वह कानून ही नहीं है। और देर सवेर वह बदलेगा ही। अतः कानून अगर गलत लगता है तो उसको अदालत में चुनौती दी जा सकती है और कोर्ट का फैसला अंतिम होता है। उसके लिए भीड़, तमाशा और आंदोलन नहीं चाहिए। चाहिए तो केवल एक अदद तर्क। केवल एक सही तर्क काले और सफेद को अलग-अलग कर देता है। इसके लिए 1000 या लाख लोगों का दबाव नहीं चाहिए।

फिर ये लोग कौन हैं जो शोर मचाने में विश्वास रखते हैं बजाय तर्क करने के? ये वही लोग हैं जिन्होंने कहा/सुना कि हनुमान सूरज निगल गया और अपनी पूछ से सोना जला दिया। जिन्होंने कहा कि चंद्रमा के दो टुकड़े हुए और वो वापस जोड़ दिया गया। ऐसे ही तमाम कुतर्क सत्य और चमत्कार समझ कर, गीत गाये, प्रचार किया।

दरअसल जो भी ऐसा करता है उसका एक खास कूटनीतिक मकसद होता है। उसका मकसद है सत्ता पर काबिज होना। लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने का। तानाशाह बनने का। उसका मकसद है धोखे से जनता को ठगना। भोले-भाले लोगों को भड़का कर उनके खून-पसीने की कमाई लूटकर उस से अपने लिए महंगे इत्र खरीदना।

हमेशा ही इस देश को लूटने के लिए लोग आते जाते रहे हैं। आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने लूटा और अब आज़ादी के बाद काले अंग्रेज इस देश को राजनीति का तमंचा लगा कर लूट रहे हैं। याद रखिये, काम यदि खामोशी से किया जाए तो ही सफलता शोर मचाती है। जबकि इस तरह के शोर शराबे वाले देश के राजनीतिक, बस अपना बुरा हश्र ही देखेंगे और भुगतेंगे हम और आप जैसे अंतिम नागरिक। जो बस फेसबुक पर ही अपने मन की 2-4 बात बोल लेते हैं। हम पर हराम का, कॉलेज में पढ़ने आये लोगों से अवैध वसूली करके और कानून का उल्लंघन करने वालों से लिये हुए रिश्वत के अरबों रुपये जो नहीं हैं गुंडों पर लुटाने, सड़कों पर आन्दोलन करने की तनख्वाह देने के लिये।

हम यहीं मर जाएंगे बस यूँ ही बकबकाते हुए। बस कोई-कोई ही होता है जो समझेगा कि कौन था शुभ और क्या था उसका मकसद। और मैं हजार बार यही कहूंगा कि चैन से सोना है तो जाग जाइए। जहाँ राजनीति दिखे, उधर से भाग जाइये। अपना घर बचाइए जिसे ये नेता लूटने और जलाने आ रहे हैं। नमस्कार। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

शनिवार, जनवरी 11, 2020

स्त्रीसूचक अपशब्दों की जड़ और काट ~ Shubhanshu




समाज में लड़की के पैदा होने से पहले ही महिला को समस्या समझा जाता है क्योंकि विवाह नाम की संस्था खर्चे मांगती है। लड़का होगा तो उसकी पत्नी पैसा देगी और लड़की हुई तो उनको देना पड़ेगा। लड़की परिवार के लिए एक आर्थिक और सामाजिक दंड की तरह होती है। और इसकी एकमात्र वजह है विवाह की अवधारणा।

इसमें ऐसा इसलिये है क्योकि महिला को खाना कम देकर पुरुष से कमज़ोर बनाया जाता है। बड़े काम के लिए उसे कमज़ोर बोल के मांसपेशियों को कमज़ोर रखा जाता है। कारण सिर्फ यही है कि जब उसका पति उसे पीटे तो वो उसका मुकाबला न कर सके। 

बच्चा होता है तो लड़के का होता है। उसका वंश चलेगा, वो मर्द साबित होगा। महिला 9 माह जीवन नरक बनाये और फिर गोद में लादे, अपना बाकी का जीवन भी नरक बनाये सिर्फ इसलिये क्योंकि उसे लड़के के पिता के बनाये घर में रहना है। क्योंकि उसका खुद का कोई घर ही नहीं है।

फिर इस तरह से मजबूर स्त्री जब बार बार लड़की पैदा होने पर या बांझ हो जाने पर अकेली छोड़ दी जाती है तो इस तरह की कंडीशनिंग से कमज़ोर पड़ी महिला बलात्कार और वैश्यावृत्ति के जाल में डाल कर मजे के लिये इस्तेमाल होने लगती है। और इस धंधे को वो अपनी इच्छा से भी करे तो उसे ही खराब बताया जाता है क्योकि उसका कोई पति नहीं है। है तो इस लायक नहीं है कि कमा कर खिला सके।

मर्द द्वारा महिला को पालना है ये नियम समाज में बना है। जो मर्द न पाले वो गलत और जो महिला मर्द को छोड़ आये या मर्द छोड़ दे तो महिला दोषी क्योंकि उसने किसी भी तरह झुक कर क्यों नहीं मना लिया पति को?

