Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, मई 12, 2018

पशुओं में प्रायः नहीं होता है बलात्कार

मादा ज्यादा खतरनाक और ताकतवर होती है ताकि किसी भी प्रकार के बल का विरोध कर सके और अपने बच्चों की रक्षा कर सके।

रुक्य्वार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध कविता में इसी का ज़िक्र है "the female of the species is the more deadly than the male" उसी कविता का प्रसिद्ध उद्धरण भी है।

मानवों में महिलाओं से व्यायाम करने और भारी कार्य करने से रोक कर उनको कमज़ोर कर दिया जाता है।

जहां तक कुछ लोगों को पशुओं में बलात्कार की प्रवृत्ति की धारणा है, वहीं गहन अध्ध्यन कुछ और ही कहानी कहता है।

जानवरों में भी मानव की तरह झिझक होती है सेक्स के प्रति इसलिये शुरू में आपको ऐसा लगता है कि बल का प्रयोग हुआ। लेकिन नर प्रजनन ऋतु में केवल तभी सम्भोग का प्रयास करता है जब उसकी नासिका में मादा के सम्भोग के लिये मौजूद श्लेष्मा और गन्ध फेरोमोन का स्राव पर्याप्त संकेत छोड़ देता है।

पशुओं में कभी-कभी खुर चुभ जाते हैं तो मादा कतराती है और आगे भागती और विरोध करती नज़र आती है लेकिन ऐसा तो सभी प्रेमियों में भी होता है। कभी कभी गलत आसन लग जाने से या नाखून लग जाने से मादा या नर एक दूसरे को रोक कर टोक देते हैं। यह तो एक सामान्य सी बात है। इसका सहमति भंग से कोई लेना देना नहीं है। ~ शुभाँशु जी 2018©

मंगलवार, मई 08, 2018

गिरगिट हैं हम सब या हैं खरबूजा।

बदलाव आएगा। मुझे लगता है। आपके लगने न लगने से मुझे कोई लेना देना नहीं है। पूछा ही इसलिये था कि कौन कौन मेरे साथ बदलना चाहता है और कौन कौन नहीं। हम किसी को पकड़ कर नहीं बदल सकते।

जिसमें हिम्मत न हो उसे दिलवा ज़रूर सकते हैं। बदलाव की इच्छा ही काफी है। बदलाव कुछ नहीं बस अपने आप को बदलना हैं। मैंने बदला और मुझे देख के आप भी बदल सकते हो।

अगर इतने ही निराशावादी हैं तो एक काम करें। खुद को गिरगिट या खरबूजा समझ लें और जान लें कि मैं भी एक गिरगिट हूँ और मैं इस समय रंग बदल रहा हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

सोमवार, मई 07, 2018

विचार और अनुभव

विचार और अनुभव (इंद्रियों का) अलग अलग काम करते हैं। जब हम सोच नहीं सकते (नींद में) तब हमारा मस्तिष्क हमारा मनोरंजन करता है, शरीर की आवश्यकता के अनुसार अनुभव पैदा करता है जैसे भूखे सो गए तो भोजन खाते दिखोगे, सेक्स किये बिना सो गए तो वह करोगे, यहाँ तक कि मल मूत्र त्याग की ज़रूरत होने पर दिमाग आपको जगाए बिना टॉयलेट में पहुँच गए ऐसा दर्शा कर बिस्तर पर ही काम तमाम करवा सकता है। तब स्पर्श इंद्री आपको मल-मूत्र का अनुभव करवा कर आपको जगा देती है कि यह भी ठीक नहीं। मतलब इंद्रियां अवचेतन मन (अनियंत्रित विचार) की दुश्मन हैं। ~ शुभाँशु जी 2018©

जानकारी ही बचाव है।

हर धर्म का व्यक्ति अपनी जनसँख्या बढ़ा कर खुद को सुरक्षित करना चाहता है। यही कारण है कि शादी की सलाह और मुफ्त की सलाह आपको मिलती रहेगी।

मुफ्त की सलाह इसलिये भी क्योंकि कहीं आप परेशान होकर यह देश छोड़ कर ही न भाग जाओ।

और हाँ, कल एक बात और पता चली आप लोगों से कि जो जितना पढ़ता है वह उतना विद्वान होता है। इस हिसाब से मैने जो कुछ लिखा वह कहीं से पढ़ कर नहीं लिखा। मुझे पढ़ने से बहुत तकलीफ होती है।

