Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

शुक्रवार, सितंबर 04, 2020

Government doesn't affect by your social media posts, it's a fact


कुछ लोग बोलते हैं कि "वो तुमको फलां में उलझाएंगे, तुम फलाँ पर डटे रहना।" इस पर मेरा कहना है कि मैंने पिछले दिनों, सरकार के बनाये कई कानूनों और अव्यवस्थाओं पर पोस्ट किए।

जैसे,

● स्पेशल विवाह कानून के फार्म में धर्म को पूछना व निषिद्ध सम्बन्धों में विवाह न होना लेकिन धर्म या रिवाज इजाजत दे, तो उचित है और पहले से, अनजाने में ऐसा विवाह करने पर सज़ा व जुर्माना क्यों?

● पशुक्रूरता निरोधी कानून में पशुबली व भोजन हेतु पशुहत्या की छूट।

● सरकार व न्यायालय में धर्म से जुड़े सिम्बल और कोट्स आदि।

क्या सरकार को पता चला? क्या सरकार को कोई फर्क पड़ा? सरकार को सोशलमीडिया पर हमारे विरोध या समर्थन से कोई फर्क नहीं पड़ता है। फर्क केवल हमारे दिमाग पर पड़ता है। हम सब थोड़ा और फ्रस्ट्रेशन में चले जाते हैं। वैसे भी हो तो हम से कुछ पाना नहीं है।

● RTI डालने में जान से जाने का डर बोल के फट जाती है।
● पुलिस थाने में कम्प्लेंट करने में हमारी फट जाती है क्योंकि गलती तो हमारी भी होती है।
● करने भी जाओ तो अपराधियों का दलाल दरोगा रिपोर्ट दर्ज नहीं करता और हम भाग आते हैं।
● फिर तो हम कतई SSP से शिकायत करने नहीं जाते, क्योंकि हमारी दरोगा से भी फटती है। कहीं झूठे केस में अंदर न कर दे।
● मानवाधिकार आयोग की जानकारी है भी तो कौन जाए केस करने? कहीं हमारी सड़क दुर्घटना में मौत न हो जाये।
● कौन जाए वकील करने? पैसा लगेगा। बहुजन को फ्री में वकील विधिक समिति से उपलब्ध है, लेकिन फ्री वाले पर भरोसा नहीं है।
● फ्री के इलाज से भी डर लगता है। इसलिए जिला अस्पताल नहीं जाएंगे। महंगा इलाज करवा के निजी अस्पताल ने किडनी निकाल ली, लाखों का बिल बना दिया, गलत रिपोर्ट बना दी, मार डाला और अब लाश नहीं दे रहे बिल भरे बिना।
● सरकारी कोई सुविधा नहीं चाहिए। तुम रखो अपनी सब्सिडी, हम ब्लैक में लेंगे।
● सरकारी स्कूल में पढ़ा कर क्या बच्चों को भीख मंगवाई जाएगी? उसमें तो मजबूर पढ़ते हैं। हमारे बच्चे बिगड़ जाएंगे। हम तो कॉन्वेंट में डालेंगे।
● जेनरिक दवा नहीं लेंगे। क्योंकि वो सरकारी है। 100₹ की दवा 1₹ में कैसे मिल रही है? नकली होगी।
● डीलक्स निरोध कंडोम सिर्फ 1₹ और बाकी कंडोम 10₹ से शुरू। ज़रूर घटिया होगा। फट गया तो? हम तो 50₹ वाला लेंगे।
● जिला अस्पताल में डिलीवरी? न जी न, जच्चा बच्चा मरवाना थोड़े ही है। चाहे गुर्दे निकल जाएं, हम तो बड़ा बिल फड़वाने वाले हैं।

तो इस तरह केवल गरीब और मजबूर ही सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकता है। जिसके पास विकल्प है वो तो उसे पीठ ही दिखाने वाला है। फिर भी हम सब विकल्प वालों को सोशल मीडिया पर सरकार की बहुत फिक्र है। भले ही पिछली सभी सरकारों ने हमारे लोढ़े लगा रखे हैं। ~ Vegan Shubhanshu Dharmamukt, धर्ममुक्त जयते, सत्यमेव जयते। 2020©

