Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, जून 06, 2018

भारत की बेड़ियाँ

प्रश्न: भारत विकसित देशों के समान तरक्की क्यों नहीं करता?

उत्तर: Well, क्योकि हम सबकुछ हैं (पंजाबी, मराठी, up वाले, बिहारी, कश्मीरी, पहाड़ी, बंगाली, मुस्लिम, हिन्दू, सिख, जैन आदि) लेकिन भारतीय नहीं इसलिये। 

देश टुकड़ों में बंटा है, और बंटना चाहता है। हमें हर दूसरे राज्य के, स्थान के, वर्ग के लोगों से नफरत है। प्रेम किधर है? सिर्फ नामों में? किताबों और फिल्मों में?

सभी अपना-अपना देखते हैं। किसी को परवाह है जैसे दिल्ली, मुम्बई वाले, लेकिन बाकी जगह वालों को परवाह ही नहीं है देश की। सबको अपने घर में सफ़ाई चाहिए लेकिन देश में नहीं।

अपनी चीज अपनी और सरकारी यानी सार्वजनिक संपत्ति को चुरा लाएंगे या तोड़ देंगे। किसी को विकास चाहिए ही नहीं। जब तक खुले में हगने में आंनद आता रहेगा तब तक देश यूं ही देश की टट्टी से महकता रहेगा। ~ शुभाँशु जी 2018©

बौद्ध धर्म (पाली: धम्म) ज़िंदाबाद

: ओये, बौद्ध धर्म को मजाक समझा है क्या? मुझसे तर्क कर। किस धर्म का है तू?

शुभ: धर्ममुक्त। यह बताओ कि गौतम बुद्ध किस धर्म से आये थे?

: हिन्दू धर्म से।

शुभ: हिन्दू धर्म में कितने अवतार माने जाते हैं?

: 24

शुभ्: 23वाँ कौन था?

: गौतम बुद्ध। लेकिन वह ईश्वर में विश्वास नहीं रखते थे।

शुभ: हाँ, क्योकि अवतार खुद ही ईश्वर होता है। वह अपनी ही पूजा क्यों करेगा?

: अब क्या कहूँ? फिर उन्होंने सबसे किसी की पूजा करने से क्यों रोका?

शुभ्: अपने जीते जी किसी अवतार ने अपनी पूजा नहीं करवाई। लेकिन अपने सामने किसी दूसरे की पूजा होते हुए भी नहीं देखा जा सकता।

: फिर उनके अवतार लेने का उद्देश्य क्या था?

शुभ्: मूलनिवासियों (राक्षसों, असुरों) को मनुवादियों (हिंदुओं/सनातनियों) से दूर रखना। अहिंसा का पाठ पढ़ा कर ब्राह्मणो के प्राणों की रक्षा करना। अपने उपदेशों से चोरी न करने, संग्रह न करने, अपरिग्रह यानी मोह न करने के लाभ बता कर ब्राह्मणों को लुटवाने से बचाया।

: लेकिन...उन्होंने तो हिन्दू धर्म की बहुत पोल खोली थी। वह क्यों?

शुभ्: वाल्मीकि रामायण में जब भरत राम को लेने जंगल जाते हैं तो उनका विद्वान दरबारी सुमंत्र चर्वाक मत का प्रयोग करके हिन्दू/सनातन धर्म की धज्जियाँ उड़ाता है।

पूरे 5 पेजों में वह विदुर, पूरे सनातन सम्प्रदाय को झूठा साबित कर देता है। सोचो वह मत उसमें क्या कर रहा है? इसका मतलब वाल्मीकि ने भी हिंदू सम्प्रदाय की पोल उसी के प्रमुख धर्म में खोल रखी थी जो कि बुद्ध के द्वारा किये गए कार्य से एक दम मेल खाता है।

इससे साबित होता है कि गौतम बुद्ध हिन्दू धर्म का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के ग्रँथों में उनका ज़िक्र किया गया हैं। वाल्मीकि रामायण में भी 2 जगह बौद्ध भिक्षु शब्द (क्षेपक/क्षेपण) आया है।
कल्किपुराण में साफ लिखा है कि शूद्र लोग कलयुग में बौद्ध/चर्वाक मत का प्रयोग करके राजनीति करेंगे। उसी का पालन किया जा रहा है। आप हिन्दू ही हो लेकिन दूसरे यानी नास्तिक मत वाले जो कि अहिंसा करने के लिए दानवों को दिया गया था। हो गई न गूगली?

: शुभ् भाई, थोड़ा पानी मिलेगा?

शुभ्: लो पी लो भाई, तुम्हारे लिये ही रखा था। (वह पीता है) तो मैं आगे यह कह रहा था कि...

