Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, अप्रैल 11, 2020

I am the master of the world ~ China



चीन बहुत पहले से एक प्रतिभाशील देश रहा है। कागज, कागजी मुद्रा, बारूद, चाय और न जाने कितनी खोज और आविष्कार आदिकाल से उधर हो रहे हैं, बिल्कुल अमेरिका की तरह। आविष्कार और खोज के दम पर ही अमेरिका महाशक्ति बना है। उसकी ही राह पर चीन चल रहा है। जब से माओवादी विचारधारा ने चीन में घर किया तब से चीन का सपना पूरे विश्व पर कब्जा करने का रहा है।

भारत पर हुआ चीनी हमला कोई आम हमला नहीं था। सबसे पहले पड़ोसी देश ही शिकार बनाये जाते हैं। लेकिन जिस तरह से रूस और अमेरिका ने भारत की मदद की है, चीन कमज़ोर पड़ गया था। अब उसकी नज़र अमेरिका और उसके सहयोगी देशों पर आ टिकी।

रूस ने खुद ही एक चाल चली थी और ताशकन्द समझौते के समय ही शास्त्री जी की रहस्यमय हत्याकांड रूपी मृत्यु ने चीन को समझा दिया कि रूस मित्रघाती है और उससे डरने की ज़रूरत नहीं। इसकी जगह पाकिस्तान से हाथ मिलाने में फायदा है। दोनो देश बारी-बारी से हमला करके नाकाम रह चुके थे। साथ मिल कर वे ज्यादा ताकतवर बन सकते हैं।

मुद्रा/निजी सम्पत्ति के खिलाफ बने सिद्धान्तों के बावजूद उस देश ने अपनी मुद्रा चीनी डॉलर बनाई। सबसे पहले कागजी करेंसी भी इसी देश के किसी नागरिक ने बनाई थी क्योंकि कागज ही इधर ही बना था। फिर तेजी से उसने जनता से जबरन कार्य करवा कर साम्यवादी सिद्धान्तों के अनुसार, उसकी वास्तविक मेहनत का मूल्य उनको देने की जगह उनके योगदानों, आविष्कारों को छीन कर चीन, खुद एक बड़ा पूंजीपति तानाशाह बन कर उभरा। हालाँकि अलीबाबा ग्रुप का मालिक संघर्ष करके चीन का सबसे बड़ा अमीर व्यक्ति बन चुका है। जो चीन की साम्यवादी विचारधारा की धज्जियाँ उड़ाता दिखता है।

चीन, आविष्कार करने वाले को कुछ न देने के कारण, आविष्कार को लागत मूल्यों पर बना कर व मनमाने दाम पर बेच कर शुद्ध मुनाफा कमा सकता है। इसलिये उसने 'जनता कमज़ोर, सरकार/देश मजबूत' की अवधारणा पर कार्य किया। इसी के चलते वह साम्यवादी विचारधारा के लिये विश्व की ही पूंजीवादी व्यवस्था से विश्व को काटेगा। वह आज दुनिया में अमीर देशों में दूसरे नम्बर पर है।

प्रजातंत्र में आविष्कार/खोज/रचनात्मक कार्य करने वाले इंसान को जीवन भर सम्मान राशि के साथ उसकी खोज को उसकी निजी सम्पत्ति मान कर, उसके मर्जी के मूल्य पर, उस वस्तु के खरीदने, बेचने और बनाने के अधिकार खरीदे जाते हैं। जिसके कारण प्रतिभाशील लोग शीघ्रता से अमीर हो जाते हैं।

जबकि अनुमानित रूप से एक साम्यवादी तानाशाह, लोगों के आविष्कार छीन कर, लोगों से जबरन ऐसे एफिडेविट पर हस्ताक्षर करवाता है जिसमें लिखा होता है कि आविष्कारकर्ता/खोजी/कलाकार ने स्वेच्छा से देश के लिये अपना खोज/आविष्कार/रचनारूपी योगदान निष्काम भाव से कर दिया है। अन्यथा की स्थिति में मृत्यु दंड या जेल की सज़ा होगी।

UN के गठन के बाद हुए युद्धों की नाकामी से आग्नेयास्त्र वाले युद्ध की बात अब पुरानी हो चुकी है। सेना, बस अब एक शो पीस की तरह रह गई है। बहुत से देश कभी पहले युद्ध न करने की संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। इस दशा में कोई भी एक युद्ध विश्वयुद्ध बन जायेगा। सन्धि के अनुसार यदि किसी भी देश ने, किसी भी देश पर अगर हमला किया तो UN से जुड़े समस्त देश, उस देश पर हमला करके, उसे कब्जे में ले लेंगे। अमेरिका सबसे ज्यादा संपन्न होने के नाते, इनमें सबसे अधिक सहयोगी देश दिखाई देता है। लोग इस अग्रणी मददगार को स्वतः सामने आने के कारण, अमेरिका को घमण्डी मानते हैं और इसे दादा कह कर उसके ऊपर ताना मारते हैं।

अमेरिका की राजनीति भी 2 दलीय है। प्रधानमंत्री की जगह राष्ट्रपति समस्त कार्य देखता है और वे ज्यादा सफल भी हैं। हमारे लोकतंत्र में संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी है जबकि संविधान में कुछ गड़बड़ी पैदा करके भारत को उल्टा लोकतांत्रिक देश बनाया गया। जनसंख्या और संस्कृति की दलील देकर, यहाँ बहुदलीय चुनाव व्यवस्था है। कोई भी मुहँ उठा के चुनाव दल बना लेता है और राजनीति के बहाने धन लूटने की फिराक में लग जाता है।

जनता वैसे भी भोली है और उन्हीं में से निकला एक बहुजन व्यक्ति यहाँ राष्ट्रपति के रूप में हस्ताक्षर करने और पुरुस्कार देने के आलावा कुछ नहीं करता। सब काम प्रधानमंत्री पर डाल दिया जाता है।

