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बुधवार, जून 06, 2018
बौद्ध धर्म (पाली: धम्म) ज़िंदाबाद
इस्लाम धर्म ज़िंदाबाद
शुभ: मैं धर्ममुक्त! आदम और हव्वा कितने साल पहले बने?
: इतना कठिन सवाल? बने होगेे करोड़ो साल पहले।
शुभ्: और इस्लाम कब आया सबके सामने?
: लगभग 1500 साल पहले।
शुभ्: तब तक जो लोग बिना इस्लाम के प्रकाश में इस्लाम के खिलाफ कार्य कर रहे थे उनको सज़ा मिलेगी क्या?
: पता नहीं। यार इस्लाम इतना देर से क्यों आया?
शुभ: मत पूछ भाई, मत पूछ। तुझे तो बताना है बाबू!
: धर्ममुक्त जयते! विजय हो आपकी। मैं भी हो गया धर्ममुक्त! ~ शुभाँशु जी 2018© 2018/06/06 01:32
ईसाई धर्म ज़िंदाबाद ~ Shubhanshu
शुभ: मैं धर्ममुक्त। सूरज और चांद कौन से दिन बने थे?
: चौथे दिन।
शुभ्: दिन और रात का पता कैसे चलता है?
: सूरज के निकलने और अस्त होने से।
शुभ्: चार दिन कैसे गिने सूरज-चाँद बनाने से पहले?
: हाँ यार, आज तक मैंने ऐसा क्यों नहीं सोचा। कैसे गिने पिछले 3 दिन?
शुभ्: मत पूछ भाई, मत पूछ। तुझें तो बताना है।
: भाई, पानी मिलेगा? ज़रा गला सूख रहा है।
शुभ्: बोल तो मैं रहा हूँ, फिर भी ये लो।
: पानी पीता है...
शुभ्: यह बताओ, पृथ्वी पर जब एक तरफ दिन होता है तो दूसरी तरफ रात होती है। यानि सूर्य का अस्त होना जगह के आधार पर निर्भर होता है। तो यहोवा की आत्मा किस जगह खड़ी होकर सूर्योदय और सूर्यास्त की गणना कर रही थी? क्योकि वास्तव में सूर्योदय और सूर्यास्त जैसा कुछ होता ही नहीं। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है।
: अरे यार, वो आपने क्या बताया था शुरू में?
शुभ्: धर्ममुक्त!
: हाँ वही। विजय हो धर्ममुक्त विचारधारा! धर्ममुक्त जयते! आपकी भी जय हो। मैं भी बन गया आज से धर्ममुक्त! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018©
मंगलवार, जून 05, 2018
मेरा निजी ज़हरबुझा खुलासा
दोस्तों एक बात कहनी थी आपसे। मैं जानबूझ कर अपना स्वभाव अच्छा नहीं दिखाता हूँ क्योंकि फिर लोग मुझसे मिलने की ज़िद करने लगते हैं और मुझे हमेशा के लिये खो देते हैं। (ब्लॉक हो जाते हैं।)
मैं किसी से भी मिल नहीं सकता, यह बात गांठ बांध लीजिये। मैं अंतर्मुखी स्वभाव का हूँ और इस स्वभाव के लोग अन्य लोगों से प्रत्यक्ष नहीं मिलते। इसलिये मेरा प्रयास रहता है कि आप सभी मेरे विचार और लेखन पर ही ध्यान दें।
वास्तविक जीवन में मैं एकांत ज्यादा पसन्द करता हूँ। इसलिये आपको मैं घमण्डी दिखता रहूँगा। मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे नफरत करें लेकिन मेरे विचारों को अपने जीवन में उतार के प्रसन्न रहें। ऐसा निःस्वार्थ व्यक्ति आपको कम ही मिलेगा जो खुद को जला कर दूसरों को रौशनी देना जानता है।
जब भी आप मुझसे ज्यादा लगाव दिखायँगे आपको झटका ज़रूर लगेगा और फिर आपको मुझसे नफरत हो जाएगी। यह बात मैं आपको कभी नहीं बताता लेकिन धीरे-धीरे लोग झटके खा कर विदा ले रहे हैं। सिर्फ लगाव के कारण। मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे नफरत करें। मुझसे मिलने का विचार त्याग दें।
मैं नाम कमाने, राजनीति करने या मित्रों की भीड़ जमा करने नहीं आया। मैं बस एक गुमनाम इंसान हूँ जो बस निःस्वार्थ आपकी मदद करना चाहता है। आपकी इच्छा हो तो मुझे भोजन के लिये धन दे सकते हैं, मकान के किराए के लिये रेंट दे सकते हैं लेकिन मुझे आपकी मेहनत की कमाई से दारू नहीं पीनी।
