मैं विवाह विरोधी नहीं हूँ।
मैं शिशु विरोधी नहीं हूँ।
मैं धर्म विरोधी नहीं हूँ।
मैं समाज विरोधी नहीं हूँ।
मैं राजनीति विरोधी नहीं हूँ।
मैं पशुभक्षियों का विरोधी नहीं हूँ।
मैं इन सब से मुक्त हूँ।
मैं मुक्त हूँ, इसका मतलब ये नहीं कि ज़हरबुझा सत्य बताना व अपनाना मेरा काम नहीं। सत्य किसी के भी विरुद्ध हो सकता है जो असत्य हो।
जब मैं विवाहमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके मध्य क्लेश और अनबन की चिंता होती है क्योंकि आप अपना मन मार के जीते हो।
जब मैं शिशुमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता होती है। जिन पर आप बाद में बोझ बनकर लटक जाते हो।
जब मैं धर्ममुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके परिवार की चिंता होती है क्योंकि आप को झूठा दिलासा देकर लूटा और मारा जा रहा है।
जब मैं समाजमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपकी आज़ादी के खोने का डर होता है। समाज गैरकानूनी रोकरोक करता है। अपनी मर्जी थोपता है।
जब मैं राजनीतिमुक्त होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके जीवन के हर स्तर पर चिंता होती है कि राजनीति की वर्तमान दशा केवल छल और कपट से राज़ करने की, कुटिल नीति है जिसका उद्देश्य आपको मतदान के लिए उकसाने हेतु चारा (लाभ/योजनाएं) डाल कर, और मूर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा करना और माल बटोरना (घोटाला, प्रचार, दान) मात्र है।
जब मैं जंतुउत्पादमुक्त/जंतुक्रूरतामुक्त (vegan) होने की बात करता हूँ तो मुझे आपके स्वास्थ्य और समस्त प्राणियों की स्वतंत्रता और अधिकारों की चिंता होती है। उनको भी अपनी प्रकृति अनुसार जीने और अपने भोजन को सिर्फ अपने लिये उपयोग करने और दूसरे को देने से मना करने का हक है।
पशुपालन से विश्व भर में ग्लोबलवार्मिंग का प्रकोप बढ़ा है। जानवरों के झुंड में एक विशेष प्रकार की दुधारू, माँस, अंडे उत्पादक नस्ल का ही उत्पादन और बढ़वार हो रही है। इनके मल, डकार और सांस से 14% ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन हो रहा है। जबकि ये जब जंगल में थे तो इनकी मात्रा इनको खाने वाले जानवर कम करते रहते थे जिससे इनकी मात्रा संतुलन में थी। जब से ये व्यापार बना, तब से इंसान इन जानवरों की खेती करके इनकी मात्रा बढाने लगा।
जानवरों को पहले से उगाया गया अनाज खिलाया जाता है जिसमें पानी और कीटनाशक की बड़ी मात्रा पहले ही खप चुकी होती है। उसके बाद ये बीमार हो कर मर न जाएं इसके लिये इनके भोजन में तमाम एंटीबायोटिक मिलाए जाते हैं। पशुपालन के तरीकों के प्राकृतिक न होने के कारण पशुपालकों को इनके चारे में विटामिन B12 भी खरीदकर मिलाना पड़ता है। अन्यथा मांसाहारी लोग पागल होकर मर जायेंगे।
ये एंटीबायोटिक और B12 भारी मात्रा में मांसाहारी लोगों के शरीर में जाकर उनके शरीर को खोखला करने लगता है और उनका शरीर दूसरी ही बीमारियों का घर बन जाता है। जैसे पथरी, डायबिटीज, ब्रेन हेमरेज, अल्जाइमर, कर्डियक अटैक (दिल का दौरा) आदि। इनमें से दिल का दौरा पशुवसा (बुरा कोलेस्ट्रॉल) के नसों में फंसने से पड़ता है। भारी व्यायाम ही कुछ हद तक इससे बचाव कर सकता है।
इंसान ने अपने स्वार्थ के चलते मांसाहारी पशु मार दिए और बाड़ बना कर इन धन उपजाऊ कम हिंसक पशुओं की रखवाली करने लगा। तब से इनकी बढती जनसँख्या ने ग्रीनहाउस गैसों की अतिरिक्त मात्रा उतपन्न करके साम्यता में खलल पैदा कर दिया। साम्यता का अर्थ है ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन व नाश के बीच में लगने वाला समय। यानि इनकी खपत और उत्पादन में संतुलन बिगड़ गया है। अगर हम इनकी मात्रा घटा दें यानि ये 14% ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन कम कर दें तो साम्यता ठीक हो जाएगी और बाकी स्रोतों से हो रहा इन गैसों का उत्पादन खप जाने के लिये उचित समय मिल जाएगा।
अतः हम पिघलती बर्फ से डूबने से बच जांएगे। उस बर्फ (गेलेशियर) से, जो जमी है तो भूमि सूखी है। जब वो पिघल जाएगी तो जो 30% स्थल जो अभी उपलब्ध है वो भी खत्म होकर पानी में डूब जाएगा। सबसे अंत में पहाड़ी इलाके डूबेंगे लेकिन तब तक वहां निचले स्थल से आये लोगों ने मार काट छीना झपटी मचा कर पहले ही जीवन समाप्त कर दिया होगा।
ये सब अनुमान नहीं है। प्रति वर्ष 1 इंच हम नमकीन पानी में डूबते जा रहे हैं। हर वर्ष पृथ्वी का ताप 1℃ बढ़ रहा है और अफ़सोस कि कुछ लोगों को ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ अफवाह लगती है। कोई बात नहीं, कुछ समय बाद पृथ्वी पर जीवन ही एक अफवाह बन जाएगा, जब यहाँ पर आखिरी कोई जंतु बस समुद्री ही रह जाएगा।
साथ ही भारतीय संविधान में पशुक्रूरता निरोधी कानून की धारा 11 और भारतीय दंड सहिंता की धारा 429 (IPC 429) के तहत किसी भी पशु को तंग करना, मारना, कष्ट देना, हत्या करना, चोट मारना आदि संज्ञेय अपराध है और जिसकी सज़ा 5 वर्ष कारावास व जुर्माना दोनो है।
मेरे लिये समस्त जीव-जंतु (मानव में सिर्फ बुद्धि का फर्क) एक समान मस्तिष्क धारी (केवल 0.001% जंतु मस्तिष्कहीन व पौधे नुमा संरचना वाले हैं) अपना परिवार हैं और समस्त पेड़-पौधे, सभी वनस्पतिभोजी प्राणियों (vegans), जिनकी प्रकृति में संख्या लगभग 99% है; के भोजन, आवास, वस्त्र, औषधि, उत्पाद आदि हेतु आवश्यक उत्पादक हैं। 2019/12/05 17:29 Shubhanshu 2019©