कुछ सार्वजनिक कार्य न करने के चलते राष्ट्रपति का भी मजाक बनाया जाता है। जबकि यही राष्ट्रपति जब atrocity act में तुरंत गिरफ्तारी से पहले जांच के नियम को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाकर नामंजूर कर देता है, तब भी जनता में उसकी ताकत अपना असर नही दिखाती। कोई धन्यवाद रैली या समारोह नहीं होता। जबकि प्रधानमंत्री का तो मजाक उनकी व्यक्तिगत हरकतों से उड़ता रहता है। कभी वो थाली बजवाते हैं, तो कभी दिए जलवाते हैं। जनता तुरन्त प्रतिक्रिया देकर अपना प्रेम उनके प्रति दर्शा देती है। बिना जाने कि इससे क्या लाभ होगा? अंधविश्वास में डूबा, अक्लविहीन देश। क्षमा कीजिये, सबके लिए नहीं कहा।

वर्तमान में, पूरी दुनिया चीन के द्वारा फेंके गए bio bomb से जूझ रही है। यही उपाय था इस समय विश्व युद्ध के लिये। तमाम फिल्में और किताबें इस तरह के खतरे से आगाह कर रही थीं लेकिन लोग तो फ़िल्म को फ़िल्म समझ कर अय्याशी में लगे रहे।

चीन के वुहान व एक अन्य शहर में वायरस फैलता है और बाकी पूरा देश सुरक्षित रहता है। जबकि पूरा विश्व इसकी चपेट में आ जाता है। हर देश में 1 या 2 केस मिल ही गए। ऐसा कैसे संभव है?

अचानक खबर आती है कि चीन से संक्रमण का data आना बंद हो गया है। संक्रमण हुए मरीज, स्वस्थ हुए मरीज, और मरने वाले मरीज, सभी का डेटा एकदम गायब?

जबकि इटली और अमेरिका में एकदम से इस वायरस ने हजारों हत्याएं कर डाली हैं। अभी अन्य कई देश भी बर्बादी की ओर बढ़ रहे हैं। lockdown से जहाँ संक्रमण कम किया जा रहा है, दूसरी तरफ़ कार्य और उत्पादन न होने से सभी देश अपना खजाना मुफ्त में वेतन देने के लिये खोल रहे हैं। गरीब जनता को अमीर लोगों से लिया गया दान और सरकारी खजाना, मुफ्त में भोजन व राशन दे रहा है। इलाज और टेस्ट के लिये महंगी दवा व परीक्षण किट विदेशों से खरीदी जा रही है।

आपातकाल सेवाओं के कर्मचारियों को दोगुना वेतन दिया जा रहा है। अमीरों के खजाने गरीबों के पास जा रहे हैं। चीन ने रोबिन हुड की तरह अमीरों के खजाने गरीबों के लिए खुलवा दिए। साम्यवाद दिखने लगा है। lockdown तानाशाही से कम नहीं है और 112 नंबर वाली पुलिस अब राशन के साथ लोगों की अजीबोगरीब मांगें भी पूरी कर रही है। साम्यवादी आहट दिखने लगी है। धन और भोजन देने का ही नियम होता है साम्यवादी सोच में और जाने अनजाने हम उसी पर चल रहे हैं। बस एक कमी है। कार्य कोई नहीं कर रहा। पुराना धन बंट रहा, नया आ ही नहीं रहा। यह वैश्विक आर्थिक मंदी का समय है।

पहले भी सबसे पहले अमेरिका बर्बाद हुआ था मंदी से और इस बार तो सब चपेट में हैं। सारे देश इस समय अजीब परिस्थिति में पड़े हैं और अचानक खबर आती है कि चीन में lockdown खत्म होने की खुशी में ख़रगोश मार के दावत दी जा रही है। सरकार फेस्टिवल की तरह खुशी मना रही है। चीन से वायरस पूरी तरह समाप्त हो गया? ये क्या बकवास है?

अगर चीन ने कोई तरीका खोज लिया है, इससे बचने का, तो WHO हाईड्रोक्सिक्लोरोक्विन जैसी प्रोटोजोआ नाशक मूर्खता पूर्ण दवा का वायरस पर परीक्षण क्यों कर रहा है? एक बच्चा भी जानता है कि वायरस को उसकी वैक्सीन ही मार सकती है। फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत से मलेरिया की दवा FDA से कोरोना वायरस के लिए स्वीकृत बता कर जबरन मांगते हैं। भारत मान भी जाता है। फिर पता चलता है कि ये मांग ट्रम्प अपने निजि फायदे के लिए मांग रहे थे। FDA मुकर गया।

एक शिक्षक ने छात्र से कहा, सामने श्यामपट्ट पर 2 रेखाएं बनी हैं। अगर एक रेखा को छोटी करना हो तो तुम चाक या डस्टर की मदद से क्या करोगे?

राम ने एक रेखा डस्टर से मिटा कर छोटी कर दी और श्याम ने चाक से एक रेखा दूसरे से लम्बी कर दी। श्याम को इनाम मिला और राम को मुर्गा बनाया गया।

चीन अमीरी में दूसरे स्थान पर है और उसे पहले पर आने के लिये केवल एक नीच कार्य करना था, जैसे बाकी देशों की अर्थव्यवस्था बर्बाद कर दी जाए। चीन पहले भी वैश्विक मुद्रा में छेड़छाड़ करके विश्व की मुद्रास्फीति दर को बर्बाद करने के प्रयास करने का दोषी पाया गया था और उस पर प्रतिबंध लगे हैं। चीन उपरोक्त कहानी का राम है। इसे मुर्गा कौन बनाएगा?

वायरस बम से हमला करने के बाद क्यों न इससे भी मुनाफा कमाया जाय और वेंटिलेटर, मास्क, दवाई, और जांच किट बेच कर सारे देशों से व्यापार कर लिया जाए? उनका कीमती धन चीन के पास खिचेगा और चीन का घटिया सामान उनके पास। कोरोना की दहशत फैलाई जाए और दादा अमेरिका नहीं, अब वह है, ये चेतावनी सबको बिना शोर मचाये समझा दी जाए।

ये हो क्या रहा है? सच तो यह है कि अमेरिका, भारत, इटली, जापान जैसे तमाम देश अब हथियार डाल चुके हैं। चीन का हमला हुआ है। चीन ने खुद बच कर ये साबित कर दिया है कि ये सब उसकी सोची-समझी रणनीति थी। जल्दी ठीक होकर और खुद को ठीक करने के राज गुप्त रख कर उसने मूक चेतावनी दे दी है कि वह हिंसा की रणनीति से पीछे नहीं हटा है और कोई ताकत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अहं ब्रह्मास्मि ~ चीन।
लेखक: वीगन Shubhanshu सिंह चौहान 2020© (डिस्क्लेमर: लेखक के निजी विचार। लेखक कोई दोषारोपण या दावा नहीं करता। ये उसके अपने विचार हैं जो समय और प्रमाणों के साथ बदल भी सकते हैं।) 2020/04/11 16:56

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2020

विरोध कैसा हो? ~ ज़हरबुझा सत्य




विरोध कैसा होना चाहिए?

