Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, मई 23, 2020

Feelings are your source of all miseries




जब भावना ही नहीं होगी, तो सब वही करेंगे जो विज्ञान और प्रकृति से, स्वभाव से उचित होगा। न कोई नफरत करेगा, न प्रेम के दिखावे की ज़रूरत पड़ेगी। हर इंसान ईमानदार होगा क्योंकि लालच की भावना नहीं होगी। कोई झगड़ा ही नहीं होगा क्योंकि बात सही या गलत बिंदु पर खत्म होगी।

न सम्मान की भावना न गुस्से और अपमान की भावना जागेगी। तब न तो कोई धर्म होगा और न ही कोई वफादारी के न मिलने पर कत्ल करेगा। क्योंकि लोग सिर्फ सत्य का साथ देंगे। वफ़ा तो पक्षपाती होती है। विवाद शांतिपूर्ण तरीके से निबट जाएंगे क्योंकि तब कोई अपनी मनवाने के लिये ज़िद नहीं करेगा। जो सही होगा वही मान लिया जाएगा।

अच्छी भावनाओं से ही बुरी भावना जुड़ी होती है। आप किसी से प्रेम करते हैं तो बाकियो से नफरत हो जाएगी। आप किसी पर दया करते हैं तो उसे दयनीय बनाने वाले पर आप नफरत और गुस्से से टूट पड़ोगे।

जब आप अच्छे और ईमानदार बनोगे तो जो आप जैसे नहीं हैं, उनको आप मार डालने की सोचोगे। गर्व की भावना आपको बाकियो से श्रेष्ठ दर्शा कर दूसरों को तुच्छ बना देगी और आप उनको नफरत से देखोगे।

जानवरों में भी भावनाओं का ज्वार होता है लेकिन वह इंसान जितना घमंडी नहीं होता। उसे खुद पर घमण्ड नहीं होता। इसलिये वह इतना भावुक नहीं दिखते जितने कि घमण्डी मानव। इंसान घमंडी था नहीं। इसे धर्म और कुछ धर्म द्वारा संचालित वैज्ञानिकों ने ऐसा बनाया। उन्होंने कहा कि इंसान श्रेष्ठ है, क्योंकि उस पे ज्यादा आयतन का मस्तिष्क है या इंसान कल्पित ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। परन्तु इस अतिरिक्त मस्तिष्क की आवश्यकता क्या है? ये वे कभी नहीं बता पाए। चलिये मैं बता देता हूँ।

इंसान इतना तुच्छ जंतु है कि ये प्रकृति में ज्यादा देर टिक नहीं पाता। उसका सारा मस्तिष्क प्रकृति को कैसे बर्बाद और नष्ट करके आलस्य बढाने वाले कार्य करें, इस पर केन्द्रित रहता है। इसमें इतनी भी क्षमता नहीं कि मौसम और एक दूसरे की हवस भरी नज़रों की मार से बच सके। उसने इसके लिये अपने ऊपर जानवरो की खाल ही कपड़े बना कर ओढ़ ली।

इससे गिरी हुई हालत और क्या होगी कि इंसान को अपनी त्वचा तक बेकार लगती है। उसको ढकने के लिये उसने बलात्कार संस्कृति और फैशन बाजार की व्यवस्था की। अब वह ज़मीन पर पैर नहीं रखता, क्योंकि उसे चप्पल या जूते चाहिए।

उसे हाथ खुले रखने में भी समस्या है। दस्ताने पहनता है। वह अपने चेहरे व शरीर से भी संतुष्ट नहीं है। उसे उस पर भी लाखों रुपये लगाकर मेकअप और सर्जरी करवानी हैं या छेद करवा कर उसमें कील कांटा पहनना है। कुछ नहीं तो स्थाई टैटू बनवा कर ही दूसरे से अलग दिखना है। चाहें भद्दे ही क्यो न दिखें!

वह इतनी जल्दी बीमार पड़ता है कि मर ही जाता, अगर उसने चिकित्सा जगत की खोज न की होती। इंसान की ज़िंदगी छुई मुई सी है, जो इसने अपने मस्तिष्क की मदद से बचा रखी है। इसका मस्तिष्क केवल अपनी कायर और विकलांग ज़िन्दगी को बचाने के लिये काम आया।

इस कायर और विकलांग ज़िन्दगी को जीकर इसे खुद पर गुमान हो आया कि अरे वाह, देखो मैं भी जानवरों के जैसे अनुकूल जीवन जी सकता हूँ। प्रकृति ने तो मुझे अनुकूल बनाया ही नहीं।

लेकिन उसने जानवरो से भी ईर्ष्या रखी क्योंकि जानवरों पर पहले से सबकुछ था, जिससे वे मस्त होकर जीवन जीते थे। इससे चिढ़ कर उसने उनको ही खत्म कर देने की ठानी। इसलिए उसने Zoo बनाये, उनका व्यापार किया, उनका इस्तेमाल किया, उनका दोहन किया, उनका दूध चूसा, उनका कत्ल किया, उन पर प्रयोग करके उनको काटा, नोचा, खाया। उसने मेडिकल साइंस में बिना किसी प्रमाण के खुद को सर्वाहारी दर्शाया। जबकि सर्वाहारियो का एक भी लक्षण वह नहीं रखता था।