Orgasmed women is more relaxed and successful



ये पोस्ट सामाजिक भेदभाव के चलते मिट चुकी प्राकृतिक संवेदनशील भावनाओं का प्रतीक है। जहां महिला केवल धन समृद्धि के लालच में पुरुष ढूढ़ती है जबकि प्रकृति में ये चाहत केवल कामसुख के कारण उपजती है।

महिलाओं की काम-वासना को धर्म और समाज मिटाने में काफी हद तक सफल हो चुका है और ये महिलाओं के मानसिक शोषण का प्रमाण है। आपसी बातचीत और सवालों से मिली जानकारी के अनुसार, अनुमानतः 95% महिलाओं को कभी यौनानन्द (चर्मोत्कर्ष/ओर्गास्म) की प्राप्ति नहीं हुई है। घर्षण आनन्द को ही वे चरमसुख समझे बैठी हैं। इसीलिए सर्वे के आंकड़े भी प्रायः गलत आ रहे हैं।

ओर्गास्म/चरमसुख पुरुष के एजुकुलेशन/वीर्य पात के समान एक क्रिया होती है जो कि महिला के पूरे दिमाग को सक्रिय कर देती है। आज तक कोई भी तरीका पूरे दिमाग को सक्रिय नहीं कर सका है लेकिन, चर्मोत्कर्ष चाहे पुरुष का हो या स्त्री का, यह पूरे मस्तिष्क को सक्रिय करता है। जो कि एक जांचा परखा फैक्ट है।

इस क्रिया के तहत सम्भोग के समय शरीर में एक तेज़ झटका सा लगता है और पूरा शरीर कांप उठता है। गर्भाशय मुख से लेकर सिर तक एक तेज़ आनंद लहर जाती है और एकदम रिलेक्स फील होता है और संभोग रोकने का मन करता है, और पूर्ण होने का एहसास होता है। बहुत ही सुख का अनुभव होने, दिमाग के सक्रिय होने और मूड बेहतर होने के कारण ही इसे चरमसुख कहा गया है।

इससे दोनो ही के मानसिक स्वास्थ्य में भी अनुमानतः सुधार होने लगता है। ऐसा पाया गया है कि जो महिलाएं चर्मोत्कर्ष पाती हैं वे बाकी महिलाओं की तुलना में अधिक समझदार होती हैं। पुरुषों का दिमाग इसीलिए ज्यादा चलता है क्योंकि वे हर सेक्स में चर्मोत्कर्ष प्राप्त करते हैं। जो उनके मस्तिष्क को सक्रिय बनाये रखता है।

हालात ऐसे हैं कि आत्मनिर्भर महिला अब पुरुषों की जगह हस्तमैथुन, डिल्डो, डिल्डो डॉल का सहारा लेना ज्यादा उचित समझती है। जबकि यही हाल अच्छे व सच्ची सोच वाले कुछ कुछ आत्मनिर्भर पुरुषों का भी है, जो आत्मनिर्भर महिलाओं को ही दोस्त बनाने के इच्छुक होते हैं।

उनको ऐसी महिला नहीं मिलती इसलिए वे भी इन्हीं साधनों पॉकेटपुसी, सेक्स डॉल आदि का इस्तेमाल हस्तमैथुन करने में प्रयोग करते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, अगस्त 07, 2020

I am living an unique, logical, cruelty free, quality life



मैंने इतने जीवन में ये तो पाया है कि बुद्धिमान लोग हर जगह हो सकते हैं। देखने में चाहें वे कैसे भी लगते हों लेकिन हम बुद्धि को शक्ल से नहीं पहचान सकते।

Vegan (पशुउत्पाद मुक्त व क्रूरता मुक्त जीवन शैली) और धर्ममुक्त/तर्कवादी (किसी भी अतार्किक कार्य को न करना व मानना) हो जाना ही बुद्धिमान होने की पर्याप्त निशानी होती है।

उससे ऊपर जाने पर आप विवाह मुक्त (अप्राकृतिक बंधन मुक्त), Antinatalist (बच्चा मुक्त: बच्चे पैदा करने की समाज प्रेरित ललक का त्याग) और Nonconformist (समाज के पाखण्ड/सामाजिक व्यवहार को न मानना व औपचारिक न होना) यानि Social Norms से भी मुक्त हो सकते हैं।

उससे भी ऊपर जाने पर आप नेचरिस्ट/न्यूडिस्ट (नग्नतावाद), polyamorous, LGBTQ* और incest* को भी प्रकृति की देन जानने लगोगे।

