
मुझे हर बात पर त्याग करने वाली, आत्मसमर्पण कर देने वाली कायर नारी नहीं देखनी। मुझे अपनी इच्छानुसार दुनिया का निर्माण करने वाली बहादुर नारी देखनी है। मुझे एक साथ चलने वाले मित्र पसन्द हैं या जो मुझे आगे भी बढ़ने की प्रेरणा दे सकें।
अब आप खुद तय कर लीजिये कि आपको क्या चाहिए, बदलाव या दड़बे की दबी-कुचली परन्तु महिमामण्डित ज़िन्दगी। बलि की बकरी की तरह सजी हुई, चुपड़ी रोटी वाली, कैदखाने वाली आसान परन्तु आँसू भरी ज़िन्दगी या आज़ादी की सूखी रोटी वाली खुली हवा की उड़ान, जहाँ कोई रोक-टोक नहीं। आज़ादी, लड़कों से भी ज्यादा।
मैं भी आज़ाद हुआ हूँ। इस नकली समाज में पुरुष भी आज़ाद नहीं। मैं भी बेड़ियां तोड़ कर आया हूँ। अब आपकी बारी है। कमज़ोर हैं बेड़िया, बस आपको इसका पता नहीं है। हिम्मत नहीं है आपमे। मुझमें भी नहीं थी। फिर एक दिन सोचा जब मरना ही है एक दिन तो क्यों न आज ही मर के देखा जाए? बस फिर क्या था, डर उड़न छू हो गया और सब दीवारें कागजी हो गईं।
इन नासमझ समाज वालों ने हमें कमज़ोर समझ कर खाली देखने के लिए पिंजड़े बना रखे थे। थे वे बहुत कमजोर। बस उंगली लगाने से टूट गए वे ताले जिनको मैं सोचता था कि हाथी भी न तोड़ पायेगा लेकिन फिर सब बदल गया जब मैंने एक हाथी को डंडे जैसे खूंटे से बंधे देखा। सोचा, कि यह इतना बड़ा हाथी इस एक खूँटे से कैसे बंधा बैठा है?
मैं महावत के पास गया, उससे पूछा, "भाई यह इतना बड़ा हाथी इतने से खूँटे से कैसे बंधा है?"
वह बोला, "साहब, जो जितना बुद्धिमान होता है, उसे मूर्ख बनाना उतना ही आसान होता है। हाथी बुद्धिमान जानवर है इसलिये मात खा गया। उसने भी इंसानों की तरह धारणा बना रखी है।"
मैने पूछा, "कैसी धारणा?"
महावत बोला, "हम इस हाथी को जब यह छोटा बच्चा था, तब लाये थे। उस समय इसे हमने बछिया की तरह खूंटे से पहली बार बांधा था। उसने खूब ज़ोर लगाया, खूब खींचा लेकिन धीरे-धीरे थक कर बैठ गया। वह समझ गया था कि वह खूँटा उससे कभी नहीं उखड़ेगा। बस यही धारणा उसमें घर कर गई।
जबकि गधे को आप नहीं बांध सकते वह ज़रूर आपको किसी दिन दुलत्ती मार के, रस्सी छुड़ा कर भाग सकता है क्योकि वह मूर्ख है लेकिन यह बुद्धिमान यह मान कर बैठ गया कि अब यह खूंटा कभी नहीं टूटेगा।
वह निराश हो गया। आज यह हाथी बहुत बड़ा हो गया है लेकिन उसे ज़रा भी एहसास नहीं है कि वह जिस तरह बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ फेकता है इस मामूली खूँटे को तो ज़रा सा झटका देकर नोच सकता है।
यह सब उसकी धारणा (माइंडसेट) का नतीजा है। वैसे ही जैसे हम अपने से बड़ों को नहीं टाल पाते और उनसे डरते हैं, वैसे ही जैसे बचपन में डरते थे। जबकि आज वे हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। ये हाथी भी इंसान ही होते हैं साहब। बस आप लोग इनको जानवर समझते हो।"
मैं जैसे सोते से जागा। हैरान, अवाक सा एक तरफ चलने लगा। शायद किसी गलत दिशा में भटक गया।
एक जगह बाज़ को मुर्गियों के दड़बे में बैठा देखा। बहुत हैरानी हुई कि यह क्या है? पास जाकर देखा कि सच में बाज ही है, लेकिन यह क्या? वह दाना खा रहा है? पास गया तो वह फड़फड़ा कर मुर्गियों की तरह मुझसे दूर हो गया। मैंने अपने सिर को झटका, कि कहीं मैं पागल तो नहीं हो गया? मैं बहुत देर तक वहाँ उस अजूबे को देखता रहा, तब तक, जब तक उस दड़बे के मालिक ने मुझे नहीं टोका।