इतना कमज़ोर है इंसान और खुद को ही श्रेष्ठ कहता है? फिर जब कोई इसको खुद को श्रेष्ठ कहता दिखता है, तो ये उसे भी टोकने पहुँच जाता है और कहता है, "वाह! जी वाह! अपने मुहं और मिया मिट्ठू? घमंडी कहीं का।" क्योंकि, कोई और उस जैसा सोचे, तो उस घमण्डी को बर्दाश्त कहाँ होगा? एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, मई 22, 2020

Breasts are important, don't neglect them




स्तनों की बनावट में 2 महत्वपूर्ण घटक होते हैं। वसा (fat) और प्रोटीन। प्रोटीन की वास्तविक बढ़त व सीमा, ऑक्सीटोसिन हार्मोन (प्रेम हार्मोन) की मात्रा, माता-पिता के जीन्स और पोषण की सही मात्रा निर्धारित करती है। अतः स्तन एक बार जिस सीमा तक विकसित हो जाते हैं उससे ज्यादा बड़े, सख्त और तनाव युक्त नहीं हो सकते।

इसी लिये स्तनों को उभारने, पुष्ट और तनाव युक्त करने के लिये इम्प्लांट सर्जरी ही विकल्प रह जाता है।

आपने जितने भी, सर्जरी के अलावा उपायों से फायदा देखा है उसके पीछे कुछ सामान्य कारण होते हैं। जैसे

1. फैट की मात्रा अधिक होने से स्तन अस्थाई रूप से बड़े दिख सकते हैं लेकिन लटके रहेंगे।
2. प्रोटीन की कमी से भी बड़े और कठोर स्तन ढल जाते हैं।
3. प्रोटीन और फैट, दोनो ही सही मात्रा में न हों तो पोषण, मसाज और व्यायाम स्तनों को कामुक और ठोस बना सकते हैं।
4. प्रोटीन स्तन का आभासी कंकाल बनाता है जो दबाने पर कठोर जालिका के रूप में महसूस किया जा सकता है। वसा लिपिड्स के रूप में इन प्रोटीन रेशों को चिकनाहट और सहारा प्रदान करता है। दोनो के संयोग से स्तनों का सही विकास होता है।
5. स्तन दबाने और मालिश करने से और मजबूत व सख्त होते हैं। ऐसा उनमें मौजूद प्रोटीन की मांसपेशियों के टूटने और दोबारा और मोटे जोड़ बना कर जुड़ने से होता है। ऐसा हर बॉडीबिल्डिंग करने वाले के शरीर के साथ वजन उठाने पर भी होता है। स्तनों को इतना ही दबाएं जितना बर्दाश्त कर सकें। परंतु हल्का दर्द भी हो, तो ही स्तन मजबूत और सख्त होंगे। दर्द मासंपेशियों के टूटने से होता है। निप्पलों पर हल्का पानी दिखना पर्याप्त मर्दन के लिये काफी है, परन्तु इतना भी न दबाया जाय कि रक्त निकल आये।
6. स्तन दबाने से ढीले नहीं होते। ढीले होने की अफवाह संकीर्ण विचारों वालों ने फैलाई है। दरअसल स्तन दबने के बाद लड़कियों को आनंद आता है (प्रायः संभोग के दौरान) और वे ज्यादा रिलेक्स हो जाती हैं। इस कारण से उनके स्तन भी रिलेक्स हो जाते हैं जो केवल कुछ समय के लिये ही ढीले होते हैं।
7. स्तन कोई लड्डू नहीं हैं जो दबाने पर फूट जाएंगे। इनका निर्माण ही स्पंजी कोशिकाओं से हुआ है जो दबाने के लिए ही बने हैं। ये मैथुन गद्दी कहलाते हैं जो मेढ़क में दूसरे तरीके की पाई जाती है। स्तन मसलने से वे मैथुन के समय योनि में तरलता लाते हैं और ओर्गास्म जल्दी होता है। जो महिला मैथुन के समय अपने स्तनों को मर्दन करवाती हैं उनको ओर्गास्म खूब बढ़िया और जल्दी होता है।
8. सभी तरह की ब्रा स्तनों को ढीला, बेडौल और दर्दभरा बनाती हैं। अगर बहुत ज़रूरी हो जैसे दौड़ते समय उछलने से रोकना, तो ही मुलायम स्पोर्टस ब्रा पहनिए। निप्पल दिख रहा है, ऐसा सोच कर कभी ब्रा न पहनिए। निप्पल है तो दिखेगा ही। बिना निप्पल के भला कौन आपको पसन्द करेगा?
~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Feelings can make or destroy you!



मैं हर सबक अति करके ही सीखा हूँ। मैं बहुत ज्यादा भावुक हूँ ये सब जानते हैं। इसीलिए vegan भी बना, प्रेमी भी और अच्छा इंसान भी लेकिन इसी कारण मुझमें गुस्सा, लालच और नफरत भी भर गई। समय रहते इन पर नियंत्रण करने के लिये लोगों से दूर हो गया। खुद पर कार्य किया।

खुद में बदलाव लाये। फेसबुक को अखाड़ा बनाया और जो काम बाहर होता वह इधर करके जांच करी कि खुद पर कितना नियंत्रण हैं। 2017 से lockdown तक कोई भी स्पष्ट भद्दा शब्द नहीं बोला था। फिर पाया कि जो जितने भद्दे शब्द प्रयोग करता है उसके उतने ही ज्यादा चाहने वाले होते हैं तो खुद पर ढील दी ताकि फ्रस्ट्रेशन निकले।