*Naturism/Nudism: प्रकृति ने हम सबको नग्न पैदा किया है ताकि हमारे शरीर पर सूर्य की रोशनी लग कर विटामिन D बना सके। जिससे हमारी हड्डियों को भोजन व पानी से कैल्शियम का अवशोषण करके पोषण मिल सके। अपने बदन का मजाक उड़ाने वालों से डरना, अपने जिस्म, जिसे आप लोग मंदिर की तरह रखते हो शर्मनाक समझना मूर्खता की निशानी है। मौसम के अनुरूप सहन योग्य कपड़े पहन सकते हैं लेकिन शर्म के कारण कभी नहीं।

*Polyamorous: क्या हो, यदि आपको एक से अधिक साथियो से प्रेम हो जाये? एक दूसरे से छुपा कर सबको एकलौता प्रेमी बता कर धोखा दोगे? नहीं, धोखा किसलिए? मन से प्रेम है सदा के लिये। जिस्म से प्रेम ज़रूर अस्थायी है। फिर क्या दोस्ती तोड़ोगे? इस जीवनशैली में आप एक से अधिक साथियों से प्रेम होने पर उनके साथ परिवार की तरह या उनकी सहमति से अलग-अलग रह सकते हैं। सबको एक दूसरे के बारे में आपके उसके मध्य सेक्सुअल या asexual जो भी सम्बंध हो, पता होना चाहिये। ईर्ष्या हेतु कोई जगह नहीं बचेगी। समाज में प्रायः ऐसा कोई मौका पड़ता है तो केवल 2 लोग ही जुड़ पाते हैं और बाकियों को रोना पड़ता है या प्रेम मजबूत है तो जान भी देनी पड़ सकती है। अतः समाज का केवल 1 जोड़े वाला प्रेम हत्यारा है। अमानवीय और हिंसक है। प्रकृति polyamorous है।

*Incest: यह एक दुर्लभ संयोग हो सकता है कि आपको अपने जीवनकाल में ऐसा कुछ कभी देखना पड़े लेकिन जिनके साथ ऐसा हुआ है और जो भी ऐसा सहमति से करते हैं, उनको मना करना गलत है। दो प्रेम करने वाले चाहे एक परिवार से हों या दूसरे से। उनको रोकना-टोकना अमानवीय और कानून के खिलाफ है। मेरे जीवन मे ऐसा कभी नहीं हुआ। लेकिन किसी के साथ ऐसा होता है तो मैं उसका समर्थन करूँगा।

*LGBTQ: lesbian, Gay, bisexual, transgender, Questioned लिंग व काम आकर्षण के सामान्य (heterosexual) से भिन्न childfree प्रकार (sexual orientations) हैं। मैं अगर ऐसा कोई है तो उसका समर्थन करता हूँ।

यद्दपि मैं केवल विपरीत लिंग में ही रुचि रखता हूँ वो भी तब जब समान विचारधारा की female हो।

इन सबके अलावा भी मेरे जीवन में बहुत से तर्कवादी अनुशासन हैं जो कि प्रकृति और तर्क पर आधारित हैं। जिनको आप मेरे साथ रह कर ही जान सकोगे। मैं ऐसी किसी विचारधारा को नहीं मानता जो समाज में शांतिपूर्ण ढंग से लागू न की जा सके। जो विचारधारा हिंसक है वो veganism जैसी अहिंसक जीवनशैली के साथ भला कैसे टिक सकती है?

अतः जिस विचारधारा की सफलता का इतिहास रक्तरंजित और मानवाधिकार के खिलाफ है। वह विचारधारा लोकतंत्र और संविधान के पक्ष में कभी नहीं हो सकती। और जो विचारधारा मानवाधिकार का हनन करे, तानाशाही करे, वह विचारधारा त्याज्य है। उसका त्याग करें तुरन्त।

अब जो भी इन सब को अपना चुका है वो कम से कम 90% मेरे जैसे दिमाग के साथ पैदा हुआ है। बाकी साथी जितने भी अनुशासन/विचारधारा को समझ सके और अपना सके, वे उतने ही बाकी सामान्य लोगों से अधिक बुद्धिमान है।