1. सुबूतों और तर्कों के आधार पर।

2. अनुमान केवल सावधानी हेतु लगे हों, न कि जबर्दस्ती नफ़रत पैदा करवाने वाले।

3. बकलोली न हो कतई। उतना ही बोलिये जिसका जवाब सुबूत और तर्क से दे सको।

4. निष्पक्ष हो, अंधविरोध न हो। ऐसी धारणाएं जो कहें कि अगला जो भी करेगा, गलत ही करेगा, मूर्खतापूर्ण है। दरअसल ऐसा केवल घटिया राजनीतिक लोग करते हैं जिनको हमेशा विरोधी पार्टी के लोग अपनी राह के कांटे ही दिखते हैं।

वास्तव में वे हैं भी। क्योंकि जब तक अगला अच्छा कार्य करेगा तब तक वह सत्ता में रहेगा और तब तक क्या विपक्षी पार्टी अंडे देगी? इसलिये वह गंदी राजनीति पर उतर आते हैं।

लेकिन हम जैसे निष्पक्ष लोग इनको पल भर में पहचान कर इनको इनकी सही जगह पर पहुँचा देते हैं। इंसान ही रहिये। धन का लालची बन कर इंसानियत मत भूलिये। सही को सही और गलत को गलत कहना ही धर्मजातिमुक्त और वास्तविक बुद्धिमान इंसान होना है। जो आज कोई बनना ही नहीं चाहता। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

गुरुवार, अप्रैल 09, 2020

आप ही एक्सपर्ट हैं। ~ ज़हरबुझा सत्य

धर्म/धम्म/पंथ की दुकानें सजी हैं। मेरा माल best है, यही सबको लगता है। दरअसल हर कोई अपनी सोच को दूसरों पर थोपने के लिये किसी बड़ी हस्ती का सहारा लेता है, जैसे अमिताभ, शाहरुख, सलमान, कैटरीना, करीना आदि वैसे ही अल्लाह, शिव, विष्णु, बुद्ध, महावीर, यीशु, योहोवा, आदि धर्म के विज्ञापनों में अपनी मुहर लगा कर उनके उत्पादों को महत्वपूर्ण बताते हैं। लेकिन ये भूल जाते हैं कि ये उदाहरण एक बात साफ बता रहे हैं कि 96 प्रतिशत 'धन कमाने' वाले लोग अपनी बुद्धि से चलने की जगह किसी एक्सपर्ट की बुद्धि पर भरोसा करके अपना जीवन जीते हैं। और ये बात भी भूल जाते हैं कि एक्सपर्ट बिकाऊ और मूर्ख भी हो सकता है।

अतः खुद की बुद्धि भी इस्तेमाल कर लें, क्या पता आप ही असली एक्सपर्ट हों? आखिर आपके लिए ही तो उत्पाद बनाये जाते हैं। घड़ी डिटर्जेंट की एक लाइन वाकई प्रेरणास्रोत है, पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

गणित आपको निजी जीवन में बुद्धिमान नहीं बनाती ~ ज़हरबुझा सत्य




मैं कभी समझ नहीं पाया कि जो लोग प्रायः गणित में अच्छे होते हैं वे अपने बाकी जीवन में प्रायः मूर्ख क्यों दिखते हैं? क्या गणित जीवन जीने के लिये पर्याप्त नहीं है? शायद नहीं। गणित सीखी जाती है। बुद्धि जन्म से होती है। 10 वर्ष की आयु तक विकसित होती है।

प्रश्न: मुझे कैसे पता चला?

उत्तर: लोगों के विचार, बातें और समस्याओं ने बताया। उन्होंने ही बताया कि वे गणित में बहुत अच्छे हैं लेकिन अन्य विषयों और जीवन में इतने बुद्धिमान नहीं हैं कि समस्या का खुद हल ढूढ़ सकें। इसलिये उन्होंने मुझसे आकर हल मांगे।

प्रश्न 2: बहुत से विद्वान लोगों को गणित के कारण ही बड़ी सफलता मिली और वे प्रसिद्ध हुए। क्यों?

उत्तर: बिल्कुल, तभी ये पोस्ट बनाई गई है। गणित हम क्यों पढ़ते हैं? इसी के उत्तर में सारा रहस्य छुपा है। गणित की पढ़ाई, हम प्रायः नौकरी पाने के लिये करते हैं। नौकरी यानि बहुत से ऐसे कार्य जिनका इस्तेमाल आधुनिक सुविधाओं के लिये होता है। उनमें आपका इस्तेमाल कैलकुलेटर की तरह करने का कार्य। ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सुलझाने, तर्क करने के गणितीय तरीकों से बहुत से रहस्य समझने में सफलता मिली है।

गणित इस दुनिया के विज्ञान का आधार है, लेकिन इसे विद्यालय में समझने भर से आप किसी उद्योगपति के लिये उपयोगी बनते हैं न कि खुद के लिए। खुद के लिये उपयोगी बनने के लिए आपको कुछ नया खोजना होगा। वो करना ही बुद्धिमान होने की ओर एक कदम है।

इससे पहले तो आप केवल एक मेमोरी (स्मृति) मशीन हैं जो नियतांक, log, त्रिकोणमिति के मान, आदि रट कर उनकी मदद से गणना कर लेते हैं। इससे कुछ नया नहीं बनता। असली जीवन में इसका कोई कार्य ही नहीं है। 

आप कोई अनुसंधान में नहीं हैं। आप साधारण इंसान हैं और तब ये आपके जीवन में हिसाब-किताब रखने से ज्यादा कुछ काम का नहीं रह जाता। अतः आप ग़लतियों का ढेर लगा सकते हैं। गणित का कार्य अगर सबकुछ सिखाना होता तो आपको 5 या 7 विषय एक साथ न पढ़ाये जाते।

जिन लोगों ने गणित से प्रसिद्धि पाई, अधिकांशतः वे ईश्वर को मानते रहे। क्या ये उनकी बुद्धि की सीमा को नहीं दर्शाता? क्या गणित से वे ईश्वर को साबित कर सके? नहीं, फिर भी उसे मानना मूर्खता नहीं तो क्या है? 😊