मैं फेसबुक से समझ गया कि मेरा लोगों से मिलना जुलना खतरनाक है। इधर लोग मेरे ज़रा से सत्य बोलने पर भड़क कर जान से मारने की धमकी दे देते हैं, बदतमीजी करते हैं तो सोचो सामने होते तो मार ही डालते। इसलिये अनजान लोगों से दूरी ही भली।

जो भी मेरे जैसे या मेरे विचारों को पसन्द करने वाले मिलते हैं उनको ही असल जीवन मे भी मित्र बना सकता हूँ। मेरे जितना ज़हरबुझा प्राणी आम लोगों के जैसा घटिया नहीं है। इसलिये बढ़िया लोगों में ही मेरी पटती है। और बढ़िया लोग होते ही कितने हैं? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

मंगलवार, मई 19, 2020

The so called luck now you can create in reality



किस्मत क्या है? किसी के साथ लगातार अच्छा होना या लगातार बुरा होना। अच्छा होना good luck और बुरा होना bad luck.

किस्मत को बदला नहीं जा सकता, ये माना जाता है। इसीलिये इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। किस्मत/भाग्य/luck शब्द दरअसल विधि के विधान की ओर इशारा करता है। लोगों की मान्यता है कि भाग्य पहले से लिखी कोई योजना है जो आपकी मर्जी के बिना ही आपको ऊंचा या नीचा गिरा सकती है। नीचे गिरने को बुरा भाग्य और ऊपर उठने को अच्छा भाग्य कहा जाता है। इसे केवल देखा और महसूस किया जाता है परंतु नियंत्रित नहीं किया जा सकता, ऐसी मान्यता धार्मिक दे गए हैं।

परन्तु इतिहास गवाह है कि बहुत अधिक सफल लोगों के पास कोई न कोई लकी वस्तु होती है। कुछ मामलों में तो किसी का दोस्त, कोई पोशाक, कोई जानवर भी लकी पाया गया है। हैरी पॉटर की कहानी में भी लकी पोशन यानि भाग्यशाली काढ़ा सारी कहानी पलट देता है। इसे सबसे ताकतवर काढ़ा माना जाता है। कभी लकी सिक्का, कभी लकी जर्सी, कभी लकी ब्रेसलेट, कभी ताबीज आदि तमाम वस्तुओं को लोगों ने अपने लिए लकी बताया है।

ये सब बातें किसी न किसी वास्तविक सच्चाई की ओर इशारा कर रही हैं। कैसे कोई इतना मेहनती व्यक्ति अपनी जीत को एक वस्तु को समर्पित कर देता है? जब कभी भी ये लकी वस्तु उनके पास नहीं होती है तो वे वाकई हार जाते हैं।

कई मेधावी छात्र इसी प्रकार के टोटके को मानते देखे गये हैं। वे इनको कई बार आजमाते हैं, हर बार उनका अनुमान सही निकलता है। वे उसे धोते नहीं। उसे वैसा ही रखते हैं जैसा उनकी पहली जीत के समय वह था।

इस प्रकार यह तो तय है कि बहुत से अमीर मानते हैं कि उनकी मेहनत तो थी ही परंतु उनके साथ उनका भाग्य भी था। तभी वे बाकी अपने प्रतिद्वंद्वीयों से आगे निकल सके। इन बातों ने इतना प्रभाव डाला कि इन लकी वस्तुओं की चोरियां तक हुईं। उनको वापस पाने के लिये मुंहमाँगे इनाम रखे गए।

कहने का तातपर्य है कि बहुत लोग भाग्यवादी होते हैं और उपर्युक्त उदाहरणों से धार्मिक मान्यताओं जिनमें 'भाग्य बदला नहीं जा सकता', जैसा बताया गया है की धज्जियाँ उड़ जाती हैं।

मतलब ये तो पक्का हो गया है कि ये कथित भाग्य अटल तो कतई नहीं है। इसे बदला जा सकता है। उपर्युक्त उदाहरण कहते हैं कि भाग्य वस्तुओं से भी बदल सकता है। जबकि वैज्ञानिक जांच से हर लकी वस्तु दूसरी किसी वस्तु की तरह ही साधारण पाई गई। फिर इनमें ऐसा क्या था कि इनके धारक इनमें कोई शक्ति महसूस करते हैं?

इन सब सवालों के वैज्ञानिक सिद्ध जवाब मेरे पास हैं। कथित भाग्य होता तो कुछ नहीं है, परंतु आप इसे बना सकते हैं। कुछ भी पहले से लिखा नहीं है। सब आप अपने मन से लिख सकते हैं। आप अपना भविष्य अभी तय कर सकते हैं। ये पहले से निर्धारित भविष्य ही आपका असली भाग्य है। मैं इसी नये बने भाग्य को ही सरलता से समझाने के लिए पुराना भाग्य नाम दे रहा हूँ क्योंकि ये नया वाला उसी काल्पनिक जैसा कार्य करता है। दरअसल विज्ञान ने उपर्युक्त घटनाओं में छिपा रहस्य खोज लिया है।