: और भी कुछ बाकी हैं क्या भाई? (गड़ब)

शुभ्: अरे अभी तो बस शुरू किया है। यह बताओ ब्रह्मा का आसन क्या है? भाजपा का चुनाव चिंन्ह क्या है और महात्मा बुद्ध का आसन क्या है?

: कमल का फूल।

शुभ्: सही, अब यह बताओ ब्रह्मा और महात्मा बुद्ध के सिर के पीछे जो औरा चक्र तेज़ प्रकाश है वह क्या है?

: शायद देवताओं को दर्शाने के लिये यह एक प्रतीक होता है।

शुभ्: मतलब बुद्ध हिन्दू धर्म के एक देवता ही हैं।

: लग तो ऐसा ही रहा है। लेकिन यार बाकी जो चीन और कुछ देश बौद्ध हैं वे क्या मूर्ख हैं?

शुभ्: आपको क्या लग रहा है?

: मूर्ख ही लग रहे हैं। उनकी फिल्में देखीं हैं। सबमें पिशाच, इच्छाधारी नाग, नागिन, हनुमान जैसा कोई देवता, तरह-तरह के जादू टोने भरे पड़े हैं।

शुभ्: सावधान, अब आप मेरी तरह बोल रहे हैं। क्या कोई तर्क नहीं बचा?

: ये लो भाई इस कागज़ पर मैंने अपना मत लिख कर रख दिया है। मेरे जाने के बाद पढ़ लेना।

उसके जाने के बाद मैंने कागज खोला और पढा, "जय धर्ममुक्त!"  ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/06/06 01:32

इस्लाम धर्म ज़िंदाबाद

: ओये तूने इस्लाम को मजाक समझ रखा है? आ मुझसे तर्क कर। किस धर्म से है तू?

शुभ: मैं धर्ममुक्त! आदम और हव्वा कितने साल पहले बने?

: इतना कठिन सवाल? बने होगेे करोड़ो साल पहले।

शुभ्: और इस्लाम कब आया सबके सामने?

: लगभग 1500 साल पहले।

शुभ्: तब तक जो लोग बिना इस्लाम के प्रकाश में इस्लाम के खिलाफ कार्य कर रहे थे उनको सज़ा मिलेगी क्या?

: पता नहीं। यार इस्लाम इतना देर से क्यों आया?

शुभ: मत पूछ भाई, मत पूछ। तुझे तो बताना है बाबू!

: धर्ममुक्त जयते! विजय हो आपकी। मैं भी हो गया धर्ममुक्त! ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/06/06 01:32

ईसाई धर्म ज़िंदाबाद ~ Shubhanshu

: ओये, तूने ईसाईयत को मजाक समझा है क्या? चल मुझसे तर्क कर। किस धर्म से है तू?

शुभ: मैं धर्ममुक्त। सूरज और चांद कौन से दिन बने थे?

: चौथे दिन।

शुभ्: दिन और रात का पता कैसे चलता है?

: सूरज के निकलने और अस्त होने से।

शुभ्: चार दिन कैसे गिने सूरज-चाँद बनाने से पहले?

: हाँ यार, आज तक मैंने ऐसा क्यों नहीं सोचा। कैसे गिने पिछले 3 दिन?

शुभ्: मत पूछ भाई, मत पूछ। तुझें तो बताना है।

: भाई, पानी मिलेगा? ज़रा गला सूख रहा है।

शुभ्: बोल तो मैं रहा हूँ, फिर भी ये लो।

: पानी पीता है...

शुभ्: यह बताओ, पृथ्वी पर जब एक तरफ दिन होता है तो दूसरी तरफ रात होती है। यानि सूर्य का अस्त होना जगह के आधार पर निर्भर होता है। तो यहोवा की आत्मा किस जगह खड़ी होकर सूर्योदय और सूर्यास्त की गणना कर रही थी? क्योकि वास्तव में सूर्योदय और सूर्यास्त जैसा कुछ होता ही नहीं। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है।

: अरे यार, वो आपने क्या बताया था शुरू में?

शुभ्: धर्ममुक्त!

