Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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सोमवार, मई 07, 2018

जीवन यात्रा चल रही है।

मैं शुभाँशु जी हूँ बस! ये क्या है? क्यों है? इससे मुझे कोई लाभ नहीं। कुछ दिन का जीवन है। न जाने कब यह एकाउंट खत्म हो और मैं खत्म।

तो इस नकली दुनिया में 4 दिन के लिये आया मानव खुद को कुछ समझ बैठे तो वह केवल अपना समय बर्बाद कर रहा है।

जिसे जो समझना है, वे समझते रहेंगे। हम बस अपनी जीवन यात्रा पर हैं। ~ शुभाँशु जी 2018©

रविवार, मई 06, 2018

लेस्बियन कृपया लिंगभेद न करें।

जब पुरुष से मिलने नहीं दोगे, लड़की को भोग्य समझोगे तो वह अपनी इच्छा कहीं तो शांत करेगी न? प्रेम से, शांति से, इज़्ज़त से। ज्यादातर ऐसी लड़कियाँ bisexual होती हैं।

कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन विपरीत लिंग से नफरत अपराध की श्रेणी में आता है जिसे sexism (लिंग भेद) कहते हैं। इसके अतिरिक्त जो लड़कियाँ शुरू से ही लड़कियों में इंट्रेसेटेड हैं वे पैदाइशी लेस्बियन हैं। उनको कोई नहीं बदल सकता।

साथ ही उनको पुरुषों से वैसे ही व्यवहार करना चाहिए जैसे एक पुरुष दूसरे के साथ तथा एक महिला एक महिला के साथ करती है। यानी समानता का व्यवहार। उनको अपनी sexuality कभी छिपानी नहीं चाहिए और न ही ईर्ष्या करनी चाहिए उस लड़के से जो आपकी पसंदीदा लड़कीं का प्रेमी या पति हो। अन्यथा गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। उदाहरण: बॉलीवुड फिल्म "girlfriend". ~ शुभाँशु जी 2018©

शनिवार, मई 05, 2018

मैं विवाह मुक्त क्यों हूँ?

विवाह एक अनुबंध/करार/contract होता है। इसमें पहले से बनी विचित्र प्रतिज्ञाएँ ली जाती हैं। जिनका पालन कोई नहीं कर पाता। इसीलिए विवाह नामक संस्था असफल है।

जितने भी विवाहित सफल-सफल चिल्ला रहे हैं सब बस अपना-अपना फायदा और मजबूरी देख कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं क्योकि उन्होंने खुद ही जली रोटी मुहँ में डाली है तो अब उगलने का कोई लाभ नहीं।

तिरस्कार ही होगा। दूसरों को भी कष्ट में डला देख कर कष्ट में पड़े व्यक्ति को अपूर्व आनन्द आता है और इसी की पूर्ति सेक्स के लिये लालायित युवाओं को विवाह का रास्ता सुझा कर वे एक तीर से दो शिकार करते हैं।

विवाह का रिश्ता एकल विवाह में मोनोगेमस और कुछ समाजों में निश्चित पोलिगेमस कहलाता है। अर्थात एक बार में चुन लो सीमित मात्रा में और फिर उतने से ही संतोष करो। यहाँ बात प्रेम की नहीं बल्कि सेक्स की ही होती है।

जबकि मनुष्य असीमित पोलिगेमस यानी बहुविवाही ही है। (विवाह=संभोग)

फिर इस रासायनिक, जैव वैज्ञानिक पृवृत्ति को जबरन दबा कर कुंठित क्यों किया जाए? क्या बलात्कारी बनाना है? सबको पता है कि एक ही व्यक्ति (sex mate) के साथ लम्बे समय तक साथ रहने में सेक्सुअल भावना निष्क्रिय हो जाती है जैसे कि भाई-बहनों के बीच होता है। ज़रूरी नहीं कि सेक्स किया भी जाये।

फिर क्यों अपनी मूर्खता पूर्ण समाजिक सोच लाद कर सबको अपनी तरह मूर्ख बनाने में लगे हुए हैं? क्यों नहीं आज़ाद कर देते लोगों को सेक्स एडुकेशन देकर?

जब सब सहमति से ही अपना साथी चुन सकेंगे तो बलात्कार जैसे शब्द सुनने को नहीं मिलेंगे। प्रकृति से सीखो। वही जीतेगी। ~ शुभाँशु जी 2018©

मैं शिशुमुक्त क्यों हूँ?