हाँ आप अपना भाग्य बना सकते हैं। ये एकदम जादू की तरह महसूस होगा क्योकि आपको उसकी विधि पता नहीं होगी। बस उसका परिणाम पता होगा। बिल्कुल जैसे कहा जाता है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। फल मीठा ही मिलेगा।

निराशा हमारी खुद की बनाई बदकिस्मती है। जब हम निराश होते हैं तो हम बर्बादी की ओर बढ़ जाते हैं। अब हम जो भी करेंगे, परिणाम बुरा ही होगा। इसलिए नकारत्मकता से दूर रहने को कहा जाता है। इसीलिए अच्छा सोचने और बोलने को कहा जाता है।

आपने मनहूसियत और काली जुबान वाले लोगों के बारे में भी सुना होगा। इसके पीछे भी यही रहस्य कार्य करता है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मेंटलिस्ट डैरिन ब्राऊन ने इस पर कई प्रयोग किये और कई लोगों की बदकिस्मती को खुशकिस्मती से बदल दिया। इसका प्रसारण टेलीविजन पर हो चुका है। यूट्यूब पर आपको इसके बहुत से वीडियो मिल जाएंगे।

यानि कुल मिला कर किस्मत होती है और इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यह एक मानसिक उपकरण की तरह है। जो वाकई कार्य करती है। अच्छा या बुरा? ये आप तय करेंगे।

हैरिपोटर की कहानी में हैरी भाग्यशाली काढ़े को रौन वीसली के पेय में डालने का ढोंग करता है और रौन वाकई बेहतर प्रदर्शन कर देता है। यानि बात काढ़े की, लकी वस्तु की नहीं है। ये है आपके मन की। ये मन मैं काबू करना सिखाता हूँ। मैं हूँ the luck builder! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Poverty is a highest selling emotional product for communists and politicians



मजदूरों और किसानों की हालत खुद उन्होंने ही ज्यादा देखी है। भड़कने पर गृहयुद्ध भी उनको ही करना है। फ़िर सोशलमीडिया पर गरीबी पोस्ट करके किसे भड़काया जा रहा है? किसी को नहीं। ये बस like पाने की हवस, उनके नाम पर दान मांग कर ऐश करना और फेमस होने की हवस मात्र है।

मोबाइल-इंटरनेट वाला बस रिएक्शन कमेंट देकर, समोसे खाने चला जाता है। उसने पोस्ट फॉरवर्ड करके गरीबों का भला कर तो दिया है। उधर मजदूर और किसान अशिक्षा के मारे भटक रहे हैं गली-गली। उनके पुरखों ने यही किया था, वो भी कर रहे हैं। पहले उनको पढ़ने नहीं दिया जातिवाद ने और अब उनको कम्युनिस्ट पढ़ने नहीं दे रहे। उनकी रोटी तो गरीबों के खून को बहाकर उसकी फोटो वायरल करने से ही तो चलती है। सलाम तो सभी करते हैं लेकिन उसका रंग लाल तो खून से ही होगा।

कम्युनिस्टों की हाँ में हाँ तो मिलाते रहना है, अन्यथा आप निर्दयी, कठोर और गरीबों से नफरत करने वाले जो बन जाओगे। 🤣 गरीबों का क्या है? कट रही है ज़िन्दगी। 3-4 बच्चे उन्होंने बालमजदूरी के लिये पैदा कर लिए हैं। (भाड़ में गया कानून 😊) सरकार बच्चा पैदा करने पर इनाम जो देती है। 🤣

उनको राजनीति, सरकार से कुछ चाहिये होता तो मेहनत नहीं करते। आमरण अनशन पर बैठ जाते, अन्ना हजारे की तरह, गांधी की तरह! जिसे हम मोटे पेट वाले लोग देख कर आंसू बहाते हैं न, उनको इसकी अब आदत पड़ चुकी है। उनको अपनी हालत से कोई समस्या नहीं है और न ही आप उनका कोई भला कर सकते हैं, क्योंकि मदद उसी की कर सकते हैं जो मदद मांग रहा हो। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

You can be lucky, it's a psychological effect




सन 2000 से मेरे बुरे दिन शुरू हुए। आने वाले वर्षों में मुझे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। कई शैक्षिक परीक्षाओं में अनुत्तीर्ण हो गया। सन 2005 में मुझे मेरी wapsite (माइक्रोब्लॉग) tagtag.com/shubhanshu पर मेरे आतंकवाद के खिलाफ आह्वान को पढ़ लेने पर ओसामा बिन लादेन की धमकी मिली। दिल्ली में बम विस्फोटों की चेतावनी और मुझे जान से मारने की धमकी भी।

मैंने अमरउजाला अखबार से सम्पर्क किया। पत्रकार पवन चन्द्र जी ने आकर मेरा बयान लिया और मेरे मोबाइल से एक इंटरनेट कैफ़े जाकर उस सन्देश का प्रिंट भी लिया। अगले दिन हेडलाइन में मेरी खबर छपी।

मेरा नाम मेरे कहने पर बदल कर सुभाष रखा गया। अगले 3 दिन तक इस खबर पर कार्यवाही होती रही। मुझे छुप कर, दाढ़ी बढा कर रहने को कहा गया। मुझे कुछ दिन तक पवन जी के फोन आते रहे। उन्होंने कहा कि पुलिस तुमको ढूढ़ रही है। मैंने तुम्हारी पहचान छुपा रखी है। लेकिन फिर भी सावधान रहो। वेबसाइट डिलीट कर दो और अपने फोटो भी इंटरनेट से हटा लो। पुलिस में लादेन के लोग हो सकते हैं।