: हाँ वही। विजय हो धर्ममुक्त विचारधारा! धर्ममुक्त जयते! आपकी भी जय हो। मैं भी बन गया आज से धर्ममुक्त! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018©

मंगलवार, जून 05, 2018

मेरा निजी ज़हरबुझा खुलासा

दोस्तों एक बात कहनी थी आपसे। मैं जानबूझ कर अपना स्वभाव अच्छा नहीं दिखाता हूँ क्योंकि फिर लोग मुझसे मिलने की ज़िद करने लगते हैं और मुझे हमेशा के लिये खो देते हैं। (ब्लॉक हो जाते हैं।)

मैं किसी से भी मिल नहीं सकता, यह बात गांठ बांध लीजिये। मैं अंतर्मुखी स्वभाव का हूँ और इस स्वभाव के लोग अन्य लोगों से प्रत्यक्ष नहीं मिलते। इसलिये मेरा प्रयास रहता है कि आप सभी मेरे विचार और लेखन पर ही ध्यान दें।

वास्तविक जीवन में मैं एकांत ज्यादा पसन्द करता हूँ। इसलिये आपको मैं घमण्डी दिखता रहूँगा। मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे नफरत करें लेकिन मेरे विचारों को अपने जीवन में उतार के प्रसन्न रहें। ऐसा निःस्वार्थ व्यक्ति आपको कम ही मिलेगा जो खुद को जला कर दूसरों को रौशनी देना जानता है।

जब भी आप मुझसे ज्यादा लगाव दिखायँगे आपको झटका ज़रूर लगेगा और फिर आपको मुझसे नफरत हो जाएगी। यह बात मैं आपको कभी नहीं बताता लेकिन धीरे-धीरे लोग झटके खा कर विदा ले रहे हैं। सिर्फ लगाव के कारण। मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे नफरत करें। मुझसे मिलने का विचार त्याग दें।

मैं नाम कमाने, राजनीति करने या मित्रों की भीड़ जमा करने नहीं आया। मैं बस एक गुमनाम इंसान हूँ जो बस निःस्वार्थ आपकी मदद करना चाहता है। आपकी इच्छा हो तो मुझे भोजन के लिये धन दे सकते हैं, मकान के किराए के लिये रेंट दे सकते हैं लेकिन मुझे आपकी मेहनत की कमाई से दारू नहीं पीनी।

कुछ नहीं दे सकते तो धन्यवाद से भी मेरा पेट भर सकता है। यही कहना चाहूंगा कि मैं कुछ बहुत अमीर नहीं हूँ जो घमण्ड करूँ खुद पर। मैं आपसे भी गया गुजरा एक इंसान हूँ जो नौकरी नहीं कर सकता, भीख नहीं मांग सकता और इस लायक भी नहीं कि दुकान खोल कर दिन भर उसमें बैठ सकूँ।

जो भी मैं कमाता हूँ वह बातों से ही कमाता हूँ। लोगों को सलाह देकर ही मेरी रोजी चलती है। मेरे पास वे लोग आते हैं जिनके पास असम्भव समस्याओं का पिटारा होता है और मैं उनको समाधान देकर उनसे मुहँ मांगी रकम लेता हूँ। मेरे पास काम करने वाला शरीर नहीं लेकिन दिमाग ज़रूर है और यह दिमाग ही आपसे बात कर रहा है। मैं शरीर हूँ ही नहीं। मैं हूँ सिर्फ एक विचार मशीन। ~ शुभाँशु SC 2018©

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Note: ऊपर लिखी पात्र और घटनाएं कल्पनिक् हैं।

Life is bed of roses! (Yours, not mine)

जीवन, गुलाबों से भरा बिस्तर नहीं है।

हालांकि यह बात पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि यह क्यों कहा गया मेरे पास इसका भी तर्क है।

यह वाक्य उनसे कहा जाता है, जो समझते हैं कि ज़िन्दगी गुलाबों से भरा हुआ बिस्तर है। वे ऐसा क्यों सोचते हैं? ज़रूर वे भी बिना बुनियाद के ऐसा नहीं सोच रहे।

वास्तव में, यह सच है कि हर किसी को अपने जीवन में गुलाब भरे बिस्तर ज़रूर मिलते हैं लेकिन उनमें आधा बिस्तर कांटों से भी भरा होता है। यही वह बात है जिसे जो जानते हैं, वे इसे सिर्फ एक धोखा मानते हैं जबकि जो इस बिस्तर पर लेट कर नहीं महसूस कर पाये वे उसमें छिपे कांटों को भी गुलाब समझ बैठते हैं।

ज़िन्दगी बहुत चालाक है। वह पहले कांटे डालती है, फिर गुलाब की पंखुड़ियों से उनको छिपा देती है। इससे जीना आसान हो जाता है। हम ऊपर से उसे सुगंधित और मुलायम समझ कर उसे अपना लक्ष्य बना लेते हैं और जीवन जीते जाते हैं।

पर सच तो यह है कि हासिल कुछ भी नहीं होता। जल्दी लेट गए तो काँटें चुभ जायेंगे और देर कर दी तो पंखुड़ियां सूख कर बर्बाद हो जायेंगी। अतः यह एक धोखा ही है। इसीलिये कहा जाता है कि "life is not a bed of roses!"