कुछ लड़कियाँ और लड़के जो शादी के सपने देखती/देखते हैं, वे बच्चों को पसन्द करने का अभ्यास करती/करते रहती/रहते हैं। जबकि मुझे बच्चे के प्रति सिर्फ ज़िम्मेदारी का भाव रहता है। उनको पैदा करने की भावना नहीं उतपन्न होती है क्योकि देश बढ़ती जनसँख्या से इतना बर्बाद हो चुका है कि नए के लिये यहाँ बेहतर माहौल ही नहीं। वह या तो अपराधी बन जायेगा या भृष्टाचारी।

सत्यवादी हुआ मेरी तरह तो उसकी हत्या कर दी जाएगी। कैसे भी कोई सूरत नज़र नहीं आती। इसलिये मैं बच्चा मुक्त ही बेहतर हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

महिलाओं चलो करो आंदोलन

महिलाएं दबा कर रखी गई हैं उनके बारे में कुछ पता कैसे चले। पुरुष दबंग है समाज के सहारे से। फिर? जिसको प्रोत्साहन मिलता है वह काम भी करता है। महिलाओं को कौन प्रोत्साहित करें? वह खुद ही चुप्पी साधे बैठी हैं। हम किसी को परोस के तो दे सकते हैं लेकिन चम्मच से खिलाना हमारे वश का नहीं। मुकाबला करना है समाज से तो सड़को पर आओ महिलाओं। दिखाओ अपनी ताकत या फिर शिकायते करना भी बन्द कर दो। ~ शुभाँशु जी 2018©

सेक्स पर टिके समाज से एक अपील

एक लड़के का गैंग रेप हुआ था कुछ अमीर लड़कियों द्वारा। दूसरी घटना में होस्टल में प्रेमिका से मिलने आये के साथ हुआ। हॉस्पिटल जाना पड़ा।

इन घटनाओं ने आज से 35 साल पहले न सिर्फ महिलाओं के बलात्कारी पुरुषों में डर पैदा कर दिया बल्कि कई सालों तक महिलाएं खुले आम मनपसंद कपड़ों में घूम सकी थीं। फिर दोबारा से जब लोग इन घटनाओं को भूल गये तब फिर से पासा पलट गया।

डर से किस तरह के बलात्कारी प्रभावित होते हैं? यह वे होते हैं जिनको लगता है कि महिला ने उनकी बात नहीं मानी जबकि वह तो भोग्य है यानी पुरूष अहं/male ego वाले ऐसे लोग जो उसे बस सम्भोग की विषयवस्तु मानते हैं। इन लोगों की पहचान है कि यदि आप कुछ भी विपरीत लिंग जैसा करेंगे तो यह आपका मजाक उड़ाएंगे।

यह दोनो वर्ग में हो सकता है। जगह और स्थान बदलने पर लोगों की सोच विपरीत भी हो सकती है यानी महिला भी पुरुष के साथ वही व्यवहार करने लगती है जैसा उसने किया था। बात इस पर निर्भर करती है कि प्रभावी (dominant) कौन है।

जो भी प्रभावी है उसके मन में ऐसा धर्म/समाज/संगत/शिक्षा मिलकर डालता है। ये वे लोग भी हैं जो लड़कीं को खुली तिजोरी समझते हैं और हीरा/सोना जैसा बहुमूल्य सम्पत्ति बताते हैं। यही लड़कों के मामले में भी कुछ जगह पर।

अभी हम महिला के विषय में बात करेंगे:

यह क्या चक्कर है? महिला और सम्पत्ति? जी हाँ। भूल गए वह उपन्यास जिसको महाभारत कहा जाता है? भूल गये वह उपन्यास जिसे वाल्मीकि रामायण कहा जाता है?