इस खबर के खुलने पर ओसामा का गैंग सावधान हो गया और 3 माह तक कुछ नहीं हुआ। फिर अचानक दिल्ली में 11 में से 10 बम धमाके हुए। एक फुस्सी निकल गया। न्यूज़ में आया कि 3 माह पहले ही बरेली एक लड़के ने बम धमाकों की सूचना पुलिस को दी थी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।

मेरी हालत पतली थी। मेरे चक्कर में मेरे परिवार को खतरा हो सकता था। मैं मरने की सोचने लगा था और तब तरस खाकर मुझे किसी ने एक राज़ बताया। वो राज़ जानकर मैं चौंक पड़ा। मेरा सारा डर और निराशा दूर हो गई।

उस दिन से मैंने यह मनोविज्ञान आजमाना शुरू कर दिया। अगले ही वर्ष 2006 में मैंने इस मनोविज्ञान का प्रयोग किया। मुझे आयशा टाकिया नामक हीरोइन पसन्द थी। मैंने उससे सम्पर्क करने की इच्छा की। इस मनोवैज्ञानिक विधि में मेरी हर जायज इच्छा पूरी करने का दावा था। इच्छा की पूर्ति के लिये कुछ जायज प्रयास भी करने थे। तभी luck अपना काम करेगा।

ये वैसा ही है जैसे बिना लॉटरी टिकट लिये लॉटरी जीत जाने की इच्छा करना। मतलब पहले लॉटरी खरीदनी पड़ेगी तभी वह लगेगी।

मैंने कुछ प्रयास किये और एक दिन चमत्कार हुआ। मुझे आयशा ने ईमेल किया। मैंने सोचा ऐसा सम्भव नहीं। कोई फ्रॉड है। मैंने ईमेल ट्रेस किया। मुम्बई का निकला। थोड़ा विश्वास बढा। फिर मैंने क्रॉस सवाल किए और छोटी से छोटी बात पर भी सन्देह किया। आयशा ने सभी सन्देह दूर कर दिए।

फिर हमने करीब 2 साल तक ईमेल पर बात की। इसी दौरान मुझे उस इंसान का ध्यान आया जिसने मुझे यह राज़ बताया था। मैंने उससे पूछा, कि ये राज़ मुझे क्यों बताया?

उसने कहा, "तुम्हारा दुर्भाग्य बड़ा था, तभी साधारण सा बालक होकर भी ओसामा बिन लादेन को प्रभावित करके दुश्मन बना लिया। तुम्हारी लिखाई गजब की है। ऐसे इंसान को मैं खो नहीं सकता। तुम ही सही पात्र हो इस राज़ के। ये राज़ बहुतों पर है लेकिन वे पात्र नहीं हैं।

खुद देखो, तुमने कुछ ऐसा लिखा कि पहले ओसामा बिन लादेन, डर गया और दूसरी बार तुमने कुछ ऐसा लिखा कि फ़िल्म अभिनेत्री ने तुमको सम्पर्क किया। तुम बस अपने luck का इस्तेमाल ठीक नहीं कर रहे थे। मैंने बस दिशा दी है। तुम जो चाहो हासिल कर सकते हो। बस इसका गलत इस्तेमाल मत करना कभी।"

उसकी बातों ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया। मैंने फिर से इसे आजमाने की सोची। और ओसामा बिन लादेन मारा गया।

अचानक मैं डर भी गया। मेरे सपने छोटे हो गए। मैं घबराने लगा अमीर हो जाने से, फेमस हो जाने से। मैं इसके लिये तैयार नहीं था। मांगते ही मिल जाने का डर सताने लगा। क्या हो कि जो मांगू उसे सम्भाल न पाऊं? तब तो खतरा हो सकता है।

तब से मैं वैरागी सा हो गया। जब किस्मत आपके कब्जे में हो तो एक डर भी सताने लगता है कि जब लोग पूछेंगे कि 2 कौड़ी का इंसान अचानक राजा कैसे बन गया? तब क्या जवाब दूँगा? इसलिये मेहनत से ही आगे जाने में इज़्ज़त है। अतः मैंने इस विधि का सीमित प्रयोग तय किया।

अब बस मैंने संतोष का रास्ता चुना और उतना ही मांगा जितना पर्याप्त हो। बाकी लोगों के संसाधनों पर मैं अकेले कब्जा करना नहीं चाहता था। मेरी महत्वाकांक्षा मर गई थी। इसलिए मैंने केवल इन्वेस्टमेंट के लिए धन एकत्र करने पर फोकस किया। आज मैं लाखों रुपयों का मालिक हूँ। लेकिन रहता फकीरों की तरह नँगा हूँ। इसी में आराम है। कपड़ों में घुटन है। आज इस लायक हूँ कि मकान भी है और बिना कोई हाथ-पैर चलाये साल के 374000₹ कमा लेता हूँ।

मेरे ऊपर न तो मंहगाई असर करती है और न ही lock डाउन। अपने सभी शौक पूरे करता हूँ। माता पिता भी मुझे लकी मानते हैं। पिता को मैंने अपने मनोविज्ञान से जिंदा रखा हुआ है। डॉक्टर कहते हैं कि ये ज़िंदा कैसे हैं? इनको तो 20 साल पहले ही मर जाना चाहिए था। बहुत ही लकी आदमी हैं। और दूसरी तरफ पापा मुझे अपनी ज़िंदगी का जीवन दूत मानते हैं।