जबकि IQ में गणित की बड़ी भूमिका होती है। 🤣

😊 अब मुझे तो गणित ठीक से नहीं आती। न किसी ने सिखाई और न ही रुचि थी। फिर भी जीवन में अपनी समस्याओं को हल कर लेता हूँ। मेरे अनुमान से गणित का बुद्धिमान होने से कोई लेनदेन नहीं है।

बुद्धिमान इंसान भी गणित सीख सकता है और एक औसत बुद्धि का मानव भी।

जिनके मस्तिष्क का आधा हिस्सा (तर्कवादी और गणनात्मक) दूसरे (कलात्मक) से अधिक विकसित हो वे गणित के क्षेत्र में नई खोज करके पारंगत भी हो सकते हैं लेकिन ज़रूरी नहीं कि अंधविश्वास जैसे मूर्खता से दूर ही हों। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

सोमवार, मार्च 30, 2020

Secret plan of communism to undertaking any democratic country




भूखे को भोजन खिलाना है, ये तो धर्मजाति वाले खुद ही लंगर-भंडारा लगा के सदियों से दिखा रहे। कमाने की जगह मुफ्त का माल उड़ाने और धर्म की दलाली की हवस जगा रहे। कोई भूखा क्यों है? सवाल ये है।

मैं भूखा हूँ क्योंकि मैं कमाने का प्रयास नहीं करता। मैं मुफ्त का भोजन भंडारे और लंगरों से खाता हूँ। मुझे कमाने की क्या ज़रूरत? अब कोरोना के चक्कर में लंगर-भंडारे बन्द हैं तो हाँ मैं भूखा हूँ। ~ एक भूखा

कोई भूखा है तो उसे भोजन देने से वो आत्मनिर्भर बनेगा या उसको भूखा छोड़ दें तो कोई कार्य करके वह खुद कमाएगा? याद रखिये, मरना कोई नहीं चाहता है।

प्रश्न: सरकार द्वारा निर्धारित प्रतिदिन की मजदूरी कितने रुपये है और मजदूर कितने रुपये मांगते हैं आपसे?

उत्तर: 350₹ से 500₹

रोज कमाने खाने वाले लोग बोलते हैं कि कभी-कभी 15 दिन तक कोई कार्य नहीं मिलता। फिर कहते हैं कि हम एक दिन न कमाएं तो भूखों मरने लगते हैं। ऐसा कैसे? 🤔

कम मजदूरी के केस में कानून खरीदने के आरोप वालों से सवाल:
अरबो खरबों रुपये रिश्वत में देने वाला 100₹ मजदूरी काहे नही दे रहा?

अगर एक लोकतांत्रिक देश में कट्टर साम्यवाद लाना है तो क्या करना होगा? इसका एक मास्टर प्लान है। ये प्लान मैं आपको बताऊंगा। पूरा प्लान धोखाधड़ी और गरीबों के खून से रंगा निर्दयी षडयंत्र है।

साम्यवाद लोकतंत्र के एकदम विपरीत होता है। अतः आपको इसे लाने के लिये कुछ भी करके लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति घृणा भरनी होगी। देखिये, कौन लोग आपको लोकतंत्र के खिलाफ भड़का रहे हैं?

किसी भी देश के 3 महत्वपूर्ण वर्ग होते हैं; मजदूर, किसान और आदिवासी। जिनके पास शारीरिक ताकत अधिक और मानसिक ताकत (शिक्षा) सबसे कम होती है। इनको भड़का कर देश में गृह युद्ध करें। अमीरों को लूट कर धन एकत्र करके उससे निर्देशित साम्यवादी सरकार बनाइये।

आदिवासी, किसान और मजदूरों को अन्य साम्यवादी देश बंदूकें, गोलाबारूद उपलब्ध करवाएंगे ताकि पुलिस और सेना से मुकाबला कर सकें। मरने वालों को लूटो और उनसे और गोला बारूद लेकर उन्हीं को मार डालो।

गोरिल्ला युद्ध से सैनिकों को तब मारो जब वे असावधान और थके हुए, नींद में हों। उनकी वर्दी चुरा कर पहनो और उनके भेष में उनको और मजदूरों, किसानों और आदिवासियों की औरतों और बच्चों को बलात्कार करके नृशंस हत्या कर दो ताकि इनके जवान पुरुष आंख बंद करके सेना को मार डालने के लिये टूट पड़ें।

जब कोई साम्यवादी जवान मारा जाय तो अपने ही मरे हुए साथी की आंखें निकाल लो और शव की बुरी दशा कर दो ताकि जो उसे देखे नफरत से सेना और पुलिस के खिलाफ टूट पड़े।

जितना ज्यादा इनके दंगे में लोकतांत्रिक सरकार इनका दमन करेगी उतना ही हम इनकी लाशें व चोटें दिखा कर इनके बच्चों और साथियों को भड़का सकते हैं। इनको कॉमरेड बुलाइए ताकि इनको लगे कि वे सैनिक हैं और देश को आज़ाद करवा रहे हैं। इस तरह इनको हत्या और बलात्कार करने में कोई शर्म नहीं आएगी। इनकी इंसानियत उच्च संपन्न वर्ग से घृणा द्वारा खत्म कर दो।

अगर आप एक साम्यवादी हैं और चाहते हैं कि लोकतंत्र के खिलाफ सड़कों पर जंग हो तो क्या आप मजदूरों को न्याय दिलवा कर लोकतंत्र के प्रति प्रेम पैदा करेंगे या उनको बर्बाद कर देंगे ताकि वे विद्रोह करें?