महाभारत: पांडवों पर धन/सम्पत्ति समाप्त हो गयी। पँचाली को दांव पर लगा दिया।

वाल्मीकि रामायण (पौलस्य वध): राम से अपनी सगी बहन के ऊपर किये गए विवाहित से प्रणय निवेदन के विरोध में अत्याचार और अंगभंग के विरोध में राम की पत्नी का अपहरण क्योंकि राम पर धन नहीं था वनवास के दौरान। एक मात्र सम्पत्ति उनकी सीता ही थी।

अब? सम्पत्ति किसके लिये है? सीधी बात विपरीत लिंग के लिये या समान समलिंगी के मामले में। कारण? प्रजनन की प्रकृति/पृवृत्ति/इंस्टिंक्ट; हर हाल में अपनी सन्तति को उतपन्न करके अपनी प्रजाति को बनाये रखना। उसके लिए अबोध मन मे बना हार्मोनल सिस्टम। जिसे हवस कहिये या lust। दोनो में होता है यह।

बल्कि LGBTQ में भी। वह पृकृति में बस बन गए उसकी (रैंडम) गलती से लेकिन उनका सिस्टम तो समान ही है।

इस पर काबू पाना है तो जंगलवासी बनो, एकांत में रहो। विपरीत लिंग (आकर्षित करने वाला) से मिलो ही मत या फिर मेडिकली (चिकित्सीय रूप से) खुद के भीतर से वह हार्मोन खत्म करवा दो जो विपरीत लिंग (या जो भी लिंग आपको आकर्षित करता हो) के प्रति आपको आकर्षित करते हैं।

या आपके पास धर्ममुक्त/विवाहमुक्त/मुक्तविचार सोच हो जो संयम पैदा करना सिखाती है। अच्छा आहार हो जिनमें हार्मोन न हों। यह सब भी आपको खुद को मजबूत इंसान बनने में मदद करेंगे। अधिकारों और कानून को पढ़ो। जानो। महसूस करो। लड़ो उनके लिये। दूसरों को प्रोत्साहित करो। विपरीत लिंग से जानपहचान करो उनको अपना सच्चा मित्र समझो। बराबरी रखो।

छीन कर नहीं, request से भी नहीं, दूसरे के दिल में आकर्षण पैदा करके उसका दिल जीत लो। फिर चुनते रहिये अपने दिल का राजा/रानी।

जब लगे कि खुद पर काबू नहीं हो रहा और कुछ गलत सा जोर जबरदस्ती जैसा विचार मन में आये (आता है कभी-कभी जब आहार-विहार-संगत गलत हो) तो किसी कोने में जाकर खुद को ठंडा कर लो। ठंडा पानी पियो। नहा लो। अंग विशेष पर ठण्डा पानी डालो। न बात बने तो हाथों से या किसी इसी कार्य के लिये बने उपकरण की मदद ही ले डालो।

खाली इच्छा हो रही है और अंग तैयार नहीं तो अच्छा पोर्न देखो और उसे जागृत करके वही कर डालो जो ऊपर सुझाया था और उसे शांत कर लो। लेकिन इस सेक्स को बलात्कार में बदल कर सभ्य समाज में इसे मुद्दा मत बनाओ। खुद को बर्बाद मत करो किसी और को बर्बाद करके।

मैं जानता हूँ कि सब मेरे जैसे नहीं, इसीलिये सबके लिये उपाय सुझाये हैं। कुछ रह गया हो तो सहयोग करें। सुझाएँ अपने शोध। दूसरों के शोध को अपना बोल कर समय न खराब करें यह भी कहना चाहूंगा।

अपने अनुभवों को ही बताएं तो मदद भी कर सकूंगा। कोई लिंक/सर्वे को मैं धारणा कायम करने का प्रयास भर मानता हूं जो भरोसे लायक नहीं। हर इंसान यूनिक होता है और प्रत्येक के लिए मेरे शोध में जगह है। आपका स्वागत है। ~ शुभाँशु जी 2018©

शुक्रवार, मई 04, 2018

मेरा वर्जित सत्य

मैं 8वी कक्षा से सेक्स के बारे में सब जानता हूँ। पोर्न कुछ किताबों से फिर बाद में 9वी में आकर इंटरनेट पर खुद ढूंढा। बहुत पैसे खर्च किये पोर्न को देखने में। फिर cd ली, फिर dvd, लेकिन मुझे सामान्य पोर्न ही ठीक लगा और मैंने देखा और हस्तमैथुन भी किया लेकिन कभी ज्यादा नहीं किया।

सभी तरह के पोर्न देख कर मुझे कुछ फील नहीं होता है, सिर्फ कुछ मॉडल से ही फीलिंग आती हैं। मेरी पसन्द भी सबकी जैसी नहीं। असली जीवन में भी मुझे केवल कुछ ही लड़कियों से आकर्षण हुआ, हर कोई मुझे महिला ही नहीं लगती। लड़का ही लगती है। कोई-कोई ही होती है ऐसी जिनसे मैं शर्मा जाता हूँ।