कुछ नहीं दे सकते तो धन्यवाद से भी मेरा पेट भर सकता है। यही कहना चाहूंगा कि मैं कुछ बहुत अमीर नहीं हूँ जो घमण्ड करूँ खुद पर। मैं आपसे भी गया गुजरा एक इंसान हूँ जो नौकरी नहीं कर सकता, भीख नहीं मांग सकता और इस लायक भी नहीं कि दुकान खोल कर दिन भर उसमें बैठ सकूँ।
जो भी मैं कमाता हूँ वह बातों से ही कमाता हूँ। लोगों को सलाह देकर ही मेरी रोजी चलती है। मेरे पास वे लोग आते हैं जिनके पास असम्भव समस्याओं का पिटारा होता है और मैं उनको समाधान देकर उनसे मुहँ मांगी रकम लेता हूँ। मेरे पास काम करने वाला शरीर नहीं लेकिन दिमाग ज़रूर है और यह दिमाग ही आपसे बात कर रहा है। मैं शरीर हूँ ही नहीं। मैं हूँ सिर्फ एक विचार मशीन। ~ शुभाँशु SC 2018©
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Note: ऊपर लिखी पात्र और घटनाएं कल्पनिक् हैं।
Life is bed of roses! (Yours, not mine)
जीवन, गुलाबों से भरा बिस्तर नहीं है।
हालांकि यह बात पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि यह क्यों कहा गया मेरे पास इसका भी तर्क है।
यह वाक्य उनसे कहा जाता है, जो समझते हैं कि ज़िन्दगी गुलाबों से भरा हुआ बिस्तर है। वे ऐसा क्यों सोचते हैं? ज़रूर वे भी बिना बुनियाद के ऐसा नहीं सोच रहे।
वास्तव में, यह सच है कि हर किसी को अपने जीवन में गुलाब भरे बिस्तर ज़रूर मिलते हैं लेकिन उनमें आधा बिस्तर कांटों से भी भरा होता है। यही वह बात है जिसे जो जानते हैं, वे इसे सिर्फ एक धोखा मानते हैं जबकि जो इस बिस्तर पर लेट कर नहीं महसूस कर पाये वे उसमें छिपे कांटों को भी गुलाब समझ बैठते हैं।
ज़िन्दगी बहुत चालाक है। वह पहले कांटे डालती है, फिर गुलाब की पंखुड़ियों से उनको छिपा देती है। इससे जीना आसान हो जाता है। हम ऊपर से उसे सुगंधित और मुलायम समझ कर उसे अपना लक्ष्य बना लेते हैं और जीवन जीते जाते हैं।
पर सच तो यह है कि हासिल कुछ भी नहीं होता। जल्दी लेट गए तो काँटें चुभ जायेंगे और देर कर दी तो पंखुड़ियां सूख कर बर्बाद हो जायेंगी। अतः यह एक धोखा ही है। इसीलिये कहा जाता है कि "life is not a bed of roses!"
तब क्या किया जाए? मैंने सारी जिंदगी, इस ज़िन्दगी को समझने में ही लगा दी और कुछ हद तक इसकी पहेली को सुलझा भी लिया। लेकिन वो कहते हैं न, जब किसी का पेट भरता है, तो ज़रूर कोई उस रात भूखा भी सोया होता है।
आज के जीवन में अकेले बच्चों को पालना कोई आसान कार्य नहीं है लेकिन आसान तो अकेले कुआँ खोदना भी नहीं है जब सामने ताज़ा पानी टोटी से निकल रहा हो।
कहने का अर्थ है कि बेकार का काम भले ही मेहनत से किया जाए लेकिन उसकी कोई कीमत नहीं होती। फिर भी हम सब ऐसा करते हैं। बेकार का काम।
हम सब दरअसल एक लालच से प्रलोभित हैं। वही bed of roses वाला। हर कोई पढ़ाई, विवाह, बच्चे यह सोच कर करता है क्योंकि उसे लगता है कि भविष्य में वह सुख से रहेगा।
लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। फिर वह कौन से लोग हैं जो सबको उकसाते हैं? Bed of roses के सपने दिखाते हैं? कैसे दावा करते हैं कि उन्होंने bed of roses का सुख भोगा है?
