खुद में बदलाव लाये। फेसबुक को अखाड़ा बनाया और जो काम बाहर होता वह इधर करके जांच करी कि खुद पर कितना नियंत्रण हैं। 2017 से lockdown तक कोई भी स्पष्ट भद्दा शब्द नहीं बोला था। फिर पाया कि जो जितने भद्दे शब्द प्रयोग करता है उसके उतने ही ज्यादा चाहने वाले होते हैं तो खुद पर ढील दी ताकि फ्रस्ट्रेशन निकले।
मैं फेसबुक से समझ गया कि मेरा लोगों से मिलना जुलना खतरनाक है। इधर लोग मेरे ज़रा से सत्य बोलने पर भड़क कर जान से मारने की धमकी दे देते हैं, बदतमीजी करते हैं तो सोचो सामने होते तो मार ही डालते। इसलिये अनजान लोगों से दूरी ही भली।
जो भी मेरे जैसे या मेरे विचारों को पसन्द करने वाले मिलते हैं उनको ही असल जीवन मे भी मित्र बना सकता हूँ। मेरे जितना ज़हरबुझा प्राणी आम लोगों के जैसा घटिया नहीं है। इसलिये बढ़िया लोगों में ही मेरी पटती है। और बढ़िया लोग होते ही कितने हैं? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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