साम्यवादी नेता ही मजदूरों को न्याय नहीं मिलने दे रहे क्योंकि अगर मिल गया तो विद्रोह कैसे होगा लोकतंत्र के खिलाफ? मजदूरों को ही शिक्षा और संपन्नता नहीं मिलती तभी आसानी से भड़का कर उनको कॉमरेड सेना बनाया जा सकता है।

एक फैक्ट्री मालिक क्यों निर्धारित से कम मजदूरी देकर अपनी फैक्ट्री पर ताला लगवाना चाहेगा? क्या उसे डर नहीं लगता मजदूरों से? सीधी से बात है ये सब साम्यवादियों का षड्यंत्र है जिसके कारण ऐसा दर्शाया जाता है।

साम्यवादी होने के नाते आपका फर्ज है कि एक भी मजदूर चैन से न जी सके। उसकी बर्बादी होगी, तभी सड़कों पर खूनी लाल सलाम क्रांति आ सकती है। उनको दर्द दो, वो साम्यवाद लाएंगे।

साम्यवादी होने के नाते आपको पुलिस के प्रति घृणा भरनी होगी क्योंकि यही लोकतंत्र की पहली कड़ी हैं। न्यायव्यवस्था में साम्यवादी भर्ती करो और खूब भ्रष्टाचार करो। ताकि कानून से भरोसा उठ जाए।

लालबहादुर शास्त्री साम्यवाद के खिलाफ थे इसलिये उनकी रूस (साम्यवादी देश) ने जहर देकर हत्या करवा दी। रूसी मेडिकल रिपोर्ट में अनियमितता मिली थी।

साम्यवाद/समाजवाद अगर संविधान में डाला गया तो ये लोकतंत्र की हत्या होगी। ~ बाबा साहब भीम राव रामजी अम्बेडकर।

शास्त्री जी की मृत्यु के 10 वर्ष बाद समाजवाद संविधान में जोड़ दिया गया। 20 KZB (रूसी खुफिया एजेंसी) एजेंट भारत में उसी समय आये और कभी वापस नहीं गए। ~ ताशकंद फाइल्स (फ़िल्म)

क्या कभी फैक्ट्री मालिक खुद वेतन बांटता है? नहीं न? ये वेतन के घोटाले मजदूर नेता खुद करवाते हैं, वेतन देने वाले मुनीम के ज़रिए। ताकि मजदूर को तंग करके मालिक के खिलाफ भड़काया जा सके।

साम्यवाद देश में अराजकता लाने से आएगा। इसके लिए जनता में सरकार, पुलिस, न्यायालय व कानून (संविधान) के प्रति असंतोष भरना होगा। तभी दँगा होगा जो अमीरों को लूटने मारने में मदद करेगा।

पुलिस को बुरा कैसे बनाया जाए? इसके लिए आप सड़क जाम करो। फिर तब तक कानून का उल्लंघन करो जब तक पुलिस लाठीचार्ज नहीं करती। अब उनसे पिट कर सोशल मीडिया में रोना रोइये।

बिना सुबूत के मुकदमे करो, अपने ही वकील को रिश्वत देकर अपने ही गरीब साथी का केस खराब करवाओ ताकि सब आरोप सरकार, न्यायालय और जज पर लगाया जा सके।

प्लान का दूसरा हिस्सा। आदिवासी समाज को शहरी लोकतंत्र के खिलाफ भड़काने के लिए सेना की वर्दी में आदिवासियों का रेप करके गोली मारो और फ़ोटो खींच कर एक किताब बनाओ।

अब 2 हिस्से में बंट जाओ। 1 हिस्सा सेना को गोरिल्ला युद्ध में खत्म करेगा और दूसरा हिस्सा सेना की वर्दी में आदिवासी समाज पर जुल्म करो। ताकि वो सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दें।

साम्यवादी झंडे की वास्तविक व्याख्या ये है:
किसान अपना हंसिया और मजदूर अपना हथौड़ा उठाओ और अमीरों का खून ही खून फैला दो। लूट लो उनको। औजार ही हथियार है।
 
कम्युनिस्ट प्लान की जानकारी इन स्रोतों में दर्ज हैं।

1. कार्लमार्क्स और बुद्ध
2. सीक्रेट डॉक्यूमेंट ऑफ माओवाद
3. ब्लैक बुक ऑफ कम्युनिज्म
4. फ़िल्म ऑपरेशन क्रोमाइट
5. फ़िल्म ताशकंद फाइल्स

~ कार्लमार्क्स, माओ, लेलिन, शी जिनपिंग, फ़िदेल कास्त्रो द्वारा निर्मित व निर्देशित। (संकलन कर्ता ~ Shubhanshu 2020©)

डिस्क्लेमर: समस्त लेखक के निजी विचार। हम सभी तरह के आरोपों और आपत्तियों को अस्वीकार करते हैं।

Let's talk about God




विद्वान: तुम नास्तिक हो का?
शुभ: जे का होय बाबू जी?
विद्वान: जो ईश्वर को न मानता हो।
शुभ: जे का होत?
विद्वान: जिसने ये दुनिया बनाई, जिसने तुम्हें और मुझे बनाया, जो सूरज, चांद और तारे को चलाता है। वही।
शुभ: अबे जे तो अपने आप चल रहा है। इसे कोई चला कैसे सकता है? अच्छा चलो किधर है? आपने देखा?
विद्वान: देखा तो नहीं लेकिन महसूस किया है।
शुभ: भैया, वो जब दिखता नहीं तो महसूस कैसे होगा? हवा होगी भाई। आपने छोड़ी होगी तो महसूस हुई होगी।
विद्वान: न न न वो गहन तपस्या से दिखता है। जिसे उसे ढूढने की इच्छा होगी उसी को दिखता है।
शुभ: तो जिसको सबसे पहले दिखा उसे किसने बताया कि तपस्या से दिखेगा?
विद्वान: खुद ईश्वर ने।
शुभ: अबे यार, जब ईश्वर दिखता नहीं, महसूस करने के लिए तपस्या चाहिए तो तपस्या से पहले कैसे मिल कर बता गया कि मैं कैसे मिलूँगा? यार दिखते तो ठीक हो फिर भी अक्ल आप में भी न दिख रही।
विद्वान: अरे, ये तो मैंने सोचा ही नहीं।
शुभ: और तो और ये बताइये वो ऐसा करेगा क्यों? खुद सीधे सामने आकर सब न मानने वालों को मनवा दे कि वो है भी। ये बकवास बातें करके आपको रोटी मिलती है क्या? कोई काम धंधा कर लो भाई। भूखे रहोगे तो खुद ही ईश्वर बन जाओगे। ऐसी बकवास बातों मे समय बर्बाद करके अपना मस्तिष्क खराब कर लिया आपने। हकीकत में जियो। कोई दुनिया नहीं चला रहा। चलाता तो चलाता ही क्यों? क्या ज़रूरत है इस सब की? क्यों पैदा कर के यहाँ मरने के लिये छोड़ दिया? है कोई आज तक जो सदा से ज़िंदा हो? नहीं न, इसलिए अपना जीवन जी लो। ये बकवास कल्पना को कोई न मानेगा अगर अक्ल होगी। और अगर मान भी लो कि कोई ईश्वर है भी, तो आपको उससे लेनादेना क्या है भाई? आप क्या उससे दुनिया अपने हिसाब से चलवा लोगे? 🤣 नमस्ते! और हाँ नास्तिक वास्तिक आपके गढ़े शब्द हैं। मैं हूँ धर्ममुक्त, पंथमुक्त, धम्ममुक्त, vegan, सभी फालतू विचारों से मुक्त, विज्ञानवादी, करोड़पति, तर्कवादी! तुम भी होते तो मजा आता! 😊 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

बुधवार, मार्च 25, 2020

आस्तीन का सांप ~ ज़हरबुझा सत्य




प्रश्न: आप किन पुराने जुड़े लोगों को अमित्र कर देते हैं? क्या पुराने मित्रों से दूरी बनाने का विचार उचित है?