हर विचार जो आपको जन समान्य से अलग और तार्किक रूप से सही साबित करता है, आपके सामान्य से अधिक बुद्धिमान होने की निशानी है। जितनी अधिक सही और सटीक विचारधारा, उतना वास्तविक और तार्किक जीवन प्रकृति के अनुरूप जीने की संभावना। उतना ही सफल जीवन जीने का आनन्द।

कोई भी आपको टोके, समझिये वह व्यक्ति नादान है। अज्ञानी है। हो सके तो उसको कोई सोचने वाला सवाल करके छोड़ दो। अक्ल होगी तो खुद खोजेगा और नहीं होगी तो फिर कितना भी समझा लो वो नहीं समझ सकता। तो फिर गर्व से जीवन जियें। प्रसन्नता से जियें और खुद को बधाई दें कि आपने अपनी बुद्धि का सदुपयोग किया। पढ़ने हेतु धन्यवाद! 😊 ~ Shubhanshu 2020©

गुरुवार, जुलाई 02, 2020

Problems are everywhere, but I don't care! 😊



गर्मी में कूलर के सामने ही पड़ा रहना पड़ता है। वह भी पर्याप्त वेंटिलेशन न होने के कारण ज्यादा ठंडी हवा नहीं फेंकता। उमस से उंगलियाँ चिपकने लगती हैं फोन पे। 20 साल बिना कूलर के गुजारे, अब गर्मी इतनी पड़ती है कि सो नहीं सकते बिना कूलर के।

अलग से इन्वर्टर लेना पड़ा क्योंकि बिजली बहुत जाती है इधर। उसको भी 4 साल हो गए। वारन्टी खत्म। गनीमत है कि चल रहा है। मैं कई दिन से नंगा रहता हूँ। कपड़े पहनो तो धुलने पड़ेंगे। चादर तो साबुन पानी में भिगो कर टब में धो लूंगा। वाशिंग मशीन में कपड़े नहीं धुल रहा। वाशिंग मशीन का मोड चेंजर नॉब मेकेनिज्म टूटा है, ओवन और सीलिंग फैन खराब है।

रेफ्रिजरेटर के कम्प्रेसर की गैस निकल गयी थी। डलवाने को दिया तो उसने उसका पाइप ही तोड़ दिया। नया रेफ्रिजरेटर अब कम बिजली खाने वाला मिल नहीं रहा। तो बर्फ छोड़ो, ठंडा पानी भी नहीं पी सकता।

ऐसे ही किसी तरह सादा गर्म सा पानी पीता हूँ सारी गर्मी। खाना भी खराब हो जाता है ज्यादातर बचा हुआ। रूहआफ़ज़ा और टैंगो सॉफ्टड्रिंक लाया था। ऐसे ही गर्म पानी में पी लेता हूँ।

वाटर टैंकों का वाल्व टूटा है, पानी लीक होता रहता है छत पर ओवरफ्लो होकर। घर के खिड़की दरवाजों और दीवारों से दीमक की बांबी निकल रही है। छत का मुख्य और छज्जे की जाली वाला बोर्ड का दरवाजा गल के टूट गया है। जीने के दरवाजे की चौखट खराब है जिससे लॉक नहीं हो रहा। उस पर लगी जाली का डोर क्लोज़र खराब पड़ा है।

जीने पर रेलिंग और पाइप लगवाना है। गिरने का डर रहता है। कमरों में रद्दी और भंगार का सामान फैला है। सब सामान धूल खा रहा और एक के ऊपर एक चढ़ा हुआ है। कुछ सामान खोया हुआ भी है। अलुमिनियम सीढ़ी 6-7 स्टेप की 2400₹ की है लेकिन वो घर पे कैसे लेकर आऊं? बहुत दूर मिल रही है। वो आ जाये तो पंखा खोल के ठीक करने का जुगाड़ करूँ।

टुल्लू पम्प खुला पड़ा है। उसका सामान चुरा लिया था पिछले मिस्त्री ने। उसको भी ठीक करवाना है। घर में पुट्टी होनी है, रंग रोगन होना है। जालियों और ग्रिलो पर पेंट होना है। बोर्ड के पल्लों के किनारों में दीमक नाशक लगा के पेंट करना है।

किचन के पल्ले दीमक खा गई। उनको ठीक करवाना है। ऊपर लटका कबर्ड धीरे धीरे unstable होकर झुक रहा है उसको भी रोकने का जुगाड़ करना है।