जो देखता, महसूस करता और जो विश्लेषण करता हूँ वही लिख देता हूँ। जब आप लोग उसका सुबूत मांगते हो तब गूगल करता हूँ और मिल गया तो सुबूत भी दे देता हूं। आज तक सिर्फ 5% गलत सोचा है। यह तो है सफलता की दर।

लिखने में ही लगा रहता हूँ, पढा तो मैं कभी स्कूल में भी नहीं। जैसे तैसे पास होता रहा और आज भी अखबार तक नहीं पढ़ता और न ही कभी tv देखता हूँ। (कौन करे फालतू खर्च)। मेरा अनुभव ही काफी है। फिर भी लोग कहते हैं कि आप में व्यवहारिक ज्ञान नहीं है। अब हर क्षेत्र में नहीं भी हो सकता है। क्योकि हर फटे में घुसने का शौक भी न है। उसकी जानकारी है, वही काफी है। सुना है जानकारी ही बचाव है? ~ शुभाँशु जी 2018©

जीवन यात्रा चल रही है।

मैं शुभाँशु जी हूँ बस! ये क्या है? क्यों है? इससे मुझे कोई लाभ नहीं। कुछ दिन का जीवन है। न जाने कब यह एकाउंट खत्म हो और मैं खत्म।

तो इस नकली दुनिया में 4 दिन के लिये आया मानव खुद को कुछ समझ बैठे तो वह केवल अपना समय बर्बाद कर रहा है।

जिसे जो समझना है, वे समझते रहेंगे। हम बस अपनी जीवन यात्रा पर हैं। ~ शुभाँशु जी 2018©

रविवार, मई 06, 2018

लेस्बियन कृपया लिंगभेद न करें।

जब पुरुष से मिलने नहीं दोगे, लड़की को भोग्य समझोगे तो वह अपनी इच्छा कहीं तो शांत करेगी न? प्रेम से, शांति से, इज़्ज़त से। ज्यादातर ऐसी लड़कियाँ bisexual होती हैं।

कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन विपरीत लिंग से नफरत अपराध की श्रेणी में आता है जिसे sexism (लिंग भेद) कहते हैं। इसके अतिरिक्त जो लड़कियाँ शुरू से ही लड़कियों में इंट्रेसेटेड हैं वे पैदाइशी लेस्बियन हैं। उनको कोई नहीं बदल सकता।

साथ ही उनको पुरुषों से वैसे ही व्यवहार करना चाहिए जैसे एक पुरुष दूसरे के साथ तथा एक महिला एक महिला के साथ करती है। यानी समानता का व्यवहार। उनको अपनी sexuality कभी छिपानी नहीं चाहिए और न ही ईर्ष्या करनी चाहिए उस लड़के से जो आपकी पसंदीदा लड़कीं का प्रेमी या पति हो। अन्यथा गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। उदाहरण: बॉलीवुड फिल्म "girlfriend". ~ शुभाँशु जी 2018©

शनिवार, मई 05, 2018

मैं विवाह मुक्त क्यों हूँ?

विवाह एक अनुबंध/करार/contract होता है। इसमें पहले से बनी विचित्र प्रतिज्ञाएँ ली जाती हैं। जिनका पालन कोई नहीं कर पाता। इसीलिए विवाह नामक संस्था असफल है।

जितने भी विवाहित सफल-सफल चिल्ला रहे हैं सब बस अपना-अपना फायदा और मजबूरी देख कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं क्योकि उन्होंने खुद ही जली रोटी मुहँ में डाली है तो अब उगलने का कोई लाभ नहीं।

तिरस्कार ही होगा। दूसरों को भी कष्ट में डला देख कर कष्ट में पड़े व्यक्ति को अपूर्व आनन्द आता है और इसी की पूर्ति सेक्स के लिये लालायित युवाओं को विवाह का रास्ता सुझा कर वे एक तीर से दो शिकार करते हैं।

विवाह का रिश्ता एकल विवाह में मोनोगेमस और कुछ समाजों में निश्चित पोलिगेमस कहलाता है। अर्थात एक बार में चुन लो सीमित मात्रा में और फिर उतने से ही संतोष करो। यहाँ बात प्रेम की नहीं बल्कि सेक्स की ही होती है।

जबकि मनुष्य असीमित पोलिगेमस यानी बहुविवाही ही है। (विवाह=संभोग)

