Zahar Bujha Satya

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गुरुवार, जून 18, 2020

Chameleon Atheists: Snakes in your arms




गिरगिट नास्तिक: ऐसा व्यक्ति जो खुद को धार्मिक नहीं कहता, खुद कोई धार्मिक कार्य नहीं शुरू करता लेकिन कोई और करवा रहा तो उसमें बढ़चढ़ के हिस्सा लेता है। धार्मिकों की लड़कियों/लड़कों पर लार टपकाता है और लड्डू नास्तिक बांट रहा हो या आस्तिक, उनको बस खाने से मतलब है। ये धार्मिकों के कार्यक्रम में हिस्सा लेकर उनको सफल बनाते हैं। इनकी नास्तिकता इनकी गांड में घुसी रहती है जिसे सिर्फ वही देख सकते हैं टॉयलेट में जाकर। बाकी दुनिया उनको धार्मिक ही समझती है। फेसबुक पर वे नास्तिक हैं। घर में राजा बेटा-बेटी हैं। हवन में आहुति देते हैं, होली-दिवाली पे पूजा में बैठते हैं। रक्षाबंधन से लेकर बसंत पँचमी, ईद और क्रिसमस दिल खोल कर मनाते हैं। ये बस एक न्यूट्रल व्यक्ति होते हैं जिनकी दरअसल एक ही विचारधारा होती है। दसों उंगलियां घी में और मुहँ गटर में। 😁

ऐसे लोग कुतर्क देते हैं: नास्तिकता मन से होती है। हम धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा लें, होली, दीवाली, रक्षाबंधन, भाई दूज मनाएं या प्रशाद-भंडारा खाने जायें। इससे आस्तिक नहीं बन जाते। हम खुद तो नहीं जाते मंदिर। हम खुद तो नहीं मनाते अकेले कोई त्योहार। कोई मना रहा है तो उसके साथ हम भी घुलमिल गए। दोस्ती खराब नहीं करते और बेमतलब में अलग बैठने तो जा नहीं सकते। अपने त्योहार अलग बना लें क्या?

ये तो वही बात हुई जैसे सुपर मैन स्पाइडर मैन का ड्रेस पहन लें तो स्पाइडर मैन थोड़े ही बन जायेगा? या स्पाइडर मैन सुपर मैन की पोशाक पहन ले तो सुपर मैन नहीं बन जायेगा।

करके देखिये। समझ आ जायेग़ा कि खुद पर आस्तिकता थुपवा लेना, दूसरों को न बताना कि आप उनकी विचारधारा के खिलाफ हैं; दरअसल, उनका फायदा उठाना है। उनके साथ और अपने साथ धोखा है। एक कायर और डरपोक आदमी भी यही करता है। उसकी धर्मिको से इतनी फटती है कि जैसा वो लालच देते हैं, वैसे ही ललचा जाते हैं। धार्मिकों के समारोह में लड़कियों/लड़कों को ताड़ने का प्लान होता है। नास्तिकों की तो भारी कमी है तो लड़की किधर पटाई जाय? फ्री में प्रशाद और खाना मिल रहा, कैसे ठुकराया जाय? हराम का और पाखण्ड का कमाया हुआ खाने की आदत कैसे छूट जाएगी? जितना भ्रष्ट धार्मिक है, उतना ही भ्रष्ट धर्ममुक्त भी न हो गया तो क्या लाभ है?

आपको त्योहार चाहिए क्यों? किसी के पाखण्ड में आपको लालच क्यों आ रहा है? आपको हर वही चीज क्यों चाहिए जो धार्मिकों पर है? दरअसल आप उन लोगों के साथ हो जो नास्तिकता को धर्म का ही हिस्सा बताते हैं। चार्वाक को भी किसी विचारधारा से मतलब न था। वो भी बस करेक्टर लेस नास्तिकता के समर्थक थे। जिधर जो लाभ मिल रहा, ले कर निकल लेने वाले मक्खी/मच्छर जैसे जंतु। 😁 मक्खी नहीं देखती कि किसकी टट्टी पर बैठ रही है। मच्छर नहीं देखता कि किसका खून पी रहा है। ऐसे ही गिरगिट नास्तिक हैं।

