Zahar Bujha Satya

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मंगलवार, मई 19, 2020

Poverty is a highest selling emotional product for communists and politicians



मजदूरों और किसानों की हालत खुद उन्होंने ही ज्यादा देखी है। भड़कने पर गृहयुद्ध भी उनको ही करना है। फ़िर सोशलमीडिया पर गरीबी पोस्ट करके किसे भड़काया जा रहा है? किसी को नहीं। ये बस like पाने की हवस, उनके नाम पर दान मांग कर ऐश करना और फेमस होने की हवस मात्र है।

मोबाइल-इंटरनेट वाला बस रिएक्शन कमेंट देकर, समोसे खाने चला जाता है। उसने पोस्ट फॉरवर्ड करके गरीबों का भला कर तो दिया है। उधर मजदूर और किसान अशिक्षा के मारे भटक रहे हैं गली-गली। उनके पुरखों ने यही किया था, वो भी कर रहे हैं। पहले उनको पढ़ने नहीं दिया जातिवाद ने और अब उनको कम्युनिस्ट पढ़ने नहीं दे रहे। उनकी रोटी तो गरीबों के खून को बहाकर उसकी फोटो वायरल करने से ही तो चलती है। सलाम तो सभी करते हैं लेकिन उसका रंग लाल तो खून से ही होगा।

कम्युनिस्टों की हाँ में हाँ तो मिलाते रहना है, अन्यथा आप निर्दयी, कठोर और गरीबों से नफरत करने वाले जो बन जाओगे। 🤣 गरीबों का क्या है? कट रही है ज़िन्दगी। 3-4 बच्चे उन्होंने बालमजदूरी के लिये पैदा कर लिए हैं। (भाड़ में गया कानून 😊) सरकार बच्चा पैदा करने पर इनाम जो देती है। 🤣

उनको राजनीति, सरकार से कुछ चाहिये होता तो मेहनत नहीं करते। आमरण अनशन पर बैठ जाते, अन्ना हजारे की तरह, गांधी की तरह! जिसे हम मोटे पेट वाले लोग देख कर आंसू बहाते हैं न, उनको इसकी अब आदत पड़ चुकी है। उनको अपनी हालत से कोई समस्या नहीं है और न ही आप उनका कोई भला कर सकते हैं, क्योंकि मदद उसी की कर सकते हैं जो मदद मांग रहा हो। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

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