फिर इस रासायनिक, जैव वैज्ञानिक पृवृत्ति को जबरन दबा कर कुंठित क्यों किया जाए? क्या बलात्कारी बनाना है? सबको पता है कि एक ही व्यक्ति (sex mate) के साथ लम्बे समय तक साथ रहने में सेक्सुअल भावना निष्क्रिय हो जाती है जैसे कि भाई-बहनों के बीच होता है। ज़रूरी नहीं कि सेक्स किया भी जाये।

फिर क्यों अपनी मूर्खता पूर्ण समाजिक सोच लाद कर सबको अपनी तरह मूर्ख बनाने में लगे हुए हैं? क्यों नहीं आज़ाद कर देते लोगों को सेक्स एडुकेशन देकर?

जब सब सहमति से ही अपना साथी चुन सकेंगे तो बलात्कार जैसे शब्द सुनने को नहीं मिलेंगे। प्रकृति से सीखो। वही जीतेगी। ~ शुभाँशु जी 2018©

मैं शिशुमुक्त क्यों हूँ?

कुछ लड़कियाँ और लड़के जो शादी के सपने देखती/देखते हैं, वे बच्चों को पसन्द करने का अभ्यास करती/करते रहती/रहते हैं। जबकि मुझे बच्चे के प्रति सिर्फ ज़िम्मेदारी का भाव रहता है। उनको पैदा करने की भावना नहीं उतपन्न होती है क्योकि देश बढ़ती जनसँख्या से इतना बर्बाद हो चुका है कि नए के लिये यहाँ बेहतर माहौल ही नहीं। वह या तो अपराधी बन जायेगा या भृष्टाचारी।

सत्यवादी हुआ मेरी तरह तो उसकी हत्या कर दी जाएगी। कैसे भी कोई सूरत नज़र नहीं आती। इसलिये मैं बच्चा मुक्त ही बेहतर हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

महिलाओं चलो करो आंदोलन

महिलाएं दबा कर रखी गई हैं उनके बारे में कुछ पता कैसे चले। पुरुष दबंग है समाज के सहारे से। फिर? जिसको प्रोत्साहन मिलता है वह काम भी करता है। महिलाओं को कौन प्रोत्साहित करें? वह खुद ही चुप्पी साधे बैठी हैं। हम किसी को परोस के तो दे सकते हैं लेकिन चम्मच से खिलाना हमारे वश का नहीं। मुकाबला करना है समाज से तो सड़को पर आओ महिलाओं। दिखाओ अपनी ताकत या फिर शिकायते करना भी बन्द कर दो। ~ शुभाँशु जी 2018©

सेक्स पर टिके समाज से एक अपील

एक लड़के का गैंग रेप हुआ था कुछ अमीर लड़कियों द्वारा। दूसरी घटना में होस्टल में प्रेमिका से मिलने आये के साथ हुआ। हॉस्पिटल जाना पड़ा।

इन घटनाओं ने आज से 35 साल पहले न सिर्फ महिलाओं के बलात्कारी पुरुषों में डर पैदा कर दिया बल्कि कई सालों तक महिलाएं खुले आम मनपसंद कपड़ों में घूम सकी थीं। फिर दोबारा से जब लोग इन घटनाओं को भूल गये तब फिर से पासा पलट गया।

डर से किस तरह के बलात्कारी प्रभावित होते हैं? यह वे होते हैं जिनको लगता है कि महिला ने उनकी बात नहीं मानी जबकि वह तो भोग्य है यानी पुरूष अहं/male ego वाले ऐसे लोग जो उसे बस सम्भोग की विषयवस्तु मानते हैं। इन लोगों की पहचान है कि यदि आप कुछ भी विपरीत लिंग जैसा करेंगे तो यह आपका मजाक उड़ाएंगे।

यह दोनो वर्ग में हो सकता है। जगह और स्थान बदलने पर लोगों की सोच विपरीत भी हो सकती है यानी महिला भी पुरुष के साथ वही व्यवहार करने लगती है जैसा उसने किया था। बात इस पर निर्भर करती है कि प्रभावी (dominant) कौन है।

जो भी प्रभावी है उसके मन में ऐसा धर्म/समाज/संगत/शिक्षा मिलकर डालता है। ये वे लोग भी हैं जो लड़कीं को खुली तिजोरी समझते हैं और हीरा/सोना जैसा बहुमूल्य सम्पत्ति बताते हैं। यही लड़कों के मामले में भी कुछ जगह पर।

अभी हम महिला के विषय में बात करेंगे:

यह क्या चक्कर है? महिला और सम्पत्ति? जी हाँ। भूल गए वह उपन्यास जिसको महाभारत कहा जाता है? भूल गये वह उपन्यास जिसे वाल्मीकि रामायण कहा जाता है?