तब क्या किया जाए? मैंने सारी जिंदगी, इस ज़िन्दगी को समझने में ही लगा दी और कुछ हद तक इसकी पहेली को सुलझा भी लिया। लेकिन वो कहते हैं न, जब किसी का पेट भरता है, तो ज़रूर कोई उस रात भूखा भी सोया होता है।

आज के जीवन में अकेले बच्चों को पालना कोई आसान कार्य नहीं है लेकिन आसान तो अकेले कुआँ खोदना भी नहीं है जब सामने ताज़ा पानी टोटी से निकल रहा हो।

कहने का अर्थ है कि बेकार का काम भले ही मेहनत से किया जाए लेकिन उसकी कोई कीमत नहीं होती। फिर भी हम सब ऐसा करते हैं। बेकार का काम।

हम सब दरअसल एक लालच से प्रलोभित हैं। वही bed of roses वाला। हर कोई पढ़ाई, विवाह, बच्चे यह सोच कर करता है क्योंकि उसे लगता है कि भविष्य में वह सुख से रहेगा।

लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। फिर वह कौन से लोग हैं जो सबको उकसाते हैं? Bed of roses के सपने दिखाते हैं? कैसे दावा करते हैं कि उन्होंने bed of roses का सुख भोगा है?

मैंने पड़ताल की। बड़ी बातें सामने आईं। पहली तो यह कि 96% लोग झूठ बोल रहे थे। दूसरी यह कि 4% लोग सच में bed of roses पर लेटे थे। इतनी बड़ी बात को इन्होंने आग की तरह 96% लोगों के बीच फैला रखा था। जब 1 इंसान यह सुख भोग सकता है तो मैं भी भोग सकता हूँ, ऐसा सोच कर लोग जीता-जागता गवाह बन कर पेश आते रहे।

कमाल तो यह था कि सभी दुखी थे लेकिन उनका कोई दोस्त बहुत सुखी था। जब हम उस दोस्त से मिले तो उसने भी यही कहानी सुना दी। असली सुखी दोस्त तो जैसे एक अफवाह था। सभी उसकी सच्चाई को खुद पर रख कर मजबूती दे रहे थे; उस अफवाह को।

लेकिन अफवाह उड़ी कैसे? यह भी सोचने वाली बात थी। हमने बहुत मेहनत की। सालों लगे रहे खोजने में कि कौन है वह सबसे सुखी इंसान?

आखिरकार हमने उसे ढूंढ ही लिया।

उसका राज़ पता किया और हैरान रह गए कि उसने अपने जीवन में कुछ खास नहीं किया था। उसे वह खुशी विरासत में मिली थी। लेकिन उसको वह विरासत देने वाले ने कोई अच्छी ज़िन्दगी नहीं जी थी। वह कष्टों में जिया और किस्तों (installments) में मरा।

हम मोटे तौर पर धीरू भाई अम्बानी और उनके दो बेटों को इस कहानी में fit कर सकते हैं।

तो क्या सीख मिली?

हमने सीखा कि ज़िन्दगी को bed of roses बनाया जा सकता है लेकिन दूसरे के लिये। खुद के लिये नहीं। खुद की तो बची हुई पंखुड़ियों को भी दूसरे के बिस्तर के कांटों के बदले रखना है। खुद के लिये पूरे कांटों की सेज सजानी है। तभी दूसरे के हिस्से में केवल गुलाब आ सकेंगे।

तो अब हम क्या करें? दूसरों को फूल दे दें और खुद के लिये कांटे रख लें? दूसरों को अपने हिस्से का सुख भी बाँट दें ताकि कम से कम वे तो चैन से जी सकें। जो सुख हमने हासिल करने की चाभियाँ खोजी हैं वे दूसरों में बांट जायें?

हाँ यही बेहतर है। मेरे कोई बच्चे नहीं हैं। अपने बच्चे बिगड़ जाते हैं क्योकि हम उनको सही सज़ा नहीं दे पाते और न ही सही परवरिश।

इसलिये सोशल मीडिया पर मौजूद बहुत से बच्चों को अपना समझ कर उनको अपने ज्ञान और अनुभव के मोती बाँट रहा हूँ। वैसे भी मेरा बिस्तर लेटने लायक कहाँ था। Oops!

