Zahar Bujha Satya

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शनिवार, अप्रैल 21, 2018

देश के आसार अच्छे नहीं हैं। ~ Shubhanshu

मीठा-मीठा सुनने वालों को शायद मेरे शब्द बुरे लगेंगे। कुछ लोगों को मैं BJP का दलाल और मोदी भक्त लग सकता हूँ। कुछ को मैं ब्राह्मण या स्वर्ण भी लग सकता हूँ। लेकिन मैं हूँ निष्पक्ष। हमेशा सत्य और अच्छाई का साथ देने वाला। चाहें वह कोई भी क्यों न करे। मेरे दुश्मन भी। इसलिये कृपया पूरा पढ़े बिना कोई राय मत बनाना।

मैं एक आशावादी हूँ। बुरी परिस्थिति में भी उम्मीद नहीं छोड़ता। हर समस्या की न में हां देखता हूँ।

मैंने पिछले कुछ वर्षों में जो अध्ययन किया है वह इस प्रकार है:

1. Demonetization (नोटबन्दी) सीधे-सीधे काला धन वापस लाने के लिये नहीं थी।

2. ATM में कैश जानबूझ कर नहीं भेजा गया था और आज भी जानबूझ कर नहीं भेजा जा रहा है।

3. ऐसा RBI केंद्र सरकार के कहने पर ही कर रही है।

4. इस सबका उद्देश्य आपका ही हित है।

5. क्या आप कैशलेस भारत का नारा भूल गए?

6. सभी देशों ने यही तरीका अपनाया था प्लास्टिक मनी को लागू करने के लिये। पिछली सरकारों ने जनता को खुश रखने के लिये बदलाव को अनदेखा किया और निर्विरोध देश को विदेशों से पीछे रखा।

7. दोस्तों, यदि आपको टैक्स चोरी रोकनी है, भृष्टाचारी समाज समाप्त करना है तो सारे लेनदेन ऑनलाइन ही करने होंंगे और इसमें कोई बहाना नहीं चलेगा। नकद धन ही भृष्टचार की जड़ है।

8. आप में जो लोग इस बदलाव को समझ नहीं पा रहे हैं वे कृपया बैंक जाकर एटीएम कार्ड का ग्रीन चैनल उपयोग करना सीखें। इसी से शॉपिंग करें। इसी से धन जमा करें और ट्रांसफर करें।

9. फ़िल्म शिवाजी-the superpower में भी अंत में money card को ही भृष्टचार का खात्मा करने का हथियार बताया है जो 1000₹ से ऊपर के सभी लेनदेन ATM शॉपिंग मनी कार्ड से करना सुझाता है। आपका ATM कार्ड दरअसल एक कर्रेंसी है जो कि डिजिटल है। इससे होने वाले लेनदेन पर आयकर विभाग नज़र रखता है। जबकि इसका उपयोग ATM मशीन में करना सबसे घाटे का सौदा होता है, बैंक और देश के लिये। ATM भृष्टाचारी समाज की नींव हैं।

10. दूसरी बात, जो लोग देश के सर्वोच्च न्यायालय और जजों के प्रति अविश्वाश फैला रहे हैं उनकी मंशा का पूर्वानुमान लगा लीजिये। सर्वोच्च न्यायालय देश की अंतिम अदालत है। जब कहीं न्याय नहीं मिलता तो यहां ज़रूर मिलता है। यहाँ के जजों पर पूरे देश की ज़िम्मेदारी होती है।

उनका हर फैसला प्रायः देशहित में होता है जिसको आपको और मुझे मानना ही पड़ता है, जब से इसका गठन हुआ है। इसी न्यायालय के कारण देश में आम आदमी सीना ठोक कर जीता है। लेकिन अगर आपको इस न्यायालय के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का कोई पक्का प्रमाण मिलता है तो उसकी शिकायत इसी कोर्ट में करें। सिरे से सुबूत खारिज होने पर कारण भी दिया जाएगा। उस कारण को अगर गलत पाएं तो उस कारण का लिखित प्रमाण पत्र संयुक्त राष्ट्र संघ की वेबसाइट से जानकारी लेकर पूरी समस्या के साथ UN तक पहुँचा दें। आपको अपने मानवधिकार में न्याय का अधिकार UN से ही मिला है।