तब से अब तक बहुत शोध किया है पोर्न पर लेकिन मेरे भीतर कभी कोई दुर्भावना उतपन्न नहीं हुई। न ही मेरे दोस्तों के मन में। वे सामान्य जीवन जीते हैं। लड़कियों का सम्मान करते हैं और एक मित्र जो 8वी कक्षा से साथ है वह भी मेरी तरह विवाहमुक्त हो गया जब उसको उसकी प्रेमिका ने धोखा दे दिया।

उस समय मेरे सहयोग से उसे उसकी प्रेमिका से मिलाने के भरसक प्रयत्न किए गए लेकिन लड़की चाहती ही नहीं थी उसे पाना, तो सम्भव न हो सका। फिर वह हार कर मेरी बताई बातों पर गौर करने लगा कि मैं क्या कहता रहा उसे हमेशा। उसके बाद उसने मुझसे जानकारी मांगी, मैंने दी और वह धर्ममुक्त और विवाहमुक्त हो गया। ~ शुभाँशु जी 2018©

गुरुवार, मई 03, 2018

विवाह से मुक्ति यानि जीवन में संतुष्टि!

कह दीजिये अपने घरवालों से कि हमको अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद करने हैं। हम पर जबरन नई जिम्मेदारी (जो अभी है ही नहीं) मत थोपो। ज़िम्मेदारी अपने आप आ जाती है लोगों पर। जबरन ली नहीं जाती। सेक्स की ज़रूरत जिनको है, उसके लिये विवाह कहीं से भी ज़रुरी नहीं।

कानून में कोई भी रोक नहीं कि कोई भी स्वतन्त्र नागरिक परस्पर सहमति से एक दूसरे के साथ संभोग न कर सके। सबको छूट है। चाहे वह कोई रिश्तेदार ही क्यो न हो या कोई समूह ही क्यों न हो। विवाह एक अनुबंध (एग्रीमेंट) है जिसे करने के बाद तोड़ना अपराध है। इसीलिये जब तक दोनो पक्ष राजी नहीं होते तब तक मुकदमा चलता है।

समस्या आती है, बच्चों के पैदा करने पर। तो जो प्रेम को तिलांजलि देना चाहते हैं वे बच्चा कर सकते हैं। बच्चे पैदा होने पर प्यार बंट जाता है और समय के साथ खत्म हो जाता है। यह पृकृति है। उसका काम ही बच्चे पैदा करवाना है। वह हुए और बस आपस में आकर्षण खत्म होने लगता है।

बच्चे न सिर्फ एक अतिरिक्त ज़िम्मेदारी बन जाते हैं बल्कि समाज/राष्ट्र में उनकी अधिकता पालन पोषण की गुणवत्ता में कमी पैदा करती है। परिणाम स्वरूप वे गलत राह पकड़ते है और अपराध जन्म लेता है।

हर गलत व्यक्ति/अपराधी का जन्मदाता एक खराब जोड़ा है जिसने उसे पैदा किया। बच्चे को सज़ा देने का कोई लाभ नहीं क्योकि वह फिर वही करेगा जिसके लिये उसे तैयार किया गया है। प्रोडक्ट खराब हो तो सज़ा प्रोडक्ट को नहीं बल्कि उसके निर्माता को दी जाती है।

हम 150,0000000 से भी ज्यादा (प्रति सेकेंड हजारों की संख्या में बढ़ते और मरते हुए) हो चुके हैं। समाज अपराध और लैंगिक अनुपात की समस्या से जूझ रहा है। संकीर्ण मानसिकता ने लोगों को कुंठित करके ज्वालामुखी भड़का दिए हैं। लीगल पोर्न, सेक्स एडुकेशन और हस्तमैथुन जैसे विषय अभी तक वर्जित हैं। अगर अभी हम विवाह और बच्चो से मुक्ति पाने के विषय में नहीं सोच सके तब प्रेम तो खत्म है ही। हम भी एक दूसरे को नोच कर एक दूसरे को जल्द ही खत्म कर देंगे।

हम जानते हैं कि कुछ लोग सिर्फ माँ-बाप बनने के लिए ही आये हैं। हम उनको नहीं बदल सकते। उनको प्रेम नहीं सिखा सकते उनकी पृवृत्ति ही ऐसी है। इसे natalism की instinct कहते हैं। इनको सिर्फ खेलने के लिये बच्चे चाहिए क्योकि पति दिन भर कमाने में व्यस्त रहता है।