कभी असमय जागते देखना तो समझ लेना कि कांटों पर लेटा हूँ। नींद कैसे आएगी? अब बस जब सोऊंगा, तब दोबारा न उठने के लिए। ~ शुभाँशु जी 2018©

नोट: सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। कोई भी समानता सिर्फ संयोग मात्र होगी।

सोमवार, जून 04, 2018

अशुभ: प्रेम संघर्ष

बहुत साल पहले एक लड़की को वास्तविक जीवन में दोस्ती के लिए निवेदन किया था।

दरअसल, बहुत अकेला हो गया था मैं। जब भी अपने सहपाठियों के मध्य बैठता था तो क्या सही है और क्या गलत है पर बहस कर बैठता था। जब मैं उनको निरुत्तर कर देता तो वे चिढ़ जाते थे जबकि मुझे लगता था कि दोस्ती मजबूत होगी।

धीरे-धीरे घटिया लोग मुझसे दूर होते गए और अच्छे समझे जाने वाले लल्लू लोग मुझे पसन्द ही नहीं थे। बेवकूफ होना; सीधा होना, अच्छा होना नहीं होता। सीधे दोस्त, हर जगह कायरता की बातें करते, डरते और हारते थे। मैं एक अलग ही प्रजाति था। सीधा तब तक जब तक आप मुझे टेढ़ा होने पर मजबूर न कर दें।

यह प्रजाति कहीं थी ही नहीं। या तो हिंसक लोग थे या फिर एक दम लुल्ल। मैं क्या था कोई कभी समझ नहीं सका। लोग व्हाईट और ब्लैक में अच्छी और बुरी बातों को बांटते रहे और मैंने एक ग्रे शेड चुन लिया। मतलब जब तक गांधीगिरी चलती है चलाओ फिर हिटलर गिरी इस्तेमाल करो।

शक्ल से एक दम लुल्ल लगने वाला मैं अचानक जब अपना रूप बदलता था तो बड़े-बड़े दादाओं के हाथ कांप जाते थे। 2 कदम कब अपने आप वे पीछे चले जाते थे, उनको आज भी नहीं पता चल सका कि यह हुआ कैसे?

आप मुझे, लूट नहीं सकते, आप मुझे ठग नहीं सकते, आप मुझे विश्वास में लेकर धोखा दे सकते हैं लेकिन कीमत चुकाने के लिये तैयार रहना होता है क्योकि मैं किसी को भी उसकी गलती का एहसास दिलाये बगैर नहीं छोड़ता।

फिर क्यों लोग मेरे पास टिकते? मेरा फायदा न उठा सके तो मेरे पास बैठने का क्या फायदा? है न? हम सब दोस्ती अपने स्वार्थ के लिये ही तो कर लेते हैं?

"दोस्त नहीं है यार?" यह वाक्य ज़हर बुझा लगता था मुझे। जब भी कोई आपका लाभ उठाना चाहे और आप उसे मना करो तो यह सुनने को मिलता है। कुछ दिन में मैं इसका भी रहस्य समझ गया। अब जो भी यह शब्द बोले, वह समझिये गया काम से।

दोस्ती निःस्वार्थ होनी चाहिए। दिल से दिल मिलने चाहिए, जेब से हाथ नहीं। इसी आदर्श दोस्ती को ढूंढता रहा मैं।

फिर क्या हुआ? मैं अकेला होता गया। नितांत अकेला। लगा, सारा जीवन ऐसे ही बिताना होगा। पुरुषों के कठोर व्यवहार, उजड्डता और बद्तमीजी भरे व्यवहार ने मेरी नज़र में उनकी क्षवि गिरा दी। 

मेरा ध्यान मीठी आवाज़ और सुंदर चेहरे, कोमल तन, खींचने लगे। प्रेम भरी बातचीत ने लड़कियों के प्रति respect पैदा कर दी। लेकिन पाया कि वे सभी अस्थायी मित्र थीं। किसी के कब्जे में गिरफ्तार। उनके बॉयफ्रेंड थे। पहले लगा कि मेरे जैसे निःस्वार्थ मित्र होंगे लेकिन वे तो possessive हवस के पुजारी ही थे।

कई लड़कों से अनजाने में झगड़ा होते-होते बचा। अब लड़कियों से थोड़ा डर लगने लगा। पता नहीं कब कोई उसका पुराना आशिक, मुझे नया आशिक समझ कर उड़ा डाले?