मैंने पड़ताल की। बड़ी बातें सामने आईं। पहली तो यह कि 96% लोग झूठ बोल रहे थे। दूसरी यह कि 4% लोग सच में bed of roses पर लेटे थे। इतनी बड़ी बात को इन्होंने आग की तरह 96% लोगों के बीच फैला रखा था। जब 1 इंसान यह सुख भोग सकता है तो मैं भी भोग सकता हूँ, ऐसा सोच कर लोग जीता-जागता गवाह बन कर पेश आते रहे।
कमाल तो यह था कि सभी दुखी थे लेकिन उनका कोई दोस्त बहुत सुखी था। जब हम उस दोस्त से मिले तो उसने भी यही कहानी सुना दी। असली सुखी दोस्त तो जैसे एक अफवाह था। सभी उसकी सच्चाई को खुद पर रख कर मजबूती दे रहे थे; उस अफवाह को।
लेकिन अफवाह उड़ी कैसे? यह भी सोचने वाली बात थी। हमने बहुत मेहनत की। सालों लगे रहे खोजने में कि कौन है वह सबसे सुखी इंसान?
आखिरकार हमने उसे ढूंढ ही लिया।
उसका राज़ पता किया और हैरान रह गए कि उसने अपने जीवन में कुछ खास नहीं किया था। उसे वह खुशी विरासत में मिली थी। लेकिन उसको वह विरासत देने वाले ने कोई अच्छी ज़िन्दगी नहीं जी थी। वह कष्टों में जिया और किस्तों (installments) में मरा।
हम मोटे तौर पर धीरू भाई अम्बानी और उनके दो बेटों को इस कहानी में fit कर सकते हैं।
तो क्या सीख मिली?
हमने सीखा कि ज़िन्दगी को bed of roses बनाया जा सकता है लेकिन दूसरे के लिये। खुद के लिये नहीं। खुद की तो बची हुई पंखुड़ियों को भी दूसरे के बिस्तर के कांटों के बदले रखना है। खुद के लिये पूरे कांटों की सेज सजानी है। तभी दूसरे के हिस्से में केवल गुलाब आ सकेंगे।
तो अब हम क्या करें? दूसरों को फूल दे दें और खुद के लिये कांटे रख लें? दूसरों को अपने हिस्से का सुख भी बाँट दें ताकि कम से कम वे तो चैन से जी सकें। जो सुख हमने हासिल करने की चाभियाँ खोजी हैं वे दूसरों में बांट जायें?
हाँ यही बेहतर है। मेरे कोई बच्चे नहीं हैं। अपने बच्चे बिगड़ जाते हैं क्योकि हम उनको सही सज़ा नहीं दे पाते और न ही सही परवरिश।
इसलिये सोशल मीडिया पर मौजूद बहुत से बच्चों को अपना समझ कर उनको अपने ज्ञान और अनुभव के मोती बाँट रहा हूँ। वैसे भी मेरा बिस्तर लेटने लायक कहाँ था। Oops!
कभी असमय जागते देखना तो समझ लेना कि कांटों पर लेटा हूँ। नींद कैसे आएगी? अब बस जब सोऊंगा, तब दोबारा न उठने के लिए। ~ शुभाँशु जी 2018©
नोट: सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। कोई भी समानता सिर्फ संयोग मात्र होगी।
सोमवार, जून 04, 2018
अशुभ: प्रेम संघर्ष
बहुत साल पहले एक लड़की को वास्तविक जीवन में दोस्ती के लिए निवेदन किया था।
दरअसल, बहुत अकेला हो गया था मैं। जब भी अपने सहपाठियों के मध्य बैठता था तो क्या सही है और क्या गलत है पर बहस कर बैठता था। जब मैं उनको निरुत्तर कर देता तो वे चिढ़ जाते थे जबकि मुझे लगता था कि दोस्ती मजबूत होगी।
धीरे-धीरे घटिया लोग मुझसे दूर होते गए और अच्छे समझे जाने वाले लल्लू लोग मुझे पसन्द ही नहीं थे। बेवकूफ होना; सीधा होना, अच्छा होना नहीं होता। सीधे दोस्त, हर जगह कायरता की बातें करते, डरते और हारते थे। मैं एक अलग ही प्रजाति था। सीधा तब तक जब तक आप मुझे टेढ़ा होने पर मजबूर न कर दें।
यह प्रजाति कहीं थी ही नहीं। या तो हिंसक लोग थे या फिर एक दम लुल्ल। मैं क्या था कोई कभी समझ नहीं सका। लोग व्हाईट और ब्लैक में अच्छी और बुरी बातों को बांटते रहे और मैंने एक ग्रे शेड चुन लिया। मतलब जब तक गांधीगिरी चलती है चलाओ फिर हिटलर गिरी इस्तेमाल करो।
शक्ल से एक दम लुल्ल लगने वाला मैं अचानक जब अपना रूप बदलता था तो बड़े-बड़े दादाओं के हाथ कांप जाते थे। 2 कदम कब अपने आप वे पीछे चले जाते थे, उनको आज भी नहीं पता चल सका कि यह हुआ कैसे?