महाभारत: पांडवों पर धन/सम्पत्ति समाप्त हो गयी। पँचाली को दांव पर लगा दिया।

वाल्मीकि रामायण (पौलस्य वध): राम से अपनी सगी बहन के ऊपर किये गए विवाहित से प्रणय निवेदन के विरोध में अत्याचार और अंगभंग के विरोध में राम की पत्नी का अपहरण क्योंकि राम पर धन नहीं था वनवास के दौरान। एक मात्र सम्पत्ति उनकी सीता ही थी।

अब? सम्पत्ति किसके लिये है? सीधी बात विपरीत लिंग के लिये या समान समलिंगी के मामले में। कारण? प्रजनन की प्रकृति/पृवृत्ति/इंस्टिंक्ट; हर हाल में अपनी सन्तति को उतपन्न करके अपनी प्रजाति को बनाये रखना। उसके लिए अबोध मन मे बना हार्मोनल सिस्टम। जिसे हवस कहिये या lust। दोनो में होता है यह।

बल्कि LGBTQ में भी। वह पृकृति में बस बन गए उसकी (रैंडम) गलती से लेकिन उनका सिस्टम तो समान ही है।

इस पर काबू पाना है तो जंगलवासी बनो, एकांत में रहो। विपरीत लिंग (आकर्षित करने वाला) से मिलो ही मत या फिर मेडिकली (चिकित्सीय रूप से) खुद के भीतर से वह हार्मोन खत्म करवा दो जो विपरीत लिंग (या जो भी लिंग आपको आकर्षित करता हो) के प्रति आपको आकर्षित करते हैं।

या आपके पास धर्ममुक्त/विवाहमुक्त/मुक्तविचार सोच हो जो संयम पैदा करना सिखाती है। अच्छा आहार हो जिनमें हार्मोन न हों। यह सब भी आपको खुद को मजबूत इंसान बनने में मदद करेंगे। अधिकारों और कानून को पढ़ो। जानो। महसूस करो। लड़ो उनके लिये। दूसरों को प्रोत्साहित करो। विपरीत लिंग से जानपहचान करो उनको अपना सच्चा मित्र समझो। बराबरी रखो।

छीन कर नहीं, request से भी नहीं, दूसरे के दिल में आकर्षण पैदा करके उसका दिल जीत लो। फिर चुनते रहिये अपने दिल का राजा/रानी।

जब लगे कि खुद पर काबू नहीं हो रहा और कुछ गलत सा जोर जबरदस्ती जैसा विचार मन में आये (आता है कभी-कभी जब आहार-विहार-संगत गलत हो) तो किसी कोने में जाकर खुद को ठंडा कर लो। ठंडा पानी पियो। नहा लो। अंग विशेष पर ठण्डा पानी डालो। न बात बने तो हाथों से या किसी इसी कार्य के लिये बने उपकरण की मदद ही ले डालो।

खाली इच्छा हो रही है और अंग तैयार नहीं तो अच्छा पोर्न देखो और उसे जागृत करके वही कर डालो जो ऊपर सुझाया था और उसे शांत कर लो। लेकिन इस सेक्स को बलात्कार में बदल कर सभ्य समाज में इसे मुद्दा मत बनाओ। खुद को बर्बाद मत करो किसी और को बर्बाद करके।

मैं जानता हूँ कि सब मेरे जैसे नहीं, इसीलिये सबके लिये उपाय सुझाये हैं। कुछ रह गया हो तो सहयोग करें। सुझाएँ अपने शोध। दूसरों के शोध को अपना बोल कर समय न खराब करें यह भी कहना चाहूंगा।

अपने अनुभवों को ही बताएं तो मदद भी कर सकूंगा। कोई लिंक/सर्वे को मैं धारणा कायम करने का प्रयास भर मानता हूं जो भरोसे लायक नहीं। हर इंसान यूनिक होता है और प्रत्येक के लिए मेरे शोध में जगह है। आपका स्वागत है। ~ शुभाँशु जी 2018©