अबकी बार मैं जब किसी से मिला तो साफ पूछ लिया कि कोई ज़िंदा बॉयफ्रेंड तो नहीं? ज़िंदा इसलिये क्योकि ये लड़के ex-girlfriend को भी किसी लड़के के साथ नहीं देख पाते। उनके लिये वे कार या स्कूटर की वह Stepney बन जाती हैं जो मुश्किल समय मे फिर से इस्तेमाल की जा सकती है।

मैं फिर से अकेला होता गया। जिनका कोई बॉयफ्रेंड नहीं होता दरअसल या तो वे बॉयफ्रेंड के कॉन्सेप्ट से ही नफरत करती निकलतीं या फिर उनको लड़कियों में ही रुचि होती थी।

मैं क्या ढूढ़ रहा था? क्या सामने था? और क्या है यह सब जो हो रहा था? इन्हीं प्रश्नो से जूझता रहता था। जिन लड़कियों से समूह में दोस्ती हुई वे कुछ दिन बाद दोस्त-भाई कहने लगीं मुझे। यह भाई शब्द इसलिये आक्षेपित किया गया था क्योंकि चारों लड़कियों की इस दौरान नए लड़को से दोस्ती हो गई जो उनसे शादी करना चाहते थे और मैं बेचारा प्लेटोनिक love वाला।

भाई का अर्थ था, "शुभ, हम engage हैं। तुम्हारी line closed।"

यही हुआ भी। शादी में दावत के न्योते आये लेकिन शुभ वहाँ कभी नहीं गया। ऐसा साफ लगने लगा था कि विवाह का concept मुझसे मेरे मित्र छीन रहा था। वही मित्र जो कहते थे, बेस्ट फ्रेंड forever! विवाह सबको निगल गया। 

देखिये यह विवाहित लड़कियाँ क्या करती हैं?

1. सिम तोड़ के फेंक दो।

2. ब्लॉक करो सभी खास पुरुष दोस्तों को।

3. Good bye!

बस यही होता आया। मुझे कुछ असुरक्षित सा लगने लगा कि मुझे यहाँ भारत में कोई लड़कीं नहीं मिलने वाली जो दोस्त बन सके हमेशा के लिये। मैने लड़कों से यह बातें कहीं तो वे बोले, "अरे बेवकूफ है साला, आज तक प्रोपोस ही नहीं किया और कह रहा है कि लड़की नहीं पटती। जा किसी को भी जाकर दोस्ती के लिए प्रोपोस कर, मान जाए तो कुछ दिन में I love you बोल दे, फिर मान जाए तो शादी के लिये प्रपोज कर दे। कमरे पे ले जा, सुहागरात मना और फिर शिकार पर निकल जा।"

लेकिन मुझे तो किसी अंजान लड़की को ऐसे धोखा देना बहुत गलत लगा। मुझे न जाने क्यों जैसे कोई ऐसा मेरे साथ करे तब कैसा लगेगा? जैसा महसूस हुआ। बहुत बुरा लगा। सोचा कमरे तक नहीं, शादी तक नहीं, सिर्फ दोस्ती तक ही सही लेकिन क्या अंजान लड़की को दोस्ती के लिये पूछना ठीक रहेगा? क्रमशः

आपबीती: शुभाँशु जी 2018©

Note: समस्त पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। यदि किसी घटना और पात्र से कोई समानता पाई जाए तो यह एक संयोग मात्र होगा। धन्यवाद्।

रविवार, जून 03, 2018

यायावर यानी जूम्बी

Nhilism की आड़ में एक नए वैचारिक यायावरों की पीढ़ी पनप गई है। यह वही लोग हैं जिन्होंने ब्लूव्हेल जैसे खेलों को जन्म दिया, सामूहिक आत्महत्या करवाईं और न जाने कितने विद्वानों को मौत के मुहँ में धकेल दिया।

अमरबेल* एक ऐसा ही पौधा होता है जो एक हरे भरे वृक्ष पर उगना शुरू करता है और उसका खून पीकर खुद को बढ़ाता है। यह अपनी ही थाली में छेद करने वालों की तरह होती है। जब यह पनपती है तो पेड़ मुरझाता है। जब यह जवान होती है तो पेड़ वृद्ध हो जाता है। यह इसी वृक्ष के साथ खत्म हो जाती है उसे खत्म करके।

इस बेल के अवशेष हवा के साथ उड़ते हैं और फैलते जाते हैं। इन्हीं की मानव प्रजाति कहलाती है यायावर/घुमंतू/कंजड़/बंजारा आदि। जंतुओं में आंतरिक उदाहरण होंगे फीताकृमि और बाहरी में जोंक।

यह वे लोग हैं जो अपना जीवन यापन किसी व्यापार, खेती या नौकरी से नहीं करते बल्कि जहाँ इनको जो मिल जाता है फलता-फूलता हुआ; उसे नोच कर खा जाना, उसका वंश मिटा देना, उस जमीन पर उगने वाली हर खाने योग्य प्रजाति को खा कर नष्ट कर देना, ज़मीन से बीज तक ख़ाकर उसे बंजर बनाना इनका उद्देश्य होता है। यह वह जगह छोड़ते ही तब हैं जब वह जगह उजड़ जाती है।

