Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
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मंगलवार, मई 08, 2018

गिरगिट हैं हम सब या हैं खरबूजा।

बदलाव आएगा। मुझे लगता है। आपके लगने न लगने से मुझे कोई लेना देना नहीं है। पूछा ही इसलिये था कि कौन कौन मेरे साथ बदलना चाहता है और कौन कौन नहीं। हम किसी को पकड़ कर नहीं बदल सकते।

जिसमें हिम्मत न हो उसे दिलवा ज़रूर सकते हैं। बदलाव की इच्छा ही काफी है। बदलाव कुछ नहीं बस अपने आप को बदलना हैं। मैंने बदला और मुझे देख के आप भी बदल सकते हो।

अगर इतने ही निराशावादी हैं तो एक काम करें। खुद को गिरगिट या खरबूजा समझ लें और जान लें कि मैं भी एक गिरगिट हूँ और मैं इस समय रंग बदल रहा हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

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