"क्या हुआ साहब? क्या देख रहे हैं? कहीं मुर्गी चुराने का इरादा तो नहीं?" दड़बे का मालिक बोला।
"अरे नहीं, बस वह इस अजूबे को देख रहा था।" मैं सकपका कर बोला।
"अरे इस बाज को? इसकी भी रोचक कहानी है, कहिये तो सुनाऊं।" वह आदमी मुझे पास में पड़ी चारपाई पर ले आया।
"नेकी और पूछ-पूछ, जल्दी बताइये, आज का तो दिन ही अजीब है।" मैने उत्सुकता से कहा।
"साहब आप मुझे पढ़े-लिखे मालूम पड़ते हैं, किधर यह गरीबों की बस्ती में भटक रहे हैं?" उसने जैसे मुझे डांटने वाले लहज़े में देखा।
"जी वो मैं, थोड़ा अलग हूँ बाकियों से। मुझे किसी ढर्रे पर चलना पसन्द नहीं। अपनी घर की ज़िम्मेदारी से बंधा हुआ हूँ तो समझ में नहीं आता कि क्या है असली आज़ादी? बस वही तलाश रहा हूँ। इसीलिये समय निकाल कर कुछ अपने लिये भी जी लेने चला आया। औरों के लिये तो सभी जीते हैं।" मैं बस बोलता चला गया। कहीं सीने में छिपा दर्द बस निकलने ही वाला था कि मैं सम्भल गया।
"बड़े दिल वाले हैं आप साहब, बहादुर भी हैं। बगावत के लक्षण भी हैं आपमें, लेकिन पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर? क्या सच में आप आज़ाद होना चाहते हैं?" जैसे वह आज़ादी की चाभी लिए बैठा हो। उसने ऐसे कहा तो बरबस बस मैं दिल से बोल उठा, "हाँ, हाँ, हाँ।"
"तो आप गलती से सही जगह आ गए हैं साहब। अब मैं आपको उस बाज का राज़ बताता हूँ। आज से कुछ महीनों पहले एक बाज़ का घोंसला इधर के छोटे पेड़ पर था। एक बार उसके घोंसले से फिसल कर एक अंडा इधर मुर्गियों के पुआल पर गिर गया। मैं सभी अंडे नहीं बेचता और वह अंडा भी उपजाऊ अंडों के साथ चला गया। मुर्गी ने उसे अपने अंडे की तरह पाला। उसने काले सफेद चूजे का भेद नहीं किया।
समय के साथ वह बाज का बच्चा भी चूजों के साथ बढ़ता गया और अपने भाई-बहनों-दोस्तो के साथ खेल-खेल कर मुर्गा ही बन गया। अब यह इसलिये नहीं उड़ता क्योकि इसके पंख कमज़ोर हैं, बल्कि यह इसलिये नहीं उड़ता क्योकि इसे लगता है कि वह उड़ नहीं सकता। इसने धारणा बना ली है कि वह कमज़ोर है। उसमें ताकत नहीं।
कभी-कभी उसकी बर्बाद ज़िन्दगी देख कर उस पर तरस आता है, इसलिये उसे खुले आसमान के नीचे छोड़ रखा है कि शायद किसी दिन अपने जैसे किसी बाज को देख कर इसे अपनी ताकत समझ में आ जाये कि यह दड़बे के लिये नहीं बना। इसे तो आकाश की ऊंचाईयों को छूना है।"
मेरी आँखों में आंसू थे। ऐसा लगा जैसे वह बाज मैं ही हूँ, जो न जाने कब से मुर्गियों में फंसा बैठा हूँ। मैं बहुत देर तक सिसकता रहा, अपने में ही। तब तक, जब तक उस बुजुर्ग ने मुझे पानी लाकर नहीं दिया।
फिर हमारे बीच में कोई बात नहीं हुई। मैने पानी पिया और एक फैसला कर लिया। मैंने उस बाज को पकड़ लिया और उस मकान की छत पर ले गया, एक ज़ोर का धक्का उसे मारा और उसे छत से नीचे फेंक दिया। वह बहुत जोर से चिल्लाया। लेकिन वह नीचे नहीं गिरा। आज मौत के डर से उसकी हिम्मत वापस आ गई और वह उड़ने लगा। 5 मिनट की टेढ़ी-मेढ़ी उड़ान के बाद वह सुरक्षित नीचे उतर आया। जब मैं नीचे आया तो वह गायब था। मैं उसे ढूंढने लगा तो उस बुजुर्ग ने मुझे आसमान में देखने का इशारा किया।
और मैं हैरान रह गया कि वह तो ऊपर था। बहुत ऊपर, बहुत ऊपर...बिल्कुल मेरी तरह। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018/03/14 20:56 2018©