उजड़ा चमन छोड़ के नया चमन उजाड़ने चल देते है यह कंजड़/बंजारे। बेमतलब की ज़िंदगी, न कोई मकसद न कोई निश्चित राह। बस नकारात्मक सोच से सींचे हुए अमर बेल की तरह फिर से आबाद को बर्बाद करने निकल पड़ते हैं यह लोग।

अब ऑनलाइन कंजड़ों/यायावरों का क्या मतलब है? ये तो घर में हैं। इन पर सुविधाओं का पूरा इंतज़ाम है। दरअसल यह वैचारिक यायावर हैं। जिनका नकारात्मक उद्देश्य विश्व को निराशावाद में धकेलना और आपस में लड़ा भिड़ा कर समाप्त कर देना है।

यह आपके ऊंचाई पर दिखते ही आपसे जुड़ेंगे और तुरन्त ही आपको हतोत्साहित और तंग करना शुरू कर देंगे। ये आपको गुस्सा दिलाएंगे, और आपको उकसाने का पूरा प्रयास करेंगे ताकि आप एक गलती करो और आपका विध्वंस कर दिया जाए।

जब आप इनको टोकेंगे तो यह कहने लगेंगे, "निंदक नियरे राखिए...

लेकिन आप उनकी तुरन्त निंदा कर दें तो ये आपको ब्लॉक करके भाग जायेंगे। यह इनका बस कवच होता है। खुद निंदा सहने की ताकत इनमें नहीं होती।

यह बस आपकी वह निंदा भी सबको दर्शा कर आपकी क्षवि धूमिल कर देंगे। सकारात्मक सोच कहती है कि नकारात्मक सोच वालों से दूर रहिये। बहुत ज्यादा दूर। नहीं तो यह आपको भी अपने जैसा नकारात्मक बना देंगे। यानी अपने जैसा जूम्बी/यायावर! अब या तो आप इनसे सहमत हो कर इनके समूह में शामिल हो जाइये या फिर यह आपको नष्ट कर देंगे। हतोत्साहित होकर आप लिखना छोड़ देंगे और यह फिर किसी को निगलने आगे बढ़ जायंगे।

वैचारिक आतंकवादी भी कह सकते हैं। यह आपकी हर अच्छी पोस्ट पर कुतर्क करने चले आयेंगे यानी बिना प्रमाण के नकारने। अपनी ही नकारात्मक सोच थोपने। यह ज़ूम्बी हैं। इन्होंने आपको काट लिया तो आप भी इनके जैसे बन जायँगे।

यह खुद घायल होते हैं, किसी लाइलाज बीमारी से जो इनको नकारात्मक सोचने को मजबूर करती है कि सबकुछ सम्भव नहीं।

सावधान। सावधान। सावधान।

जब भी यह शब्द या इनके पर्यायवाची शब्द आपको किसी के प्रोफाइल में दिखें तो समझ जाइये कि आपने एक ज़ूम्बी को पहचान लिया है। यह एक दूसरे को पहचानने के लिये एक पहचान होती है। फिर एक ज़ूम्बी के साथ आपको क्या करना है, शायद मुझे बताने की आवश्यकता नहीं होगी। ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/06/03 17:02

https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B2

शनिवार, जून 02, 2018

वस्त्र पुलिस ज़िंदाबाद

महिलाओं को गैरज़रूरी शरीर ढँकना, शर्मगाहों (यौन अंग) ढंकने, यहाँ तक कि चेहरा भी छुपाने 😂 की सलाह आपको धार्मिक पुरूष देंगे। उनको खुद से बचाने के लिये। 😂 तो इनकी रिश्तेदार महिलाओं, गलती से भी इनको अपना चेहरा मत दिखा देना। उसमें भी एक छेद दिखता है इनको। अपने ही लोगों से बचाने के लिये कानून नहीं बल्कि वस्त्र पुलिस की ज़रूरत है।

वस्त्र पुलिस ज़िंदाबाद!

साले बलात्कारी धार्मिकता के चोले ओढ़े घटिया लोग। जिनको खुद पर भरोसा नहीं। छी। कैसे बलात्कारी सँस्कृति और धर्म हैं जो खुद पर काबू रखना नहीं सिखाते बल्कि वस्त्रों में छिपा कर बन्द मुट्ठी लाख की बना देते हैं। जबकि वह खाक की है। टेढ़े-मेढ़े शरीरों को कोई शौक से नहीं देखता। ढंकते वही हैं जिनका शरीर बेडौल होता है। अपनी कमी छुपाने का बहाना है कि वे अपना ख्याल नहीं रखते।

हम नँगा देखना चाहते हैं? हाँ जी हम सब नँगे पैदा होते हैं तो क्या हमें कोई नहीं देखना चाहता? आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सूट-बूट में पैदा हो?