अब इस दुनिया का तो नियम ही है कि कमज़ोर को कोई नहीं छोड़ता तो महिला को कमज़ोर बना कर उसे नीचा दिखाया जाता है और फिर जो नीच है उसे गन्दा बोलना पड़ेगा। कोई तो इसे नरक का द्वार बोलेगा तो कोई माहवारी को लेकर ही उसे गन्दा बता देगा।

सब कुछ ये समाज है जिसने मिल कर नारी का गला घोंटा है और फिर उसके जननांगों को फूहड़ भाषा में केंद्र में लेकर उसके पालने वाले (पति,पुत्र,पिता) को अपमानित किया जाता है तो यही दर्शाया जाता है कि मर्द में ताकत नहीं जो अपनी महिला की रक्षा कर सके। इस बात में 'अपनी' महिला एक सम्पत्ति की तरह है और उसके अंग कीमती सामान की तरह जिसे इज़्ज़त बोलते हैं समाज के लोग जो लूटी जा सकती है और इससे महिला मरे या जिये उसके पालक का ही अपमान होगा ऐसा सोचा जाता है।

तो मूल क्या है? मूल है महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होना। विवाह करके मर्द के धन पर आश्रित हो जाना। जिम न जाकर, पेट भर आयरन/प्रोटीन युक्त भोजन न करके, मार्शल आर्ट न सीख कर साधारण पुरूष से कमज़ोर बने रहना और ऐसा पुरुषों की बलपूर्वक आज्ञा पालन से ही सम्भव हुआ है।

इन कारणों को खत्म कर दीजिए। स्त्री सूचक गाली बन्द हो जाएंगी। और न सिर्फ ये बन्द होंगी बल्कि हर समाज की बुराई खत्म हो जाएगी जो कहीं न कहीं महिलाओं से जुड़ी होती हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020 ©

शुक्रवार, जनवरी 10, 2020

सब होना लेकिन व्यक्तिवादी मत होना ~ Shubhanshu


स्वतन्त्र इंसान सबकुछ हो सकता है लेकिन व्यक्तिवादी नहीं। जैसे बहुत से लोग मेरी शिक्षाओं से बहुत सी विचारधारा वाले हुए लेकिन वे कभी खुद को शुभांशुवादी नहीं बोलते। वैसे भी विचारधारा जो अपना ले वह उसी की हो जाती है। भले ही व्यक्तिवाद किसी व्यक्ति को बहुत लोकप्रिय बना देता है लेकिन लोग उसके गुलाम भी बन जाते हैं।

मूर्ति/तस्वीर/चिन्ह आदि लगाने और फिर उसको पूजने लगते हैं। अतः लोकप्रिय बनिये मगर मन से न कि दुनिया भर में उसका डंका पीटिये। थॉमस एडिसन ने सफल बल्ब बनाया, लगभग 1100 अविष्कारों से दुनिया पाट दी, दुनिया को रौशन किया, फिल्में, रिकॉर्डर, बैटरी, कैमरा, टेलीग्राफ, आदि दिए लेकिन कोई उनको नहीं पूजता। मन ही मन उनका एहसान मानता है।

निकोला टेस्ला ने AC डायनेमो बनाई, टेस्ला quail बनाई, आज हम मैडम क्यूरी के बलिदान से जिन्होंने 2 भिन्न विज्ञानों में नोबल पुरस्कार प्राप्त किया, दबे हैं। मैडम क्यूरी की मृत्यु रेडियम के रेडिएशन से हो गयी थी और इसी की खोज के लिए उनको नोबल पुरस्कार दिया गया था।

मैं जब कहता हूँ मेरी विचारधारा, तो उसका मतलब ये होता है कि मेरे द्वारा चुनी गई विचारधारा का समूह। जो कि मेरे अनुमान से सर्वश्रेष्ठ हैं। किसी के हिसाब से उससे भी श्रेष्ठ विचारधाराएं होंगी लेकिन वो उनका पैमाना है। अभी मैं उनको नही जानता अन्यथा मैं उनमें कोई कमी ढूंढ कर अस्वीकार कर देता या प्रभावित होकर उनको भी अपना लेता। हमेशा दिमाग खुला रखता हूँ। नए के लिये स्थान छोड़ता हूँ ताकि और बेहतर बन सकूं। आप सबको भी यही सलाह दूँगा कि भले ही सबकुछ मेरा अपना लो, कुछ अपना भी अपना लो, कुछ दूसरे का भी लेकिन कभी व्यक्तिवादी मत होना। स्वयंवादी होना लेकिन कभी शुभाँशुवादी मत होना।

