Zahar Bujha Satya

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If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, मई 05, 2018

मैं विवाह मुक्त क्यों हूँ?

विवाह एक अनुबंध/करार/contract होता है। इसमें पहले से बनी विचित्र प्रतिज्ञाएँ ली जाती हैं। जिनका पालन कोई नहीं कर पाता। इसीलिए विवाह नामक संस्था असफल है।

जितने भी विवाहित सफल-सफल चिल्ला रहे हैं सब बस अपना-अपना फायदा और मजबूरी देख कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं क्योकि उन्होंने खुद ही जली रोटी मुहँ में डाली है तो अब उगलने का कोई लाभ नहीं।

तिरस्कार ही होगा। दूसरों को भी कष्ट में डला देख कर कष्ट में पड़े व्यक्ति को अपूर्व आनन्द आता है और इसी की पूर्ति सेक्स के लिये लालायित युवाओं को विवाह का रास्ता सुझा कर वे एक तीर से दो शिकार करते हैं।

विवाह का रिश्ता एकल विवाह में मोनोगेमस और कुछ समाजों में निश्चित पोलिगेमस कहलाता है। अर्थात एक बार में चुन लो सीमित मात्रा में और फिर उतने से ही संतोष करो। यहाँ बात प्रेम की नहीं बल्कि सेक्स की ही होती है।

जबकि मनुष्य असीमित पोलिगेमस यानी बहुविवाही ही है। (विवाह=संभोग)

फिर इस रासायनिक, जैव वैज्ञानिक पृवृत्ति को जबरन दबा कर कुंठित क्यों किया जाए? क्या बलात्कारी बनाना है? सबको पता है कि एक ही व्यक्ति (sex mate) के साथ लम्बे समय तक साथ रहने में सेक्सुअल भावना निष्क्रिय हो जाती है जैसे कि भाई-बहनों के बीच होता है। ज़रूरी नहीं कि सेक्स किया भी जाये।

फिर क्यों अपनी मूर्खता पूर्ण समाजिक सोच लाद कर सबको अपनी तरह मूर्ख बनाने में लगे हुए हैं? क्यों नहीं आज़ाद कर देते लोगों को सेक्स एडुकेशन देकर?

जब सब सहमति से ही अपना साथी चुन सकेंगे तो बलात्कार जैसे शब्द सुनने को नहीं मिलेंगे। प्रकृति से सीखो। वही जीतेगी। ~ शुभाँशु जी 2018©

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