आप मुझे, लूट नहीं सकते, आप मुझे ठग नहीं सकते, आप मुझे विश्वास में लेकर धोखा दे सकते हैं लेकिन कीमत चुकाने के लिये तैयार रहना होता है क्योकि मैं किसी को भी उसकी गलती का एहसास दिलाये बगैर नहीं छोड़ता।
फिर क्यों लोग मेरे पास टिकते? मेरा फायदा न उठा सके तो मेरे पास बैठने का क्या फायदा? है न? हम सब दोस्ती अपने स्वार्थ के लिये ही तो कर लेते हैं?
"दोस्त नहीं है यार?" यह वाक्य ज़हर बुझा लगता था मुझे। जब भी कोई आपका लाभ उठाना चाहे और आप उसे मना करो तो यह सुनने को मिलता है। कुछ दिन में मैं इसका भी रहस्य समझ गया। अब जो भी यह शब्द बोले, वह समझिये गया काम से।
दोस्ती निःस्वार्थ होनी चाहिए। दिल से दिल मिलने चाहिए, जेब से हाथ नहीं। इसी आदर्श दोस्ती को ढूंढता रहा मैं।
फिर क्या हुआ? मैं अकेला होता गया। नितांत अकेला। लगा, सारा जीवन ऐसे ही बिताना होगा। पुरुषों के कठोर व्यवहार, उजड्डता और बद्तमीजी भरे व्यवहार ने मेरी नज़र में उनकी क्षवि गिरा दी।
मेरा ध्यान मीठी आवाज़ और सुंदर चेहरे, कोमल तन, खींचने लगे। प्रेम भरी बातचीत ने लड़कियों के प्रति respect पैदा कर दी। लेकिन पाया कि वे सभी अस्थायी मित्र थीं। किसी के कब्जे में गिरफ्तार। उनके बॉयफ्रेंड थे। पहले लगा कि मेरे जैसे निःस्वार्थ मित्र होंगे लेकिन वे तो possessive हवस के पुजारी ही थे।
कई लड़कों से अनजाने में झगड़ा होते-होते बचा। अब लड़कियों से थोड़ा डर लगने लगा। पता नहीं कब कोई उसका पुराना आशिक, मुझे नया आशिक समझ कर उड़ा डाले?
अबकी बार मैं जब किसी से मिला तो साफ पूछ लिया कि कोई ज़िंदा बॉयफ्रेंड तो नहीं? ज़िंदा इसलिये क्योकि ये लड़के ex-girlfriend को भी किसी लड़के के साथ नहीं देख पाते। उनके लिये वे कार या स्कूटर की वह Stepney बन जाती हैं जो मुश्किल समय मे फिर से इस्तेमाल की जा सकती है।
मैं फिर से अकेला होता गया। जिनका कोई बॉयफ्रेंड नहीं होता दरअसल या तो वे बॉयफ्रेंड के कॉन्सेप्ट से ही नफरत करती निकलतीं या फिर उनको लड़कियों में ही रुचि होती थी।
मैं क्या ढूढ़ रहा था? क्या सामने था? और क्या है यह सब जो हो रहा था? इन्हीं प्रश्नो से जूझता रहता था। जिन लड़कियों से समूह में दोस्ती हुई वे कुछ दिन बाद दोस्त-भाई कहने लगीं मुझे। यह भाई शब्द इसलिये आक्षेपित किया गया था क्योंकि चारों लड़कियों की इस दौरान नए लड़को से दोस्ती हो गई जो उनसे शादी करना चाहते थे और मैं बेचारा प्लेटोनिक love वाला।
भाई का अर्थ था, "शुभ, हम engage हैं। तुम्हारी line closed।"
यही हुआ भी। शादी में दावत के न्योते आये लेकिन शुभ वहाँ कभी नहीं गया। ऐसा साफ लगने लगा था कि विवाह का concept मुझसे मेरे मित्र छीन रहा था। वही मित्र जो कहते थे, बेस्ट फ्रेंड forever! विवाह सबको निगल गया।
देखिये यह विवाहित लड़कियाँ क्या करती हैं?