जबकि तर्कवादी होना, सत्य को पकड़ के बैठने का नाम है। जड़ें सत्य के लिये अटल हों। सत्यवादी होना तो ज़रूरी है। खुद से तो झूठ न बोलो। खुद को धोखा मत दो। आपको अगर गंदगी से नफ़रत है तो उससे दूर रहो। नहीं है तो आप भी गंदगी चट हो।

नास्तिक-आस्तिक केवल आपकी शुद्धि और अशुद्धि हैं। कोई नियम, या वेशभूषा नहीं है इसकी। लेकिन शुद्धता तो रहेगी। शुद्ध होना ज़रूरी है। अन्यथा आपका कोई वजूद नहीं। आप मजाक बना रहे विचारधारा का। ये तो वैसा ही है जैसे विजय माल्या खुद को मार्क्सवादी कहे। मार्क्सवादी आंदोलन चलाये। MK गाँधी ब्रिटेन की महारानी के पैर धोकर पियें। मदर टेरेसा खाली समय में स्टेनगन चलाती हों।

आप पाखण्ड की गंदी गटर/नाली से बाहर आ गए और साफ हो गए। दोबारा नाली में लोट लगा कर उसी गंदगी को प्रेम करना है क्या?

ज़हर है धार्मिकता और ये मीठी उसी को लगती है जो नास्तिक होने का ढोंग करता है, भीतर से धार्मिकता उबाल मार रही हो लेकिन नास्तिक दोस्त भी बड़े काम के हैं। उनसे भी बना कर रखनी है। उनसे भी यारी है और आस्तिकों से तो है ही। ऐसा क्यों? ताकि उसको दोनो जगह से लड्डू मिल सकें।

ऐसे लोगों को नास्तिक नहीं, गिरगिट नास्तिक नाम देना ही बेहतर होगा। ये लोग तो नास्तिकों को कत्ल करवा कर आस्तिकों से मिल जाएंगे और आस्तिकों के मरने पर नास्तिकों से मिल जाएंगे। इनकी सोच और कुछ नहीं, केवल मुफ्त का माल बटोरना होती है। हिम्मत ही नहीं होती कि सत्य स्वीकार सकें। नाम का आस्तिक और नाम का नास्तिक बन जाना ही इन मौका परस्त लोगों की कायरतापूर्ण अभिव्यक्ति होती है। इनको अभी कोई नास्तिक आंदोलन करने को बोलो, तो कथा/जागरण/कीर्तन में जाकर बैठ जांएगे।

इनसे आप किसी तरह की मदद की उम्मीद मत रखियेगा। ये दोनों तरफ खाते हैं। कभी आपके ऊपर आतंकी हमला हो जाये तो ये हाथ खड़े कर देंगे। ये बोलेंगे कि हम तो इनके यहाँ रोज आते जाते हैं, साथ खाते और त्योहार मनाते हैं। इनके खिलाफ कैसे कुछ बोल दें या कर दें? और किसी दिन इन्हीं पर हमला हो जाये तो धार्मिक तो हाथ जोड़ के कह देगा कि धर्म की रक्षा कर रहा हूँ आपकी दोस्ती और जान उसके आगे कुछ नहीं। तब ये बेशर्मी से उन्हीं नास्तिकों से मदद मांगेंगे जिनको पिछली बार हाथ जोड़ के मना कर आये थे। थू है ऐसे लोगों पर।

हर विचारधारा का एक चरित्र होता है। उसकी विशेषता होती है। जिसने अपनी विशेषताओं को ही खो दिया वह अपने करेक्टर से ही निकल गया। स्पाइडर मैन सुपर मैन बन कर जाले फेंक रहा है और सुपर मैन स्पाइडर मैन बन के उड़ रहा है। वाह! यही नास्तिकता को बना कर रख दिया है इन जैसे गिरगिटों ने। 😁 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020© वाकई धर्ममुक्त!

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