नहीं, आप उसे नँगा ही पैदा होता देखना चाहते हो। नवजात शिशु से बलात्कार करने वालों को ऐसा कुछ करना चाहिए कि बच्चे भी कपड़े पहन के पैदा हो। 😬

कपड़े पहन कर क्या दिखाना चाहते हो? कि अगर कानून के मुताबिक न पहनें तो कानून के डर के बिना अपने ही लोग आपके साथ बलात्कार कर देंगे? अगर सिर्फ कपड़ा ही बलात्कार रोकता है तो कानून किस के लिए बनाया है? ख़त्म करो कानून। जब आपकी वस्त्र पुलिस है न! ~ Vn. Shubhanshu SC 2018©

शुक्रवार, जून 01, 2018

कचरा पोस्ट

बुद्धिमान व्यक्ति भीड़ से दूर रहता है। भीड़ स्वतः ही मूर्ख बन जाती है। चाहें उसमें कुछ विद्वान भी हों। जहाँ जनसँख्या कम होती है, वह brain उस जगह या देश को प्रस्थान कर जाता है। जो अभागे नहीं कर पाते, वह अकेले रह कर इस एहसास को पैदा कर लेते हैं।

इन्हीं कारणों से बुद्धिमान व्यक्ति देश से चिपक कर नहीं बैठता। वह अपने जीवन को महत्व देता है और उनको नहीं समझाता जो समझना नहीं चाहते।

यही प्रक्रिया ब्रेन ड्रेन कहलाती है। अर्थात देश से बुद्धिमान व्यक्तियों का पलायन। उस मूर्खतापूर्ण व्यवहार के कारण जो उनके साथ उनके पैतृक देश में रोज होता है।

इस प्रकार देश में केवल खुद को देशभक्त या राष्ट्रवादी कहने वाले मूर्ख लोग बढ़ जाते हैं क्योंकि वे अपने देश से चिपक जाते हैं और विदेशों से नफरत करते हैं।

यह लोग बस हंगामा करने, दंगा करने, देशभक्ति के गीत गाने, सँस्कृति की रक्षा के नाम पर आधुनिक और विद्वान लोगो के साथ हिंसा करने, महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझने और धर्म को राष्ट्र से जोड़ने को ही राष्टवाद कहते हैं।

यह नक्शे पर खिंची लाइन को देश कह कर बाकी दुनिया को नीचा दिखाने, समझने पर ज़ोर देते हैं और उसके लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। इनके लिए धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं और इससे वे अपनी गलतियों को भी सही मान कर हमेशा पिछड़े बने रहते हैं।

मुझे हैरानी है कि RSS के राजनैतिक उपभाग BJP ने कैसे अपनी नीतियों के विरुद्ध जाकर ऑनलाइन सरकार और स्मार्टसिटी जैसी आधुनिक परियोजनाओं को बल दिया। आधारकार्ड, डायरेक्ट खाते में सब्सिडी, 100% FDI, कैशलेस इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, शौचालयों का निर्माण, प्रीपेड बिजली, जनसुनवाई app, आवास योजनाएं, आदि जनउपयोगी कार्य कर दिखाए।

लेकिन यह अच्छे संकेत हैं कि हिंदुत्ववादी rss अब अपने मूल्यों से पीछे हट रही है और यह हमारे लिए अच्छे संकेत हैं।

लेकिन सरकार मूर्खता करना भी नहीं छोड़ रही। पहले विमौद्रीकरण में अव्यवस्था, फिर रोडशो, यज्ञ, व ऐशोआराम, सरकार के प्रचार में जनता का धन बर्बाद करना आदि जन विरोधी गतिविधियों ने आरएसएस और BJP के मध्य एक खाई खोदने का काम शुरू कर दिया है जिसका अब मिलाजुला प्रभाव देखने को मिल रहा है।
धार्मिक जड़ता और आरएसएस के 1925 के बने उद्देश्य आज छछून्दर बन कर bjp रूपी सांप के गले में फँस गए हैं। जिसे वह न तो उगल पा रही है और न ही निगल पा रही है। फिलहाल यह जनता, सब जानती है और यह अपने लिए जो भी चुनती है यह उसकी अपनी इच्छा है जिस पर हम कोई सवाल उठाना उचित नहीं समझते।
कम से कम तब तक जब तक सिविल परीक्षाओं में IAS की तरह देश के नेता नहीं चुने जाते। धन्यवाद! ~ शुभाँशु जी 2018©