1. सिम तोड़ के फेंक दो।
2. ब्लॉक करो सभी खास पुरुष दोस्तों को।
3. Good bye!
बस यही होता आया। मुझे कुछ असुरक्षित सा लगने लगा कि मुझे यहाँ भारत में कोई लड़कीं नहीं मिलने वाली जो दोस्त बन सके हमेशा के लिये। मैने लड़कों से यह बातें कहीं तो वे बोले, "अरे बेवकूफ है साला, आज तक प्रोपोस ही नहीं किया और कह रहा है कि लड़की नहीं पटती। जा किसी को भी जाकर दोस्ती के लिए प्रोपोस कर, मान जाए तो कुछ दिन में I love you बोल दे, फिर मान जाए तो शादी के लिये प्रपोज कर दे। कमरे पे ले जा, सुहागरात मना और फिर शिकार पर निकल जा।"
लेकिन मुझे तो किसी अंजान लड़की को ऐसे धोखा देना बहुत गलत लगा। मुझे न जाने क्यों जैसे कोई ऐसा मेरे साथ करे तब कैसा लगेगा? जैसा महसूस हुआ। बहुत बुरा लगा। सोचा कमरे तक नहीं, शादी तक नहीं, सिर्फ दोस्ती तक ही सही लेकिन क्या अंजान लड़की को दोस्ती के लिये पूछना ठीक रहेगा? क्रमशः
आपबीती: शुभाँशु जी 2018©
Note: समस्त पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। यदि किसी घटना और पात्र से कोई समानता पाई जाए तो यह एक संयोग मात्र होगा। धन्यवाद्।
रविवार, जून 03, 2018
यायावर यानी जूम्बी
Nhilism की आड़ में एक नए वैचारिक यायावरों की पीढ़ी पनप गई है। यह वही लोग हैं जिन्होंने ब्लूव्हेल जैसे खेलों को जन्म दिया, सामूहिक आत्महत्या करवाईं और न जाने कितने विद्वानों को मौत के मुहँ में धकेल दिया।
अमरबेल* एक ऐसा ही पौधा होता है जो एक हरे भरे वृक्ष पर उगना शुरू करता है और उसका खून पीकर खुद को बढ़ाता है। यह अपनी ही थाली में छेद करने वालों की तरह होती है। जब यह पनपती है तो पेड़ मुरझाता है। जब यह जवान होती है तो पेड़ वृद्ध हो जाता है। यह इसी वृक्ष के साथ खत्म हो जाती है उसे खत्म करके।
इस बेल के अवशेष हवा के साथ उड़ते हैं और फैलते जाते हैं। इन्हीं की मानव प्रजाति कहलाती है यायावर/घुमंतू/कंजड़/बंजारा आदि। जंतुओं में आंतरिक उदाहरण होंगे फीताकृमि और बाहरी में जोंक।
यह वे लोग हैं जो अपना जीवन यापन किसी व्यापार, खेती या नौकरी से नहीं करते बल्कि जहाँ इनको जो मिल जाता है फलता-फूलता हुआ; उसे नोच कर खा जाना, उसका वंश मिटा देना, उस जमीन पर उगने वाली हर खाने योग्य प्रजाति को खा कर नष्ट कर देना, ज़मीन से बीज तक ख़ाकर उसे बंजर बनाना इनका उद्देश्य होता है। यह वह जगह छोड़ते ही तब हैं जब वह जगह उजड़ जाती है।
उजड़ा चमन छोड़ के नया चमन उजाड़ने चल देते है यह कंजड़/बंजारे। बेमतलब की ज़िंदगी, न कोई मकसद न कोई निश्चित राह। बस नकारात्मक सोच से सींचे हुए अमर बेल की तरह फिर से आबाद को बर्बाद करने निकल पड़ते हैं यह लोग।
अब ऑनलाइन कंजड़ों/यायावरों का क्या मतलब है? ये तो घर में हैं। इन पर सुविधाओं का पूरा इंतज़ाम है। दरअसल यह वैचारिक यायावर हैं। जिनका नकारात्मक उद्देश्य विश्व को निराशावाद में धकेलना और आपस में लड़ा भिड़ा कर समाप्त कर देना है।
यह आपके ऊंचाई पर दिखते ही आपसे जुड़ेंगे और तुरन्त ही आपको हतोत्साहित और तंग करना शुरू कर देंगे। ये आपको गुस्सा दिलाएंगे, और आपको उकसाने का पूरा प्रयास करेंगे ताकि आप एक गलती करो और आपका विध्वंस कर दिया जाए।
जब आप इनको टोकेंगे तो यह कहने लगेंगे, "निंदक नियरे राखिए...