मैंने 2008 में एक महिला दोस्त बनाई। उसने खुद ही आकर मुझे प्रपोज किया। दरअसल मेरी इच्छा थी कि वह ऐसा करे और उसने कर दिया। मुझे लोगों ने कहा था कि तुम इतने ज्यादा अच्छे हो कि अच्छे से अच्छे लड़के तुम्हारे आगे दोषी हैं। तुमको कोई अपने जैसी महान नहीं मिलेगी। मैंने कहा अच्छा, चलो अपना luck आजमाते हैं। मुझे प्यार करने वाली दोस्त मिली। उसने अपने घरवालों से विरोध करके मेरा साथ दिया। मैंने कभी कोई पंगा नहीं लिया। उसको जैसा समझाता, वह वैसा ही करती और उसके घरवाले भी उसे टोकना बन्द कर गए।

आज हम दोनों वैसे ही आज़ाद हैं जैसे कोई बिना माँ बाप का इंसान आज़ाद होता है। सब कहते हैं कि तू लकी है। उधर मेरी दोस्त को सब कहते हैं कि वो लकी है कि उसे मैं मिला। तन और मन दोनो से खुश रखने वाला।

मैंने आगे के तमाम कामों में ऐसी सफलता पाई कि लोग मेरी इज़्ज़त करने लगे। बड़े बड़े घमण्डी पैर पड़ गए। माफी मांगी। सबने एक ही डायलॉग मारा, "Shubhanshu हम तुमको जैसा समझते थे, तुम वैसे नहीं हो।"

और मेरे होठों पर बस एक मुस्कान बिखर जाती है। ~ Shubhanshu 2020©

शनिवार, मई 16, 2020

Farmership and Labourship are not reserved for Illiterates

मजदूरों और किसानों के कार्य महत्वपूर्ण होते हुए भी उनको सम्मान से नहीं देखा जाता। उसका कारण उनका कम या बिल्कुल शिक्षित न होना है। अनपढ़ व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता है, जब तक उसे नेता या धनवान बनते न देखा जाए। 

किसानों और मजदूरों की दुर्दशा अशिक्षा के कारण ही है क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति को शिक्षित व्यक्ति तब तक अपमान से देखता है, जब तक वह शिक्षित या धनवान न हो जाये। निर्धनता तो पढ़े लिखों का भी सम्मान छीन लेती है। सब उनको नकलची या फेक डिग्री वाला समझने लगते हैं।

शिक्षा ही आपकी आज़ादी की और सम्मान की चाभी है। इसे पाकर ही आप समाज में उच्च स्थान पा सकते हैं। शिक्षा पाकर आप किसानी कीजिये या मजदूरी भी कर सकते हैं तो वही कीजिये। कोई भी काम छोटा नहीं होता, अगर उसे कुशल और शिक्षित व्यक्ति करे।

नौकरी वही करे जिसे नौकर बनना हो। किसान और मजदूर तो अपने मालिक खुद बन सकते हैं। गर्व से लोगों के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर श्रम कीजिये और गर्व से सबके लिये अपने खेतों में फसलों का सोना उगाइये।

जय शिक्षित मजदूर, जय शिक्षित किसान! तभी होगा मेरा भारत महान! ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

The Luck Builder

इंसान जो भी भुगत रहा अच्छा या बुरा, यह उसका खुद का चुनाव है। कर्म करो फल की इच्छा न करो का अर्थ है कि घबराओ मत। डरो मत। अच्छा कार्य करो। परिणाम अच्छा ही आएगा! पिछला जन्म होता नहीं तो पिछले जन्म के कर्म किधर से आ गए?

मान भी लो कि पिछला जन्म होता है, तो भी जब आपको अपने पिछले जन्म का घण्टा कुछ याद नहीं है तो सज़ा पाकर क्या पश्चाताप करोगे? घण्टा!

अतः ये बकवास बात है, केवल तसल्ली देने के लिये, ताकि कोई गुस्से में गलत कदम न उठा ले।

किस्मत कुछ नहीं है। बस अवसरों की एक कड़ी है जो आपकी सोच से चलती है। जी हाँ आपकी सोच से।

बहुत लोग कहते हैं कि शुभ तुम जो कहते हो, वही कर दिखाते हो। कैसे? असम्भव कार्य भी कैसे कर देते हो? इतना कॉन्फिडेंट कैसे रह लेते हो। जो हमको ओवर कॉन्फिडेंस लगने लगता है। क्या तुम कोई जादू जानते हो? इतना लकी कैसे?