~ शुभाँशु सिंह चौहान अंतर्मुखी, विषमलिंगी, धर्ममुक्त, vegan, शिशुमुक्त, विवाहमुक्त, समाज/संस्कृति/नौकरी मुक्त, मुक्तविचारक, सोफोफिलिक, polyamorous, लेखक, कवि, कथाकार, व्यंग्यकार, डायरीकार, Quoter, 18+ रचनाकार, शौकिया मनोवैज्ञानिक, शौकिया उपाय खोजी, शौकिया आविष्कारक, शौकिया वैज्ञानिक, चित्रकार, Future Calculator, Dream learner, 2-3 stage dreamer, शाम्भवी मुद्रा धारक, कुंडलिनी जाग्रत, जनसंचार, पत्रकारिता व मीडिया तकनीकी डिप्लोमाधारी, फैशन डिजाइनर डिप्लोमाधारी, कंप्यूटर एप्लिकेशन डिप्लोमाधारी, जूलॉजी में परास्नातक...more coming soon! 2020©

बुधवार, जनवरी 08, 2020

सही राजनीतिक दल का चुनाव कैसे करें? ~ Shubhanshu


प्रश्न: सही राजनीतिक दल की आधारभूत पहचान क्या है?
उत्तर: सही राजनीतिक दल संविधान की प्रस्तावना, मानवाधिकार, कर्तव्यों का पालन करने वाला होना चाहिए। यानि उसकी कार्यप्रणाली, सोच-विचार, आदर्श और विचारधारा में निम्नलिखित बिंदु होने आवश्यक हैं:-

रंग विशेष, धर्म विशेष, जाति/वर्ण विशेष, वर्ग विशेष, आर्थिक आधार विशेष, स्थान विशेष, वंश विशेष, लिंग विशेष आदि का समर्थन नहीं करता हो।

समानता वादी हो (समता का अधिकार) अतः जनता को नागरिकों की परिभाषा के अनुसार व्यवहार करता हो।

मानवाधिकार का सम्मान करता हो और किसी भी प्रकार से नागरिकों के निजी जीवन में दखल न देता हो। अर्थात उसकी विचारधारा में 'निजी' शब्द का सम्मान होना चाहिए (निजता का अधिकार)।

कोई भी नागरिक उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव का शिकार न होता हो (समता का अधिकार) और वो सत्ताधारी राजनीतिक दल की सेवा से वंचित नहीं रहना चाहिए।

विरोध को स्वीकार करता हो, उसकी विवेचना करता हो और आपत्तिजनक बिंदुओं पर अपना मत स्पष्ट करता हो। गलती मिलने पर सुधार करता हो।

अब आते हैं सुझाव की ओर। हम पूरे देश के लिये राष्ट्रीय पार्टी का ही सुझाव दे सकते हैं। स्थानीय पार्टियों को जब तक वे राष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्राप्त नहीं करतीं अभी शैशवावस्था में माना जायेगा। अतः उनको सुझाना सम्भव नहीं है। जैसे अगर कोई पार्टी केवल दिल्ली या पंजाब में ही चुनाव लड़ती है तो हम बाकी देश वासियों को उसका नाम नहीं सुझा सकते क्योंकि उधर वो पार्टी होगी ही नहीं।

क्या आपने उक्त बिंदुओं के आधार पर खरी उतरने वाली कोई पार्टी देखी? मुझे तो नहीं मिली। आपको मिले तो कृपया मुझे सुझाइये। 😀 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

मैं चुनाव में vote क्यों नहीं देता? ~ Shubhanshu




बहुत लोग कहते हैं कि बीजेपी के विरोध में ज्यादा पोस्ट क्यों नहीं करते हो?

उत्तर: दरअसल जब किसी को एक पार्टी को मत न देने के लिये कहते हैं तो सवाल खड़ा होता है कि अगर ये नहीं तो कौन सी? इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं होता है तो मैं विरोध करने की स्थिति में नहीं होता। इसलिये खुद किसी को मत न देकर मैं खुद को गलत करने से रोक लेता हूँ। इतना ही काफी रहता है। वैसे भी किसी को उसका मत बदलने को कहना आचार सहिंता का खुला उल्लंघन है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

अगली पोस्ट में: सही राजनीतिक दल की पहचान कैसे करें? का उत्तर देखिये।