लेकिन आप उनकी तुरन्त निंदा कर दें तो ये आपको ब्लॉक करके भाग जायेंगे। यह इनका बस कवच होता है। खुद निंदा सहने की ताकत इनमें नहीं होती।
यह बस आपकी वह निंदा भी सबको दर्शा कर आपकी क्षवि धूमिल कर देंगे। सकारात्मक सोच कहती है कि नकारात्मक सोच वालों से दूर रहिये। बहुत ज्यादा दूर। नहीं तो यह आपको भी अपने जैसा नकारात्मक बना देंगे। यानी अपने जैसा जूम्बी/यायावर! अब या तो आप इनसे सहमत हो कर इनके समूह में शामिल हो जाइये या फिर यह आपको नष्ट कर देंगे। हतोत्साहित होकर आप लिखना छोड़ देंगे और यह फिर किसी को निगलने आगे बढ़ जायंगे।
वैचारिक आतंकवादी भी कह सकते हैं। यह आपकी हर अच्छी पोस्ट पर कुतर्क करने चले आयेंगे यानी बिना प्रमाण के नकारने। अपनी ही नकारात्मक सोच थोपने। यह ज़ूम्बी हैं। इन्होंने आपको काट लिया तो आप भी इनके जैसे बन जायँगे।
यह खुद घायल होते हैं, किसी लाइलाज बीमारी से जो इनको नकारात्मक सोचने को मजबूर करती है कि सबकुछ सम्भव नहीं।
सावधान। सावधान। सावधान।
जब भी यह शब्द या इनके पर्यायवाची शब्द आपको किसी के प्रोफाइल में दिखें तो समझ जाइये कि आपने एक ज़ूम्बी को पहचान लिया है। यह एक दूसरे को पहचानने के लिये एक पहचान होती है। फिर एक ज़ूम्बी के साथ आपको क्या करना है, शायद मुझे बताने की आवश्यकता नहीं होगी। ~ शुभाँशु जी 2018© 2018/06/03 17:02
https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B2
शनिवार, जून 02, 2018
वस्त्र पुलिस ज़िंदाबाद
शुक्रवार, जून 01, 2018
कचरा पोस्ट
बुधवार, मई 30, 2018
Shubhanshu: एक अकेला
मित्र: आप बताइये शुभाँशु जी, आपको ज्यादा पता है।
शुभ: हाँ, मुझे सच में ज्यादा पता है। क्यों न हो? जिस इंसान ने सारी जिंदगी अपनी मदद से अकेले गुजारी हो उसे ज्यादा पता होना ही होता है। मेरे पास कोई नहीं था जिससे मैं कुछ पूछ सकता।
इसलिये जो किया खुद ही किया। खुद ही जाना, खुद ही दुनिया के सभी रंग देखे। हाँ मैं घायल हुआ, बहुत ज्यादा हुआ लेकिन मरहम भी मुझे ही लगाना था और पट्टी भी मुझे ही बांधनी थी।
इसलिये मैं डॉक्टर भी बना, वकील भी, अपनी रक्षा भी खुद करनी थी तो मैं पुलिस भी बना, अपना गुरु भी मैं ही हूँ और अपना शिष्य भी मैं ही हूँ। आज आप मुझसे पूछ सकते हैं लेकिन याद रखिये मुझे किसी ने नहीं बताया था। ~ शुभाँशु जी 2018©