शुभ: ऐसे सभी लोग जो आपसे लंबे समय से जुड़े हैं लेकिन आपके अधिकतर विशेष विचारों से मतभेद रखते हैं जिनकी व्याख्या की जा चुकी है। ये आपके छिपे शत्रु (आस्तीन के सांप) हैं, को आप अतिशीघ्र अमित्र/ब्लॉक कर सकते हैं। ये लोग आप पर तब हमला करेंगे जब आप कमज़ोर पड़ोगे।

जैसे आपने कोई गलत पोस्ट कर दी जो आप को सही लगी क्योंकि आप उसके एक नए पहलू से अनजान थे। तब ये लोग आप पर टूट पड़ेंगे। आपकी मुख्य सोच को निशाना बना कर आप पर व्यक्तिगत टिप्पणी की जाएगी ताकि आप गुस्सा होकर कोई गलत कदम उठा लें और अगला उसके सुबूत लेकर आपको बदनाम कर डाले।

ऐसे लोगों के मित्र आपको गाली देते होंगे और ये उनकी पैरवी करते दिखेंगे। उनको रोकेंगे तक नहीं। बल्कि जैसे ही आप उन पर हमला करेंगे, ये उनकी तरफ से बीच में कूद कर आपको रोकेंगे। उनको डिफेंड करके वे आपको मरवा देने का पूरा प्रयास करेंगे। अब या तो आप उन सबको ब्लॉक कर दे तो घमंडी व अनियंत्रित कहलायेंगे या गालियों के जवाब ग़ाली से देकर अपने स्क्रीनशॉट की बारात निकलते देखिये।

ब्लॉक करने पर ये खुल कर आपके बारे में अफवाहें उड़ाएंगे और लोगों के कान भरेंगे, ये कह कर कि गलत था, तभी ब्लॉक किया। इसलिये इनको ब्लॉक करना पहला विकल्प नहीं है। ये खुद ही कर दें ऐसा इंतज़ार करना बेहतर है। तब ये कुछ भी बोलें, परन्तु ब्लॉक करना उनकी हार होगी।

प्रमाण व तर्क से सुसज्जित पोस्ट आपकी सोच की सार्वभौमिक सत्यता दर्शाती है। उसे सामान्य मानव भी समझ सके इसलिये मैं उसे सरल भाषा में लिखता हूँ। ऐसे सभी लोग जो to the point प्रश्न न करके, फालतू की बात करें जो कि चर्चा को भटका रही हो तो समझिये कि अगले ने पोस्ट को जानबूझकर समझा ही नहीं है। ऐसा क्यों? क्योंकि कुछ विचार जीवन शैली होते हैं और इन लोगों की जीवनशैली ऐसी होती है कि वे इन विचारों को अपना ही नहीं सकते। ऐसा करने पर वे अकेले हो जाने का डर पाते हैं। ऐसा क्यों?

कोई दोस्त, जीवन शैली बदलने पर दोस्ती कैसे तोड़ सकता है? साफ बात है कि वे लोग इनके दोस्त नहीं होते। ये उनके दोस्त बने होते हैं, किसी लालच में। उस लालच में वे केवल उनका भी फायदा ही उठाते हैं। अतः ये खालीपन से भरे लोग मस्तिष्क विहीन हो गए होते हैं। ये स्वयं सोचना बंद कर चुके होते हैं। इनको केवल सामाजिक होने के लिये दूसरों जैसा बनने का शौक होता है। किसी प्रतिभा शाली परन्तु घटिया इंसान का दोस्त बन कर भी गर्व होता है। वैसे ही जैसे कुछ लोग डॉन से जानपहचान हो जाने पर फूले नहीं समाते। कारण है इनसे अपने काम की tips पाना, अपना कोई काम करवाना। अतः ये सभी लोग झूठे अहंकार से ग्रस्त हैं। इनको इस बात पर अहंकार होता है कि कितने लोग उनके दीवाने हैं न कि वे कितने सही हैं।

मैं भी अहंकारी हूँ, लेकिन मुझे अहंकार है, खुद के सही होने पर। प्रमाण/तर्क और व्यवहार द्वारा उसे साबित कर देने की क्षमता पर। इसे मैं आत्मविश्वास/आत्मप्रेम कहता हूँ और लोगों को ये आत्ममुग्ध (narcissist) होना लगता है तो वो भी उचित ही है। आत्ममुग्ध इंसान बहुत प्रसिद्ध हो जाते हैं। उनकी पूरी दुनिया में जयजयकार हो जाती है। लेकिन अफसोस मुझे लोगों से ही उलझन होती है क्योंकि मैं अंतर्मुखी हूँ तो ये तो होने से रहा।

शायद इसलिए भी अंतर्मुखी हूँ क्योंकि मेरे जैसे आदर्शवादी लोग कहीं दिखते ही नहीं। दिखते हैं तो वे झूठे हैं। फिर क्या करूँ? बस यूं ही दूर से मिलता रहूँगा। जो साथ आना चाहते हैं वे मेरे जैसे बन गए तो ही सहज हो सकता हूँ। अन्यथा दूरी ही भली है। पास आये तो लड़ाई होगी।

मैं बहुत स्ट्रिक्ट हूँ। जो कहता हूँ, वही करता हूँ। 100% ईमानदारी रहेगी। इसलिये हर शब्द पर 100% ध्यान देना आवश्यक है। कुछ लोग सोचते हैं कि 100% परफेक्ट कौन होता है? मैं कहता हूँ, "वही जो अभ्यास करता है।" और मैं अभ्यास करके ही यहाँ आपके सामने आपसे बात कर पा रहा हूँ।