हकीकत यह है कि हम लोग अपने मस्तिष्क को कभी ठीक से समझ नहीं पाते। हमारा दिमाग ही हमारा जादूगर है। हाँ मैं वैज्ञानिक हूँ, और मैं किस्मत को अपनी जेब में रखता हूँ। वैज्ञानिक तरीके से।

आपकी बदकिस्मती आपकी बनाई हुई है और आपकी खुशकिस्मती भी। और इसको आप बदल सकते हैं।

मेरी ये बात अपराधी भी सुन रहे होंगे और वो भी जो अपराध करना चाहते हैं। वो भी जो गलत करके बच जाना चाहते हैं। इसलिए ये राज़ सबको नहीं बताना चाहिए। एक संकेत ही दे रहा हूँ कि सब आपकी ही करनी है जो आज आप भर रहे हो और आगे भी भरोगे। अच्छा या बुरा सब आपका अपना चुनाव है। ~ Shubhanshu The Luck Builder 2020©

मंगलवार, मई 12, 2020

I am not Covid19 ~ PM




PM: lockdown में सबकी गांड फट गई होगी। बोलो, फण्ड में से कितना राशन भेज दूँ?
जनता: दारू-दारू-दारू!
PM: गलत बात! 70% टैक्स लगा दूँगा। मत पीना।
जनता: दारू-दारू-दारू, देता है या गांड फाड़ दूँ?
PM: तुमने रामायण मांगी, दे दी, महाभारत मांगी, दे दी, श्री कृष्णा मांगा, दे दिया। अब ले लो दारू भी ले लो। हमें लगा अनाज चाहिए, इसलिये फंड में दान मांगा।

चलो तुम टैक्स देने पर आमादा हो, तो टैक्स ही दे दो! मैं तो उसी दिन समझ गया था कि तुम सब मूर्ख हो, जिस दिन मैंने ताली-थाली-दीवाली की बात कही और तुम फट से मान गए। जितना कहा, उससे ज्यादा किया।

भारत माता की कसम, जब से PM बना हूँ, तब से देख रहा हूँ। मैं तो चाय बेचता था। कम पढा-लिखा था। इसलिये मूर्खतापन्ति करता हूँ। लेकिन तुम तो एक से बढ़कर एक धुरंधर हो। फिर काहे मूर्खतापन्ति करते हो?

इस साल की शुरुआत से ही, पूरी दुनिया में बर्बादी के दिन शुरू हो गए। जो इस देश में हजार साल में नहीं हुआ वो इस साल हो गया। बहुत बुरा समय है। अर्थव्यवस्था का नाश हो गया। पहली बार इतने समय तक देश घरों में बन्द रहा। अघोषित इमरजेंसी लगानी पड़ गई।

कामगार मजदूरों पर असर पड़ा। उद्द्योग धंधे चौपट हो गए। सरकार पर बिना काम के वेतन देने का अतिरिक्त दबाव पड़ा। देश 10 साल पीछे चला गया। पूरी दुनिया 10 साल पीछे चली गई। फिर भी मैं इस छोटे से दिमाग से जो भी बन पड़ रहा है, अपने एक्सपर्ट सलाहकारों से जाँच करवा कर कर रहा हूँ।

उधर कांग्रेस गांड मार रही है, तो दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टी हथोड़ा और हंसिया दिखा रही है। लगी पड़ी है। अरे इस कठोर समय में तो राजनिति न करो। ऐसा तुम्हारी सरकार के साथ भी हो सकता था। अफवाहें उड़ा कर मरे को क्यों मांर रहे हो।

अनपढ़ नागरिक परेशान है, उसे पता भी नहीं कि हो क्या रहा है? उसे समझाने की जगह, भड़काया जा रहा है। उकसाया जा रहा है। ये तक कह दिया कि कोरोना मैंने फैला दिया है। अरे निर्लज्जों, चीन में कोरोना मैंने फैला दिया? अमेरिका में मैंने फैला दिया? अरे मैं तो अभी भला चंगा हूँ, मुझे ही कोरोना है, बता दिया कमीनो। अभी ज़िंदा हूँ मैं।

राज्यों में फिर से मजदूर काम पर लौट सकें इसलिये मजदूर एक्ट में अस्थायी संशोधन की ज़रूरत पड़ी। हमने कहा कि मजदूर काम पर लौट आये। उनकी और उनके ऊपर निर्भर व्यापारों की हालत सुधरे। राज्य सरकारों ने उसे सुना। उनको अपनाया। अब मजदूर सोशल डिस्टेंसिंग में रहकर भी काम कर सेकेंगे।

ज्यादा काम करना चाहें तो ओवर टाइम ले सकते हैं। कोई जबर्दस्ती नहीं है। अपनी सहूलियत से कार्य करें। कोई आपको तंग करे तो शिकायत कीजिये। सुरक्षा के सारे नियम पूर्ववत हैं। किसी का हक नहीं मारा जाएगा। हंगामे से दूर रहें। आपके भले के लिये ही होगा। सब काम आपके लिए ही कर रहा हूँ। आपका ही सेवक हूँ।

बस धैर्य रखिये। भड़काऊ नेताओं से दूर रहिये। वो आपके खून पर अपना गुजारा करते हैं। आपके घर जला कर रोटी सेकेंगे। मैंने भी सेंकी थीं। गुजरात दंगे याद हैं? करवाने पड़े। क्या करता, सीट बचानी थी। हो गयी गलती। बहक गए कदम। बहका दिया राजनीती ने मुझे। लेकिन अब नहीं। अब बस। बहुत खून बह गया। बहुत लाशें बिछ गईं। मैं बूढ़ा हो गया। अब राजनीति नहीं होती। दलदल है ये। फंस जाते हैं अच्छे-अच्छे। कितना भी अच्छा कर लो। फेकू ही कहलाता हूँ। नहीं होता अब। पहले भी कहा था कि कह दो एक बार, कह दो एक बार कि नहीं चाहिए मोदी। मेरा क्या है? झोला लेकर चला जाऊँगा। इस पर भी राजनीति हो गई।