लेकिन इस से भी पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वेबसाइट को आजमा लें। वह भी UN के लिए ही काम करती है। आपके घर आकर बड़ा अफसर आपकी समस्या का समाधान करवाएगा। यहाँ भी भ्रष्टाचार दिखे तो भृष्टचार निरोधक दल को बुला कर अपराधी को पकड़िए। वह भी साथ न दे तो UN की वेबसाइट है ही।

आपको विश्व अदालत से भी न्याय लेने का अधिकार है। प्रयास करते रहें। उम्मीद कभी न छोड़ें। world court तक जाने के रास्ते भी गूगल पर सर्च करें।

इन सब रास्तों को आजमाए बिना इस अदालत का विरोध देश के साथ गद्दारी होगी। इसके न्याय पर ऐवे ही शक करना, समझिये देश को गृहयुद्ध की ओर धकेलना। इस न्यायलय के पास वह अधिकार हैं कि वह अपनी अवमानना करने वाले प्रत्येक सांप का फन कुचल सकती है। इसीलिए इसे अंतिम अदालत कहा जाता है। यह प्रायः गलती नहीं करती। इससे कानूनी लड़ाई ही लड़ें। सड़कों पर हिंसक प्रदर्शन कदापि न करे। वह सब कानून के खिलाफ है।

देश की लगभग आखिरी उम्मीद पर हमले करने का परिणाम जानते हैं? गृहयुद्ध। लोग एक दूसरे को ही मार डालेंगे। देश में कानून-व्यवस्था बिगड़ेगी और फिर सुप्रीमकोर्ट अपना रौद्र रूप दिखायेगा और दमनकारी अधिकार प्रयोग में लिए जायँगे। फिर से जलियांवाला कांड दोहराया जाएगा। आपके भले के लिए ही। फिर से देश 100 साल पीछे चला जायेगा।

अविश्वास लाने वाले लोग अलग देश बना लेंगे लेकिन करोड़ों निर्दोषों की लाशों और अपनी ही बहनों के बलात्कार किये गए शरीरों के ढेर के ऊपर।

जब एक टुकड़ा होगा तो जो पहले से देश तोड़ने के लिये मरे जा रहे हैं जैसे खालिस्तान, कश्मीर, व जंगल प्रेमी आदि वे भी अपना टुकड़ा मांगेंगे। वे सिर्फ इसलिए चुप हैं क्योकि और कोई टुकड़ा नहीं होगा यह कहा गया था। उनकी शर्त है कि कोई भी और टुकड़ा हुआ तो हमको भी अलग देश् देना होगा। अगर ऐसा हुआ तो फिर से देश बर्बाद होगा। पलायन में भी दंगा होता ही है।

याद रखिये, सुप्रीमकोर्ट का विरोध सिर्फ तभी होता है जब देश का बंटवारा करने के प्रयास होते हैं।

जैसा मैने बताया था कि मैं आशावादी हूँ। मुझे इस गृहयुद्ध से भी कोई दिक्कत नहीं है। यह भी प्रकृति का बदला है, मानव जनसँख्या से। जो कम होनी चाहिए। लेकिन शायद यह तरीका आपको पसन्द न आये। मैं तो सुरक्षित हूँ क्योंकि यहाँ हूँ ही नहीं लेकिन याद रखना, अगर मेरी सलाह नहीं मानी तो शायद आप भी यहाँ न मिलें। दंगे की आशंका बढ़ रही है। अपने परिवार का हित सोचिये। bombay नाम की फ़िल्म देखिये, शायद आपको आईना सीधा पकड़ना आ जाये। नमस्कार! ~ ज़हरबुझा सत्यवादी निष्पक्ष, शुभाँशु जी। 2018©

अस्वीकरण नोट: समस्त निजी विचार। कोई किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं। मौलिक और स्वतन्त्र विचार।

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