आंगन का पानी की निकासी का पाइप चोक है फेविकोल से। उसे निकाल के बदलना पड़ेगा। टाइल लगा है जो अब मिलता नहीं। तोड़ना पड़ेगा। बेमेल लेकर लगाना पड़ेगा।

पानी का शावर जाम है। कमोड का जेट सेट ढीला है। उसके प्लास्टिक के स्क्रू की चूड़ी स्लिप हैं। बमटी पर छत डलवानी है। टीन अब गल चुका है।

एक दीवार के टाइल निकल गए हैं उनको लगवाना है, एक कमरे में रिनोवेशन के चक्कर में हुए काम से मच्छर आने का रास्ता खुल गया है उसे भी बन्द करना है सीमेंट से और न जाने क्या क्या करना बाकी है। कुछ काम तो इतने खर्चीले हैं कि करने ही नहीं है। क्या क्या बताऊँ?

फिर भी कभी नहीं रोता आपके सामने! मस्त रहता हूँ। जीवन इसी का नाम है। समय आने पर सब काम हो जाएंगे। 😍 सब बढ़िया है! 👌 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020

सोमवार, जून 29, 2020

Civilization is the state of mind, not from someone's dressing sense



जब भी कोई पुरुष या महिला आपको कपड़ों को लेकर टोकता/ती है तो उसके 2 मतलब होते हैं:

1. अगर मैं (पुरुष) उत्तेजित हो गया तो तेरा यहीं बलात्कार कर दूंगा और इसमें तेरी ही गलती होगी।

2. अगर किसी पुरुष ने उत्तेजित होकर तेरा बलात्कार कर दिया तो इसमें तेरी ही गलती होगी। उसकी नहीं।

अब सोचो, ये खुले आम पुरुष प्रधान समाज की धमकी है कि उसे सजा का कोई डर नहीं है। उसे अगर मन किया तो वह किसी भी महिला को सड़क पर गिरा के *ध सकता है और अगर उसने विरोध किया तो जला कर मार भी सकता है। ये खुली गुंडई है और जो महिलाएं उनका साथ देती हैं, वे उन पुरुषों के ऊपर निर्भर हैं, इसलिये उन्हीं का साथ देती हैं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

There is no any problem with female, problem is boundations



यदि आप इसलिये विवाह नहीं कर रहे कि महिलाएं नरक का द्वार हैं या वे बुरी या धोखेबाज होती हैं; ऐसी बात कहीं से सुन पढ़ रखी है, तो आप 1 नंबर के मूर्ख हैं।

दरअसल विवाह जिससे भी कर लोगे, वह आपसे बंध कर जल्द ही उकता जाता है और फिर वह अपनी जंजीर तोड़ने के लिये क्लेश करता है।

आज़ादी के लिये दुनिया मे लाखों लोग बली चढ़ गए लेकिन आज़ादी के बिना रोटी नहीं खाई। यही हमारे खून में है। हम सबको आज़ाद रहना है। आप पर कोई रोक टोक करे और आपको उसके टोकने में कोई भलाई न दिखे तो आप उससे कुढ़ने लगोगे।

यही नफ़रत क्लेश का कारण बनेगी। इसे दबा कर मन ही मन कुढ़ कर कैदी की तरह जी लिए तो विवाह सफल और अगर अंदर से इंकलाब ज़ोर मार गया तो मौके पर मौत या कत्ल के जुर्म में जेल। या कमज़ोर निकले, मुकाबला न कर सके; तो तलाक होना तो तय है।

फिर काहे अपनी "उसमें" छुरा कर रहे खुद ही? आपके विवाह का, चाहे आपकी मर्जी हो या न हो, एकमात्र ज़िम्मेदार, सिर्फ आप हो। और कोई नहीं। ये बात याद रखना। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

बुधवार, जून 24, 2020

Communism is a false propaganda, it's not possible completely



100% कोई भी समाज, आर्थिक रूप से बराबर नहीं हो सकता। कोई न कोई तो अधिक आर्थिक संपन्न होगा, तभी कमाई सम्भव है। जितने भी कम्युनिस्ट कम्युनिज़्म को बराबरी का उपाय बताते हैं वे झूठे हैं। बराबरी होने पर सभी कार्य रुक जाएंगे। जैसे, मजदूर, मजदूर के यहाँ नौकरी नहीं करेगा।