अन्यथा बहुत से नाकामयाब लोग कभी फेसबुक भी नहीं देख पाते हैं। यहाँ तक आने के लिये भी जिसे संघर्ष करना पड़ा हो, वही इतना सोच सकता है। वही ऐसा लेख लिख सकता है। वही जिसने धोखों के सैलाब देखे हों, जिसने कष्टों के समुद्र पिये हों और जिसने अपने आप को 100% तक शुद्ध रखने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा दिया हो। जो अपने हर सुख को त्याग कर परफैक्शनिस्ट बनने निकला हो, वही आपके सामने है।

मैं कोई उम्मीद नहीं करता कि इस पोस्ट को 1 भी like मिलेगा या नहीं। मैंने जो लिखना था, मैंने वो लिख दिया। मेरा फैसला मैं कर चुका। मेरी पोस्ट का फैसला दुनिया के हाथों में है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, मार्च 20, 2020

क्रांति शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण से आएगी, बंदूक से कभी नहीं ~ ज़हरबुझा सत्य




जनसंख्या पर रोक लगे न कि स्वतंत्रता पर

चीन एक साम्यवादी-पूंजीवादी देश है। इसमें तानाशाही करके 1 बच्चा नीति जबरन लागू की गई क्योंकि इसकी आबादी विश्व के किसी भी देश से अधिक हो गई है। लोगों की अधिक धन कमाने की शक्ति पर रोक लगाने पर कुछ समय तक तो आसानी हुई, परन्तु जनसंख्या पर रोक न लगाने से सारी अर्थव्यवस्था ढहने लगी। तब 1 बच्चा कानून लाया गया। तबसे स्थिति कुछ नियंत्रण में आई।

जनसंख्या पर नियंत्रण करना एक अत्यंत बड़ी ज़रूरत है जिससे प्रत्येक को पर्याप्त संसाधन मिल सकेंगे। इसे तानाशाही से भी किया जाए तो आसानी होगी क्योकि मारने से बेहतर होगा, "पैदा ही न करना"। जनसंख्या बढ़ती गयी तो कोई भी रोक लगा दीजिये कोई लाभ नहीं होगा और सब एकदूसरे को मार ही डालेंगे।

साम्यवादी अवधारणा जनसंख्या की वृद्धि से ही उतपन्न हुई थी। अधिक लोगों को भले के लिये जान से मारा नहीं जा सकता था इसलिये उन्होंने लूटपाट का रास्ता चुना और चूंकि किसी की सम्पत्ति बिना उसे मारे, आप ले नहीं सकते इसलिये उनकी मृत्यु से इनका दिल नहीं पसीजता। अधिक मूर्ख, नकारा, विकलांग, अयोग्य लोगों की जान बचाने के लिए बुद्धिमान, योग्य, स्वस्थ लोगों को मारना इनका सिद्धांत है। यानी अयोग्य की उत्तरजीविता का नियम। प्रकृति के विरुद्ध।

प्रकृति जनसंख्या पर नियंत्रण रखती है। मानव ने प्रकृति को त्याग कर अपनी जनसंख्या बढ़ाई है। सुरक्षा, पुलिस, कानून, बीमा, चिकित्सा, मकान, साफ सफाई आदि जनसंख्या नियंत्रण को रोकता है। जंगल में जनसंख्या सदा नियंत्रण में रहती है।

अब धनी व्यक्ति की जान लेने के लिए दिल को मजबूत करना है तो आप अमीरों को लुटेरा, शोषक बोल कर, ऐसे कुछ जो वाकई में गलत कार्य से अमीर हुए जैसे छोटा राजन, दाऊद इब्राहिम आदि का उदाहरण देकर सबको एक ही तराजू में तोल दीजिये। तब अमीरों से नफ़रत हो जाएगी। फिर उनको मार कर लूटना आसान होगा। हर साम्यवादी लूटपाट को क्रांति कहता है। "क्रांति बंदूक से ही आ सकती है", ऐसा इनका मानना है। ये कमाने पर यकीन नहीं करते। लूट ही इनकी कमाई का स्रोत है। चंदशेखर आज़ाद की साम्यवादी संस्था में ही कई क्रांतिकारी भर्ती हुए थे जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को लूटा और हत्याकांड किये। अब चूंकि वह ब्रिटिश तानाशाह लोग थे, हम लोगों को उनसे सहानुभूति नहीं है। परंतु आज जब देश आजाद है तब उनको उदाहरण बनाना, देश के संविधान का अपमान हुआ। अपने ही देश को अब लूटोगे क्या?

अभी हाल ही में हुये (दिल्ली) दंगे में साम्यवादी लोग (लेफ्ट) पकड़े गए हैं। कानून में साम्यवादी क्रांतिकारी को आतंकवादी कहा जाता है। जो कि फांसी के हकदार होते हैं। रूस में हुई लूटपाट और हत्या को रूसी क्रांति कहा जाता है जो कि वहाँ की राजतंत्र वाली राजशाही के विरुद्ध हुई थी। कुछ समय साम्यवादी शासन रहा फिर आखिरकार उसका नुकसान सामने आया और देश भुखमरी के कगार पर आ गया। तब पुनः लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू करनी पड़ी।

कुछ लोग मुफ्त में लूटपाट के साथ बलात्कार करने को बढ़िया और अमीर लड़कियां मिलेंगी इस लालच में साम्यवादी बन रहे हैं और लड़कियों को खास तौर पर मूर्ख बनाया जा रहा है। भारतीय मार्क्सवाद के ब्राह्मण लाया था और आज भी बाह्मण ही सबसे अधिक साम्यवादी हैं। ऐसा क्यों? चंदशेखर आज़ाद भी जनेऊ पहनते थे और ब्राह्मण थे। दरअसल ब्राह्मण कम हैं और उनकी पुरानी पुश्तें मांग मांग कर खाने के कारण गरीब रही थीं। अब उनके सामने भी लूटपाट एक आसान रास्ता दिखता पैसा-लड़की पाने का।
सोवियत संघ (रूस) और भारत के मध्य ताश्केंट (ताशकंद) समझौता हुआ था। जिसके तुरन्त बाद लाल बहादुर शास्त्री जी की रूस द्वारा ज़हर देकर हत्या करवा दी गयी थी। अधिक जानकारी के लिए सत्य घटनाओं पर आधारित बॉलीवुड फिल्म देखिये 'ताशकंद फाइल्स।'