वे कभी देश को निर्जन नहीं होने देंगे लेकिन शायद हम तब जनसँख्या कम करके, रोजगार और संसाधनों को बढ़ा कर प्रतिव्यक्ति आय को बढ़ा देंगे (क्योकि अभी देश का सीमित धन बहुत लोगों में बंटा हुआ है और आय कम होती है) और यही असफल माता-पिता एक सफल नागरिक का पालन पोषण करके  देश में हम जैसे ज़िम्मेदार लोगो को पैदा करेंगे।

तभी हम एक उत्तम राष्ट्र की ओर बढ़ने में सक्षम होंगे। विजयी मेरा भारत देश! ~ शुभाँशु जी 2018©

समय सत्य को स्वीकारने का है और समाधान ढूंढने का।

गांव में जब शेर आ जाया करते थे तो जंगल की सीमा पर कुछ बकरे बाँध दिए जाते थे। शेर उनको खा कर वापस लौट जाते थे और गाँव सुरक्षित रहता था।

Porn वह बकरे हैं और शेर वह desperate ठुकराए हुए लड़के हैं जिनको संस्कारी लड़कियों ने कभी भाव नहीं दिया। पिता ने और टीचर ने हस्तमैथुन करने को शीघ्रपतन और नामर्दी का कारण बताया। प्रॉस्टिट्यूशन अवैध होने के कारण वहाँ ठगी हो जाती है तो आखिर में वे करें तो क्या करें?

पिछली post में हमने हस्तमैथुन के लाभ बताये थे। इसलिये ताकि जो लोग पोर्न देख कर कामोत्तेजना बढाते तो हैं लेकिन उसे हस्तमैथुन से बुझाते नहीं। इसी कारण पोर्न पर कुछ लोग गलत होने का आरोप लगाते हैं लेकिन सीमित मात्रा में डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक इसको समाज को नियंत्रित करने वाला बताते हैं।

संभोग की क्रिया को अपने जुगाड़, हाथ, सेक्स टॉय से करने को हस्तमैथुन करना कहते हैं। यह एक समान है संभोग के। दिन में 3 बार से ज्यादा करने से अंग दुखने लगते हैं यही वास्तविक सम्भोग में भी होता है।

जिन लोगों को इस पोस्ट से खुद पर नियंत्रण करने का लाभ मिले वह कृपया टिप्पणी में अवश्य बताये। धन्यवाद्! आलोचक कृपया इस पोस्ट से दूर रहें। यह समय आलोचना का नहीं समाधान का है। मुझे चाहिए एक बलात्कार मुक्त समाज। कैसे भी। ~ शुभाँशु जी 2018©

बुधवार, मई 02, 2018

स्वप्रसंशा: हीन भावना निवारक! आत्महत्या निरोधक!

विशेष: आपको मेरा लहजा स्वप्रसंशा वाला लग रहा होगा। जब आप अगले से कम होते हैं तो हम उसके ऊपर घमण्ड करने का आरोप लगा कर तुष्ट हो जाते हैं। हमें बड़े से बड़ा शख्सियत वाला व्यक्ति एक दम दीन-हीन गिड़गिड़ाने वाली हालत में ही पसन्द आता है और आश्चर्य की बात तो यह है कि एक घमंडी व्यक्ति भी ऐसे ही देखना चाहता है सभी को। फिर घमंडी/अहंकारी/एरोगेंट कौन हुआ? मैं तो अपने बारे में सत्य लिख रहा हूँ आप पढ़ रहे हैं। फिर भी मैं आपको अगर घमंडी दिखा तो खुद सोचिये कि अगर मैं घमंडी होता तो आपको ज़लील कर रहा होता। जबकि मैं तो आपको अभी तक जानता भी नहीं। फिर आप कोई भी हों, मुझे जब पता नहीं तो क्या फर्क पड़ता है? अपने बारे में एक अकेला रहने वाला इंसान खुद अपनी तारीफ कर भी रहा है तो अच्छा है न! अपनी बुराई वह करे जो बुरा हो।

अगर आप दूसरे को झुका हुआ देखना चाहते हैं तो घमंडी आप हैं। जो सिर उठा के चलते हैं दुनिया उसी के आगे सिर झुकाती है, सम्मान से।

"हमको इतनी शक्ति देना कि जग विजय करें,
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें।" ~ शुभाँशु जी! 💐