कहा गया कि झोले में क्या ले जाओगे? अरे झोले में मैं लोढ़ा ले जाऊँगा भोसड़ी वालों। अरे झोले में एक फकीर क्या ले जाता है? वही एक जोड़ी कपड़े, तेल, साबुन, आटा, दाल, नमक, और हो सका तो 2-3 आलू प्याज टमाटर भी। अब इसको भी नहीं ले जाने दोगे तो डाल लो अपनी गांड में। मैं फिर कहीं से पैदा कर लूंगा। अभी दम है हाथों में। कहीं मजदूरी कर लूंगा। चाय बेच लूंगा। लेकिन जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जय हिंद देशवासियों! 👍 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Disclaimer: व्यंग्य। केवल मनोरंजन हेतु। इसका किसी असली जीवित व्यक्ति से सम्बंध नहीं है।

शनिवार, मई 09, 2020

सरकार व्यापारियों का ऋण माफ कर रही है मगर किसानों का नहीं, आखिर क्यों?




कुछ विद्वानों को लगता है कि करोड़ो रूपये माफ कर दिए विलफुल डिफॉल्टर के और किसानों का कर्ज माफ नहीं कर रहे। इन विद्वानो को न तो कानून पता हैं और न ही नियम। ये कम्युनिस्ट संविधान को नहीं मानते इसलिये ऐसी सोच रखते हैं।

NPN कानून के तहत जब व्यक्ति के पास कुछ सम्पत्ति नहीं शेष रह जाती है तो उसे दिवालिया कहा जाता है। यानि हम उससे कुछ वसूल नहीं कर सकते। नँगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या?

इसको ऐसे समझो। स्थिति 1: माना आपने नियमो का पालन करके सम्पत्ति गिरवी रख कर लोन लिया और एक मंदिर बनाया। खूब कमाई हुई। फिर अचानक एक दिन lockdown लग गया। गांड फट गई। एक एक पैसे के मोहताज हो गए। लोन की किस्त गांड से बाहर आने लगी। तब आपने कहा कि ले लो मंदिर, ले लो घर। मेरी पूरी तरह से फट गई है। अब सिलने को धागा तक न बचा। तब बैंक आपकी जांच करेगी और आपकी सम्पत्ति के वर्तमान मूल्य का आंकलन करके उसे नीलाम कर देगी।

अब मान लो मंदिर नीलाम हुआ कम कीमत पर। जैसे 1 करोड़ का मंदिर अब 1 लाख का रह गया, आपने लोन लिया 50 लाख का। क़िस्त चुकाना बन्द कर दिया क्योंकि आमदनी कम हुई। ब्याज बढ़ता गया। 1 करोड़ हो गया। अब बैंक को 100 लाख की जगह केवल 1 लाख मिला। आप खड़े नँगे, बेघर, सड़कछाप, तब बैंक आपका 99 लाख NPN के नियम से माफ कर देगी और रिजर्व बैंक से मदद लेगी।

स्थिति 2: अगर आप ने पैसा होते हुए भी क़िस्त नहीं दी और भाग गए देश छोड़ कर, तो आप विलफुल डिफाल्टर हुए। ऐसी दशा में आपको इंटरपोल पुलिस पकड़ेगी और पकड़ने के बाद जो भी सम्पत्ति मिलेगी, उससे लोन चुकायेगी और बचा हुआ लोन, चूंकि कुछ बचा ही नहीं है अगले पर, उसे माफ कर देगी। लेकिन जेल भेजा जाएगा।

स्थिति 3: आप किसान हैं। आपने 20 लाख लोन लेकर अपना खेत गिरवी रखा। इस पैसे से बेटी की शादी में दावत करी। उत्सव मनाया। खूब कर्जा लेकर दारू पिया। सब 20 लाख उड़ा दिया। अब कमाई हुई कम। तो गांड फ़टी कि लोन कैसे चुकाएँ? ब्याज बढ़ता जा रहा है। तब आप सरकार को कोसते हैं कि कारपोरेट के करोड़ो माफ कर दिए, हमारे लाखों माफ नहीं कर रहे। अरे भाई, आप भी खेत-मकान बेचकर सड़क पर आ जाओ। दिवालिया हो जाओ। भीख मांगो। आपका भी लोन माफ हो जाएगा। या पैसा हो तो विदेश भाग जाओ। पुलिस जब पकड़ेगी तो जीवन भर जेल में रहना। तब तक ऐश करना। हाँ लोन उसमें भी माफ हो जाएगा, इधर की सम्पत्ति नीलाम करने के बाद बचा हुआ।

तो आपने समझा कि भिखारी बन गए व्यक्ति को धन दिया जाता है, न कि लिया जाता है। इतना तो खुद जानते होंगे। वैसे भी विलफुल डिफाल्टर को अपराधी माना जाता है। तो कानून तो अपना काम करेगा ही। भगोड़े को पकड़ने के प्रयास चल ही रहे हैं। उसकी संपत्ति लोन चुकाने के लिये पर्याप्त नहीं है तो उसका लोन माफ होना तय है। उसकी गांड से नहीं पैसा बन जायेगा। अगले पर नहीं है तो पैसा कहाँ से ले लोगे? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©