भीम राव अम्बेडकर जी ने साम्यवाद का पुरजोर विरोध किया है। उन्होंने इसे लोकतंत्र का शत्रु बताया है। उन्होंने अपने एक बयान में कहा था, "भारत में यदि कभी समाजवाद लाया गया तो ये लोकतंत्र की हत्या होगी" ताशकंद समझौते व संविधान बनने के 10 वर्षों बाद संविधान में समाज वाद शामिल कर दिया गया। यानि लोकतंत्र की हत्या कर दी गयी। आज भारत मिश्रित अर्थव्यवस्था से चलता है। यानि लोकतांत्रिक-समाजवादी अर्थव्यवस्था।

साम्यवाद के बारे में विस्तार से सत्य जानने के लिये बाबा साहब अम्बेडकर की लिखी पुस्तक "karlmarks and buddha" पढ़िये।

साथ ही कार्लमार्क्स की पुस्तक पूँजी की समीक्षा भी पढ़िये सत्याग्रह के इस लिंक पर।






इसके आने से भारत में लगातार गरीबी बढ़ रही है। इसके अंतर्गत लोगों को रोजगार देने के स्थान पर मुफ्तखोरी करवाने का नियम होता है। जैसे, बेरोजगारी पेंशन, लैपटॉप बांटना, मोबाइल बांटना, मुफ्त भोजन आदि। इसके स्थान पर यदि लोगों को ज़मीन व साधन देकर कार्य करने को कहा जाता और योग्यता के अनुसार वेतन दिया जाता तो वे बहुत अधिक उत्पादन कर सकते थे। जो कि देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाता।

अतः साबित हुआ कि स्थायी समाधान जनसंख्या नियंत्रण है न कि अधिक पूँजी कमाने पर रोक लगाना (साम्यवाद/समाजवाद/लेफ्ट)! ~ Shubhanshu 2020©

नोट: कुछ लोगों की इस लेख से अवश्य ही फटेगी परन्तु सत्य नहीं बदल सकता। झूठ के पांव नहीं होते। वह बस धक्का देने से ही औंधे मुहं गिर जाता है। अभी भी समय है सम्भल जाइये। मेरी तरह तर्कवादी धर्ममुक्त, vegan और विवाह/शिशु मुक्त बनिये। (कौनो जबर्दस्ती न है 😁) ~ ज़हरबुझा सत्य 2020©  2020/03/20 21:47 

बुधवार, मार्च 11, 2020

निर्गुण ईश्वर की विचार धारा और अनीश्वरवादी जाति-धर्ममुक्त




सभी धर्मों में घुलनशील बन जाना भी आपका धार्मिक होना ही है। सबका मालिक एक है बोलने वाले साई बाबा (चांद मोहम्मद) इसका प्रमाण हैं कि धार्मिक सद्भावना का होना आपको आस्तिक होने से नहीं रोकता। बल्कि सभी धर्मों को एक ईश्वर तक ले जाने वाले रास्ते की अवधारणा को पुष्ट करता है।

धार्मिक सद्भावना दरअसल एक खुली निर्गुण आस्तिक विचारधारा है। ये धार्मिक नफ़रत से तो लाख बेहतर है ही लेकिन ये केवल एक धर्मजातिमुक्त परन्तु निर्गुण आस्तिक के भीतर ही पाई जा सकती है। कबीर और अन्य बहुत से निर्गुण उपासक बहुत प्रचलित रहे हैं।

जबकि धार्मिक शब्द, धर्म (रिलीजन) के प्रति प्रेम पर आधारित है। ये प्रेम केवल अपने धर्म से हो तो स्वधार्मिक होगा और अगर स्वयं, विज्ञान व सहानुभूति/दया पर केंद्रित होगा तो वह होगा तर्कवादी ईश्वर जाति धर्ममुक्त। मैं ऐसा ही हूँ। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

मंगलवार, मार्च 10, 2020

Women are friends, not Salves





मैं दोनों चित्रों में एक अंतर देखता हूं। 2 महिलाएं अपने चेहरे को दिखाने से डरती नहीं हैं। उनकी संस्कृति में कोई फर्क नहीं है। धार्मिक पुरुषों ने कभी भी महिलाओं को एक इंसान नहीं माना, उनके लिए, वे केवल एक सेक्स गुड़िया हैं, जिन्हें खरोचों से बचाने के लिये और केवल उनके उपयोग के लिए cover किया जाना चाहिए।

इन धर्मों के लिए महिला की यौन इच्छा सिर्फ एक मिथक है। महिलाएं सेक्स करने के लिए बनी एक वस्तु नहीं हैं। यदि आपको लगता है कि हाँ वह है, तो तुम भाड़ में जाओ, तुम्हारा धर्म भाड़ में जाए और तुम्हारी पूरी मानसिकता भाड़ में जाये।

उन्हें आज़ाद छोड़ दें या उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करें। उनकी मदद करो। वे हमारी दासी नहीं हैं, वे हमारी दोस्त हैं। झूठे नायक मत बनो। पति मत बनो, एक स्वामी मत बनो और किसी को भी एक दासी मत बनाओ। अपने आप को उनके स्थान पर रखें और आप महसूस कर सकते हैं कि वे हर रोज क्या महसूस कर रही हैं। ~ Shubhanshu Dhrmamukt 2020 © Poisonous Truth उर्फ Zahar Bujha Satya (तकलीफ तो होगी ही)

English Version:

I see a difference in both pictures. 2 women don't afraid to show their faces.

In the culture of them there is no difference. Religious males never considered women as a being, for them, they are only a fuckable sex doll, which needs to be covered to prevent tear and wear for their use only. Women's sexual desire is just a myth for these religions.

Women are not a object to fuck. If you think yes she is, then Fuck yourself, fuck you, and fuck your fucking religion and fuck your whole mentality.

Leave them or encourage them to become self depend. Help them. They are not our slave, they are our friends.

Don't be a hero. Don't be a husband, don't be a master and don't make anyone a salve.

Put yourself at the place of them and you can feel what they are feeling everyday. ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Poisonous Truth aka Zahar bujha Satya (ज़हरबुझा सत्य ~ तकलीफ तो होगी ही।)