सब पर समान मात्रा में धन होगा तो वह खर्च करते ही असमान हो जाएगा। धन नहीं होगा तो हम वापस पाषाण काल में पहुंच जाएंगे और आदिवासी जीवन जीने लगेंगे।

क्या हम वापस आदिवासी बनना चाहते हैं? उधर भी मुखिया होता है जो साबित करता है कि कोई बराबर नहीं हो सकता। सब अपनी योग्यता से अपना स्थान पाते हैं।

सबके लिये अवसर समान हैं लेकिन किसी से धन सम्पत्ति लेकर (छीन कर) किसी फिजूलखर्ची को देना और बदले में उसी मूल्य का देनदार को कुछ न देना लूट है और इस तरह की बराबरी से सब आधुनिक समाज नष्ट हो जाएगा।

कम्युनिस्ट देश की करेंसी होने का अर्थ है कि वह देश कम्युनिस्ट नहीं है बल्कि उसकी आड़ में देशवासियों का शोषण कर रहा है। ताकि वह विश्वगुरु लग सके। घमंड ही इसकी बुनियाद है। इसीलिए इनका तानाशाह खुद को ईश्वर समझता है। ~ Shubhanshu 2020©

शनिवार, जून 20, 2020

In a hotel of Nainital


लड़की: कोई भी रूम नहीं है! अब क्या करूँ?

शुभ: बुरा न माने तो आप मेरे साथ कमरा शेयर कर सकती हैं। इतनी रात में बाहर सोना उचित नहीं।

लड़की: तुम लड़के हो, मैं तुम्हारा भरोसा कैसे करूँ?

शुभ: हाँ, उचित प्रश्न है। वैसे, मेरी भी माँ-बहन है। एक लड़का जब उनके साथ एक घर में जीवन भर रह सकता है तो आपके साथ तो केवल कुछ ही घण्टों की बात है। हो सकता है कोई और लड़का शराफत का सुबूत देने के लिये कमरे से बाहर सो जाता। लेकिन वो सुबूत कहाँ हुआ?

ये तो आप उसके छेड़खानी करने पर भी करवा सकती थीं। ये तो अपनी हवस का प्रमाण देना हुआ कि कंट्रोल नहीं है खुद पर इसलिये बाहर निकल गए। मुझे खुद पर पूरा भरोसा है। बस आप शरीफ़ निकलें इसकी आशा करता हूँ।

कभी-कभी मदद के बदले लूटमार हो जाती है। मदद मैं कर रहा हूँ, नुकसान मेरा है। मेरी प्राइवेसी में दखल रहेगा। हांलाकि आपको आधा किराया शेयर करना चाहिए लेकिन ये मैं आपके ऊपर छोड़ता हूँ। पर इसके बाद भी क्या आप मुझे अच्छा इंसान समझेंगी? क्या मैं आप पर भरोसा कर सकता हूँ? ये सवाल ज्यादा जरूरी है। बजाय इसके कि आप मुझ पर भरोसा क्यों करें?

लड़की: Wow! Please show me your room! I also want to know more something about you. You looks very interesting person! 👌

शुभ: Sure! Here we go! 😊

गुरुवार, जून 18, 2020

Chameleon Atheists: Snakes in your arms




गिरगिट नास्तिक: ऐसा व्यक्ति जो खुद को धार्मिक नहीं कहता, खुद कोई धार्मिक कार्य नहीं शुरू करता लेकिन कोई और करवा रहा तो उसमें बढ़चढ़ के हिस्सा लेता है। धार्मिकों की लड़कियों/लड़कों पर लार टपकाता है और लड्डू नास्तिक बांट रहा हो या आस्तिक, उनको बस खाने से मतलब है। ये धार्मिकों के कार्यक्रम में हिस्सा लेकर उनको सफल बनाते हैं। इनकी नास्तिकता इनकी गांड में घुसी रहती है जिसे सिर्फ वही देख सकते हैं टॉयलेट में जाकर। बाकी दुनिया उनको धार्मिक ही समझती है। फेसबुक पर वे नास्तिक हैं। घर में राजा बेटा-बेटी हैं। हवन में आहुति देते हैं, होली-दिवाली पे पूजा में बैठते हैं। रक्षाबंधन से लेकर बसंत पँचमी, ईद और क्रिसमस दिल खोल कर मनाते हैं। ये बस एक न्यूट्रल व्यक्ति होते हैं जिनकी दरअसल एक ही विचारधारा होती है। दसों उंगलियां घी में और मुहँ गटर में। 😁

ऐसे लोग कुतर्क देते हैं: नास्तिकता मन से होती है। हम धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा लें, होली, दीवाली, रक्षाबंधन, भाई दूज मनाएं या प्रशाद-भंडारा खाने जायें। इससे आस्तिक नहीं बन जाते। हम खुद तो नहीं जाते मंदिर। हम खुद तो नहीं मनाते अकेले कोई त्योहार। कोई मना रहा है तो उसके साथ हम भी घुलमिल गए। दोस्ती खराब नहीं करते और बेमतलब में अलग बैठने तो जा नहीं सकते। अपने त्योहार अलग बना लें क्या?

ये तो वही बात हुई जैसे सुपर मैन स्पाइडर मैन का ड्रेस पहन लें तो स्पाइडर मैन थोड़े ही बन जायेगा? या स्पाइडर मैन सुपर मैन की पोशाक पहन ले तो सुपर मैन नहीं बन जायेगा।

करके देखिये। समझ आ जायेग़ा कि खुद पर आस्तिकता थुपवा लेना, दूसरों को न बताना कि आप उनकी विचारधारा के खिलाफ हैं; दरअसल, उनका फायदा उठाना है। उनके साथ और अपने साथ धोखा है। एक कायर और डरपोक आदमी भी यही करता है। उसकी धर्मिको से इतनी फटती है कि जैसा वो लालच देते हैं, वैसे ही ललचा जाते हैं। धार्मिकों के समारोह में लड़कियों/लड़कों को ताड़ने का प्लान होता है। नास्तिकों की तो भारी कमी है तो लड़की किधर पटाई जाय? फ्री में प्रशाद और खाना मिल रहा, कैसे ठुकराया जाय? हराम का और पाखण्ड का कमाया हुआ खाने की आदत कैसे छूट जाएगी? जितना भ्रष्ट धार्मिक है, उतना ही भ्रष्ट धर्ममुक्त भी न हो गया तो क्या लाभ है?

आपको त्योहार चाहिए क्यों? किसी के पाखण्ड में आपको लालच क्यों आ रहा है? आपको हर वही चीज क्यों चाहिए जो धार्मिकों पर है? दरअसल आप उन लोगों के साथ हो जो नास्तिकता को धर्म का ही हिस्सा बताते हैं। चार्वाक को भी किसी विचारधारा से मतलब न था। वो भी बस करेक्टर लेस नास्तिकता के समर्थक थे। जिधर जो लाभ मिल रहा, ले कर निकल लेने वाले मक्खी/मच्छर जैसे जंतु। 😁 मक्खी नहीं देखती कि किसकी टट्टी पर बैठ रही है। मच्छर नहीं देखता कि किसका खून पी रहा है। ऐसे ही गिरगिट नास्तिक हैं।

जबकि तर्कवादी होना, सत्य को पकड़ के बैठने का नाम है। जड़ें सत्य के लिये अटल हों। सत्यवादी होना तो ज़रूरी है। खुद से तो झूठ न बोलो। खुद को धोखा मत दो। आपको अगर गंदगी से नफ़रत है तो उससे दूर रहो। नहीं है तो आप भी गंदगी चट हो।

नास्तिक-आस्तिक केवल आपकी शुद्धि और अशुद्धि हैं। कोई नियम, या वेशभूषा नहीं है इसकी। लेकिन शुद्धता तो रहेगी। शुद्ध होना ज़रूरी है। अन्यथा आपका कोई वजूद नहीं। आप मजाक बना रहे विचारधारा का। ये तो वैसा ही है जैसे विजय माल्या खुद को मार्क्सवादी कहे। मार्क्सवादी आंदोलन चलाये। MK गाँधी ब्रिटेन की महारानी के पैर धोकर पियें। मदर टेरेसा खाली समय में स्टेनगन चलाती हों।

आप पाखण्ड की गंदी गटर/नाली से बाहर आ गए और साफ हो गए। दोबारा नाली में लोट लगा कर उसी गंदगी को प्रेम करना है क्या?

ज़हर है धार्मिकता और ये मीठी उसी को लगती है जो नास्तिक होने का ढोंग करता है, भीतर से धार्मिकता उबाल मार रही हो लेकिन नास्तिक दोस्त भी बड़े काम के हैं। उनसे भी बना कर रखनी है। उनसे भी यारी है और आस्तिकों से तो है ही। ऐसा क्यों? ताकि उसको दोनो जगह से लड्डू मिल सकें।

ऐसे लोगों को नास्तिक नहीं, गिरगिट नास्तिक नाम देना ही बेहतर होगा। ये लोग तो नास्तिकों को कत्ल करवा कर आस्तिकों से मिल जाएंगे और आस्तिकों के मरने पर नास्तिकों से मिल जाएंगे। इनकी सोच और कुछ नहीं, केवल मुफ्त का माल बटोरना होती है। हिम्मत ही नहीं होती कि सत्य स्वीकार सकें। नाम का आस्तिक और नाम का नास्तिक बन जाना ही इन मौका परस्त लोगों की कायरतापूर्ण अभिव्यक्ति होती है। इनको अभी कोई नास्तिक आंदोलन करने को बोलो, तो कथा/जागरण/कीर्तन में जाकर बैठ जांएगे।

इनसे आप किसी तरह की मदद की उम्मीद मत रखियेगा। ये दोनों तरफ खाते हैं। कभी आपके ऊपर आतंकी हमला हो जाये तो ये हाथ खड़े कर देंगे। ये बोलेंगे कि हम तो इनके यहाँ रोज आते जाते हैं, साथ खाते और त्योहार मनाते हैं। इनके खिलाफ कैसे कुछ बोल दें या कर दें? और किसी दिन इन्हीं पर हमला हो जाये तो धार्मिक तो हाथ जोड़ के कह देगा कि धर्म की रक्षा कर रहा हूँ आपकी दोस्ती और जान उसके आगे कुछ नहीं। तब ये बेशर्मी से उन्हीं नास्तिकों से मदद मांगेंगे जिनको पिछली बार हाथ जोड़ के मना कर आये थे। थू है ऐसे लोगों पर।

हर विचारधारा का एक चरित्र होता है। उसकी विशेषता होती है। जिसने अपनी विशेषताओं को ही खो दिया वह अपने करेक्टर से ही निकल गया। स्पाइडर मैन सुपर मैन बन कर जाले फेंक रहा है और सुपर मैन स्पाइडर मैन बन के उड़ रहा है। वाह! यही नास्तिकता को बना कर रख दिया है इन जैसे गिरगिटों ने। 😁 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020© वाकई धर्ममुक्त!

शनिवार, जून 13, 2020

Learn basic science before listening to the experts. They maybe wrong.




विकासवाद को समझने का सही तरीका बहुत से लोग नहीं जानते हैं। भ्रम से उपजा तरीका ही सब गड़बड़ी पैदा कर देता है। अवशेषी अंग, इस्तेमाल में न आने से गायब नहीं हुए बल्कि ऐसे मानव ही ज़िंदा बचे, जिनमें संयोग वश हुई आनुवंशिक गलती से उनकी अगली पीढ़ी में वे अंग समाप्त हो गए थे। पुराने अंगों के कारण हुई समस्याओं से पुराना मानव खत्म हो गया।

दिमाग में ये बात डाल ली जाए कि पहलवान/गणितज्ञ/वैज्ञानिक/कलाकार आदि का बेटा/बेटी जन्म से कभी पहलवान/गणितज्ञ/वैज्ञानिक/कलाकार नहीं होता। ये सभी बाद में अर्जित किये गए गुण हैं जो केवल सिखाने या उसके खुद सीख लेने पर ही आ सकते हैं। अतः अर्जित गुण अगली पीढ़ी में नहीं जाते।

यदि मानव कोई भोजन करके इस जीवन में स्वास्थ्य लाभ उठाता है तो उसकी अगली पीढ़ी में वह स्वास्थ्य प्रेषित नहीं होगा। अतः बाहरी प्रभाव कभी भी अगली पीढ़ी में नहीं जाते। कुछ वैज्ञानिकों द्वारा भोजन से मस्तिष्क के विकास की बात सिर्फ प्रोपोगंडा है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©